Magazine - Year 1989 - Version 2
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Language: HINDI
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जीवन एक सतत अविराम-प्रवाह
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वैज्ञानिक भी अब यह मानने लगे हैं कि शरीर के ऽऽऽऽ पर कोई ऐसा तत्व विद्यमान रहता है, जिसमें ऽऽऽऽ जन्म की स्मृतियाँ और गतिविधियाँ सँजोई रहती है भारतीय दर्शन में इसे “आत्मा अथवा जीव चेतना” ऽऽऽऽ दिया गया है और कहा गया कि “शरीर की प्राप्ति पर इसका अस्तित्व समाप्त हो जाता हैं। ऐसी ऽऽऽऽ नहीं है। आत्मा शरीर के मरने के बाद भी अपनी तंत्र सत्ता उसी प्रकार बनाये रखती है और पुनः पुनः ऽऽऽऽ धारण करती रहती है। इस तथ्य की सत्यता तब ऽऽऽऽ असंदिग्ध बन जाती है, जब आये दिन इससे अधिक घटनाएँ देखने सुनने को मिलती हैं।
घटना अलास्का प्रदेश की है। विलियम जेम्स नियर नामक व्यक्ति एक मछुआरे बाप का बेटा था। ऽऽऽऽ की यह आर्दिक इच्छा थी कि मरने के बाद यदि ऽऽऽऽ पुनः जन्म हो तो वह अपने पुत्र का पुत्र बन कर ऽऽऽऽ “पर इसकी पहचान कैसे हो कि नवजात शिशु रूप में आप ही हैं? पुत्र के इस प्रश्न पर पिता ने ऽऽऽऽ कि यदि सचमुच ही मैं तुम्हारे पुत्र के रूप में आया, तो मेरे शरीर के सारे चिन्ह उस शिशु में विद्यमान है।
पिता प्रायः हर दिन समुद्र में मछली पकड़ने जाया ऽऽऽऽ थे। सन् 1939 के अगस्त माह की 20 तारीख को वे नित्यप्रति की तरह मछली पकड़ने के लिए निकले इस दिन समुद्र कुछ अशान्त था। ज्वार-भाटे ऊँचे ऽऽऽऽ आ रहे थे। किन्तु इसकी परवाह न कर वे निकल ऽऽऽऽ क्योंकि ऐसे अनेक अवसरों पर सफलतापूर्वक मछली पकड़ कर वे सकुशल वापिस आये थे। मगर बार वे गये, तो पुनः लौट नहीं सके। पुत्र व पुत्रवधू ऽऽऽऽ तक उनका इन्तजार करते रहे, पर जब वे नहीं ऽऽऽऽ तो यह मान लिया गया कि पिता अब इस संसार नहीं रहे। इस घटना के ठीक छः माह बाद विलियम ऽऽऽऽ की पत्नी गर्भवती हुई। कुछ माह उपरान्त उसने एक पुत्र को जन्म दिया। नाम रखा गया विलियम जेम्स जूनियर। इस बालक के साथ विचित्र बात यह थी कि उसके दादा में जो-जो शारीरिक चिन्ह विद्यमान थे वें सारे चिन्ह बालक में भी मौजूद थे। इतना ही नहीं जेम्स जूनियर जब कुछ बड़ा हुआ और चलने फिरने, बोलने–चालने लगा, तो इसकी बात व्यवहार के ढंग भी उसके दादा से बिल्कुल मिलते जुलते थे। मछली पकड़ने के अपने पारिवारिक पेशे में भी अल्प आयु में ही वह अपनी कुशाग्रता और विलक्षण सूझबूझ का परिचय देने लगा, जिसे देख सभी को आश्चर्य होता था। उस बालक में जो एक और विशेष बात थी वह थी उसकी आवाज। जूनियर जेम्स की आवाज हूबहू सीनियर जेम्स के पिता की तरह थी।
इस प्रकार जेम्स सीनियर के पिता ने मृत्यु के पूर्व जो कुछ कहा था और पहचान के जो जो चिन्ह बताये थे, वह सब कुछ उस बालक में प्रत्यक्ष दीख रहे थे, जो इस बात के प्रमाण हैं कि मृत्यु के उपरान्त जीवात्मा का पुनः जन्म होता है। प्रत्यक्ष चिन्हों के आधार पर यह कहा जा सकता था कि जेम्स सीनियर के घर जन्म लेने वाला बालक और कोई नहीं वरन् उसका पिता ही था।
