Magazine - Year 1981 - Version 2
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Language: HINDI
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प्रेतात्माओं का अस्तित्व काल्पनिक नहीं
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दिन भर जागते हुए, कठिन परिश्रम के बाद मनुष्य जब सोता है तो उसे विश्राम मिलता है। इस निद्रा काल में तरह-तरह के स्वप्न आते रहते हैं। सूक्ष्म शरीर का सचेतन मस्तिष्क सो जाता है या निष्क्रिय पड़ जाता है और अचेतन का ही जीव सत्ता पर अधिपत्य रहता है। अचेतन में जैसे भले बुरे संस्कार दबे पड़े रहते हैं, वे उभर कर आते हैं। मरणोत्तर जीवन, मृत्यु के बाद पुनः जन्म लेने के बीच की अवधि भी इसी प्रकार जीवात्मा का विश्रांति काल है। उस अवधि में जिसने जीवन का अधिकाँश भाग दुर्भावनाओं और दुष्प्रवृत्तियों में गुजारा है, उसे उसकी प्रतिक्रिया ही भयावह दृश्यावली के रूप में दिखाई देगी। इसी अनुभूति का नाम नरक है। जिन्होंने श्रेष्ठ जीवन जिया है, उत्कृष्ट चिंतन और आदर्श कर्तृत्व अपनाते हुए जिंदगी का अधिकांश समय बिताया है उनके अचेतन में दिव्य संस्कार जगे रहते हैं और वे उसके मरणोत्तर निद्राकाल में दिव्य स्वप्न बनकर उभरते हैं। उस सुखद स्वप्न श्रृंखला को ही स्वर्ग कहते हैं।
मरने के बाद, शरीर को छोड़ने के उपरांत जिन्हें गहरी निद्रा नहीं आती, बेचैनी बनी रहती है, उन्हें प्रेत स्तर के समय गुजारना पड़ता है। मरने के बाद स्थूल शरीर का तो अंत हो जाता है किन्तु सूक्ष्म शरीर यथावत बना रहता है। प्राणी अपने आपको लगभग उसी स्थिति में, उसी कायकलेवर में अनुभव करता है, जिसमें वह जीवित अवस्था में था। अन्तर मात्र इतना ही होता है कि इन्द्रियों के स्पर्श से जो प्रत्यक्ष स्पर्श का सुख मिल सकता था, वह नहीं मिलता। सूक्ष्म इंद्रियां तरह-तरह के स्वादों अनुभव तो कर सकती हैं, परंतु वे पदार्थों का उपभोग नहीं कर सकतीं, जैसा कि स्थूल शरीर रहने पर किया जा सकता है। संसार के पदार्थों एवं व्यक्तियों को वह देखता तो है परन्तु स्वयं वायुभूत होने के कारण किस को दिखाई नहीं देता। पैर या पंख न होने पर भी वह चल और उड़ सकता है। दूसरों के शरीर तथा मस्तिष्क में अपना प्रवेश कर सकता है और उसे अपने अस्तित्व का आभास आवेश या अनुभव के रूप में दे सकता है। वह बातचीत वाणी या भाषा के द्वारा तो नहीं कर सकता, पर किन्हीं व्यक्तियों या पदार्थों के माध्यम से अपनी बात प्रकट कर सकता है।
प्रेत अवस्था में जीवित स्थिति की अपेक्षा कुछ कमियाँ आ जाती हैं किन्तु उसके साथ ही कुछ विशेषतायें बढ़ भी जाती हैं। इन सब बातों का प्रमाण प्रेतों के अस्तित्व अथवा उनके क्रिया-कलापों के आधारों से मिलता है, जिनकी यथार्थता तथ्यों की कसौटी पर कसे जाने से सर्वथा सत्य सिद्ध हुई है। अब तक प्रेतों के अस्तित्व को मात्र अंध-विश्वास समझा जाता था किन्तु ऐसी कई घटनाएं और अनुभव प्रामाणिक व्यक्तियों के साथ घटे जिनकी विश्वसनीयता पर संदेह नहीं किया जा सकता।
