Magazine - Year 1976 - Version 2
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Language: HINDI
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हम अहंकारी नहीं, स्वाभिमानी बनें।
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भगवान के छोटे राजकुमार मानव ने आत्म-विश्वास रूपी अस्त्र ले इस धरती पर पदार्पण किया। जीवन-संग्राम में कठिन से कठिन कार्य भी आत्म-विश्वास के सहारे बड़ी सुगमता के साथ सफल हो जाते हैं। आत्म-विश्वास के प्रकाश में सम्पूर्ण उलझनपूर्ण समस्याओं का निदान खोजा जा सकता है।
विश्व के सभी महान दार्शनिकों एवं विद्वानों ने आत्म-विश्वास की महत्ता का बखान एक स्वर से किया है। भक्त कवि गोस्वामी तुलसीदास ने भवानी और शंकर के रूप में श्रद्धा और विश्वास को देखा। महात्मा टॉलस्टाय ने विश्वास को जीवन की शक्ति कहा तो शेक्सपीयर ने अथाह सागर में मार्ग ढूंढ़ निकालने का आधार बताया । स्वेट मार्डेन जैसे विद्वान ने विश्वास को मंजिल तक पहुँचाने का आधार कहा, तो महात्मा गाँधी ने जीवन नैया का पतवार। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आत्म विश्वास के प्रकाश में ही भूले-भटके राही राह पाने में समर्थ हो सकते हैं।
आत्म-विश्वास का प्रादुर्भाव चेतना के प्रतिबिंब में अन्तर के दिव्य गुणों एवं शक्तियों के दर्शन करने से होते हैं। यह कोई वरदान या आशीर्वाद नहीं, बल्कि अन्तः करण की दिव्य-शक्तियाँ ही है। आत्म-सत्ता के हाथों अपने जीवन के पतवार को सौंपकर कर्त्तव्य-पथ पर चल पड़ना ही आत्म-विश्वास का सहारा लेना है। प्रगति की सारी सम्भावनाएँ इसी में हैं।
मृग की नाभि में कस्तूरी छिपी रहती है, लेकिन वह उसे ढूंढ़ने के लिए जंगल-जंगल भटकता फिरता है। हम मृग की इस मूर्खता पर भले ही हँस लें, लेकिन हम स्वयं अपने अन्तःकरण के अजस्र-शक्ति स्त्रोत को नहीं पहचान पाते। अपने अज्ञान और अविवेक के कारण हम भी दर-दर भटक रहे हैं। मानव प्रगति के जितने चरण आगे बढ़े हैं, वे सब विश्वास की फुलझड़ियाँ मात्र हैं। बड़े -बड़े आविष्कार तथा उपलब्धियाँ विश्वास की आधारशिला पर ही खड़ी हैं साधनों के अभाव रहते हुए भी विश्वास के बल पर विश्व के महान साहसी व्यक्तियों ने नई-नई खोजें कीं। कोलम्बस के आत्म-विश्वास ने अमेरिका को विश्व के रंग-मच पर ला खड़ा किया। नेपोलियन की विजयवाहिनी ने आल्पस-पर्वत को काट-छाँटकर अपने मार्ग से हटा डाला। सिकन्दर और मुसोलिनी के साहसपूर्ण कदमों ने विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया। रामदूत हनुमान आत्म-विश्वास का सहारा लेकर समुद्र पार कर गये और सोने की लंका जला डाली।
अहंकार और आत्म-विश्वास का बाह्य-कलेवर देखने में एक समान दिखाई पड़ता है, लेकिन दोनों की आत्मा भिन्न है। महर्षि वशिष्ठ ने विश्वास को कुल की नारी और अहंकार को वेश्या की संज्ञा दी। स्वामी रामतीर्थ ने विश्वास को राम और अहंकार को रावण कहा।