मरणोत्तर जीवन और पुनर्जन्म का समर्थन करते हुए प्रकाश बल्ब के आविष्कारक टामस एडीसन ने अपनी पुस्तक “द अल्टीमेट साइन्स” में लिखा है कि मरणोपरान्त प्राणी की सत्ता उच्चस्तरीय विद्युत अणु गुच्छकों के रूप में तब भी बनी रहती है, जब वह शरीर से पृथक हो जाती है। मृत्यु के उपरान्त यह गुच्छक विधिवत क्रमबद्ध तो नहीं। जिस प्रकार मधुमक्खी छत्ता छोड़ कर आकाश में विचरण करती है, उसी प्रकार वे विचरते हैं। मधु मक्खियाँ पुराना छत्ता भी एक साथ छोड़ती हैं और नया भी एक साथ बनाती हैं। इसी प्रकार पुनः जीवन चक्र में प्रवेश करते और नया जन्म धारण करते समय उच्चस्तरीय विद्युत अणुओं के ये गुच्छक अपने साथ स्थूल शरीर से आस्थाओं, भावनाओं सम्वेदनाओं का समुच्चय साथ लेकर आते हैं। इसी कारण दूसरे जन्म में भी व्यक्ति के विचार व्यवहार और क्रिया कलाप पहले जन्म से काफी कुछ मिलते-जुलते हैं।
पुनर्जन्म की ऐसी ही एक अन्य घटना का उल्लेख स्वामी शिवानन्द सरस्वती ने अपनी पुस्तक “ह्राट बिकम्स ऑफ दि सोल आफ्टर डेथ” में किया है। घटना करीब 20 वर्ष पुरानी है। कलकत्ते के जामा पुकुर नामक ग्राम के एक कृषक परिवार में एक अठारह वर्षीय लड़का अपनी लम्बी बीमारी के बाद मृत्यु शय्या पर पड़ा-पड़ा अपनी मौत के अन्तिम दिन गिन रहा था। माँ-बाप ने उसके हर प्रकार के उपचार करवाये पर स्वास्थ्य में कोई प्रगति नहीं हुई। अन्त में हार कर उन्होंने एक ग्रामीण वैद्य की शरण ली और इलाज उसके संरक्षण में चलने लगा, पर यहाँ भी कोई लाभ नहीं हुआ। इस पर क्रुद्ध लड़के की चाची उस वैद्य को कोसने लगी। बीमार लड़का वही शय्या में लगभग अचेतावस्था में पड़ा हुआ था। वाद विवाद से लड़के में कुछ हलचल दिखाई पड़ी। वह अपने कुटुम्बियों को सम्बोधित करते हुए कहने लगा-”मैं स्वस्थ न हो सका” इस में इन वैद्य जी का कोई दोष नहीं है। हमारा पिछला जीवन ही ऐसा था, जिसके कारण आज मुझे इतना कष्ट उठाना पड़ रहा है। विगत जीवन में मैं एक रेलवे आफिस में काम करता था और आपसी मनमुटाव के कारण मैन अपने ही एक सहयोगी की हत्या कर दी। हत्या के बाद मैं पकड़ लिया गया। मुकदमा चला वहाँ फाँसी की सजा से तो मैं बच गया, पर कठोर कारावास के दण्ड से न बच सका। वह पिछला कुकर्म ही आज मुझे इस फलितार्थ के रूप में प्राप्त हुआ है। अब मैं कभी स्वस्थ न हो सकूँगा, पर क्या आप (अपनी माँ की ओर इशारा करते हुए) जानती हैं कि हमारे बुरे कर्मों का फल मेरे साथ आपको क्यों भोगना पड़ रहा है? मेरे कारण आपको क्यों संताप झेलना पड़ रहा है? पिता की ओर इशारा करते हुए उसने पुनः कहना प्रारंभ किया गत जन्म में ये मेरे बेटे थे। उस समय इनाक एक ही प्रयास रहता कि किस तरह अधिक से अधिक मुझे दुःख पहुँचे। इसी कारण विधाता की मर्जी के अनुसार मुझे यहाँ जन्म लेना पड़ा और आप लोगों को इतने कष्ट उठाने पड़े।
इतना कह कर वह कुछ क्षण रुका और फिर कहा “बस यही मेरी विगत जीवन गाथा है। अब मैं चलता हूँ।” इसके उपरान्त उस लड़के की मृत्यु हो गई।
यह सारे उदाहरण इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि मृत्यु के बाद ही जीवन का अन्त नहीं हो जाता, वरन् वह एक प्रवाह के रूप में बना रहता है। जीवन के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद पुनः जीवन का अविच्छिन्न चक्र तब तक चलता रहता है, जब तक जीव अपने परम लक्ष्य को प्राप्त कर परमात्मा में न समाहित हो जाय। इस बीच उसका जन्म लेना और पिछले जन्म में किये कर्मों का फल भोगने का क्रम चलता रहता है। यह तथ्य विज्ञान सम्मत भी है, शास्त्र सम्मत भी। हमें इस ध्रुव सत्य पर विश्वास करना चाहिए।