Magazine - Year 1953 - Version 2
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Language: HINDI
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(1) इस अंक के साथ अखण्ड ज्योति के अधिकाँश ग्राहकों का चन्दा समाप्त हो जाता है। इस लिए ग्राहकों से प्रार्थना है कि अपना चन्दा ढाई रुपये मनी आर्डर से तुरन्त भेज दें।
(2) अखण्ड-ज्योति उतनी ही छपती हैं जितने उसके ग्राहक होते हैं। देर से चन्दा भेजने का परिणाम यह होता है कि पिछले अंक समाप्त हो जाने पर ग्राहकों की फाइलें अधूरी रह जाती हैं। पिछले अंक समाप्त हो जाने पर वे किसी भी मूल्य पर उपलब्ध नहीं हो पाते।
(3) इस वर्ष सरकार ने बी. पी. खर्च और पोस्टेज बहुत बढ़ा दिया है। इसलिए अखंड ज्योति की वी. पी. भेजने में 1 रु.) अतिरिक्त खर्च पड़ता है। मनीआर्डर फीस समेत 2॥) की अपेक्षा 3 रु.) की वी. पी. पहुँचती है। इसलिए अखण्ड ज्योति की वी. पी. मँगाने में प्रत्यक्ष ही दोनों ओर की हानि है। पाठकों से प्रार्थना है कि वी. पी. की प्रतीक्षा न करे। चन्दा मनीआर्डर से ही भेजें।
(4) अधूरे वर्ष के चन्दे का हिसाब रखने में हमें बहुत भारी अड़चन पड़ती है। इसलिए जिन सदस्यों का चन्दा बीच के किसी मास में समाप्त होता है उनसे प्रार्थना है कि सन् 54 के जितने मास का चन्दा शेष हो उसे भी भेज कर अपना हिसाब जनवरी से दिसम्बर तक का ही कर लें।
(5) जनवरी 54 का अंक “यज्ञ अंक” होगा। इसमें यज्ञ की वैज्ञानिक गवेषणा और विवेचना रहेगी। ऐसी अलभ्य सामग्री अब तक कहीं से भी प्रकाशित नहीं हुई है। यह अंक संग्रहणीय और अवलोकनीय ही होगा।
(6) गत वर्षों में अखण्ड-ज्योति अपना कागज छपाई और टिकट खर्च स्वयं पूरा कर लेती थी। सम्पादन, दफ्तर, क्लर्क आदि का खर्च तो अखण्ड ज्योति के हिसाब में एक पाई का भी जोड़ा नहीं जाता। इस वर्ष तिरंगा कवर लगाने के कारण प्रति ग्राहक पीछे प्रायः सात पैसे का नुकसान रहता है। अर्थात् कागज छपाई और टिकट की लागत 2 रु. आई है। यदि ग्राहक संख्या इतनी ही रही तो यह घाटा अगले वर्ष भी रहेगा। जो पाठक अखण्ड ज्योति से सचमुच प्यार करते हों उनसे प्रार्थना है कि अपना सब कुछ समय खर्च करके कुछ नये ग्राहक बढ़ाने का प्रयत्न करें ताकि यह सद्ज्ञान प्रसार की ‘अखण्ड ज्योति’ ठीक प्रकार जलती रहे।
(7) यहाँ से हर महीने दो बार जाँच कर हर महीने ठीक समय पर अखण्ड ज्योति भेजी जाती है। अंक न पहुँचने का कारण डाक की गड़बड़ी ही होती है। जो अंक न पहुँचे उसकी सूचना उसी महीने देनी चाहिए ताकि दुबारा वह भेजा जा सके। कई महीने बाद सुधि लेने से पुराने अंक समाप्त हो जाते हैं तब उन्हें भेजना सम्भव नहीं रहता। इसी प्रकार पता बदलने की सूचना भी तुरन्त देनी चाहिए नहीं तो पिछले पते पर अंक जाते रहते हैं। पत्र व्यवहार में अपना ग्राहक नम्बर लिखना और उत्तर आवश्यक हो तो जबावी पत्र भेजना न भूलना चाहिए।
-व्यवस्थापक “अखण्ड-ज्योति”