
यज्ञ का महत्व
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अग्नि होत्रिणे प्रणुदे सपत्नश्र।
-अथर्व वेद 9/2/6
यज्ञ करने से शत्रु नष्ट हो जाते हैं। शत्रुता को मित्रता में बदल देने का सर्वोत्तम उपाय यज्ञ है।
सम्यंजोऽग्नि सपर्यत।
-अथर्व वेद 3/30/6
सबको मिलकर यज्ञानुष्ठान करना चाहिए। सामूहिक उपासना का महत्व असंख्य गुना अधिक है।
यज्ञं जनयुन्तु सूरयः
-ऋग्वेद 10/66/2
हे विद्वानों, संसार में यज्ञ का प्रचार करो। विश्व-कल्याण करने वाले साधकों में यज्ञ सर्वश्रेष्ठ है।
ईजानाः स्वर्गं यान्ति लोकम्।
-अथर्व वेद 18/4/2
यज्ञ करने वाले को स्वर्ग का सुख प्राप्त होता है। जिन्हें स्वर्गीय सुख प्राप्त करना अभीष्ट हो, वे यज्ञ किया करें।
प्राचं यज्ञं प्रणतया स्वसाय।
-ऋग्वेद 10/101/2
प्रत्येक शुभ कार्य यज्ञ के साथ आरंभ करो। यज्ञ के साथ आरम्भ किये हुए कार्य सफल और सुखदायक होते हैं।
सर्वेषाँ देवानाँ आत्मा यद् यज्ञः।
-शतपथ 12/3/2/1
सब देवताओं की आत्मा यह यज्ञ है। यज्ञ करने वाले देवताओं की आत्मा तक पहुँचते हैं।
अयज्ञियो हत वर्चो भवति।
-अथर्व वेद
यज्ञ रहित मनुष्य का तेज नष्ट हो जाता है। यदि तेजस्वी रहना है तो यज्ञ करते रहना चाहिए।
भद्रो नो अग्नि राहुतः।
-यजुर्वेद 15/32
यज्ञ में दी हुई आहुतियाँ कल्याणकारक होती है। जो अपना कल्याण चाहते हैं वे यज्ञ किया करें।
मा सुनोतेति सोमम्।
-ऋग्वेद 2/30/7
यज्ञानुष्ठान की महान उपासना बन्द न करो। जहाँ यज्ञ बन्द हो जाते हैं वहाँ से सुख-शाँति चली जाती है।
कस्मैत्व विमुँचति तस्मैत्वं विमुँचति।
-यजुर्वेद
जो यज्ञ को त्यागता है उसे परमात्मा त्याग देता है। जिन्हें परमात्मा का अनुग्रह अभीष्ट हो, वे यज्ञ करना त्यागें।
अस्य सूनृता विरप्शी गोमती मही
-ऋग्वेद 1/3/8/8
ऐसी वाणी बोलो जिससे सबका हित हो।
किसी को गलत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो।
वर्ष-19 सम्पादक - श्रीराम शर्मा आचार्य अंक-12