Magazine - Year 1970 - Version 2
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Language: HINDI
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लघुतम मानव जीवन– यह संसार महत्तम
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ब्रह्माण्ड का विस्तार इंच, फुट, गज और मीलों में
नापा नहीं जा सकता। उसे केवल समय माप सकता है; क्योंकि वह जब एक मूल बिन्दु
से विकसित होना प्रारम्भ हुआ था तब से आज तक बढ़ता ही जा रहा है।
प्रकाश एक सेकेण्ड में 186000 मील चलता है। एक
वर्ष में वह 186000 X 60 X 60 X 24 X 365 1/4 मील - 5869713600000 मील
चलता है। इतनी दूरी को 1 प्रकाश वर्ष कहते हैं। वैदिक सम्पत्ति के विद्वान्
लेखक पं. रघुनन्दन शास्त्री ने पृथ्वी पर मनुष्य की उत्पत्ति का समय
परार्द्ध और मन्वन्तरों के हिसाब से 1972940000 वर्ष निकाला है; जबकि
पृथ्वी को इससे अधिक ही होना चाहिए। इस हिसाब से अकेले इतने ही समय में
ब्रह्माण्ड का विस्तार– 5869713600000 X 1972940000 मील होना चाहिए; पर
पृथ्वी तो सौरमंडल का एक अति छोटा-सा ग्रह है; इससे पहले और बाद का विस्तार
तो इससे भी अरबों गुना अधिक है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह
ब्रह्माण्ड 50 करोड़ प्रकाश वर्ष के घेरे में है। 10 करोड़ तो नीहारिकाएँ
मात्र हैं, जो अनेक सौरमंडलों को जन्म दे चुकीं, दे रही हैं।
पीले रंग का हमारा सूर्य एक प्रकाशोत्पादक
आकाशीय पिण्ड– ‘तारा’ माना गया है। इसके मुख्य 9 ग्रह, लगभग 1000 अवान्तर
ग्रह, अनेक पुच्छल तारे एवं उल्का समूह हैं। इन सबके द्वारा सूर्य के चारों
ओर घेरा गया आकाश सब मिलाकर सौरमंडल कहलाता है। भारतीय मत के अनुसार जहाँ
तक सूर्य की किरणें गमन कर सकती हैं, वह सब सौरमंडल का विस्तार है। इस
विस्तार का अनुमान करना ही कठिन है; जबकि सौरमंडल सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में
ऐसा है जैसे 10 करोड़ मन गेहूँ के ढेर में पड़ा हुआ गेहूँ का एक छोटा दाना।
एटलस में सारी पृथ्वी का नक्शा निकालकर अपने गाँव के अपने घर की जगह
ढूंढ़ें, तो उसकी माप ही नहीं निकाली जा सकेगी। ऐसी ही नगण्य स्थिति
सौरमंडल की इस विराट् ब्रह्माण्ड में है। यहाँ इस सूर्य जैसे करोड़ों सूर्य
अरबों चन्द्रमा दिन-रात प्रकाश करते रहते हैं।
किन्तु हमारी दृष्टि में यह विस्तार ही अलौकिक
है। सौरमंडल के विस्तार का छोटा-सा अनुमान नवग्रहों के विस्तार से लगाया
जा सकता है। 3000 मील व्यास व लाल बुध (मरकरी) सूर्य से 3 करोड़ 60 लाख मील
दूर है। यह 88 दिन में सूर्य की परिक्रमा कर लेता है। 7800 मील व्यास का
शुक्र (वीनस) सूर्य से 67000000 मील दूर है, 224 1/2 दिन में सूर्य की
परिक्रमा करता है। इसके बाद कहीं 7920 मील व्यास की हमारी पृथ्वी है, जो
सूर्य से 93000000 मील दूर और 365 1/4 दिन में सूर्य की परिक्रमा लगाती है।
सूर्य का घेरा डालने वाला अगला ग्रहमंडल मार्स
है, इसका व्यास तो पृथ्वी से छोटा कुल 4200 मील है, पर यह सूर्य से
141000000 मील दूर और 387 दिन में सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है।
बृहस्पति (जूपिटर) का व्यास महाभयंकर 87000 मील, सूर्य से 483000000 मील
दूर, 12 वर्ष में सूर्य की परिक्रमा करता है। 74000 मील व्यास वाला शनि,
सूर्य से 886000000 मील दूर है और 29 1/2 वर्ष में सूर्य की परिक्रमा लगाता
है। वारुणी (यूरेनस) 31000 मील तथा वरुण (नेपच्यून) 33000 मील व्यास वाले
सूर्य से क्रमशः 180 करोड़ और 280 करोड़ मील दूर, पृथ्वी की 84 वर्ष और 164
1/2 वर्ष में परिक्रमा लगाते हैं। सबसे दूरी का ग्रह यम (प्लूटो) सूर्य से
360 करोड़ मील दूर है। 3000 मील व्यास वाले इस बुध के समान छोटे से ग्रह
को सूर्य की परिक्रमा करने में 248 वर्ष लग जाते हैं। बेचारा यम जब तक एक
चक्कर पूरा करके फिर उसी स्थान पर पहुँचता होगा, तब तक पृथ्वी में कम से कम
3 पीढ़ियाँ जन्म लेकर मर चुकी होती हैं। वे अनुमान भी नहीं लगा पाते होंगे
