Magazine - Year 1961 - February 1961
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
मनुष्य स्वभावतः सज्जन है।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(चीन के सन्त कनफ्यूमियस के विचार)
मनुष्य-स्वभाव से सज्जन ही होता है और उसकी नैसर्गिक प्रवृत्ति भलाई की ओर होतीहै। सज्जनता की परायण तो सन्तों में ही हो सकती है, पर निष्काम भाव से ईमानदारी और तत्परता के साथ कर्तव्य पालन करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। मनुष्य एक सामाजिक जीव है; वह समाज में रहता है, पनपता है तथा अन्त में समाप्त हो जाता है। आजीवन समाज के साथ उसका घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है। अतः समाज की उन्नति में ही उसकी उन्नति हो सकती है। इसलिये समाज के प्रत्येक प्राणी के साथ सदव्यवहार करना ही उसका प्रधान धर्म है।
आपत्ति के समय ही मनुष्य के गुणों की परत्व होती है। जब शीतकाल आता है तो सब वृक्षीं के बाद चीड और देवदारू अपने पत्तों को त्यागते हैं होना भी ऐसा ही चाहिए क्योंकि वे सब वृक्षों में बडे़ और श्रेष्ठ भी हैं। सर्व धर्म का लक्षण यह है कि जब तुम बाहर निकलो तो प्रत्येक से ऐसा मनोभाव रख कर मिलो; मानो वह तुम्हारा बडा़ अतिथि है। किसी के साथ ऐसा वर्ताय मत करो जो तुमको अपने लिये बुरा जान पड़ता है। समाज में कोई दुःखी होकर तुम्हारी निन्दा न करे और घर में भी कोई तुम्हारि विरोध में न कहुनहावे।शिक्षा की अवश्यकता मनुष्यमात्र को है। इसी के द्वारा वह समाज के लिये उपयोगी वन सब्यता है। एक शिष्य ने पूजा "मान्यवर! सामाजिक गुण क्या हैं।" उत्तर मिला- "दूसरे से प्रेम करना।" दूसरे शिष्य ने प्रश्न किया'भगवान! क्या कोई ऐसा निवन है किसका पालन जीवन पर्यंत करना चाहिये।' उन्होने कहा 'दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार कभी मत करो जिसे तुम दूसरों से अपने प्रति नहीं चाहते।'