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Magazine - Year 1979 - March 1979

Media: TEXT
Language: HINDI
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अद्भुत इमारतें और रहस्यमय सुरंग

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इस विचार ने कि मनुष्य क्रमशः अपनी बुद्धि और सभ्यता का विकास करते हुए वर्तमान स्थिति तक पहुंचा है, आधुनिक विचारकों के मन में एक भ्रम और मिथ्या अहंकार पैदा कर दिया है। भ्रम यह है कि हम अपने पूर्वजों से कहीं अधिक उन्नत हैं, श्रेष्ठ हैं और अहंकार यह कि हमने जितनी प्रगति की है उतनी कभी भी किसी भी काल में किसी समाज ने नहीं की।

सामाजिक संदर्भ में प्रगति या विकास कोई वृक्ष नहीं है जो धीरे-धीरे अंकुरित हो, बढ़े और फूले फले। समाज की तुलना तो उस वन से की जानी चाहिए जिसमें हजारों वृक्ष होते हैं, लाखों अंकुर होते हैं और करोड़ों बीज होते हैं, सभी बीज, अंकुर या वृक्ष अपनी अलग-अलग ऊंचाइयां तय करते हैं और एक समुदाय का स्वरूप बनाते हैं। समाज में रहने वाले व्यक्तियों के बौद्धिक स्तर में अंतर हो सकता है, परन्तु औसत दृष्टि से कोई समाज कभी आज की तुलना में पिछड़ा या अविकसित नहीं रहा होगा, आधुनातन शोधों और पुरातत्व के मिले प्रमाणों के आधार पर इतिहासकारों को भी यह मानना पड़ रहा है। कइयों का तो कहना है कि हो सकता है मनुष्य समाज आज की तुलना में पहले कभी बहुत अधिक विकसित रहा हो। यह बात और है‍ कि उस युग की दिशायें तथा प्रवृत्तियां भिन्न रही हों।

दिशाओं और प्रवृत्तियों की भिन्नता का अंतर तो यों भी समझा जा सकता है। आधुनिक समाज की प्रगति दिशा तकनीकी कही जा सकती है। एक से एक विस्मयकारी और मनुष्य के श्रम को बचाने वाले यंत्र इन दिनों बन रहे हैं। किसी युग में मनुष्य ने आत्मिक दिशा पकड़ी हो और सुखशांति, आनंद, आह्लाद, प्रसन्नता की दृष्टि से वह आज की तुलना में कहीं अधिक विकसित रहा हो। किसी युग में मनुष्य अपने शरीर को बलिष्ठ पुष्ट बनाने में ही प्रवृत्त रहा हो।

इनका किले से करीब आधा मील दूर 11480 फीट की ऊंचाई पर विशालकाय पत्थरों का एक ब्लाक बना हुआ है। यह ब्लाक इतनी ऊंचाई पर स्थित है कि चढ़ते-चढ़ते सांस फूलने लगती है परंतु ब्लाक में 7 से 11 फीट की लंबाई चौड़ाई वाले समकोण पत्थर प्रयुक्त किये गये हैं। बताया जाता है कि यह इमारत 33 फीट ऊंची और 45 फीट चौड़ी चट्टान को काट कर बनाई गयी है। 39 फीट ऊंची यह इमारत इतनी भव्य और सुंदर है कि लगता है अभी ही इसका निर्माण हुआ है। संसार भर के वास्तुकलाविद् करीब दो हजार वर्ष पूर्व बने इनका किले और उसके पास स्थित इस इमारत को देखकर दंग रह जाते हैं।

आस्ट्रेलिया के दक्षिणपूर्व में कोई 1500 हजार द्वीप हैं। इन द्वीपों के मध्य में सबसे बड़ा द्वीप है पोनापे जिसका क्षेत्रफल 183 वर्गमील है। पोनापे की स्थिति इस प्रकार है कि वहां कोई भी वजनी चीज ले जाना आसान नहीं है और न ही वहां कोई इमारती सामान पैदा किया जाना सम्भव ही है परन्तु पोनापे में एक विशाल खण्डहर मिला है जो काफी बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। आश्चर्य किया जाता है कि इतने बड़े भवन को उस युग में जब मानव सभ्यता को शैशवकाल की बताया जाता है किसने और कैसे इन भवनों का निर्माण कराया होगा। जो खण्डहर मिले हैं उनकी दीवारें अभी भी 125 फुट ऊँची हैं और इसमें लगे कई पत्थर दस टन वजन के हैं। 2580 फीट लम्बी इस इमारत में 12 से 17 कुछ तक के कई ब्लाक है। उस जमाने में जबकि न तो यातायात के इतने प्रचुर साधन थे और न ही इस वीरान उजाड़ टापू में लोग बसते थे किसने और किसलिए इन भवनों का निर्माण कराया होगा। इमारत जितने बड़े क्षेत्र में फैली हुई है उसे यदि आज के समय में बनवाया जाय तो बताया जाता है कि इतनी बड़ी इतनी मजबूत और इतनी सुन्दर इमारत, गरीब 300 वर्षों में ही बन सकती है।