कि क्या यही वह पृथ्वी है, जिसे पहले चक्कर में कुछ और ही ढंग और
तौर-तरीकों से देखे गए थे।
यह 9 तो प्रमुख ग्रह हैं। उन्हीं का विस्तार
इतना विशाल है। अभी तो 500 करोड़ और भी तारे, धूमकेतु और क्षुद्र ग्रह हैं,
जिनके व्यास 10 मील से लेकर कई-कई हजार मील के हैं। सारा सौरमंडल महादानव
की तरह है; यदि कहा जाये तो वह हजार भुजाओं वाले सहस्रबाहु अनेक मुँह वाले
दशानन और अपने पेट में सारी सृष्टि भर लेने वाले लम्बोदर की तरह विकराल है
और मनुष्य उस तुलना में रेत के एक कण, सुई के अग्रभाग से भी हजारवें अंश
छोटा। जैसे मनुष्य जब चलता है तो चींटी, मच्छरों को नगण्य, पाप-पुण्य से
परे मानकर मारता– कुचलता निकल जाता है, उसे कभी ध्यान नहीं आता कि इतने भी
छोटे कोई जीव हैं, उसी प्रकार सौरमंडल की यह अदृश्य शक्तियाँ हमें कुचलती
और क्षुद्र दृष्टि से देखती निकल जाती होंगी, तो हम उनका क्या बिगाड़ सकते
हैं। लगी तो रहती है आये दिन शनि की दशा, दीन मनुष्य उससे भी तो छुटकारा
नहीं ले पाता।
चन्द्रमा सबसे पास का उपग्रह है। वहाँ लोग
थोड़े समय में हो आये। अभी तो बुध है, वहाँ मनुष्य जाये, तो 210 दिन तब
लगें, जब वह इतनी ही तीव्र गति से उड़ान करे, जैसे चन्द्रयात्रा के लिये।
शुक्र में पहुँचने में 292, मंगल में 598, बृहस्पति में 2724, शनि में 4416
यूरेनस, नेपच्यून तथा यम तक पहुँचने में क्रमशः 32 वर्ष, 61 वर्ष और 92
वर्ष चाहिये; जबकि मनुष्य की अधिकतम आयु ही 100 वर्ष है अर्थात् कोई यहाँ
से बाल्यावस्था में चले और यम का चक्कर लगाकर आये तो वह बीच में ही मर
जायेगा।
इतनी दूर की यात्राओं के लिये यात्री को और
अधिक सामान न हो, तो भी ऑक्सीजन, पानी, आर्गनिक पदार्थ, क्षार आदि तो चाहिए
ही। यह सामान भी एक बड़ा बोझ होगा। बुध के लिये 0.615 टन, शुक्र के लिये
0.921 टन, मंगल के लिये 1.824 टन, बृहस्पति के लिए 5.981, शनि के लिए
12.939 टन चाहिए। यदि इतना वजन (1 टन = 27 मन के लगभग) खाद्यान्न ही हो
जाये, तो अन्तरिक्ष यानों की भीमकायिकता का तो अनुमान लगाना ही कठिन हो
जायेगा। चन्द्रमा जाने वाले अन्तरिक्ष यान में 5600000 पुर्जे लगे थे; यदि
उसमें लगे 99.9 प्रतिशत काम करें, शेष .1 प्रतिशत = 5600 पुर्जे ही खराब हो
जायें, तो मनुष्य बीच में ही लटका रह जाये?
यह यात्रायें तभी सम्भव हो सकती हैं, जब
मनुष्य को कुछ दिन मारकर जीवित रखा जा सके। वैज्ञानिक उसकी शोध में पूरी
तरह जुट गया है। हर नई उपलब्धि इस तरह नये प्रश्न और नई समस्या को जन्म
देती हुई चली जा रही है। महत्वाकांक्षाएँ हनुमान के शरीर की तरह बढ़ीं, तो
प्रश्न और समस्याओं ने सुरसा का रूप धारण कर लिया। आज का विज्ञान मनुष्य को
ऐसी ही समस्याओं में ग्रस्त करता हुआ चला जा रहा है।
वैज्ञानिकों ने ऐसे प्रयोग किये हैं, जिनसे मनुष्य को अस्थायी मृत्यु
प्रदान करके उन्हें पुनर्जीवित करना सम्भव हो गया है; पर समस्या केवल आयु
सम्बन्धी ही तो नहीं है, अन्तरिक्ष की विलक्षण शक्तियों से भी तो भय कम
नहीं है; न जाने कितने सूक्ष्म-शक्ति-प्रवाह आकाश में भरे पड़े हैं। वे मानव-नियन्त्रित अन्तरिक्ष यानों को एक सेकेण्ड में कहीं का कहीं पहुँचा सकते हैं। अमेरिका को इन शक्ति प्रवाहों का पता भी है।
इन सीमित भौतिक शक्ति, परिस्थिति और अपनी
लघुतम क्षमता लेकर मनुष्य अपने सौरमंडल के विस्तार को ही नाप सकने में
समर्थ नहीं, तो फिर विराट ब्रह्माण्ड को जान लेना उसके लिए कहाँ सम्भव है?
पर मनुष्य कोई अकारण वस्तु भी नहीं है। भगवान
ने यह शरीर एक ऐसी मशीन बनाई है कि इसमें वह सारे साधन, पदार्थ और शक्तियाँ
भरी पड़ी हैं, जिससे ब्रह्माण्ड के विस्तार को यहीं बैठे-बैठे मजे में
नापा जा सकता है। सृष्टि में जो कुछ है, यहीं बैठे-बैठे देखा, सुना और
प्राप्त किया जा सकता है; पर उसके लिये उसे अपना दृष्टिकोण बदलना होगा।
लघुतम बनना पड़ेगा। अपने भीतर खोज करनी पड़ेगी और उन सूक्ष्म शक्तियों का
जागरण करना पड़ेगा, जो विराट की सम्भावनाओं को हमें घर बैठे ही उपलब्ध करा
सकती हैं।