Magazine - Year 1983 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
योग निद्रा-विश्रान्ति के साथ पूरी नींद का लाभ
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
निद्रा सामान्यतः शरीर के लिए अपरिहार्य है। परिश्रम से क्लान्त को पूर्ण विश्राम तथा नवीन स्फूर्ति प्रदान करने में गहन निद्रा ही समर्थ है। यह प्रकृति की उन महत्वपूर्ण व्यवस्थाओं में से एक है- जो शरीर यन्त्र की स्वचालित प्रक्रिया द्वारा सुव्यवस्थित बनाये रखती है। प्रत्येक स्वस्थ शरीर को साधारणतः छः से आठ घण्टे तक की नींद जरूरी होती है। स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मनःस्थिति होने पर इतनी नींद आ ही जाती है। यह स्वाभाविक और बाध्यतामूलक होती है।
कार्याधिक्य के कारण कई बार नींद की समय-सीमा को घटाना पड़ता है। जबकि कई बार मानसिक तनावों के बढ़ जाने पर नींद चाहने पर भी नहीं आती। अनिद्रा का रोग और नींद की गोलियाँ लेने की विवशता इसी स्थिति चाहे कार्य की अधिकता के कारण नींद पूरी न ली जा सके और चाहे मानसिक तनाव के कारण नींद न आये, शरीर-यन्त्र पर प्रतिकूल और हानिकर प्रभाव पड़ता है। कई दिनों तक लगातार कम सोने पर अपच, स्फूर्तिहीनता और स्मृति शैथिल्य का सामना करना पड़ता है। अनिद्रा रोग हो गया, तब तो शरीर टूटता, कमजोर होता ही चला जाता है।
इस स्थिति का विकल्प है-योग निद्रा। इसके अभ्यास से थोड़े ही समय में पर्याप्त स्फूर्ति प्राप्त की जा सकती है। मानसिक तनावों से उत्पन्न होने वाली अनिद्रा या न्यून निद्रा तो योग निद्रा के अभ्यासी को कभी सता ही नहीं सकती। क्योंकि ऐसा कष्ट उन्हीं लोगों को होता है, जो मन पर नियन्त्रण रखने तथा घटनाक्रम में मन में उभरने वाली प्रतिक्रियाओं के प्रभाव से मुक्त होने में असमर्थ रहते हैं। योग निद्रा के अभ्यास का आरम्भ की मन पर नियन्त्रण के अभ्यास के साथ ही होता है। अतः योगनिद्रा के आरम्भिक अभ्यासी में भी इतना कौशल तो आ ही जाता है कि वह मन को बार-बार अप्रिय घटनाओं की प्रभाव-प्रतिक्रियाओं की स्मृति की ओर दौड़ने से रोक सके। इस प्रकार चाहने पर भी नींद न आ पाने की विवशता रह नहीं जाती। पर, कई बार, विशेषकर उन लोगों को, जिनके उत्तरदायित्व बढ़े-चढ़े हैं, और बहुमुखी हैं, काम के दबाव के कारण नींद के समय में बरबस कटौती करनी पड़ती है। इस विवशता से शरीर पर जो अस्वाभाविक दबाव पड़ता है, उससे मुक्त होना आवश्यक है। अन्यथा शरीर सामर्थ्य का लड़खड़ा उठना सुनिश्चित हैं।
निद्रा मात्र शरीर का विश्राम नहीं है। वह चेतन मन का भी विश्राम है। निद्रा के क्षणों में, दिन भर की उछल-कूद और जिम्मेदारी के निर्वाह से थका चेतन मन, अचेतन के द्वारा डाँट-डपटकर, पकड़ धकेलकर चुपचाप सोने के लिए उसी प्रकार विवश कर दिया जाता है, जिस प्रकार कि किसी दीठ चपल शिशु की ममतामयी माता रात होने पर जबरन बिस्तर में लिटाकर, दुलार-प्यार भरी थपकियाँ देकर सोने को बाध्य कर देती है। उसके बाद अचेतन की अठखेलियाँ शुरू होती हैं। बीते हुए दिन की तथा भूतकाल की भली-बुरी स्मृतियाँ अचेतन परतों में दबी रहती हैं। भय एवं आवेश के पीछे ये दबी पीड़ा की अनुभूतियाँ ही कार्य करती हैं। स्वाभाविक इच्छायें तथा वासनाएँ अचेतन अवस्था में पड़ी रहती हैं। जो चेतन के माध्यम से व्यक्त होना तथा अपनी तुष्टि चाहती हैं। यह न होने पर तनाव एवं आवेश की स्थिति प्रकट होती है। निद्रा से दबी हुई वासनाओं-इच्छाओं की स्मृतियों का एवं सुख-दुःख को जटिल अनुभूतियों से प्रभाव का निष्कासन स्वप्नों के रूप में होता है।
