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यथार्थता को समझे-आग्रह न थोपें
गतिशीलता की सजीव सरसता
ईश्वर का अनन्त अनुदान और हमारा प्रतिदान
मरने के बाद हमारे अस्तित्व का अंत नहीं होता
जीवन के दो प्रमुख तत्त्व आश्शा और गति
हम अगले दिनों दिव्य दृष्टि सम्पन्न होंगे
प्रेम का अमृत बनाम मोह का विष
स्वभाव परिवर्तन कितना कठिन कार्य
पतित देवता या समुन्नत कृमि कीटक
विभूति रहित सम्पदा निरर्थक
सार्थक और सारगभत उपासना की रीति नीति
मृदुलता की तलाश बाहर नहीं भीतर करें
क्या हम मनुष्यों के स्थानापन्न यंत्र मानव होंगे
ऐसा बड़प्पन किस काम का
दैवी प्रतिशोध
कुकर्मो की सर्वनाशी विभीषिका
उसने प्रेत बनकर बदला लिया
क्या हम वृक्ष वनस्पतियों से भी पिछड़े रहेंगे
वैभव खोकर भी सत्यनिष्ठ बनें रहें
पवित्रात्मा और पिशाचात्मा की आकृति
अपनों से अपनी बात
सबके कल्याण में ही अपना कल्याण
स्वर्ग साध्य है
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-
Year 1974 - Version 1
Media: SCAN
Language: HINDI
यथार्थता को समझे-आग्रह न थोपें
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Other Version of this book
Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...
Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...
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गतिशीलता की सजीव सरसता
ईश्वर का अनन्त अनुदान और हमारा प्रतिदान
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जीवन के दो प्रमुख तत्त्व आश्शा और गति
हम अगले दिनों दिव्य दृष्टि सम्पन्न होंगे
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अपनों से अपनी बात
सबके कल्याण में ही अपना कल्याण
स्वर्ग साध्य है