Magazine - Year 1953 - Version 2
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Language: HINDI
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परिभाषा (Kavita)
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जो अयाचित हो उसी को दान कहते हैं!
क्या हुआ नभ पर न यदि खग का बसेरा हो सका?
क्या हुआ अरमान यदि पूरा न मेरा हो सका?
जो अधूरा हो उसे अरमान कहते है!
चीर कर गिर के हृदय को बह रही सरिता अबाधित!
उर्मियों में हो रहा कल कल, सजल क्रन्दन निनादित!!
कवि उसे गिर के हृदय का गान कहते हैं!
जो परायी पीर पर यदि आह भर सकता नहीं।
जो किसी के प्यार पर विश्वास कर सकता नहीं॥
उस अभागे प्राण को पाषाण कहते हैं।
जो अयाचित हो उसी को दान कहते हैं॥