Magazine - Year 1951 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
महात्मा गाँधी की अमर वाणी
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
-धर्म सिखाता है कि अत्याचारी का खून करने की अपेक्षा उसे खून देने के लिए तैयार होना बेहतर है। पर अन्याय देखकर पलायन करने से तो हम पशु से भी गये बीते हो जाते हैं।
-शुद्ध उपवास से शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि होती है। उपवास के देह को कष्ट होता है और उतनी ही आत्मा मुक्त हो जाती है।
-उपवास केवल दिखाने के लिए या डराने के लिए ही हो तो वह केवल पाप कर्म ही कहा जाता है, इस कारण प्रार्थना युक्त अपने ही ऊपर असर करने के लिए प्रायश्चित रूप होने वाला उपवास ही, धार्मिक-उपवास जानना चाहिए।
-उपवास तो सच्चा तभी कहलाता है जब उपवास के साथ शुद्ध विचारों का सेवन हो और अधम वासनाओं के विरोध करने का संकल्प हो।
-ब्रह्मचर्य का अर्थ कान, आँख, नाक, जीभ और चर्म-इन सब इन्द्रियों का संयम है। यह धर्म केवल संन्यासी के लिए नहीं, सद् गृहस्थों के लिए है। जो इस सदा नियम का पालन न करता हो वह सद् गृहस्थ नहीं।
-अपने समक्ष आने वाले कर्तव्य के पालन करने में भविष्य का विचार न करना इसका नाम ही निष्काम कर्म है-और यही धर्म है।
-मेरा हिन्दु धर्म मुझे सिखाता है कि मुझे भलाई करने पर फल की आशा नहीं रखनी चाहिए और अच्छे का नतीजा अच्छा होगा-यह विश्वास करना चाहिए।
-हमें धर्म का मूल कर्तव्य पालन से मिल सकता है, कर्तव्य पालन में आपको कभी किसी मनुष्य से डरने की आवश्यकता न होगी। आप केवल परमेश्वर से भयभीत होंगे।
-हमने धर्म की पकड़ छोड़ दी। वर्तमान युग के बवण्डर में हमारी समाज-नाव भँवर में पड़ी हुई है। कोई लंगर नहीं रहा, इसलिए इस समय इधर-उधर के प्रवाह से बह रही है।
-आध्यात्मिक दृष्टि से हमारे देश को तभी वस्तुतः प्राधान्य मिलेगा जब उसमें सुवर्ण की अपेक्षा सत्य की, ऐश्वर्य की अपेक्षा निर्भयता की, देहासक्ति की अपेक्षा परोपकार की समृद्धि देख पड़ेगी।
-प्रजा को, निर्बल को सताकर कोई पुण्यवान् नहीं होता। जिसे पापी होना हो उसे पाप करने का अख़्तियार है। पाप होने की आजादी पर भी जो पाप नहीं करता वही पुण्यवान् कहलाता है और उसी से देश का लाभ होता है।
-जो अपराध हमने किये उनसे भली-भाँति घृणा न करें, तब तक दूसरे के दोष देखने या बताने का हमें हक ही नहीं हो सकता।
-चाहे जीतना गुस्से का कारण मिलने पर भी जो मनुष्य गुस्से से आधीन होकर उसकी सान नहीं करता, वही जीतता है। उसी ने धर्म का पालन किया कहा जायेगा।
-जो मदद बदला चाहे भाड़े की है। भाड़े की मदद भाईचारे का चिन्ह नहीं कहलाती। मिलावट की सीमेन्ट जैसे पत्थर को नहीं जोड़ सकती उसी तरह किराये की मदद “ किराये की मदद भाई-बन्दी नहीं होती।”
-एक पशु दूसरे पशु को केवल अपने शारीरिक बल से वश में कर लेता है। उसकी जाति का यही कायदा है। मनुष्य जाति का स्वाभाविक कायदा प्रेम-बल से, आत्मिक-बल से, दूसरे को जीतने का है।
-क्रोध के आवेश में आकर जब मनुष्य दूसरे पर प्रहार करता है, तब वह अपने आप परास्त होता है, और अपना सामना करने वाले का अपराधी होता है। जब मनुष्य क्रोध से पीड़ित होकर अपने आप दुःख सहन करता है। तब वह अपने ऊपर पवित्र असर पैदा करता है।
(देश-देशान्तरों से प्रचारित, उच्चकोटि की आध्यात्मिक मासिक पत्रिका)
वार्षिक मूल्य 2॥) सम्पादक - श्रीराम शर्मा आचार्य एक अंक का।)