
मधु-संचय
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(संकलनकर्ता-श्री गंगा प्रसाद जी अग्रवाल आरंग)
(1) परस्त्री का स्पर्श न करो।
(2) अपनी बड़ाई न सुनो। (इससे अहंकार बढ़ता है।)
(3) दूसरों की निन्दा न सुनो। (इससे घृणा, द्वेष, क्रोध वैर आदि दोष मन में पैदा होते हैं।)
(4) परचर्चा फालतू बातें न सुने। (इससे मुँह से झूँठे शब्द निकल सकते हैं, फालतू समय जाता है।)
(5) भोगों की बातें न सुनें।
(6) स्त्रियों के रूप को बुरी दृष्टि से न देखे।
(7) गन्दी चेष्टा एक भी न रखें।
(8) कड़वा न बोलें (इससे दूसरे की आत्मा को दुख पहुँचता है और बैर बढ़ता है।)
(9) किसी की निन्दा या चुगली न करें।
(घृणा, द्वेष, हिंसा आदि दोष पैदा होते हैं।)
(10) अपनी बड़ाई न करें। (खुशामद पसन्दगी आती है।)
(11) मिथ्या न बोलें (इससे समस्त धर्मों का नाश होता है वाणी का तेज घट जाता है।)
(12) ताना न मारें! आक्षेप न करें! अपशब्द न बोलें! अश्लील न बोलें! अपने लिये किसी से कुछ न माँगें।
(13) ज्ञान तीर्थ है, धैर्य तीर्थ है तथा पुण्य भी तीर्थ कहा गया है किन्तु जो मन की उत्कृष्ट शुद्धि है-यही तीर्थों का भी तीर्थ है।
(14) सब आते हैं और चले जाते हैं न कुछ ले आते हैं न कुछ ले जाते हैं परन्तु एक क्षणिक मोह के लिए तरसते रह जाते हैं।
(15) अधिक से अधिक योग्यता प्राप्त कर समाज की अधिक से अधिक सेवा करना और निर्वाह मात्र के लिए कम से कम लेने के मायने “भीख” है। पहले के ब्राह्मण ऐसे ही भीख माँगते थे-आज भी ऐसे ही लोग भीख माँगने के पात्र हैं-उन्हीं को वह दी भी जाए और दी जाय अन्धे, लंगड़ों, लूलों, अपाहिजों को! औरों को नहीं इसके अतिरिक्त जो भीख माँगते हैं, वह समाज के चोर हैं!
सत्य और तथ्य
(1) वायु से भी शीघ्र गामी क्या है-मन (2) तिनकों से भी अधिक असंख्य कौन है-चिन्ता (3) प्रवासी का मित्र कौन है-साथी (4) गृह वासी का मित्र कौन है-भार्या (5) बीमार का मित्र कौन है-वैद्य (6) मरे आदमी का मित्र कौन है-दान (7) सब प्राणियों का अतिथि कौन है-अग्नि (8) धर्म का स्थान क्या है-सब के अनुकूल रहना (9) यश की चरम सीमा क्या है-किसी की बुराई न करना (10) सब बातों में उत्तम बात क्या है-सब के अनुकूल रहना (11) उत्तम धन क्या हैं- शास्त्र ज्ञान।