Magazine - Year 1983 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
वैभव ही नहीं, विवेक भी
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
साधनों का सदुपयोग कर सकने वाली बुद्धिमता को सर्वत्र सराहा जाता है। उसी आधार पर मनुष्य आगे बढ़ते और ऊँचे उठते हैं। हर कोई कुछ न कुछ धन कमाता है और उसके पास पूर्व संचित साधन होते हैं। प्रश्न एक ही रह जाता है कि इसे किसने किस प्रयोजन के लिए, कब, किस प्रकार उपयोग किया? महत्व इस बात का नहीं कि किसने कितना कमाया और कितना उड़ाया। बुद्धिमानी की कसौटी एक ही है कि जो हाथ आया उसे किन प्रयोजनों में किस दृष्टिकोण से खर्चे किया गया। यों तो चोर, उचक्के भी विपुल सम्पत्ति कमाते देखे गये हैं। गरिमा इसी एक बात में है साधनों का सदुपयोग बन पड़ा या नहीं? उन्हें उच्चस्तरीय प्रयोजनों के लिए नियोजित कर सकने का विवेक रहा या नहीं? वैभव स्व उपार्जित है। पूर्व संचित पुण्य परमार्थ या वर्तमान कौशल पराक्रम के आधार पर उसे अर्जित किया जाता है। इस अपनी कमाई के अतिरिक्त ईश्वर प्रदत्त अनुदान भी मनुष्य के पास कम नहीं हैं। श्रम, समय, मस्तिष्क जैसे साधन हर किसी को प्रायः समान रूप से उपलब्ध हुए हैं। इस उच्च स्तरीय वैभव का सदुपयोग कर सकना और भी बढ़े-चढ़े कौशल का काम है। ऐसे ही कौशल को दूरदर्शी विवेक कहा जाता है। श्रद्धा, प्रज्ञा, निष्ठा उसी के नाम है। ‘ऋतम्भरा मेधा’ के नाम से उसी का अर्चन, अभिवर्धन किया जाता है। मनुष्य न तो सम्पदाओं की दृष्टि से दरिद्र है न विभूतियों की दृष्टि से असमर्थ। प्रश्न इतना भर है कि जो हस्तगत हुआ, उसका उपयोग किस प्रकार बन पड़ा। जो इस कसौटी पर खरा सिद्ध हो सका, समझना चाहिए कि उसका मनुष्य जन्म सार्थक हो गया।