घटना 1956 की है। अमेरिका के राष्ट्रपति जिमि कार्टर सपरिवार जॉर्जिया के एक पुराने मकान में रहने लगे थे। वह मकान पुराने ढंग का था और चारों ओर लम्बे वृक्ष लगे हुए थे। कहा जाता है कि उस मकान का निर्माण सौ वर्ष पहले 1850 में हुआ था। जिमि कार्टर सन 1956 से 1960 तक इस मकान में रहे। एक रात्रि उन्होंने मकान के एक कमरे में किसी की चीख सुनी। कौन चीखा? क्यों चीखा था? यह जानने के लिये कार्टर और उनकी पत्नी ने घर का कोना-कोना छान मारा परन्तु कहीं कुछ नहीं मिला। कुछ दिनों बाद उस मकान में और भी किरायेदार आए। एक दिन एक किरायेदार के कमरे में मध्य रात्रि में उसका बिस्तर ही गायब हो गया। वह तो सोया का सोया ही रहा किन्तु उसके नीचे का बिस्तर इस तरह गायब हो गया जैसे उसने बिस्तर बिछाया ही न हो। यह देख कर सब आश्चर्य चकित रह गये। यदि कोई चोर आया भी था तो वह बिस्तर कैसे ले गया? और बिस्तर ही क्यों ले गया? जबकि अन्य कीमती सामान छुए तक नहीं गए थे।
उसी मकान में सन् 1950 से इनेज लेस्टर ने एक राज को अनुभव किया कि जैसे कोई दरवाजा खटखटा रहा है। उसने दरवाजा खोला तो उसने किसी की पदचाप सुनी। एक दिन रोजलीन ने मकान के बरामदे में सफेद कपड़े पहने किसी स्त्री को को देखा। एक बार उसके हाथों में जला हुआ लालटेन भी दिखाई दिया, फिर कुछ ही क्षणों में वह स्त्री लालटेन सहित देखते ही देखते ऐसे गायब हो गई, जैसे उसे जमीन ने निगल लिया हो। जिमि कार्टर ने अपने मित्रों से एक बार चर्चा के दौरान बताया कि वे अभी तक नहीं जान सके कि इन घटनाओं का क्या कारण था?
इस तरह की हजारों घटनाएं हैं। जिनके कारणों की तह में जाने पर इसी निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ता है कि इस सृष्टि में दृश्य पदार्थों और अस्तित्वों के अतिरिक्त अदृश्य सत्ताएँ भी हैं। घटना सन् 1971 की है। प्रसिद्ध पुरातत्वविद और लेखक डा. रोज दो कटी हुई खोपड़ियों का अध्ययन कर रहे थे, जो एक पुराने खंडहर की खुदाई करते समय मिली थीं। जब वे इन खोपड़ियों को लेकर प्रयोगशाला में लौट रहे थे तो उन्होंने रात्रि को करीब दो बजे अचानक ठण्ड बढ़ गई है, ऐसा अनुभव किया। उस समय डा. रोज सो रहे थे। ठण्ड बढ़ जाने के कारण उनकी नींद खुल गई और उन्होंने अपने आसपास एक छाया मंडराती हुई देखी। उस छाया को उन्होंने बिस्तर से उठ कर देखना चाहा तो पाया कि वह बाहर निकल गई है। डा. रोज ने उसका पीछा किया तो वह छाया कारीडोर को पार करती हुई बाहर निकल गई। जब तक उनके पास वे कटी हुई खोपड़ियां रहीं, तब तक उन्होंने छाया को अपने आसपास मंडराते देखा। जब उन्होंने खोपड़ियों का अच्छी तरह विश्लेषण कर लिया और उसे वापस विश्वविद्यालय के पुरातत्व संग्रहालय में पहुँचा दिया तब छाया का दिखाई देना स्वतः बन्द हो गया।
