Magazine - Year 1970 - Version 2
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Language: HINDI
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ज्ञान यज्ञ करना है (kavita)
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ज्ञान यज्ञ करना है।
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समिधा के सम्बल से, सत्य सिद्धि संज्ञा से,
हिल-मिल बुहारना है, पंथ के बबूल को।
सत्पथ में बढ़ना है,
तम-गिरि से लड़ना है,
आत्म-शक्ति मंत्र जगा-
शाँति-मूर्ति गढ़ना है।
जन हित में जीना है, जन हित में मरना है,
माथे पर मलना है, सेवा की धूल को।
दर्द भरे जंगल में,
दुनिया की हल-चल में,
ज्ञान-यज्ञ करना है-
जीवन की मंजिल में।
आँधी में, पानी में, युग के तूफानों में,
मुखरित नित करना है, श्रद्धा के फल को।
मत-दर्पण मैला है,
अंधियारा फैला है,
माया की नगरी में-
प्राण-पिक अकेला है।
संभल-संभल चलना है, गिर-गिर के उठना है,
पहले सुधारना है, अपनी ही भूल को।
निष्ठा के बागी को,
कुँठा के रागी को,
मुट्ठी में बाँधो तुम-
तम के अनुरागी को।
सोने को, चाँदी को, युग-युग की आँधी को,
करना निर्मूल तुम्हें, पंथ के बबूल को
बाबूलाल जैन ‘जलज’
*समाप्त*