आत्म-निष्ठा पर केंद्रित विश्वास राम है और अहंकार पर आधारित विश्वास रावण। लोक-मंगल के लिए सर्वस्व त्याग देने की प्रबल प्रेरणा यहीं से मिलती है। सुकरात को विष का प्याला पी जाने का साहस आत्म-बल द्वारा ही प्राप्त हुआ। ईसा का सूली पर चढ़ना तथा सरदार भगतसिंह को हँसते-हँसते फाँसी पर चढ़ने की हिम्मत आत्म-बल ने ही दी। आत्मा-निष्ठ विश्वासी राम तथा दधीचि को त्यागमय जीवनयापन की शक्ति वहीं से मिली।
अहंकार पर आधारित विश्वास पतन का द्वार खोलता है। भौतिकता से अभिभूत व्यक्ति संकीर्णता, स्वार्थपरता एवं अनुदारता के दल-दल में फँस जाते हैं। अहंकार का आधार ही मनोविकार एवं भौतिक पदार्थ है। भोग-लिप्सा के सिवाय उसे कुछ दिखलाई ही नहीं पड़ता। इसके अभिशाप से व्यक्ति दीन दुःखी, असहाय तथा निष्प्राण होकर धरती पर भार स्वरूप बना रहता है। सभी अनर्थों की जड़ अहंकार-जनित विश्वास है। अशान्ति, युद्ध, कलह और राग-द्वेष यहीं से उत्पन्न होते हैं। नेपोलियन, मुसोलिनी और सिकन्दर के अहंकार-युक्त विश्वास ने विश्व को तबाह कर डाला।
विश्वास अपने आप में एक शक्ति है। शक्ति रूपी आत्म-विश्वास हमें नर से नारायण की भूमिका में पहुँचा देता है। अपनी सत्ता-आत्म-विश्वास की जानकारी कर उसके सदुपयोग करने की कला परख होनी चाहिए। अन्तःकरण की सुषुप्त शक्तियों के जग पड़ने का नाम ही आत्म-विश्वास है।
आत्म-विश्वास आन्तरिक शक्तियों को केन्द्रित एवं नियन्त्रित करता है। जब केन्द्रित एवं संगठित शक्तियाँ एक दिशा की ओर चल पड़ती हैं तो सफलता ही सफलता मिलती जाती है। विश्वास की ज्योति जलाकर ही अन्धकार को मिटाया जा सकता है।
जीवन के हर क्षेत्र में विश्वास की आवश्यकता है। विश्वास हमारा मार्ग-दर्शन करता है तथा सद्पथ पर चलने की प्रेरणा देता है। जीवन -रहस्य को समझने के लिए आत्म-विश्वास का सहारा लेना ही पड़ेगा। जीवन-निर्माण में आत्म-विश्वास का प्रधान हाथ रहता है।
जो व्यक्ति अपनी इस शक्ति का विकास नहीं कर पाये, उन्हें अभाव और दरिद्रता में पलते हुए जीवन को समाप्त करना पड़ा। अविश्वासी व्यक्ति न तो किसी के सहायक हो पाते हैं और न दूसरों की आत्मीयतापूर्ण सहानुभूति ही प्राप्त कर पाते हैं।
जीवन-निर्माण के लिए आत्म-निष्ठा पर आधारित आत्म-विश्वास की अभिवृद्धि आवश्यक है। इसका सहज मार्ग अपने कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्वों को ईमानदारी के साथ पूर्ण करते चलने में है। कार्यों के छोटे-बड़े होने की चिन्ता नहीं होनी चाहिए।
छोटे-छोटे कार्यों के सम्पादन करते चलने से मनोबल बढ़ता है और आगे का मार्ग प्रशस्त होता है बड़े लोगों ने अपने जीवन-काल के प्रारम्भ में छोटे काम ही हाथ में लिए थे। कोई छोटा और बड़ा नहीं होता, यह तो कार्य-सम्पादन करने वालों की मनोभूमि पर आधारित होते हैं।
जीवन का आधार आत्म-विश्वास ही है,जिसने अपने को पहचाना और अपनी शक्तियों को विकसित किया। वे अवश्य ही जीवन-संग्राम में सफल होंगे।