स्मृति के संकेत संग्रहित करने वाला टेम्पोरल कार्टेक्स हाइपोथैलेमस से जुड़ा होता है। हाइपोथैलेमस भावना को नियन्त्रित करता है। प्रत्येक स्मृति एक भावनात्मक प्रवाह के साथ प्रकट होती है। दमित भावनात्मक उद्वेग निद्रा की स्थिति में बार निकालते हैं। तनावों के निष्कासन एवं मानसिक विक्षेपों के दूर होने से नस-नाड़ियों में एक विशेष स्मृति की अनुभूति होती है। मन प्रफुल्ल एवं शान्त हो जाता है। अचेतन मन में दबे विक्षोभों, आवेगों एवं तनावों को दूर करने का निद्रा सशक्त माध्यम है। भावनात्मक असन्तुलन के निवारण में निद्रा वस्तुतः एक नैसर्गिक उपचार है। यही कारण है कि निद्रा नई स्फूर्ति, नई ताजगी देती है।वह शरीर तथा मन, दोनों को हर दिन नये सिरे से सन्तुलित करने का कर्त्तव्य पूरा करने वाली स्वयंसेवी परिचारिका है।
किन्तु निद्रा ऐच्छिक नहीं होती। उसका दबाव अनिवार्य होता है। उसे टाले जाने पर, उसकी प्रतिक्रिया भी अनिवार्य होती हैं। निद्रा के लाभों से इच्छानुसार लाभ उठाने तथा उसके निर्धारित समय में होने वाली कटौती की प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं से बचने के लिए योग-निद्रा का अवलम्बन आवश्यक होता है।
सचेत भाव से किया जाने के कारण शिथिलीकरण एवं योग निद्रा वशवर्ती होती हैं। वे जब तक इच्छा हो तब तक किये जा सकते हैं। जबकि नींद पर ऐसा नियन्त्रण नहीं रहता। गहरा शिथिलीकरण योग निद्रा का अंग है वह जितना की गहरा होगा, उतने ही कम समय में शरीर की आवश्यकता की पूर्ति सम्भव होगी।
इसके साथ ही योग निद्रा से मानसिक शक्ति भी प्राप्त होती है। योग निद्रा द्वारा शारीरिक धरातल से चेतना को अलग किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में सक्रिय रहने वाला मस्तिष्क का भाग पीनियल तथा पिट्यूटरी ग्लैण्ड से सम्बन्ध स्थापित कर लेता है। इसके स्रावित होने वाले हारमोन्स समूचे व्यक्तित्व, चेतनात्मक स्तर को भी प्रभावित करते हैं। पीनियल ग्लैण्ड के निकट ही योगियों ने आत्मा का निवास स्थान बताया है। तृतीय नेत्र इसी को कहा गया है। इसके पूर्ण जागरण से मनुष्य सूक्ष्म जगत की हलचलों को भी पकड़ने एवं समझने लगता है। पिट्यूटरी ग्लैण्ड को व्यक्तित्व का केन्द्र बिन्दु माता गया है। यह न्यूरोनल तथा हार्मोनल सिस्टम को जोड़ता है। समस्त भावनात्मक क्रियाओं पर नियन्त्रण करता है। चयापचयी क्रियाएँ भी इसी के द्वारा संचालित होती हैं। योग ग्रन्थों में इसको सहस्रार चक्र का स्थूल केन्द्र बिन्दु माना गया है। योग निद्रा का विकसित रूप इस केन्द्र को समर्थ बनाता है। इस प्रकार योग निद्रा से शिथिलीकरण वाले लाभ तो प्राप्त होते ही हैं, शारीरिक-मानसिक ताजगी तो आती है, साथ ही चेतना का स्तर भी विकसित होता है। सन्तुलन की सामर्थ्य एवं अंतर्दृष्टि का विकास होता है। यह योग-निद्रा की उच्चस्तरीय प्रक्रिया है। किन्तु उसकी आरम्भिक प्रक्रिया भी कम समय में पूरी और गहरी नींद का लाभ प्रदान करती है। इसका यह अर्थ नहीं है कि यह नींद का आजीवन विकल्प बन सकती है। उच्चस्तरीय योगियों को छोड़कर शेष लोगों को नियमित पर्याप्त नींद लेनी ही चाहिए। यदा-कदा आवश्यकता पड़ने पर उसमें होने वाली कटौती की कमी को पूरा करने के लिए निद्रा का सहारा अवश्य लाभकारी होता है। इसी प्रकार, कार्य व्यस्तता में समय मिलने पर शिथिलीकरण का कुछ क्षणों का अभ्यास नई स्फूर्ति प्रदान करता है। शारीरिक स्वास्थ्य व मानसिक प्रफुल्लता के लिए ये प्रक्रियाएँ अत्यधिक लाभकारी हैं।