Magazine - Year 1979 - October 1979
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
जीवन लक्ष्य की प्राप्ति में तीन प्रमुख व्यवधान
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
*******
हर भावनाशील व्यक्ति के सम्मुख देव मानव बनने और समाज को समुन्नत बनाने की यशस्वी भूमिका निभाने का अवसर विद्यमान है। सृष्टा ने हर मनुष्य को ऐसे साधनों से सम्पन्न बना कर भेजा है कि वह जीवन लक्ष्य को पूरा करने में सहज ही सफल हो सके तथा सत्प्रवृत्तियों के सम्वर्धक की भूमिका निभाते हुए श्रेयाधिकारी बन सके।
अधिकाँश को इस सौभाग्य से वंचित रहना पड़ता है जो उसे मानव जीवन के साथ ही अजस्र उपहार के रूप में उपलब्ध है। व्यवधान के कारणों पर विचार करने से परिस्थिति की जटिलता नहीं मनःस्थिति में भरी हुई कुटिलता ही एक प्रधान अवरोध प्रतीत होती है। उपभोग और संग्रह का अनावश्यक लालच, सम्बन्धियों के प्रति अनुपयुक्त व्यामोह, अहंता का उद्धत परिपोषण इन तीनों का समुच्चय ही वह त्रिशूल है जो जीवन सम्पदा को अस्त-व्यस्त करता और सृष्टा के उपहार को दुर्भाग्य में बदलता है।
महान बनने और महान करने की आत्मिक आकाँक्षा पूरी करना जिन्हें वस्तुतः अभीष्ट हो उन्हें त्रिविध व्यवधानों से जूझने का साहस जुटाना चाहिए। निर्वाह के लिए औसत भारतीय स्तर साधन परिचारक का संक्षिप्तीकरण और स्वावलंबन-सद्गुणों की सम्पदा में गर्व गौरव यदि पर्याप्त प्रतीत होने लगे तो समझना चाहिए कि स्वर्ग के द्वार खुल गये और जीवन को आनन्द से भर देने वाले साधन बन गये। अमीरी नहीं महानता हमारा लक्ष्य होना चाहिए। इसके लिए क्या सोचना और क्या करना चाहिए इसका सही निर्णय निर्धारण तभी हो सकता है जब लोभ-मोह और अहंकार की मदिरा के आवेश से बुद्धि को सही और दूरदर्शी बनने का अवसर मिल सके।
----***----