प्रेत होते हैं। उनके अस्तित्व और क्रिया-कलापों का विश्लेषण करने के लिये पश्चिमी देशों में अनेक वैज्ञानिकों ने प्रयास किए हैं। इनमें सर ओलिवर लाज का नाम सर्वाधिक प्रसिद्ध है। वे ब्रिटेन के माने हुए वैज्ञानिक रहे हैं। उन्हें कई विश्व विद्यालयों की मूर्धन्य डिग्रियां तथा स्वर्ण पदक प्राप्त थे। ईथर तत्व का प्रकाश से क्या संबंध है, इस विषय में उनकी खोज प्रामाणिक मानी जाती है। उन्होंने विज्ञान के लिये आत्मा के अस्तित्व को भी एक अन्वेषण का आवश्यक पक्ष माना था और स्वयं भी इस संबंध में महत्वपूर्ण कार्य किया था। इसके लिये उन्होंने ‘साइकिक रिसर्च सोसायटी’ की स्थापना की और उसे बहुमूल्य योगदान देकर अभीष्ट प्रयोजन के लिये अधिक काम कर सकने योग्य बनाया। उन्होंने अपनी प्रतिभाशाली शोध दृष्टि का उपयोग करके न केवल आत्मा का अस्तित्व और मरणोत्तर जीवन की वास्तविकता प्रमाणित करने वाले तथ्य जुटाए, वरन् स्वयं भी इस स्थिति में पहुँचे कि मृतात्माओं का साक्षात्कार किया जा सका।
सर ओलिवर लाज का प्रथम पुत्र रेमण्ड पहले विश्व युद्ध में मारा गया था। मृतात्मा के साथ संपर्क बनाने और उसके माध्यम से अनेकों ऐसी अविज्ञात जानकारियाँ प्राप्त करने में वे सफल हुए जो परखने पर पूरी तरह सिद्ध हुईं। उनके एक समकालीन वैज्ञानिक सर विलियम कुक्स ने अपने प्रेतात्माओं संबंधी निष्कर्षों का विवरण ‘रिसर्च इनटू फैनोमियम आफ स्प्रिचुअलिज्म’ में प्रकाशित कराया है। इस पुस्तक में सर ओलिवर लाज के शोध कार्यों का सविस्तार वर्णन है।
विश्वविख्यात ‘लाइट’ पत्रिका के सम्पादक जार्ज लेथम ने अपने पत्र में एक लम्बी लेख माला ‘मैं परलोकवादी क्यों हूँ’ शीर्षक से कई अंकों में प्रकाशित हुई है। उनका पुत्र जौन भी फैलडर्स के मोर्चे पर युद्ध में मारा गया था। तोप के गोले ने उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े उड़ा दिये थे, फिर भी उसकी आत्मा बनी रही और अपने पिता की आत्मा के साथ संपर्क बनाये रही। लेथम ने लिखा है, ‘मेरा पुत्र जौन स्वर्गीय माना जाता है पर मेरे लिए वह अभी भी उसी प्रकार जीवित है जैसे वह किसी अन्य नगर में रहते हुए पत्र, फोन के माध्यमों से संदेशों का आदान-प्रदान करता हो? उन्होंने अपनी मान्यताओं को भावावेश अथवा भ्रम जैसा न समझ लिया जाए, इसके लिए ऐसे प्रमाण प्रस्तुत किये हैं जिनके आधार पर संदेह करने वालों को भी इस संदर्भ में प्रामाणिक जानकारियाँ प्राप्त करने और तथ्यों तक पहुँचने में सहायता मिल सके।
विलियम काम्स और सर ओलिवर लाज की तरह ही विज्ञान के क्षेत्र में अन्य मूर्धन्य विद्वान भी मरणोत्तर जीवन और आत्मा के अस्तित्व पर अन्वेषण कर रहे हैं। इनमें से डा. ए. रसल वालेस और सर विलियम वारेट का नाम सर्वाधिक उल्लेखनीय है, जिन्होंने आत्मा के अस्तित्व को किन्हीं किंवदंतियों अथवा पूर्व प्रचलित मान्यताओं के आधार पर नहीं वरन् ठोस प्रमाणों के आधार पर ही स्वीकार और प्रतिपादित किया है।