एरिचव न डेनिकल ने अपनी पुस्तक-’दि गोल्ड आफ दि गाड्स’ में कुछ ऐसी सुरंगों का उल्लेख किया है जो साउथ अमेरिका में स्थित हैं और हजारों मील लम्बी है। ये सुरंगें कहाँ से कहाँ तक गई है इसका कोई पता नहीं लगाया जा सका है क्योंकि ये देखने में जितनी सुन्दर है अन्दर जाने पर उतनी ही भयावनी लगती हैं।

फिर भी पेरू और इप्रयोगा में सैकड़ों मील तक इन सुरंगों के भीतर खोजी दल जा चुके है। इसके बाद भी इनका अन्त नहीं आया और न ही यह पता चल सका है कि इनके बनाने का ध्येय क्या था। कुछ सौ मील तक, जहाँ कि खोजी दल ने यात्रा की बीच-बीच में कई बाहरी द्वार देखे। इतना ही नहीं सुरंगों के नीचे 250 और 500 फुट नीचे भी दोहरी तिहरी अंतरंग सुरंगें भी देखी गयीं।

सुरंगों की दीवारों पर विभिन्न रंगों में अलग-अलग चित्र बनाये गये थे। पत्थरों पर खोदे गये अथवा धातुओं की प्लेटों से विनिर्मित इन चित्रों का निर्माण किन्हीं उद्देश्यपूर्ण प्रयोजनों के लिए किया गया लगता है। धातु प्लेटों पर इतने संकेत लिखे हुए है कि सुरंग की जितनी यात्रा की जा सकी, उस भाग के संकेतों को ही संकलित किया जाय तो एक विशाल लाइब्रेरी बन सकती है। एक खोजी दल जिससे एरिचवान डेनीकेन भी सम्मिलित थे उन सुरंगों में गये तो दल के सभी सदस्यों ने बड़े विचित्र अनुभव किये। डेनीवेन ने लिखा है कि-”हम लोग अपने हेलमेट पर जो बैट्री लगा कर गये थे वह सुरंग में घुसते ही बुझ जाती थी। एकाध व्यक्ति की बैट्री खराब भी हो सकती है। पर सभी यात्रियों की बैट्रियाँ खराब हो गयी हों ऐसा नहीं कहा जा सकता। वस्तुतः ऐसा सुरंग के भीतर होने वाली रेडिएशन प्रक्रिया के कारण होता था।”

“सुरंग के जिस भाग की हमने यात्रा की उसकी दीवारें बेहद चिकनी थी-मानों संगमरमर की बनी हुई हो। कहीं-कहीं दीवारों में पालिश जैसी चमक भी थी। छतों पर ऐसी प्लेट्स लगी हुई थीं कि उन्हें उकेटने में सदियाँ लगी हों ऐसा आभास होता था। इन सुरंगों में एक बात बहुत ही विचित्र देखने में आयी वहाँ हमारे विद्युत यन्त्र काम कर रहे थे और न ही कोई चुम्बकीय यन्त्र। यहाँ तक कि दिशाओं का ज्ञान कराने वाला कुतुबनुमा भी बन्द हो गया था। दीवारों पर खुदे हुए चित्रों का हम फोटोग्राफ भी नहीं ले सके क्योंकि वहाँ हमारे कैमरे भी काम नहीं कर रहे थे।”

“सुरंग के बगल में कहीं कहीं कमरेनुमा गैलरियाँ भी थी। कहीं-कहीं बहुत बड़े कमरे थे जिन्हें हाल कहना ही ज्यादा उपयुक्त होगा। ऐसे एक हाल को हमने नापा तो उसकी लम्बाई 183 गज तथा चौड़ाई 164 गत थी। इन कमरों का क्या उपयोग होता होगा अनुमान लगाना कठिन है। इतने बड़े हाल में 12-13 हजार व्यक्ति आसानी से बैठ सकते है।”

“ऐसे ही एक छोटे हाल में हमने एक नरकंकाल पड़ा देखा। उस कमरे में प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं थी फिर भी कमरे में अंधकार नहीं था। लगता था प्रकाश दीवारों से आ रहा था। नरकंकाल इस ढंग से रखा हुआ था जैसे किसी मेडिकल कालेज की प्रयोगशाला में छोटों को पढ़ाने के लिए रखा जाता हो इन गैलरियों के निर्माण का भी कोई उद्देश्य या रहस्य मानवी समझ से परे था।”

