Magazine - Year 1978 - Version 2
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Language: HINDI
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सौर-ऊर्जा का अथाह सिन्धु, काश! उसे धारण कर पायें
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सौर-ऊर्जा का अथाह सिन्धु , काशा उसे धारण कर पायें
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न्यू मैक्सिको में अलबुकर्क के अनुसंधानकर्त्ताओं ने एक ऐसा यन्त्र बनाया है ,जो सौरऊर्जा को एकत्र करता है। शोधकर्मियों ने अपने प्रथम प्रयोग में ही 4.5 मीटर लम्बी व 1.8 मीटर चौड़ी इस्पात की चादर को गलाकर रख दिया। यह 1/4 इंच मोटी थी और प्रयोग संडिया की प्रयोगशाला में किया गया।; किन्तु सबसे अच्छी प्रयोगशाला मनुष्य का अपना शरीर ही है | यदि इसमें प्रसुप्त पड़ी शक्तियों को पहचाना और विकसित किया जा सके ,तो बिना किसी यान्त्रिकी या भौतिकी के भी ,अपार शक्ति संचय और उसके द्वारा विलक्षण चमत्कार तक दिखाये जा सकते हैं।
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मार्ग द्वारा गंगोत्री तक की यात्रा सम्पन्न की | जिस समय एडमण्ड हिलेरी की मोटर वोट इलाहाबाद पहुँची, उस समय एक 68 वर्षीय वृद्ध हठयोगी ने उनकी नाव को एक स्थान पर ही 10 मिनट तक रोके रखा | इस प्रयोग को हजारों व्यक्तियों ने देखा |14 सितम्बर के दैनिक हिन्दुस्तान में यह समाचार छपा भी था और बनाया गया था–200 हार्सपावर की मोटर ने पूरा जोर लगाया ; वोट बुलबुले छोडती रही ; पर टस से मस न हो सकी | सूर्य किरणॉ को केन्द्रित करने के लिए तो कम्प्यूटर नियन्त्रित दर्पण प्लेटें (हैलिपोस्टैटस) प्रयुक्त की गई थी ,जिससे दो मिनट में 3000 डिग्री फारेनहाइट ताप 1.8 मेगावाट विधुत के बराबर उर्जा उत्पन्न हुई और उसने इस्पात की चादर को गला दिया, पर आत्मव्यक्तियों को केन्द्रित करने और उनका लाभ उठाने के लिये न ऐसे किसी जटिल उपकरण की आवश्यकता होती है ,न साधनों की | जिस तरह आतिशी शीशे में किरणों को एकाग्रकर उन्हें अकृत बना लिया जाता है , उसी प्रकार प्राण शक्तियों के संलयन से वह अदभुत शक्ति मनुष्य शरीर में ही प्राप्त कर ली जाती है, हाइड्रोजन सर्वत्र बिखरा पड़ा है और किसी स्थान विशेष में 10 करोड़ सेन्टीग्रेट ताप पैदा कर दें , तो इस हाइड्रोजन की संलयन (फ्यूजन) प्रक्रिया वहाँ स्वयमेव प्रारम्भ हो जायेगी और उस स्थान पर कृतिम सूर्य पैदा हो जायेगा | वैज्ञानिक फ़िलहाल इतनी गर्मी पैदा करने की प्रक्रिया का विकास नहीं कर पाये , इसीलिए अभी ऊर्जा का यह अक्रृत भंडार हमारे आसपास बिखरा होने पर भी उसका उपयोग नहीं हो पाता | मनुष्य में से प्रत्येक के पास भी परमात्मा ने इस तरह की शक्तियाँ दी हैं ; पर इसकी प्रचण्ड गर्मी वाला मनोबल या संकल्पबल किन्हीं बिरलों में ही जागृत हो पाता है;जो कर लेते है, वे लोग साधनों ,विचरों आदि के मूर्तिमान शक्तिपुंज चलते -फिरते बिजली घर बन जाते हैं उससे वे सैकडों लोंगों का भला कर सकते हैं | मात्र वचारों की ही एकाग्रता मनुष्य को कुशाग्र बुद्धि ,साहित्यकार ,इंजीनियर ,वैज्ञानिक और न जाने क्या बना देती है , आत्मशक्ति संचय के सत्परिणाम की तो कल्पना भी नहीं हो सकती |
प्रकारान्तर से प्राप्त ऊर्जाशक्ति चाहे वह प्राकृतिक रूप में हो या उसे साधनरूप में प्रयुक्त किया गया हो, सूर्य की ही का चिर संग्रहीत शक्ति होती है। सम्भालकर रखे गये पदार्थ कभी भी काम में आ जाते हैं ; इस तथ्य में यही सिद्धान्त कार्य करता प्रतीत होता है।
