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ईश्वर भक्त की कसौटी
समग्र सुख-शान्ति की स्थापना धर्म धारण से ही संभव होगी
पूर्वाग्रहों पर अड़कर न बैठें
जो ईश्वर से डरेगा, उसे किसी से नहीं डरना है
अचेतन मन की व्याधियाँ और उनका निराकरण
मनुष्य चाहे तो नर पिशाच भी बन सकता है
समुद्र की तरह हमारा अंतरंग भी महान् है
तथ्य का सत्य के प्रति समर्पण
मनुष्य का भौतिक मूल्यांकन न किया जाय
स्नेहशीलता और सहकारिता की सार्वभौम सत्यवृत्ति
नर और नारी के बीच की खाई न्यायोचित नहीं
बुरे समय की दुष्प्रवृत्तियाँ
संगीत साधना में समपत दो महामानव
हम अपना गुुरुत्वाकर्षण बनायें रखें
सौर परिवार के सदस्यों का पारस्परिक आदान-प्रदान
हँसने और रोने की अभिव्यक्ति दबायें नहीं
अपनाधी प्रवृत्ति के स्रोतों को बन्द किया जाय
विचारों को सृजहन की दिशा में नियोजित रखा जाय
कैन्सर प्रकृति विरोधी आचरण का दुष्परिणाम
हम अन्तःकरण की वाणी सुनें और उसका अनुकरण करें
दान अहसान नहीं परम पवित्र धर्म र्कत्तव्य है
उपार्जन का संग्रह नहीं वितरण किया जाय
अन्धाधुन्धा प्रजनन हर दृष्टि से अदूरदशतापूर्ण
प्रगति के पथ पर मर्यादित कदम ही बढ़ाये जायें
साधक को न अकेलापन खलता है न असफलता अखरती है
अपनों से अपनी बात
गीत - ऐसे नहं बनो रे! - मंगल विजय
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Magazine
-
Year 1973 - Version 1
Media: SCAN
Language: HINDI
दान अहसान नहीं परम पवित्र धर्म र्कत्तव्य है
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Other Version of this book
Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...
Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
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ईश्वर भक्त की कसौटी
समग्र सुख-शान्ति की स्थापना धर्म धारण से ही संभव होगी
पूर्वाग्रहों पर अड़कर न बैठें
जो ईश्वर से डरेगा, उसे किसी से नहीं डरना है
अचेतन मन की व्याधियाँ और उनका निराकरण
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नर और नारी के बीच की खाई न्यायोचित नहीं
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संगीत साधना में समपत दो महामानव
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हम अन्तःकरण की वाणी सुनें और उसका अनुकरण करें
दान अहसान नहीं परम पवित्र धर्म र्कत्तव्य है
उपार्जन का संग्रह नहीं वितरण किया जाय
अन्धाधुन्धा प्रजनन हर दृष्टि से अदूरदशतापूर्ण
प्रगति के पथ पर मर्यादित कदम ही बढ़ाये जायें
साधक को न अकेलापन खलता है न असफलता अखरती है
अपनों से अपनी बात
गीत - ऐसे नहं बनो रे! - मंगल विजय