“कुछ कमरों में हमने पत्थर से बनी मेज-कुर्सियाँ भी देखी। हालाँकि देखने में वे सनमाइका की तरह चिकनी और चमकदार लगती थी, पर छूने या उठाने पर पत्थर अथवा पत्थर जैसा ही किसी धातु की बनी प्रतीत होती है। इतनी वजनदार कुर्सियों को कहाँ बनाया गय होगा तथा यहाँ किस प्रकार लगाया गया होगा इस इस कभी कोई सन्तोषजनक उत्तर नहीं खोज सके। कुर्सियों के पीछे दीवारों पर कई तरह के चित्र बने हुए थे। इन चित्रों के समान सुन्दर चित्र मैंने तो अपनी जिन्दगी में कहीं नहीं देखें। गोह, हाथी, शेर, घड़ियाल, ऊँट, रीछ, बन्दर मुँह पर सींग वाला भैंसा, भेड़िया तथा घोंघा आदि जानवरों के सजीव चित्र वहाँ बने हुए थे।”

एक हॉल में हमने सोने,चाँदी, पीतल आदि धातुओं) के करीब 211-3 हजार पतरे देखे जिनकी मोटाई लगभग 1 मिलीमीटर रही होगी। इन पत्थरों का आकार 32 इंच लम्बा तथा 19 इंच चौड़ा था एक ही साइज में बने कटे इन पतरों पर किसी पुरानी भाषा में कुछ लिख हुआ था जिन्हें हम स्पष्ट देख तो सकते थे पर उन्हें पढ़ नहीं सकते थे क्योंकि उस तरह की लिपि हमने कही नहीं देखी। किन्हीं-किन्हीं पतरों पर चित्र भी बने हुए थे। ऐसे एक चित्र में हमने गोलाकार पृथ्वी पर घड़ी मानव आकृति का चित्र भी देखा।”

ऐरिचवान डिनीकेन ने अपनी पुस्तक में इन सुरंगों का विस्तृत विवरण लिखा है और प्रश्न उठाया है कि इनका निर्माण पिछले दो-चार सौ या पाँच सात सौ वर्षों के भीतर नहीं हुआ है-यह तो तय है यह किसी ऐसे युग में बनाई गई लगती है जबकि किन्हीं निर्माणों का इतिहास रखने की परम्परा न रही हो। अथवा जब तक का इतिहास हमारे पास उपलब्ध है उससे पहले इनके निर्माण हुआ हो और इसके बाद की वह कड़ी लुप्त हो गयी हो जिससे कि इन सुरंगों का उपयोग और उद्देश्य जाना समझा जा सकें।

दक्षिण अमेरिका के ही ग्वाटेमाला द्वीप समूह के यूकेटन जंगलों में प्राप्त खण्डहरों इजिप्ट की विशाल इमारतों के खण्डहर के समान है। इस क्षेत्र में पिरामिड भी पाये जाते है जो ठीक मिश्र के पिरामिडों की तरह है। इन पिरामिडों को बहुत भारी चट्टानों से बनाया गया। चट्टानों को जोड़ने के लिए किसी मसाले का उपयोग नहीं किया गया लगता है फिर भी एक चट्टान के ऊपर दूसरी चट्टान इस ढंग से जमी हुई है कि उनके बीच कहीं भी जोड़ नहीं दिखाई देता। बहुत ध्यानपूर्वक देखने पर एक हल्की सी बाल बराबर रेखा भर दिखाई देती है। किसने की होगी इन चट्टानों की इतनी बारीक और सूक्ष्म घिसाई तथा एक चट्टान के ऊपर दूसरी चट्टान को किस प्रकार जमाया होगा?

मैक्सिको के पास 8 वर्ग मील के क्षेत्र में ऐसी इमारतें मिली है जिनका निर्माण, लगता है अन्तरिक्ष वेधशाला के रूप में कराया गया हो। क्योंकि वहाँ उन सभी यंत्रों के चिह्न अवशेष प्राप्त प्राप्त होते है जो किसी वेधशाला में मिलते है। कुछ इमारतों का निर्माण ग्रह नक्षत्रों की गणना के आधार पर किया गया भी प्रमाणित होता है।

संसार में इतने बड़े-बड़े आश्चर्य भरे पड़े हैं और उनका निर्माण उस युग में हो चुका है जबकि हम समझते हैं लोग गुफाओं में रहते थे और एकदम पशुओं का सा जीवन जीते थे। पिछड़े और अविकसित लोग हर युग में हर समाज में रहते हैं, पर उनके आधार पर तत्कालीन समाज व सभ्यता का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। अब जब कि अति प्राचीनकाल में विनिर्मित इमारतों, सुरंगों और स्थापत्यों के ऐसे विस्मयकारी अवशेष प्राप्त हो रहे हैं जो अपने आपको अब तक की सृष्टि का सर्वाधिक विकसित, उन्नत और बुद्धिमान मनुष्य होने की घोषणा करना तथा स्वयं ही उसकी प्रसन्नता मना लेना, अपने आपको धोखा देने अथवा झूठा आडम्बर ओढ़ने के सिवा और कुछ नहीं है।

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Type: SCAN
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March 1979
Type: TEXT
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