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सत्य – तप और वैराग्य का समन्वय
गुरुदेव का भावी क्रियाकिलाप,जो उनने बताया
उपासना' की सफ़लता 'साधना' पर निर्भर है
प्रगति और सफ़लता के लिए समर्थ सहयोग की आवश्यकता
प्रशिक्षण' क्रम की समाप्ति - 'प्रत्यावर्तन' का आरम्भ
अपने को पहचाने - आत्मबल को सम्पादित करें
बडप्पन की नही, महानता की आकांक्षा जागृत करे
समाज एवं राष्ट्र का विकास,लोक मानस के परिष्कार पर अवलम्बित
नवयुग का अवतरण सुनिश्चित है और सन्निकट
सूर्योदय हो चला अब प्रकाश फ़ैलना बाकी है
आत्मोकर्ष के लिए उपासना की अनिवार्य आवश्यकता
मनोभूमि के परिष्कृत करने के लिए यह साधन क्रम अपनाये
परिजनो से गुरुदेव की आशा और अपेक्षा
भावी लोकनायको के लिए तीन मास का प्रशिक्षण
लोकशिक्षण का एक सरल किन्तु अति प्रभावी आधार
राजनीति से बढकर समाज सेवा की दिशा
शाखा संगठनो का उत्साह एवं प्रयत्न शिथिल न होने पाये
शान्तिकुज्ज अन्तत: शक्ति केन्द्र के रुप में परिणत होगा
परिजन अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें
प्रज्ञामय बलिदानी
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Year 1972 - Version 1
Media: SCAN
Language: HINDI
लोकशिक्षण का एक सरल किन्तु अति प्रभावी आधार
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Other Version of this book
Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...
Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
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प्रज्ञामय बलिदानी