Magazine - Year 1951 - Version 2
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Language: HINDI
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माया का मोहक आकर्षण
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(श्री रामकृष्ण परमहंस)
लोग इन विश्वउद्यान को देखकर उस पर ही विमोहित हो जाते हैं। इस उद्यान की एक कली (अर्थात् स्त्री) जब ऋषियों मुनियों और योगियों तक के मन को अपने काबू में किये हुये है तो फिर साधारण लोगों का क्या जिक्र? उद्यान स्वामी (परमात्मा) के दर्शन की लालसा कितने जनों को होती है?
चाँद की छाया दर्पण में दिख पड़ती है। बालक उस छाया पर मोहित हो जाता है। उसको देखते-2 वह अपने आप को भूल जाता है। उस चाँद छाया के अतिरिक्त कोई प्रकृत चाँद भी है, बालक को इसका ज्ञान नहीं। बालक नहीं जानता कि प्रकृत चाँद इस छाया चाँद से अनन्त गुणा सुन्दर है। दर्पण अपने स्थान से हिल जाता है छाया चाँद उसमें दिखाई नहीं देती। बालक उस छाया चाँद के लिये रोता है। माता फिर शीशे को यथा स्थान रख देती है। बालक छाया को वापस देखकर प्रसन्न हो जाता है।
इस विश्व रूपी दर्पण में भगवान की छाया है। यह छाया-भगवान् की माया-इतनी प्रबल है कि बड़े-2 ऋषियों मुनियों को भ्रमित कर देती है। संसार के विषय भोगों में जो आनन्द है वह ब्रह्मानंद का आभास मात्र है, किन्तु इस आभास में इतना आकर्षण है कि माया विमोहित प्राणी विषय सुख को ही परम सुख और जीवन का लक्ष्य मान कर उसके पीछे-2 भागते फिरते हैं और परमानन्द के झरने से कोटि-कोटि कोस दूर रहते हैं। जिस समय मानव के सिर पर दुःख का पहाड़ गिरता है, उस समय थोड़ी देर के लिए इस संसार की असारता का ज्ञान होता है और उसका मन भगवान की ओर आकर्षित होता है, किन्तु बाद में माया की “मैं तू” मनुष्य को अपने जाल से, निकलने नहीं देती। दूसरे ही पल “मैं तू” उसको अपनी ओर खेंच लेती है।
कान, आँख, नाक, सीना, और त्वक इत्यादि पाँच इन्द्रियों द्वारा हमें संसार के समस्त पदार्थों का ज्ञान होता है, और इनके द्वारा ही हम सर्व विषयों को भोगते हैं। यह इन्द्रियाँ मन को विषयों के पीछे-2 भटकाती फिरती हैं। शब्द, रूप, रत्न, गंध और स्पर्श यह पाँचों विषय अति प्रबल हैं, विषय अपनी मोहिनी आकर्षण शक्ति द्वारा प्राणी मात्र को ही अपने वशीभूत किये हुए हैं। कोई शब्द पर आसक्त है, और कोई रूप का दिवाना है, कोई रस के पीछे-2 भागता है, कोई गन्ध में लीन हैं और कोई स्पर्श सुख की लालसा से अधीर हो रहा है। सकल विषय ही प्रबल हैं, किन्तु इनमें स्पर्श-सुख, स्त्री-सुख सबसे प्रबल है। पशु-पक्षी, कीट-पतंग, प्राणी मात्र ही स्त्री जाति के वशीभूत हो रहे हैं। विशेषतः मनुष्य कामिनी में इतना आसक्त है कि कामिनी ही उसके ज्ञान, ध्यान, और पूजा का विषय हो रही है। ब्रह्मादिक देवता भी इस कामिनी की मोहिनी शक्ति द्वारा अधीर हो गये तो फिर साधारण पुरुषों का क्या कहना?
लाखों में कोई ही ऐसा वीर है, जो इन स्थूल विषयों की मोहिनी माया से बच निकले। जब मनुष्य संसार के दुःख और आपदों से हताश हो जाता है, और विषय-भोगों में तुष्टि नहीं पाता तो उसका मन संसार के विषयों से विरक्त हो ईश्वर की ओर झुकता है, किन्तु स्थूल विषयों से विरक्त होने से ही काम नहीं चलता। सूक्ष्म विषय मन को आ घेरते हैं। लोक मान, स्तुति, अभिमान मन को घेरे रहते हैं। इनसे मुक्ति पाने पर अनेक प्रकार की ऋद्धि-सिद्धियों में मन भूल जाता है। प्रथम तो सहस्रों मनुष्यों में कोई ही भगवान प्राप्ति के लिये यत्न करता है, और उन यत्न करने वालों में हजारों में कोई एक सिद्धि को प्राप्त होता है, और उन सिद्धों में हजारों में कोई एक भगवान के स्वरूप को तत्वतः जानता है।
यह भगवान की माया अति दुस्तर है, किन्तु जो लोग भगवान की शरण में आते हैं वे इसको तर सकते हैं। किन्तु भगवान् की शरण लेना ही अति कठिन काम है। भगवान् की कृपा बिना भक्ति प्राप्त नहीं होती। महापुरुषों की कृपा अथवा भगवान् की दया से ही भक्ति का संचार होता है। जिस पर भगवान की कृपा होती है उसे भगवान की माया मोहित नहीं कर सकती। जिस प्रकार मदारी के शिष्य को मदारी की माया मोहित नहीं कर सकती, उसी प्रकार भगवान की माया भगवान के दास को नहीं व्यापती।