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अन्तःकरण का प्रकाश ही जीवन को ज्योतिर्मय करता है - स्वामी शिवानन्द
आस्तिकता का स्वरूप एवं प्रतिफल
भावना पर हमारे जीवन का विकास निर्भर है
सुख का मूलभूत आधार-संतोष
मृत्यु सदा स्मरण रखें ताकि उससे डरना न पड़े
जीवन उत्कृष्टता के साथ जिया जाय
सत् अध्ययन आत्म-उत्थान का आधार
स्वच्छता एक आध्यात्मिक पुण्य प्रक्रिया
आवश्यकतायें बढ़ाइये मत-घटाइये
भिक्षावृत्ति मानवीय स्वाभिमान पर कलंक
मंदिर अपना प्रयोजन पूर्ण करें
गौ की सांस्कृतिक प्रतिष्ठा हमारा परम धर्म
गायत्री की उच्चस्तरीय साधना- गायत्री महाशक्ति का रतन भण्डार किसे मिलेगा
अपनों से अपनी बात- परिवार घटने का असमंजस और खेद
धरती की शपथ (कविता)
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Year 1966 - Version 1
Media: SCAN
Language: HINDI
अन्तःकरण का प्रकाश ही जीवन को ज्योतिर्मय करता है - स्वामी शिवानन्द
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Other Version of this book
Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...
Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
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