Magazine - Year 1975 - Version 2
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Language: HINDI
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सत्य को ही अपनायें- असत्य को नहीं
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मुंडकोपनिषद् में कहा गया है-
सत्यमेव जयते नानृतं, सत्येन पंथा विततो देवयानः।
येनः क्रमन्त्यृषयोह्याप्त कामा यत्र तत्सप्यत्य परम निधानम्॥ -मुण्डक 3।1।1
सत्य ही जीतता है, असत्य नहीं। सत्य से ही देवयात्रा प्रशस्त होती है। सत्य से ही ऋषिगण अपनी कामनाओं को जीतते हैं। सत्य रूप परमात्मा को प्राप्त करते हैं।
विश्व के सभी मनीषियों ने सत्य की महिमा गाई है। सभी धर्म-ग्रन्थ, महापुरुषों के संदेश इसी तथ्य की ओर निर्देश करते हैं कि मनुष्य सत्य मार्ग का अनुसरण करे।
दार्शनिक प्लेटो का वचन है - ‘सत्य को ईश्वर और उसके प्रतिबिम्ब को प्रकाश कहते हैं।’ महात्मा शेखसादी की उक्ति है - ‘ईश्वर को प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग सत्य को अपनाना है। जो सचाई के मार्ग पर चलता है वह भटकता नहीं।’ मनीषी कान्ट का कथन है - ‘सचाई वह तत्व है जिसे अपनाने पर मनुष्य भले और बुरे की परख कर सकता है। हृदयगत सभी सद्गुणों के विकास की कुंजी मनुष्य की सत्यनिष्ठा में सन्निहित है। विद्वान ऐनोन कहा करता था - ‘यह मत देखो कि कौन कह रहा है वरन् यह देखो कि सत्य कहाँ से कहा जा रहा है।’ होरेसमन का अभिमत है - ‘यह जरूरी नहीं कि बिना पात्र-कुपात्र का ख्याल किये हर सच्ची बात पूरी की पूरी हर किसी से कह दी जाय, परन्तु इतना ध्यान अवश्य रखा जाये कि जिससे जितना कहा जाये वह सत्य ही होना चाहिये। संत सिल्वियो वैलिको ने कहा है -’ईश्वर से प्रेम करना और सत्य से प्रेम करना एक ही बात है।’