भूताप विशेषज्ञ सी गुलेमीन के कुछ दिनों पूर्व पेरिस में आयोजित एक ऊर्जा सम्मेलन में अपने निब्न्ध में बताया कि अकेले पेरिस के इलाके में 15oo से 2ooo मीटर गहरे कुएँ खोदे जायें , तो वहाँ उपलब्ध गरम जल से इतना अधिक ताप मिला जायेगा ,जितने के लिये 1करोड़ 80 लाख टन ईधन जलाना पड़ेगा | पेरिस में मेलन नामक स्थान में इस 100 क्युमिक मीटर प्रति घंटे की गति से 70 अंश से .ग्रेड पानी निकालकर लगभग 1900 घरों को पहुँचाया जाता है |
हिमालय के अत्यन्त शीत वाले प्रदेश में स्थान-स्थान पर ऐसे कुण्ड उपलब्ध हैं , जिनमें 350 से.ग्रेड .तक गर्म जल उपलब्ध है। रूस के उत्तरी ध्रुव- क्षेत्रों में भी पृथ्वी के भीतर के गर्म जल का उपयोग करके 2 करोड़ टन ईन्धन की बचत की जाती है। टस्केनी के लाडरेल्लो में एक ऐसा कारखाना चलाया जा रहा है ,जिसमें इस भू-ताप से ही 390 मेगावाट शक्ति की भू-ताप बिजली तैयार की जाती है। कैलीफोर्निया में पहले से ही 6 भू-ताप बिजली घर हैं, 7 और तैयार हो रहे हैं। यह सब 1000 मेगावाट बिजली तैयार करेंगे। जापान, मैक्सिको, आइसलैण्ड, न्यूजीलैण्ड, फिलीपीन्स आदि में भी ऐसे भू-ताप कारखाने हैं। यह समग्र शक्ति और कुछ नहीं सूर्य द्वारा वर्षों से धरती के सघन अन्तराल में संचित की हुई पूँजी है| उसका लाभ आज का मनुष्य समाज पूर्वजों द्वारा संग्रहीत सम्पत्ति के रूप में लेता है। फ्राँस ने रांस नदी पर समुद्री ज्वार से 240 मेगावाट बिजली बनाने का कारखाना खड़ा किया है। वह भी सूर्य की ही उधार दी हुई सामर्थ्य है।अपने देश की धरती में अनुमानत: 140 अरब टन कोयला है , उससे अगले 200 वर्षो से भी अधिक तक 625 करोड़ टन प्रति वर्ष की दर से उर्जा प्राप्त की जा सकती है | यह भी सूर्य की ही चिर संचित पूँजी है | अनुमान है कि यह कुछ करोड़ वर्षो से संग्रहीत शक्ति है,जो कोयलों में विद्यमान रहती है | इस तरह सारी धरती के कोयले में प्रसुप्त सौर -शक्ति की माप भी सम्भव है |
बरसात के दिनों में, जो बादल अपने आप हवाई समुद्र बन जाते और सारी पृथ्वी को जल से सराबोर कर देते हैं ; यह बादल उस भाप का परिणाम हैं, जिसे सूर्य अपनी गर्मी से प्रति सेकेंड 1 करोड़ 60 लाख टन पानी को पका कर भाप में बदलता रहता है। सूर्य से पृथ्वी को मिलने वाली कुल ऊर्जा शक्ति का दो तिहाई भाग इसी कार्य में प्रयुक्त होता है। नैसर्गिक शक्तियाँ विश्व व्यवस्था का भार कितने विवेकपूर्वक चलाती है यह इसी तथ्य से प्रकट है। यदि सृष्टि में वृष्टि की प्रक्रिया किसी एक वर्ष ही रुक जाये,तो न केवल मनुष्य जाति ,अपितु उससे पड़ने वाले अकाल से सारा जीवन जगत समाप्त हो सकता है। कहाँ तुरन्त कितनी आवश्यकता है, कहाँ भविष्य के लिये संग्रह की आवश्यकता है, पृथ्वी में शीत ताप का सन्तुलन किस प्रकार रखने का है, इस सम्बन्ध में प्रकृति की चिन्तन दृष्टि विवेकपूर्ण, सूक्ष्म और दूरदृष्टि न रहे ,तो यहाँ जो कुछ भी सौन्दर्य और जीवन व्यवस्था दिखाई देती है, कुछ भी न रहे। जो लोग अपने जीवन में भी यह दृष्टि और दूरदर्शिता बनाये रखते हैं ; वे न केवल स्वयं सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं ,अपितु अपने परिवार-परिजनों को भी प्रगति पथ पर अग्रसर करने में सफल होते हैं। सूर्यशक्ति का यह विशाल परिणाम और उसकी सर्वव्यापक सक्रियता न केवल जगत के शक्तिमय होने की झाँकी प्रस्तुत करती है ; अपितु उससे भौतिक लाभ भी लिये जा सकते हैं। सूर्य हमारे जीवन का आधार- हमारा आरोग्य प्रदाता है हमारा पिता है ; हमें उनको भौतिक ही नहीं ,आत्मिक दृष्टि से भी पहचानना चाहिए। ब्रिटेन के टेलीफोन इंजीनियरों ने एक ऐसे टेलीफोन का विकास किया है, जिसमें तार बिछाने की न तो कोई समस्या रहेगी ,न खर्च। उससे सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी संचार - व्यवस्था स्थापित हो जायेगा, जहाँ वर्तमान साधनों से भी पहुँचना सम्भव न था। ब्रिटेन की दूरसंचार - प्रणाली की संचालन करने वाले डाक घर के प्रवक्ता ने बताया, कि नारफोक के निकट ब्रिटेन के पूर्वी तट पर एक निगरानी चौकी बनी है, जिससे उस क्षेत्र में कोई पक्षियों का शिकार न कर पाये | उसकी निगरानी की जाती है| उपरोक्त टेलीफोन का परीक्षण इसी स्थल पर किया गया। यह एक प्रकार से विशालकाय सूर्य की अनन्तशक्ति की एक फुलझड़ी मात्र हुई। आये दिन ऐसे अनेक लोगों के चमत्कार के वर्णन सुनने को मिलते रहते हैं, कि उन्होंने भविष्यवाणी की; सच निकली। उन्होंने तन्त्र विद्या से कोई वस्तु प्रकट कर दी। उन्होंने शाप देकर किसी का अनिष्ट कर दिया | उन्होंने किसी को सम्मोहित कर दूरवर्ती अदृश्य तथ्य को भी जान लिया। यथार्थ चमत्कार तो वह है ,जो किन्हीं महापुरुषों, सन्तों और अवतारों द्वारा युग की दिशायें मोड़ने में प्रयुक्त होता और जनजीवन के प्रकाश के रूप में चमत्कार दिखाता है ; विनाश की दिशा में चल रही मानवीय प्रवृत्तियों को उलटकर, उन्हें रचनात्मक दिशायें देते और संसार में सुख -शान्ति की परिस्थितियाँ लाते हैं। इसके लिए कितनी विशाल शक्ति की आवश्यकता होगी, उसकी कल्पना करना भी कठिन है। परमात्मा के इस विशाल जगत में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं है ; यदि कुछ है तो वह मात्र मनुष्य का अज्ञान है, उसकी जड़ता है। अज्ञान और जड़तायें आगे बढ़ने ही नहीं देतीं, संकीर्णता में ही उलझाये रहती हैं। ऊर्जा के लिए ईंधन और कोयला स्थूल साधन हैं। बड़े परिमाण में मिलें , तो भी थोड़ी शक्ति मिलती है। उससे आगे भू-ताप है; उससे भी बढ़कर विद्युत शक्ति। इससे भी यदि आवश्यकतायें पूर्ण न हों तब फिर सूर्यशक्ति का अजस्र भंडार। शक्तियों के एक से एक बुद्धि को चकरा देने वाले साधन प्रकृति के अन्तराल में भरे पड़े हैं। उन्हें प्राप्त करना एक क्लिष्ट प्रणाली हो सकती है, किन्तु वैज्ञानिकों ने वह तथ्य सम्मुख ला दिये हैं, जिनसे शक्ति चुक जाने की आशंका का पूर्ण निराकरण हो गया है। सूर्य पृथ्वी से 1490000000 किलोमीटर दूर है। इतनी दूरी और पृथ्वी के क्षेत्रफल के अनुपात से वह अपनी कुल ऊर्जा का मात्र 0.000000005 वाँ अंश ही पृथ्वी को देता है, किन्तु यह शक्ति भी इतनी विशाल है की उसकी बराबरी 2 अरब अणु विद्युत घरों से प्राप्त बिजली ही कर सकती है। उसे यदि विद्युत शक्ति में बदला जा सके, तो 1 खरब 73 अरब मेगावाट विद्युत भार के बराबर होती है। अनुमान है कि प्रति वर्गमीटर एक किलोवाट विद्युत भार के बराबर ताप पृथ्वी को मिलती है। समूची धरती का हिसाब लगायें, तो उसे सूर्य से प्रति वर्ष 1311 करोड़ खरब कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। इस विशाल परिणाम का अनुमान करना भी कठिन है। हमें यह अनुदान अजस्र रूप से मिलता रहता है; फिर कितना दुर्भाग्य है कि हम शक्ति-शक्ति चिल्लाते रहते हैं। " जल में मीन पियासी " वाली कहावत है। सूर्य की यह अजस्र ऊर्जा