Magazine - Year 1976 - Version 2
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Language: HINDI
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लापरवाही राई जैसी, हानि पहाड़ जैसी
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बहुमूल्य संपदाएं प्राप्त कर लेना उतना कठिन नहीं है जितना उनका संभाल सकना। बड़ी उपलब्धियाँ अपने साथ बड़े उत्तरदायित्व भी लाती हैं। जो उन्हें सँभाल सकते हैं, उनके लिए वे यश गौरव का माध्यम बनती हैं किन्तु यदि ठीक तरह उनकी सुरक्षा न की जा सकी, अभीष्ट प्रयोजन के लिए उनका प्रयोग न हो सका तो वे अपयश का कारण भी बनती हैं और अपना तथा दूसरों का विनाश भी कम नहीं करती। बड़ी विभूतियाँ उन्हीं के लिए सौभाग्य सिद्ध होती हैं जिनका व्यक्तित्व उनका सदुपयोग कर सकने योग्य विकसित हो चुका है। अपरिपक्व लोग कभी उन्हें प्राप्त कर लेते हैं तो अपनी असावधानी के कारण उस उपलब्धि को विनाशकारी दुर्घटना के रूप में ही परिणत कर देते हैं।
बड़ा पद, बड़ा वैभव, बड़ा अवसर प्राप्त कर लेना सरल है। वैसा संयोग वश भी हो सकता है, पर विभूतियों का सदुपयोग समर्थ व्यक्तित्व, बड़े परिश्रम और अध्यवसाय से ही बनता है। छोटी-छोटी सावधानियाँ बरतने पर ही ऐसे स्वभाव का निर्माण होता है जो जागरुकता की-उत्तरदायित्वों के निर्वाह की कसौटी पर खरा उतर सके। धन, विद्या, पद आदि प्राप्त कर लेने की तुलना में जागरुक एवं परिष्कृत व्यक्तित्व को विनिर्मित कर सकना अधिक कठिन है। वस्तुतः इसी में मनुष्य को अधिक श्रम करना पड़ता है और उसका वास्तविक मूल्याँकन भी इसी कसौटी पर होता है। जो इस परीक्षा में खरे उतरते हैं उन्हीं को संसार एक से एक बड़े उत्तरदायित्व सौंपता चला जाता है और वे क्रमशः ऊँचे उठते और आगे बढ़ते हुए उन्नति के उच्च शिखर पर पहुँच कर महामानवों के ऐतिहासिक पद प्राप्त करते हैं।
बड़ा उत्तरदायित्व कन्धों पर ले लेने किन्तु उसे सँभाल सकने योग्य सजग व्यक्तित्व विकसित न करने पर कितनी विपत्ति आती है इसका एक उदाहरण फोर्ट स्टिकिन नामक जल पोत के भयंकर विस्फोट को प्रस्तुत किया जा सकता है। उसके अधिकारी अपने विषय में उच्च शिक्षा प्राप्त थे, सरकारी परीक्षाओं में अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण थे, पर सर्वतोमुखी जागरुकता और उत्तरदायित्वों के निर्वाह में राई-रत्ती भी ढील पोल न रहने देने का स्वभाव विकसित कर सकने में वे समर्थ न हो सके और जब बड़े पद का-बड़ी जिम्मेदारी का बोझ उनके सिर पर आया तो बुरी तरह असफल हो गये।
उन दिनों द्वितीय महायुद्ध का दौर चल रहा था। जल पोतों को डुबाना भी शत्रु पक्ष का एक कार्यक्रम था। जर्मनी के चार बमवर्षक जहाजों ने स्टिकिन को घेर लिया। डुबोने के प्रयत्न में ऊपर से जहाज गोले बरसाते रहे और नीचे से उस जल पोत से तोपें दागी जाती रहीं। बहुत देर घमासान के बाद जब वायुयानों को अपनी दाल गलती दिखाई न पड़ी तो वे भाग खड़े हुए। कप्तान को अपनी कुशलता और सूझ-बूझ पर गर्व था। अन्य नाविकों ने भी संतोष की साँस ली और ईश्वर को धन्यवाद दिया कि वे बच गये।
