Magazine - Year 1962 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
क्या असम्भव है धरा पर— (कविता)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
क्या असम्भव है धरा पर,
कल्पना को यदि मिले श्रम। कर रहे दिन−रात चिन्तन, मिल तुरत जाये अमिय कन॥
पर भला सामर्थ्य किसकी? जो करे नव सिन्धु मंथन,।
क्या कठिन सागर न देवे रत्न, कमला, अश्व, अमृत,।
कौन पर साधक यहाँ जो ले सके विषपान का व्रत॥ सफलता तो चरण चूमे—
साधना को यदि मिले श्रम। है सरल हर राह इतनी, सोच भी सकते न जितनी।
पर उसी को जो चला है भूल कर उर−पीर अपनी॥
कष्ट, बाधा, शूल, पीड़ा है क्षणिक सब, हैं बहुत पर।
हर पथिक को ये मिले हैं व्यर्थ करना फिर यहाँ डर॥ साध्य तो साकार आये
भावना से यदि मिटे भ्रम।
क्या असम्भव है ............. —त्रिलोकी नाथ व्रजवाल
कल्पना को यदि मिले श्रम। कर रहे दिन−रात चिन्तन, मिल तुरत जाये अमिय कन॥
पर भला सामर्थ्य किसकी? जो करे नव सिन्धु मंथन,।
क्या कठिन सागर न देवे रत्न, कमला, अश्व, अमृत,।
कौन पर साधक यहाँ जो ले सके विषपान का व्रत॥ सफलता तो चरण चूमे—
साधना को यदि मिले श्रम। है सरल हर राह इतनी, सोच भी सकते न जितनी।
पर उसी को जो चला है भूल कर उर−पीर अपनी॥
कष्ट, बाधा, शूल, पीड़ा है क्षणिक सब, हैं बहुत पर।
हर पथिक को ये मिले हैं व्यर्थ करना फिर यहाँ डर॥ साध्य तो साकार आये
भावना से यदि मिटे भ्रम।
क्या असम्भव है ............. —त्रिलोकी नाथ व्रजवाल