Magazine - Year 1987 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
पंडित दीनदयाल उपाध्याय (कहानी)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
स्वर्गीय पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्त्ताओं के साथ बंबई से नागपुर तक तीसरे दर्जे में रेल द्वारा यात्रा पर जा रहे थे। इन दिनों वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष थे।
उसी ट्रेन के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में गुरु मा. स. गोलवलकर भी जा रहे थे। उन्होंने किसी महत्वपूर्ण विषय पर विचार-विमर्श करने हेतु उपाध्याय जी को अपने पास बुलाया।दो स्टेशन तक उनका प्रथम श्रेणी के डिब्बे में ही वार्तालाप होता रहा। अपने डिब्बे में आने पर वे टी.टी.ई. को खोजने को प्रयास करने लगे। हर स्टेशन पर नीचे उतरते और टी.टी. ई को खोजते।
तीसरे दर्जे का टिकट रखते हुए दो स्टेशन तक प्रथम श्रेणी में यात्रा करना किसी व्यक्ति को कोई असामान्य बात नहीं लगती; किंतु जो निरंतर आत्मनिरीक्षण करता चलता है, उसके लिए यह सामान्य नहीं, असामान्य बात हो जाती है। एक तो राष्ट्रीय संपदा का उपयोग बिना मूल्य चुकाए करना तथा अपने अंतःकरण को झुठलाना श्री उपाध्याय को टी.टी.ई. की खोज करते देख उनके साथी यह जानने को उत्सुक थे आखिर उनको टी.टी.ई. से ऐसा कौन सा आवश्यक कार्य है। हर स्टेशन पर उतरकर दौड़-धुप करते है।किंतु पंडित जी की दौड़-धूप का प्रयास सफल हुआ। उन्हें शीघ्र ही सामने से टी.टी.ई. आता दिखाई दिया। जब उन्होंने अपना अधिकतम किराया जमा करने को कहा तो वह विस्मय भरी दृष्टि से उनकी ओर देखने लगा। एक साधारण-सा दिखने वाला व्यक्ति प्रथम श्रेणी में यात्रा करे और वह भी स्वयं आकर अपना किराया जमा कराए; किंतु दुसरे ही क्षण वह कुछ नहीं बोला और चुपचाप हिसाब लगाकर पैसे ले लिए। पैसे लेने के साथ ही पूछ बैठा—"क्या आप रसीद भी चाहते हैं?" पंडित जी ने तत्काल ही उतर दिया— "अवश्यमेव।"
टी.टी.ई. उन पैसों को अपनी जेब में रखना चाहता था, किंतु उपाध्याय जी ऐसे प्रसंगों पर हर क्षण सावधान रहते थे। उनकी ऐसी ही चारित्रिक विशेषताओं ने उन्हें सच्चे अर्थों में महामानव और लोकनायक बनाया था।