जहाज धीरे-धीरे अपनी गति से सफर करता हुआ अदन कराँची के बन्दरगाहों पर पहुँचा और वहाँ उसने माल उतारा तथा लादा। अब वह बम्बई के निकट था। 12 अप्रैल को उसे विक्टोरिया डाक पर खड़ा कर दिया गया। माल उतारने के लिए जिम्मेदार पोर्ट अधिकारी बुलाये गये और सामान धीरे-धीरे उतारा जाने लगा। बड़ी व्यवस्थाएँ सभी ठीक कर ली गईं पर छोटी बातों पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता। जो बन्दूक धारी सिपाही सुरक्षा के लिए नियत किये गये थे उन्हीं में से कोई बीड़ी बाज था। उसने रात को चुपके से बीड़ी पियी और बचा हुआ टुकड़ा उधर ही कहीं फेंक दिया। धीरे-धीरे आग रात भर सुलगती रही और सवेरा होते-होते वह रुई और तेल के गोदामों में पहुँच गई। जब धुएँ की लपटें ऊँची उठने लगीं तब पता चला और घबराये हुए अधिकारियों ने फायर ब्रिगेड बुलाया। आग बुझाने वाली दर्जनों दमकलें काम कर रही थीं, पर आग पर काबू पाना सम्भव न हुआ। गोदाम की मोटी लौह दीवार काटे बिना मात्र दरवाजे से आग तक पानी पहुँचाना सम्भव नहीं हो सका।
स्थिति विस्फोटक होती गई तो अन्तिम क्षण यह फैसला किया गया कि जहाज के पेंदे में छेद करके उसे डुबो दिया जाय। यह सब सोचा ही जाता रहा। हड़बड़ाये हुए अधिकारी कुछ अन्तिम निर्णय न कर सके। खतरे का भोंपू बजा। जहाज पर काम करने वाले लोग भागने लगे, पर तब तक वज्रपात की घड़ी आ पहुँची। भयंकर विस्फोट हुआ और एक के बाद एक जमीन हिला देने वाले धड़ाके होते चले गए। सर्वनाश करके आग जब अपने आप बुझी तो अस्पताल घायलों से भर गये। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार बन्दरगाह के 84 जहाजी, 64 आग बुझाने वाले मरे और 83 घायल हुए। जल पोत और सुरक्षा विभाग के लोगों के सहित 233 मरे और 476 घायल हुए। जनता के लोग इसके अतिरिक्त हैं। विस्फोट के कारण जो लोहे के टुकड़े सोने की छड़ें तथा दूसरे पदार्थ उड़-उड़ कर जहाँ-तहाँ गिरे। सरकारी अस्पतालों की रिपोर्ट के अनुसार लगभग ढाई हजार घायल भर्ती हुए जिनमें से 1376 तो कुछ ही घण्टों में मर गये। अस्पताल की परिधि और सरकारी सूचना के अतिरिक्त और जो लोग घायल हुए तथा मरे उनके सही आँकड़े अभी तक अविज्ञात हैं। स्वर्ण, राशि, अस्त्र-शस्त्र तथा दूसरा बहुमूल्य सामान कितनी कीमत का नष्ट हुआ और जहाज को कितनी क्षति पहुँची। बम्बई के नागरिकों को कितनी क्षति सहन करनी पड़ी इसका सही विवरण विदित नहीं पर इतना निश्चित है कि धन जन की बहुत बड़ी क्षति हुई। इस घटना को जलयानों के विस्फोट इतिहास में अभूतपूर्व माना जाता है।
यह सारी करामात है एक बीड़ी के टुकड़े को असावधानी के साथ जहाँ-तहाँ फेंक देने की। लापरवाही कितनी अधिक हानिकारक हो सकती है। इसकी एक झोंकी, इस विस्फोट घटना से लगता है ऐसी-ऐसी असंख्य हानियाँ समस्त संसार हर घड़ी उठाता रहता है; फिर भी असावधानी की हमारी आदत अभी भी जहाँ की तहाँ बनी हुई है और उसे हटाने की कोई बहुत बड़ी चेष्टा नहीं की जाती।
जलती बीड़ी फेंक देना एक छोटे कर्मचारी की छोटी लापरवाही हो सकती है, पर उसे रोकने के लिए उस अफसर को भी इतना सजग होना चाहिए कि कहीं किसी की गड़बड़ी करने की गुंजाइश न रहे। आमतौर से लोग अपने आपको सीमा तक कार्यरत रहना पर्याप्त मान लेते हैं और यह भूल जाते हैं कि जो उनके साथ जुड़े हुए हैं उन्हें भी कर्तव्यनिष्ठ बनाये रहने के लिए पूरा प्रयत्न करने की उन्हीं की जिम्मेदारी है। बहुमूल्य जल पोत पर लदी करोड़ों की सम्पदा का विनाश एक उदाहरण है लापरवाही और गैर जिम्मेदारी की वेदी पर न जाने ऐसे कितने विनाश अहर्निश होते रहते हैं।