Magazine - Year 1976 - Version 2
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Language: HINDI
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हम चिन्तन की दृष्टि से भी प्रौढ़ बनें।
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मनोविज्ञानी शिण्डलर का कथन है- लोग आयु की दृष्टि से तो बड़े हो जाते हैं, पर चिन्तन की दृष्टि से बालक जैसे अविकसित ही बने रहते हैं। पड़ौसियों का ढर्रा अपनाकर गतिविधियाँ बनती हैं और यह यथार्थता, दूरदर्शिता तथा उपयोगिता की परख करना आवश्यक मान लिया जाता है। यह अपरिपक्वता ही मानव जीवन की आन्तरिक प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है।
बुद्धिमता का अर्थ है-सुलझे हुए विचार, स्पष्ट दृष्टिकोण और उत्तरदायित्व समझने एवं निबाहने की परिपक्वता। परिस्थितियों के साथ ताल-मेल बिठाना- उनमें से किससे कितना लाभ उठाया जा सकता है, किन्हें किस प्रकार बदला, सुधारा जाना चाहिए और किन्हें किस सीमा तक सहन किया जाना चाहिए- यह सब निष्कर्ष दूरदर्शिता, विवेकशीलता के आधार पर ही निकाले जा सकते हैं।
विचारों की प्रौढ़ता, दृष्टिकोण की परिपक्वता ही मानव जीवन की वह विशेषता है जिसे उपलब्ध करने पर व्यक्तित्व प्रतिभाशाली बनता है और बड़ी सफलताएं प्राप्त कर सकने की सम्भावना सुनिश्चित होती है। ओछे मनुष्य वे नहीं जो वजन, लम्बाई या आयु की दृष्टि से छोटे हैं। जिनकी विचारणा तथा आकाँक्षा उथली और बचकानी है, जो गये गुजरे लोगों की तरह सोचते और घटिया आकांक्षाएं पूरी करने के लिए ओछे हथकंडे अपनाते हैं, उन्हें कोई चतुर भले ही कह ले, पर वस्तुतः वे व्यक्तित्व की दृष्टि से बौने, अपंग, अविकसित लोगों की श्रेणी में ही माने जा सकेंगे।
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