Magazine - Year 1952 - Version 2
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अनजान से सुजान
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(प्राणाचार्य वैद्य मनीराम शर्मा श्री गंगा नगर)
आज अखंड ज्योति के पाठकों के सम्मुख अपने जीवन की एक नितान्त सत्य घटना, इच्छा न होते हुए भी आचार्य जी के आग्रह के कारण उपस्थित कर रहा हूँ।
मैं अपने अतीत जीवन की धुँधली सी छाया में अपने गुरुदेव के वे वाक्य आज भी सुन रहा हूँ-”बेटा! गायत्री में अचिन्त्य शक्तियाँ हैं जो तर्क गम्य नहीं, इसके सिद्ध होने पर सब सिद्धियाँ संभव हैं।”
विक्रमी संवत् 1983 में मैं चुहड़ीवाला धन्ना जि. फोरेजपुर (पंजाब) में अध्यापन कार्य करता था। सनातन धर्म सभा के तत्वावधान में हमारा स्कूल बड़ी अच्छी तरह चल रहा था। इसी बीच में एक प्रति द्वन्द्वी संस्था पैदा हुई और उसने भी अपना एक स्कूल खोल दिया। नये उत्साह में नया प्रवाह अधिक होता है, लोग उसकी ओर अधिक आकर्षित हुए। उन दिनों पंजाब में कचहरी की भाषा उर्दू थी। अतः उर्दू का उधर बहुत प्रचार था। प्रतिद्वंद्वी स्कूल में उर्दू की पढ़ाई का अच्छा प्रबन्ध कर दिया। जनता को उर्दू की आवश्यकता थी। अधिकाँश विद्यार्थी उसी ओर खिसक गये।
हमारा धार्मिक स्कूल था, इसीलिए उसमें हिन्दी ही पढ़ाई जाती थी। मैं उर्दू जानता न था। आर्थिक स्थिति भी अच्छी न थी जिससे उर्दू का मास्टर रखा जाता। निदान ऐसा प्रतीत होने लगा कि हमारा स्कूल बन्द हो जायगा। इस समस्या पर विचार किया गया पर कोई हल न निकल सका।
स्मरण रहे इससे पूर्व में गुरुदेव के आदेशानुसार गायत्री का एक अनुष्ठान कर चुका था। जिसका पूर्ण वर्णन न आवश्यक है न उचित। एक रात्रि को मैं किंकर्तव्य विमूढ़ होकर अपनी दयनीय दशा पर आँसू बहाये माँ के चरणों पर वे ही अश्रु बिन्दु चढ़ाकर सो गया।
प्रातः काल 4 बजे का समय था। स्वप्न में मुझे एक ज्योतिर्मय स्वरूप नजर आया। उसने चमकते हुए एक एक पत्र पर उर्दू के कुछ अक्षर लिखकर दिखाये, स्वप्न में ही मैंने कहा मैं नहीं जानता यह सब क्या है। इस पर वे अक्षर बदले और ऊपर हिन्दी और नीचे उर्दू के अक्षर हो गये। मेरे नेत्र खुले। जाग्रत में भी वे अक्षर मुझे दीख से रहे रहे थे। मैंने शीघ्र ही उन्हें एक पत्र पर लिख डाला जो आज भी मेरी डायरी में अंकित हैं।
मैंने स्कूल में जाकर एक उर्दू का “कायदा” मँगाया और सारा पढ़ डाला। उसी दिन पहली और दूसरी पुस्तक भी पढ़ डाली और तीन दिन के बाद हमने यह घोषणा कर दी कि आठवीं कक्षा तक हमारे स्कूल में पढ़ाई की जायगी। वैसा ही हुआ भी दूसरे स्कूल की अपेक्षा हम अधिक अच्छी तरह उर्दू पढ़ाने लगे और हमारा स्कूल पूर्ववत् अच्छी स्थिति में चलने लगा।
इस घटना को हमारे साथी बिल्कुल न समझ सके कि उर्दू से बिल्कुल अनभिज्ञ व्यक्ति अचानक कैसे अध्यापक बन गया। इसकी सत्यता में यदि किसी को संदेह हो तो आज भी चुहड़ी वाला जाकर इस बात की सच्चाई की जाँच कर सकते हैं। हमारे स्कूल के विद्यार्थी दूसरे स्कूल के मुकाबले में सदा ही अच्छे नम्बरों से पास होते थे। भले ही किसी को यह साधारण सी बात प्रतीत हो पर मेरे लिए यह महान आश्चर्य की घटना है। इसी प्रकार की अन्य कई घटना मेरे जीवन में हुई हैं।
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