Magazine - Year 1955 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
KavitaSmall
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
सर्व भूत में आत्मा, आत्मा में सब भूत।
यह गूढार्थ जिन्हें विदित, उनका ज्ञान प्रभूत॥
अचरज को कासों कहैं, विन्दु में सिन्धु समात।
रहिमन अपने आपते, हैरन हार हिरात॥
हेरत हेरत हे सखी, रह्यौ कबीर हिराय।
बूँद समानी समद में, सो कत हेरी जाय॥
लेत आत्म अनुभूति रस, शूल सबल स्वाधीन।
सके न कर कबहूँ कहूँ, आत्मलाभ बलहीन॥
कबीर एक न जानियाँ, बहु जाना क्या होहि।
एकहि ते सब होत है, सबते एक न होहि॥
विद्या, धन, बल, रूप, यश, कुल सुत बनिता मान।
सभी सुलभ संसार में, दुरलभ आतम ज्ञान॥