इन विद्वानों द्वारा जिन घटनाओं का विश्लेषण किया गया, उनमें स्काटलैंड का एक विवरण बहुत ही रोचक और विस्मयजनक है। वहाँ सेण्ट कुर्री नामक गाँव में जन्मे डेनियल डगलस होम को किसी प्रेतात्मा ने अपना माध्यम बना लिया था और वह उसके द्वारा विभिन्न संदेश देती रहती थी। डगलस का जन्म बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था। चौदह वर्ष की आयु में वह तरह-तरह की बीमारियों से ग्रस्त रह कर दिन काटने लगा। इसी बीच उसे यह अनुभव होता रहा कि कोई प्रेतात्मा उसके साथ संबंध बनाती है और तरह-तरह के संकेत उसके माध्यम से पहुँचाती है। डरते-डरते उसने वे संदेश अपने घर वालों और पड़ोसियों को बताए। ये संदेश या पूर्व सूचनाएं जब सही निकलीं तो उनका विश्वास बढ़ता गया और उससे समस्याएं पूछ कर समाधान जानने वालों की संख्या बढ़ती गई।
एक दिन डगलस की चाची ने मेज पर भोजन की प्लेटें सजाई हुई थी। वह किसी काम से बाहर गई हुई थीं और डगलस भीतर था। अचानक प्लेटों के आपस में टकराने की आवाज आई। चाची ने भीतर आकर देखा तो प्लेटें टूटी हुई थीं। उसने इसे डगलस की ही हरकत माना और उसे डाँटने फटकारने लगी। बेचारा डगलस यही कहता रहा कि इसमें उसका कोई दोष नहीं है। तभी चाची ने दूसरी घटना यह देखी कि टूटे हुये टुकड़े अपने आप इकट्ठे होकर एक कोने में जमा हो रहे हैं। समेटने वाला कोई दिखाई नहीं पड़ता था। अब तो चाची को यह विश्वास हो गया कि इस घटना से डगलस का कोई संबंध नहीं है और यह उसी प्रेतात्मा की हरकत है जो डगलस से संबंधित है।
डगलस को प्रेत पीड़ित जानकर उसकी चिकित्सा के लिये डा. काम्स के पास ले जाया गया। जो एक अच्छे चिकित्सक होने के साथ प्रेतविद्या में रुचि रखते थे। उन्होंने डगलस का उपचार तो किया ही, उसकी आत्मिक शक्ति बढ़ाने का भी उपक्रम किया ताकि वह परलोक की आत्माओं से अधिक अच्छा संबंध बनाने में समर्थ हो सके। इस साधना से उसे आश्चर्यजनक सफलता मिली। उसे प्रेतात्माओं का प्रामाणिक संदेशवाहक माना जाने लगा। इस संदर्भ में ब्रिटेन के कई उच्चकोटि के वैज्ञानिक उससे अपना समाधान करने के लिए मिलने आने लगे और संतुष्ट होकर लौटे। इन ख्यातिनामा लोगों में ईवनिंग पोस्ट के सम्पादक विलियम कुलेन ब्रामेट, प्रसिद्ध उपन्यासकार विलियम थेकर, विख्यात रसायन विज्ञानी सर क्रुम्स जैसे मूर्धन्य लोगों के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
यहाँ प्रेत चर्चा का प्रसंग चलाने का उद्देश्य यही है कि मरने के साथ ही जीवन का अन्त नहीं हो जाता। जीवात्मा का अस्तित्व तब भी रहता है। उपरोक्त घटनाओं का संबंध जिनसे है, वे सभी ऐसे व्यक्ति हैं, जिनकी प्रमाणिकता पर संदेह नहीं किया जाता है और न ही इन घटनाओं पर किंवदन्तियों अथवा दन्तकथाओं का आरोप लगाया जा सकता है। सामान्य घटनाएं तो आये दिन प्रकाश में आती रहती हैं, जिनसे प्रेत जीवन का अस्तित्व सिद्ध होता है और यह विश्वास सहज ही सुदृढ़ होता है कि मरने और पुनर्जन्म के बीच कुछ समय ऐसा होता है जिससे प्रेत जीवन का अस्तित्व सिद्ध होता है और यह विश्वास सहज ही सुदृढ़ होता है कि मरने और पुनर्जन्म के बीच कुछ समय ऐसा होता है जिसमें सबको तो नहीं किन्तु कुछ को प्रेतस्तर की स्थिति में अवश्य रहना पड़ता है। पुनर्जन्म की तरह प्रेतात्माओं के अस्तित्व भी जीवात्मा की अमरता के तथ्य को सिद्ध करते हैं, और इससे स्पष्ट है कि मृत्यु के बाद भी जीव सत्ता का अस्तित्व बना रहता है।