Magazine - Year 1955 - Version 2
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Language: HINDI
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गायत्री महात्म्य
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स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्तां पावमानी द्विजानाम्। आयु प्राणं प्रजां पशुं कीर्ति द्रविणं ब्रह्म वर्चसम्।
-अथर्व 19।72।1
ठीक रीति से उपासना करने पर वेदमाता गायत्री आत्मा को पवित्र करती है और आयु, प्राण, पशु, कीर्ति, धन तथा ब्रह्म तेज प्रदान करती है।
सार भूतास्तु वेदानां गह्योपनिषदो मताः।
ताम्यः सारस्तु गायत्रीतिस्त्रों व्याहृतयस्तथा।
-याज्ञवल्क्य
वेदों का सार उपनिषद् हैं और उपनिषदों का सार व्याहृतियों समेत गायत्री है।
गायत्री वेद जननी गायत्री पापनाशिनी।
गायत्र्यास्तु परन्नास्ति दिविचेह च पावनम्।
-वशिष्ठ
गायत्री वेदों की जननी है। गायत्री पापों को नाश करने वाली है। गायत्री से बड़ा और कोई पवित्र मंत्र स्वर्ग तथा पृथ्वी नहीं है।
नास्ति गंगा समं तीर्थं न देवाः केशवात्परः।
गायत्र्यास्तु परं जप्यं न भूतं न भविष्यति।।
-अत्रि
गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं, केशव से श्रेष्ठ कोई देवता नहीं, गायत्री से बढ़कर कोई जप न आज तक हुआ और न आगे होगा।
गायत्र्या परमं नास्ति दिविचेह न पावनम्।
हस्त त्राण प्रदा देवी पततां नरकार्णवे।।
नरक रूपी समुद्र में गिरते हुए को हाथ पकड़कर बचाने वाली गायत्री के समान और काई शक्ति इस पृथ्वी पर तो क्या स्वर्ग में भी नहीं है।
गायत्री चैव वेदाश्च ब्रह्मणा तोलिता पुरा।
वेदेभ्यश्च चतुस्रेभ्यो गायत्र्यति गरीयसी।।
प्राचीन काल में ब्रह्मा जी ने गायत्री को चारों वेदों से तोला, तो चारों वेदों से भी गायत्री का पल्ला भारी रहा।
यथा मधु च पुष्पेभ्यो घृतं दुग्धाद्रसात्पयः
एवं हि सर्व वेदानां गायत्री सार मुच्यते।
-व्यास
जिस प्रकार पुष्पों का सार मधु, दूध का घृत, रसों का सार दूध है, उसी प्रकार समस्त वेदों का सार गायत्री है।
तदित्य च समोनास्ति मंत्रो वेदाचतुष्टये।
सर्वे वेदाश्च यज्ञाश्च दानानि च तपांसिच।।
समानि कलया प्राहुर्मुनयो नतदित्यृचः।
-विश्वामित्र
गायत्री के समान मंत्र चारों वेदों में नहीं हैं। सम्पूर्ण वेद यज्ञ, दान, तप गायत्री की एक कला के समान भी नहीं हैं ऐसा मुनि लोग कहते हैं।
बहुना किमिहोक्तेन यथावत् साधु साधिता।
द्विजन्मानामियं विद्या सिद्धिः काम दुधा स्मृता।
-शारदा तिलक
अधिक कहने से क्या? ठीक प्रकार उपासना की हुई गायत्री द्विजों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों की सम्पूर्ण मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली ही है।
गायत्री तु परित्यज्य अन्य मंत्रामुपासते।
सिद्धान्नं च परित्यज्य भिक्षामटति दर्मति।
-विद्यारण्य
जो गायत्री को छोड़कर अन्य मंत्रों की उपासना करता है वह प्रस्तुत पकवान को छोड़कर भिक्षा के लिए घूमने वाले मनुष्य के समान मूर्ख है।
सर्व वेद सारभूता गायत्र्यास्तु समर्चना।
ब्रह्मदयोऽपि सन्ध्यायां तां ध्यायन्ति जयन्ति च।।
दे. भा. स्कं. अ. 16।15
गायत्री मन्त्र का आराधन समस्त वेदों का सारभूत है। ब्रह्मादि देवता भी सन्ध्याकाल में गायत्री का ध्यान करते हैं और जप करते हैं।
कुर्यादन्यत्र वा कुर्यात् इति प्राह मनुः स्वयं।
अक्षय मोक्षमवाप्नोति, गायत्री मात्र जापनात्।।
-शौनक
इस प्रकार मनुजी ने स्वयं कहा है कि अन्य देवताओं की उपासना करे या न करे, केवल गायत्री के जप से द्विज अक्षय मोक्ष को प्राप्त होता है।
अगस्त-1955 सम्पादक - श्रीराम शर्मा आचार्य अंक-1