हमारा प्राण है। समस्त जीव-जगत और वृक्ष - वनस्पति उसी से जीवन धारण करते हैं। शैवाल से लेकर सभी पौधे सूरज की ऊर्जा सोखकर “ फोटो ऐन्थेसिस ” क्रिया करते हैं और कार्बन -डाइ - ऑक्साइड तथा पानी से हमारे लिए शाकाहार तैयार करते हैं। अकेले भारतवर्ष में 23 करोड़ पशु, कृषि -उपयोग में आते हैं। इनका मुख्य आहार यह प्रकृति ही है। फिर पृथ्वी के 3 अरब लोग और इनसे करोड़ों गुना अन्य जीव - जन्तु सब सूर्यशक्ति के सहारे ही जीवित हैं। यह सब बातें भारतीय तत्व दर्शन की इस मान्यता का ही प्रतिपादन करते हैं ,कि सूर्य हमारी आत्मा है। तात्विक दृष्टि से हम उसी दिव्य ज्योति के प्रकाश कण हैं; अतएव हमें उनकी ओर उन्मुख रहना, उन्हें धारण किये रहना चाहिए उनके न रहने पर फूल खिलना बन्द हो जाता है। रोगाणु पनपने लगते हैं, हमारे जीवन में व्याप्त कषाय - कल्मषों का निवारण और प्रसन्नता का विकास, इसी आधार पर सम्भव है कि हम उस आत्मतत्व को विस्मृत न करें। किसी समय लोग इसे कल्पनातीत मानते थे कि सूर्यशक्ति को पकड़ा, बाँधा और बड़े कार्यों में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता। इसी तरह आज लोग आत्मशक्तियों पर विश्वास नहीं करते; किन्तु जब नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी की स्थापना की गई , जिसके अध्यक्ष एन. पी. एल. तथा डॉ. भिड़े हैं और उसने सूर्य - ऊर्जा को बिजली में बदलने, वाला सोलर-सेल बनाकर सिलीनियम- कैडमियम - सल्फाइड आदि से उसे सम्भव बना दिया।वही विश्वास होने लगा | माउंट लुई तथा ओडिलो (फ्राँस) में परावलमी शीशों से सौर - भट्टियाँ बनाई गई | इनमें एक काला रोगन पुता रहता है, जो शक्ति को सोख लेता है। पानी गर्म करने के यन्त्र ,आलू भूनने के यन्त्र, इसी आधार पर बने हैं। अरविन्द आश्रम में चाय बनाने, सामान सुखाने तथा पानी व कमरे गर्म करने के लिए छोटे सौर ऊर्जा यन्त्र बनाये गये हैं। इजराइल में खारे पानी को इसी तरह शुद्ध किया जाता है। भविष्य में तो वैज्ञानिकों की योजना, सारे समुद्री जल को मीठा बनाकर जल समस्या के निवारण की है। शक्ति एक ही है उसका जहाँ भी उपयोग करें, वहीं चमत्कारी सत्परिणाम उपस्थित हो सकते हैं। दुनिया भर में यह प्रयोग चल रहे हैं। रूस ने अर्मेनिया घाटी में बिजलीघर बनाया है ,जिसमें 1300 दर्पण -ऊर्जा संग्रह करते हैं। यह बिजलीघर पाँच एकड़ में है। 130 फुट ऊँची बुर्जी पर रखे बायलर पर सूर्य किरणें डालकर 25 लाख किलोवाट प्रतिघण्टे बिजली पैदा की जाती है। मिश्र ने एक सूर्य कुकर, भारत ने अल्मूनियम के शीशे वाला प्रेशर कुकर बनाने में सफलता पा ली है | अब तक लोहे से 2800 अंश ,टंग्सटन से 6100 अंश तथा किसी भी अच्छी से अच्छी ताप निरोधक धातु 6900 अंश पर भाप बनकर उड़ जाती हैं ; किन्तु अब सूर्य से 8000 अंश तक की तापशक्ति मिल जाने से , सर्वत्र औद्योगिक -क्रान्ति की संभावनाएं बढ़ गई हैं। अमेरिका में इस दिशा में व्यापक खोजें चल रही हैं। सर्वोपरि आवश्यकता, अन्तःशक्तियों पर विश्वास नहीं, उनके विकास की जटिलता से सिद्धि पाने तक जूझते रहने के साहस की होती है। बड़ी बारीकी से आत्मनिरीक्षण करना पड़ता है सौर ऊर्जा - संग्रह के लिए दर्पण वाले यन्त्र लगते हैं। अपने मन को भी दर्पण बनाकर उसमें झाँककर मलिनताओं को निकालना पड़ता है। अन्यथा प्रकाश के साथ अंधकार भी छनकर जाता रहे और शक्तिसंचय का प्रयोजन ही पूरा न हो। आत्मसुधार के बाद आत्मनिर्माण अर्थात् बुराइयों के स्थान पर अच्छे विचार, अच्छा चिन्तन और आदर्श कर्तृत्व अपनाना पड़ता है; इतना करने के बाद ही आत्मा का विकास या आत्मानुभूति का दिव्य लाभ मिल पाता है।
