Magazine - Year 1967 - Version 2
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शिविर सम्बन्धी आवश्यक सूचनायें
जून में होने वाले 15 दिवसीय शिक्षण शिविर में सम्मिलित होने वाले परिजनों की संख्या आशा से बहुत अधिक हो गई है। गायत्री तपोभूमि में जितने व्यक्तियों के ठहर सकने की व्यवस्था है उससे यह संख्या लगभग दूनी हो चली है।
ऐसी दशा में आने वाले को मना करके निराश करने की अपेक्षा यह उचित समझा गया है कि 7-7 दिन के दो शिविर करके दोनों में आधे-आधे शिक्षार्थियों को आने दिया जाए। अस्तु, अब पहला शिविर 9 से 15 जून तक होगा। 16 को विश्राम रखा जाएगा ताकि आने वाले एक दिन पहले आकर ठीक तरह ठहर सकें। 17 से दूसरा शिविर आरम्भ होगा जो 23 तक चलेगा। इस प्रकार अब 14 दिन की अपेक्षा यह शृंखला 15 दिन चलेगी।
जिन्हें यहाँ से तारीख 13 अप्रैल तक स्वीकृतियाँ भेजी गई हैं, उन सब शिविरार्थियों को 8 जून की शाम तक प्रथम शिविर में सम्मिलित होने के लिये आ जाना चाहिये। जिन्हें 14 अप्रैल के बाद यहाँ से स्वीकृति-पत्र भेजे गये हैं वे 16 जून को शाम तक आ जाएँ। ताकि अगले दिन प्रातः से ही प्रशिक्षण आरम्भ हो सके।
एक वर्षीय, तीन वर्षीय प्रशिक्षण के शिक्षार्थियों तथा वानप्रस्थों को जिन्हें विद्यालय में सम्मिलित होना है, उन्हें दूसरे शिविर में ता॰ 16 जून को आना चाहिये ताकि वे एक शिविर में भी रह लें और इसके तुरन्त बाद अपनी शिक्षा चालू कर दें।
शिविर में सम्मिलित रहने वालों के लिये यद्यपि होटल पद्धति की कुछ भोजन व्यवस्था भी की गई है। पर वह थोड़ी महंगी पड़ेगी और भोजन भी इच्छानुसार न मिलेगा। इसलिये अपना भोजन अपने आप बनाने वाली बात अधिक अच्छी है। जो लोग वैसा प्रबन्ध कर सकें वे अपने साथ भोजन पकाने और खाने के बर्तन आदि भी साथ लेते आवें।
पहले जब 14 दिन का शिविर था तब तीन तीर्थ-यात्रा के लिये बीच में छुट्टी भी कर दी गई थी। अब नई व्यवस्था में वैसा न हो सकेगा । 7 दिन का थोड़ा-सा समय तो शिक्षण में लगना ही चाहिए। इसलिये जिन्हें तीर्थ-यात्रा करनी है वे शिविर समाप्त होने के बाद वृन्दावन, गोकुल, गोवर्द्धन आदि जा सकते हैं।
शिविर से लेकर तीनों प्रशिक्षणों तक में से किसी भी प्रशिक्षण में सम्मिलित होने वालों को अपना भोजन आदि का व्यय स्वयं ही वहन करना होगा। यह बात भली प्रकार ध्यान में रख कर ही आना चाहिये। इसलिये आवश्यक खर्च की व्यवस्था घर से करके ही आना चाहिये।