Magazine - Year 1954 - Version 2
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Language: HINDI
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साधना (Kavita)
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लगन लिये बढ़ जाओ साधक,
जग में कुछ दुःसाध्य नहीं है!
[1]
विश्व बदल जायेगा क्षण में मन को जब निःशंक करोगे।
धरे हथेली पर प्राणों को, स्नेह सरोवर में बिहरोगे॥
सद्य सफलता तुम्हें मिलेगी,
इसमें कुछ व्यवधान नहीं है!
[2]
बने रहो तुम अडिग हिमालय, अगणित बाधा आयें जायें।
हो हताश धीरज मन तजना, अगर डरायें असफलतायें॥
लक्ष्य वेध का बिन्दु एक है,
उसमें कोई भेद नहीं है!
[3]
महाकाल भी मौन रहेगा, यदि न रहे ममता का बंधन।
काम क्रोध को जीत लिया तो, नियत करेगी तब अभिनन्दन॥
दीप साधना का बुझता है-
मन में यदि विश्वास नहीं है!
[4]
करो साधना पर मत देखो, कैसा शुभ परिणाम मिलेगा।
ऋद्धि सिद्धि की बात न सोचो, तुम्हें स्वयम् वरदान मिलेगा॥
लक्ष्य ध्येय की तन्मयता से,
दूर कहीं भगवान नहीं है!
*समाप्त*
(श्री रमेशजी सुधाँशु)
(श्री रमेशजी सुधाँशु)