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न्यू मैक्सिको में अलबुकर्क के अनुसंधानकर्त्ताओं ने एक ऐसा यन्त्र बनाया है ,जो सौरऊर्जा को एकत्र करता है। शोधकर्मियों ने अपने प्रथम प्रयोग में ही 4.5 मीटर लम्बी व 1.8 मीटर चौड़ी इस्पात की चादर को गलाकर रख दिया। यह 1/4 इंच मोटी थी और प्रयोग संडिया की प्रयोगशाला में किया गया।; किन्तु सबसे अच्छी प्रयोगशाला मनुष्य का अपना शरीर ही है | यदि इसमें प्रसुप्त पड़ी शक्तियों को पहचाना और विकसित किया जा सके ,तो बिना किसी यान्त्रिकी या भौतिकी के भी ,अपार शक्ति संचय और उसके द्वारा विलक्षण चमत्कार तक दिखाये जा सकते हैं।
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मार्ग द्वारा गंगोत्री तक की यात्रा सम्पन्न की | जिस समय एडमण्ड हिलेरी की मोटर वोट इलाहाबाद पहुँची, उस समय एक 68 वर्षीय वृद्ध हठयोगी ने उनकी नाव को एक स्थान पर ही 10 मिनट तक रोके रखा | इस प्रयोग को हजारों व्यक्तियों ने देखा |14 सितम्बर के दैनिक हिन्दुस्तान में यह समाचार छपा भी था और बनाया गया था–200 हार्सपावर की मोटर ने पूरा जोर लगाया ; वोट बुलबुले छोडती रही ; पर टस से मस न हो सकी | सूर्य किरणॉ को केन्द्रित करने के लिए तो कम्प्यूटर नियन्त्रित दर्पण प्लेटें (हैलिपोस्टैटस) प्रयुक्त की गई थी ,जिससे दो मिनट में 3000 डिग्री फारेनहाइट ताप 1.8 मेगावाट विधुत के बराबर उर्जा उत्पन्न हुई और उसने इस्पात की चादर को गला दिया, पर आत्मव्यक्तियों को केन्द्रित करने और उनका लाभ उठाने के लिये न ऐसे किसी जटिल उपकरण की आवश्यकता होती है ,न साधनों की | जिस तरह आतिशी शीशे में किरणों को एकाग्रकर उन्हें अकृत बना लिया जाता है , उसी प्रकार प्राण शक्तियों के संलयन से वह अदभुत शक्ति मनुष्य शरीर में ही प्राप्त कर ली जाती है, हाइड्रोजन सर्वत्र बिखरा पड़ा है और किसी स्थान विशेष में 10 करोड़ सेन्टीग्रेट ताप पैदा कर दें , तो इस हाइड्रोजन की संलयन (फ्यूजन) प्रक्रिया वहाँ स्वयमेव प्रारम्भ हो जायेगी और उस स्थान पर कृतिम सूर्य पैदा हो जायेगा | वैज्ञानिक फ़िलहाल इतनी गर्मी पैदा करने की प्रक्रिया का विकास नहीं कर पाये , इसीलिए अभी ऊर्जा का यह अक्रृत भंडार हमारे आसपास बिखरा होने पर भी उसका उपयोग नहीं हो पाता | मनुष्य में से प्रत्येक के पास भी परमात्मा ने इस तरह की शक्तियाँ दी हैं ; पर इसकी प्रचण्ड गर्मी वाला मनोबल या संकल्पबल किन्हीं बिरलों में ही जागृत हो पाता है;जो कर लेते है, वे लोग साधनों ,विचरों आदि के मूर्तिमान शक्तिपुंज चलते -फिरते बिजली घर बन जाते हैं उससे वे सैकडों लोंगों का भला कर सकते हैं | मात्र वचारों की ही एकाग्रता मनुष्य को कुशाग्र बुद्धि ,साहित्यकार ,इंजीनियर ,वैज्ञानिक और न जाने क्या बना देती है , आत्मशक्ति संचय के सत्परिणाम की तो कल्पना भी नहीं हो सकती |
प्रकारान्तर से प्राप्त ऊर्जाशक्ति चाहे वह प्राकृतिक रूप में हो या उसे साधनरूप में प्रयुक्त किया गया हो, सूर्य की ही का चिर संग्रहीत शक्ति होती है। सम्भालकर रखे गये पदार्थ कभी भी काम में आ जाते हैं ; इस तथ्य में यही सिद्धान्त कार्य करता प्रतीत होता है।
