Magazine - Year 1961 - Version 2
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Language: HINDI
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गति ही जीवन प्राण
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जीवन रख, गतिमान, साथी, रुका न निर्झर, रुकी न धारा, तूफानों को कैसी कारा? खुद को तू पहचान, साथी, जीवन को रख गतिमान, साथी। बादल स्थिर कभी न रहते, सदा पवन नौका में बहते, इससे उनका मान, साथी, जीवन रख गतिमान, साथी। पत्थर स्वयं नहीं चलता है, इससे ठोकर भी, सहता है, होता है अपमान, साथी, जीवन रख गतिमान, साथी। श्वाँस के चलने में जीवन, बिना श्वास हो जाता शव तन, गति ही जीवन प्राण, साथी, जीवन रख गतिमान, साथी। (रचियता-त्रिलोकीनाथ ‘ब्रजवाल’)