Magazine - Year 1957 - Version 2
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Language: HINDI
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वेदों के स्वर्णिम सूक्त
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प्रति यः शासमिन्वति। ऋग्वेद 1/14/7
जो अनुशासन पालता है- वही शासन करता है।
मागृधः कस्यस्विद्धनम्। यजु. 40/1
धन किसी व्यक्ति का नहीं सम्पूर्ण राष्ट्र का है।
केवलाधो भवति केवलादी। ऋग्. 10/117/6
जो अकेला खाता है- सो चोर है।
ध्वस्मन्वत् पाथः त्वोतु। ऋग्. 12/118
वह अन्न खाओ जो पाप की कमाई न हो।
वयस्कृत तब जामयो वयम्। ऋग्. 1/31/7
एक ही पिता के पुत्र सब मनुष्य भाई-भाई हैं।
भद्रं भवन्ति नः पुरः। अथ. 20/20/6
गुंडागर्दी नहीं सज्जनता अपनाओ।
रमन्ताँ पुण्या लक्ष्मीः।
लक्ष्मी पुण्यात्माओं के यहाँ रहती है।
सत्यं वक्ष्यामि नानृतम्। अथ. 4/9/7
असत्य नहीं, सत्य ही बोला करो।
ते हेलो वरुध नमोमि। ऋग्. 1/24/6/24
क्रोध को नम्रता से परास्त करो।
अन्यो अन्यं अभिहर्षत। अथ. 3/30/1
एक दूसरे को प्यार और प्रसन्नता प्रदान करो।
कद व ऋतं कद व नृतं क्व प्रत्रा। ऋग्. 1/105/6
क्या उचित है क्या अनुचित यह निरंतर विचारो।
सखा सखाय मतरद् विषूचाः। ऋग्. 7/18/3
सच्चा मित्र वह है जो बुराई से बचावे।
शुचिं पावके ध्रुवं। ऋग्. 7/113
केवल उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं।
अवहितं देवा उन्नयथा पुनः। ऋग्.10/137/1
सज्जनों! जो गिर गये हैं उन्हें फिर उठाओ।
अचेतनस्य पथः मा विदुक्षः। ऋग्. 7/4/7
उस मार्ग पर मत चलो जिस पर बेवकूफ चलते हैं।
घृतात स्वादीयो मधुनश्च वोचत। अथ. 20/35/2
घृत सी बलवर्धक और शहद सी मीठी वाणी बोलो।
केवलो नान्यासाँ कीर्तयाश्चन। अथ. 7/38/4
पर नारी का चिन्तन तक मत करो।
मा गताना मा दीधी थाः। अथ. 8/1
जो गुजर गया उसके लिए शोक करना व्यर्थ है।
ईशानः वधं यवय। ऋग्वेद 1/2/6
मनुष्य अपनी परिस्थितियों का निर्माता आप है।
अतप्त तनूर्न तदायो अश्नुते। ऋग्. 9/83/1
सुख उन्हें नहीं मिलता जो कष्ट से डरते हैं।
अन्नं न निन्द्यात्। तद् व्रतम्। तैत्तरीय 3/7
जूठन छोड़कर अन्न देवता का तिरस्कार न करो।
दस्मत कृणोष्यध्वरम्। ऋग्. 1/74/4
सज्जनों, सत्कार्यों में सहायता किया करो।
उतोरपिः पृणतो नोपदस्यति। ऋग्. 10/117/7
दानी की सम्पदा घटती नहीं बढ़ती है।
अशत्र्चिन्दो अभयं नः कृणोतु। अथ. 6/40/2
मत किसी से शत्रुता करो-मत किसी से डरो।
यज्ञाय गृणते सुगं कृधि। ऋग्. 1/94/9
यज्ञ परायण के लिए सब कुछ सुगम है।
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वर्ष-17 संपादक-श्रीराम शर्मा आचार्य अंक-4
ज्योति-याचना
(श्री सुमित्राकुमारी सिन्हा)