भूताप विशेषज्ञ सी गुलेमीन के कुछ दिनों पूर्व पेरिस में आयोजित एक ऊर्जा सम्मेलन में अपने निब्न्ध में बताया कि अकेले पेरिस के इलाके में 15oo से 2ooo मीटर गहरे कुएँ खोदे जायें , तो वहाँ उपलब्ध गरम जल से इतना अधिक ताप मिला जायेगा ,जितने के लिये 1करोड़ 80 लाख टन ईधन जलाना पड़ेगा | पेरिस में मेलन नामक स्थान में इस 100 क्युमिक मीटर प्रति घंटे की गति से 70 अंश से .ग्रेड पानी निकालकर लगभग 1900 घरों को पहुँचाया जाता है |
हिमालय के अत्यन्त शीत वाले प्रदेश में स्थान-स्थान पर ऐसे कुण्ड उपलब्ध हैं , जिनमें 350 से.ग्रेड .तक गर्म जल उपलब्ध है। रूस के उत्तरी ध्रुव- क्षेत्रों में भी पृथ्वी के भीतर के गर्म जल का उपयोग करके 2 करोड़ टन ईन्धन की बचत की जाती है। टस्केनी के लाडरेल्लो में एक ऐसा कारखाना चलाया जा रहा है ,जिसमें इस भू-ताप से ही 390 मेगावाट शक्ति की भू-ताप बिजली तैयार की जाती है। कैलीफोर्निया में पहले से ही 6 भू-ताप बिजली घर हैं, 7 और तैयार हो रहे हैं। यह सब 1000 मेगावाट बिजली तैयार करेंगे। जापान, मैक्सिको, आइसलैण्ड, न्यूजीलैण्ड, फिलीपीन्स आदि में भी ऐसे भू-ताप कारखाने हैं। यह समग्र शक्ति और कुछ नहीं सूर्य द्वारा वर्षों से धरती के सघन अन्तराल में संचित की हुई पूँजी है| उसका लाभ आज का मनुष्य समाज पूर्वजों द्वारा संग्रहीत सम्पत्ति के रूप में लेता है। फ्राँस ने रांस नदी पर समुद्री ज्वार से 240 मेगावाट बिजली बनाने का कारखाना खड़ा किया है। वह भी सूर्य की ही उधार दी हुई सामर्थ्य है।अपने देश की धरती में अनुमानत: 140 अरब टन कोयला है , उससे अगले 200 वर्षो से भी अधिक तक 625 करोड़ टन प्रति वर्ष की दर से उर्जा प्राप्त की जा सकती है | यह भी सूर्य की ही चिर संचित पूँजी है | अनुमान है कि यह कुछ करोड़ वर्षो से संग्रहीत शक्ति है,जो कोयलों में विद्यमान रहती है | इस तरह सारी धरती के कोयले में प्रसुप्त सौर -शक्ति की माप भी सम्भव है |
बरसात के दिनों में, जो बादल अपने आप हवाई समुद्र बन जाते और सारी पृथ्वी को जल से सराबोर कर देते हैं ; यह बादल उस भाप का परिणाम हैं, जिसे सूर्य अपनी गर्मी से प्रति सेकेंड 1 करोड़ 60 लाख टन पानी को पका कर भाप में बदलता रहता है। सूर्य से पृथ्वी को मिलने वाली कुल ऊर्जा शक्ति का दो तिहाई भाग इसी कार्य में प्रयुक्त होता है। नैसर्गिक शक्तियाँ विश्व व्यवस्था का भार कितने विवेकपूर्वक चलाती है यह इसी तथ्य से प्रकट है। यदि सृष्टि में वृष्टि की प्रक्रिया किसी एक वर्ष ही रुक जाये,तो न केवल मनुष्य जाति ,अपितु उससे पड़ने वाले अकाल से सारा जीवन जगत समाप्त हो सकता है। कहाँ तुरन्त कितनी आवश्यकता है, कहाँ भविष्य के लिये संग्रह की आवश्यकता है, पृथ्वी में शीत ताप का सन्तुलन किस प्रकार रखने का है, इस सम्बन्ध में प्रकृति की चिन्तन दृष्टि विवेकपूर्ण, सूक्ष्म और दूरदृष्टि न रहे ,तो यहाँ जो कुछ भी सौन्दर्य और जीवन व्यवस्था दिखाई देती है, कुछ भी न रहे। जो लोग अपने जीवन में भी यह दृष्टि और दूरदर्शिता बनाये रखते हैं ; वे न केवल स्वयं सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं ,अपितु अपने परिवार-परिजनों को भी प्रगति पथ पर अग्रसर करने में सफल होते हैं। सूर्यशक्ति का यह विशाल परिणाम और उसकी सर्वव्यापक सक्रियता न केवल जगत के शक्तिमय होने की झाँकी प्रस्तुत करती है ; अपितु उससे भौतिक लाभ भी लिये जा सकते हैं। सूर्य हमारे जीवन का आधार- हमारा आरोग्य प्रदाता है हमारा पिता है ; हमें उनको भौतिक ही नहीं ,आत्मिक दृष्टि से भी पहचानना चाहिए। ब्रिटेन के टेलीफोन इंजीनियरों ने एक ऐसे टेलीफोन का विकास किया है, जिसमें तार बिछाने की न तो कोई समस्या रहेगी ,न खर्च। उससे सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी संचार - व्यवस्था स्थापित हो जायेगा, जहाँ वर्तमान साधनों से भी पहुँचना सम्भव न था। ब्रिटेन की दूरसंचार - प्रणाली की संचालन करने वाले डाक घर के प्रवक्ता ने बताया, कि नारफोक के निकट ब्रिटेन के पूर्वी तट पर एक निगरानी चौकी बनी है, जिससे उस क्षेत्र में कोई पक्षियों का शिकार न कर पाये | उसकी निगरानी की जाती है| उपरोक्त टेलीफोन का परीक्षण इसी स्थल पर किया गया। यह एक प्रकार से विशालकाय सूर्य की अनन्तशक्ति की एक फुलझड़ी मात्र हुई। आये दिन ऐसे अनेक लोगों के चमत्कार के वर्णन सुनने को मिलते रहते हैं, कि उन्होंने भविष्यवाणी की; सच निकली। उन्होंने तन्त्र विद्या से कोई वस्तु प्रकट कर दी। उन्होंने शाप देकर किसी का अनिष्ट कर दिया | उन्होंने किसी को सम्मोहित कर दूरवर्ती अदृश्य तथ्य को भी जान लिया। यथार्थ चमत्कार तो वह है ,जो किन्हीं महापुरुषों, सन्तों और अवतारों द्वारा युग की दिशायें मोड़ने में प्रयुक्त होता और जनजीवन के प्रकाश के रूप में चमत्कार दिखाता है ; विनाश की दिशा में चल रही मानवीय प्रवृत्तियों को उलटकर, उन्हें रचनात्मक दिशायें देते और संसार में सुख -शान्ति की परिस्थितियाँ लाते हैं। इसके लिए कितनी विशाल शक्ति की आवश्यकता होगी, उसकी कल्पना करना भी कठिन है। परमात्मा के इस विशाल जगत में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं है ; यदि कुछ है तो वह मात्र मनुष्य का अज्ञान है, उसकी जड़ता है। अज्ञान और जड़तायें आगे बढ़ने ही नहीं देतीं, संकीर्णता में ही उलझाये रहती हैं। ऊर्जा के लिए ईंधन और कोयला स्थूल साधन हैं। बड़े परिमाण में मिलें , तो भी थोड़ी शक्ति मिलती है। उससे आगे भू-ताप है; उससे भी बढ़कर विद्युत शक्ति। इससे भी यदि आवश्यकतायें पूर्ण न हों तब फिर सूर्यशक्ति का अजस्र भंडार। शक्तियों के एक से एक बुद्धि को चकरा देने वाले साधन प्रकृति के अन्तराल में भरे पड़े हैं। उन्हें प्राप्त करना एक क्लिष्ट प्रणाली हो सकती है, किन्तु वैज्ञानिकों ने वह तथ्य सम्मुख ला दिये हैं, जिनसे शक्ति चुक जाने की आशंका का पूर्ण निराकरण हो गया है। सूर्य पृथ्वी से 1490000000 किलोमीटर दूर है। इतनी दूरी और पृथ्वी के क्षेत्रफल के अनुपात से वह अपनी कुल ऊर्जा का मात्र 0.000000005 वाँ अंश ही पृथ्वी को देता है, किन्तु यह शक्ति भी इतनी विशाल है की उसकी बराबरी 2 अरब अणु विद्युत घरों से प्राप्त बिजली ही कर सकती है। उसे यदि विद्युत शक्ति में बदला जा सके, तो 1 खरब 73 अरब मेगावाट विद्युत भार के बराबर होती है। अनुमान है कि प्रति वर्गमीटर एक किलोवाट विद्युत भार के बराबर ताप पृथ्वी को मिलती है। समूची धरती का हिसाब लगायें, तो उसे सूर्य से प्रति वर्ष 1311 करोड़ खरब कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। इस विशाल परिणाम का अनुमान करना भी कठिन है। हमें यह अनुदान अजस्र रूप से मिलता रहता है; फिर कितना दुर्भाग्य है कि हम शक्ति-शक्ति चिल्लाते रहते हैं। " जल में मीन पियासी " वाली कहावत है। सूर्य की यह अजस्र ऊर्जा हमारा प्राण है। समस्त जीव-जगत और वृक्ष - वनस्पति उसी से जीवन धारण करते हैं। शैवाल से लेकर सभी पौधे सूरज की ऊर्जा सोखकर “ फोटो ऐन्थेसिस ” क्रिया करते हैं और कार्बन -डाइ - ऑक्साइड तथा पानी से हमारे लिए शाकाहार तैयार करते हैं। अकेले भारतवर्ष में 23 करोड़ पशु, कृषि -उपयोग में आते हैं। इनका मुख्य आहार यह प्रकृति ही है। फिर पृथ्वी के 3 अरब लोग और इनसे करोड़ों गुना अन्य जीव - जन्तु सब सूर्यशक्ति के सहारे ही जीवित हैं। यह सब बातें भारतीय तत्व दर्शन की इस मान्यता का ही प्रतिपादन करते हैं ,कि सूर्य हमारी आत्मा है। तात्विक दृष्टि से हम उसी दिव्य ज्योति के प्रकाश कण हैं; अतएव हमें उनकी ओर उन्मुख रहना, उन्हें धारण किये रहना चाहिए उनके न रहने पर फूल खिलना बन्द हो जाता है। रोगाणु पनपने लगते हैं, हमारे जीवन में व्याप्त कषाय - कल्मषों का निवारण और प्रसन्नता का विकास, इसी आधार पर सम्भव है कि हम उस आत्मतत्व को विस्मृत न करें। किसी समय लोग इसे कल्पनातीत मानते थे कि सूर्यशक्ति को पकड़ा, बाँधा और बड़े कार्यों में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता। इसी तरह आज लोग आत्मशक्तियों पर विश्वास नहीं करते; किन्तु जब नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी की स्थापना की गई , जिसके अध्यक्ष एन. पी. एल. तथा डॉ. भिड़े हैं और उसने सूर्य - ऊर्जा को बिजली में बदलने, वाला सोलर-सेल बनाकर सिलीनियम- कैडमियम - सल्फाइड आदि से उसे सम्भव बना दिया।वही विश्वास होने लगा | माउंट लुई तथा ओडिलो (फ्राँस) में परावलमी शीशों से सौर - भट्टियाँ बनाई गई | इनमें एक काला रोगन पुता रहता है, जो शक्ति को सोख लेता है। पानी गर्म करने के यन्त्र ,आलू भूनने के यन्त्र, इसी आधार पर बने हैं। अरविन्द आश्रम में चाय बनाने, सामान सुखाने तथा पानी व कमरे गर्म करने के लिए छोटे सौर ऊर्जा यन्त्र बनाये गये हैं। इजराइल में खारे पानी को इसी तरह शुद्ध किया जाता है। भविष्य में तो वैज्ञानिकों की योजना, सारे समुद्री जल को मीठा बनाकर जल समस्या के निवारण की है। शक्ति एक ही है उसका जहाँ भी उपयोग करें, वहीं चमत्कारी सत्परिणाम उपस्थित हो सकते हैं। दुनिया भर में यह प्रयोग चल रहे हैं। रूस ने अर्मेनिया घाटी में बिजलीघर बनाया है ,जिसमें 1300 दर्पण -ऊर्जा संग्रह करते हैं। यह बिजलीघर पाँच एकड़ में है। 130 फुट ऊँची बुर्जी पर रखे बायलर पर सूर्य किरणें डालकर 25 लाख किलोवाट प्रतिघण्टे बिजली पैदा की जाती है। मिश्र ने एक सूर्य कुकर, भारत ने अल्मूनियम के शीशे वाला प्रेशर कुकर बनाने में सफलता पा ली है | अब तक लोहे से 2800 अंश ,टंग्सटन से 6100 अंश तथा किसी भी अच्छी से अच्छी ताप निरोधक धातु 6900 अंश पर भाप बनकर उड़ जाती हैं ; किन्तु अब सूर्य से 8000 अंश तक की तापशक्ति मिल जाने से , सर्वत्र औद्योगिक -क्रान्ति की संभावनाएं बढ़ गई हैं। अमेरिका में इस दिशा में व्यापक खोजें चल रही हैं। सर्वोपरि आवश्यकता, अन्तःशक्तियों पर विश्वास नहीं, उनके विकास की जटिलता से सिद्धि पाने तक जूझते रहने के साहस की होती है। बड़ी बारीकी से आत्मनिरीक्षण करना पड़ता है सौर ऊर्जा - संग्रह के लिए दर्पण वाले यन्त्र लगते हैं। अपने मन को भी दर्पण बनाकर उसमें झाँककर मलिनताओं को निकालना पड़ता है। अन्यथा प्रकाश के साथ अंधकार भी छनकर जाता रहे और शक्तिसंचय का प्रयोजन ही पूरा न हो। आत्मसुधार के बाद आत्मनिर्माण अर्थात् बुराइयों के स्थान पर अच्छे विचार, अच्छा चिन्तन और आदर्श कर्तृत्व अपनाना पड़ता है; इतना करने के बाद ही आत्मा का विकास या आत्मानुभूति का दिव्य लाभ मिल पाता है।