Magazine - Year 1989 - Version 2
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Language: HINDI
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रोगोपचार की एक ही कुँजी
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मनुष्य जाति के करोड़ों मनुष्य इस धरती पर रहते हैं पर किसी से किसी की शकल पूरी तरह नहीं मिलती। गड़रिया बड़ी भेड़ों के झुण्ड में से दूसरे में जा मिलने वाली को देखते ही पहचान लेता है। क्योंकि उनकी शकल सूरत में कुछ न कुछ अन्तर होता है। पेड़ों पर सभी पत्ते फल फूल एक जैसे लगते हैं पर बारीकी से देखने पर उनमें से हर एक की विशेषता अलग अलग दीख पड़ती है। आसानी से उन्हें पहचाना जा सकता है। अँगूठे के निशान तक किसी के किसी से नहीं मिलते यह हर वस्तु की विशेषता ईश्वर की अपनी कलाकृति है किन्तु इतने पर भी वे एक सम्बन्ध सूत्र से जुड़े हुए हैं। बहुत अंशों में एक दूसरे पर निर्भर भी हैं।
शरीरगत अवयवों के सम्बन्ध में भी यही बात है। उनकी बनावट में अन्तर है फिर भी उनकी पारस्परिक निर्भरता अक्षुण्ण रूप से जुड़ी रहती है। जड़, तना, टहनी, पत्ते और फल फूल अपनी अपनी आकृति प्रकृति में भिन्नता रखते हैं तो भी वे आपस में जुड़े रहते हैं। इनके टुकड़े कर देने पर भी एक का भी अस्तित्व शेष न रहेगा।
शरीर अनेक अवयवों में बँटा हुआ होते हुए स्थिरता और व्यवस्था की दृष्टि से एक सूत्र में पिरोया हुआ है। उसके घटकों की आकृति अलग अलग है। पर उनके बीच असंबद्धता नहीं है। यह विशेषता रोग विशेष की स्थिति में देखी जा सकती है। रोग पृथक् पृथक् अंगों में प्रकट होते हैं और उनके लक्षण निदान में भी अन्तर पाया जाता है। किन्तु शारीरिक अंग अवयव न केवल मिल-जुलकर काम करते हैं वरन् बहुत अंशों में परस्पर मिलजुल कर रहते भी हैं। सुविधाओं को बाँटते और असुविधाओं को बँटाते हैं। इस प्रकार बढ़े हुए भार को भी घटाते हैं, संतुलन बिठाते हैं। देखने में अनेक रोगों के लक्षण और स्थान भिन्न भिन्न होते हैं पर वस्तुतः उनका मूल कारण एक ही है। जड़ में कीड़ा लग जाने पर पेड़ का पूरा ढाँचा लड़खड़ाने लगता है तब कोई भी डाली सूख सकती है कोई भी उनमें से मुरझा सकती है।
उपचार संबंधी प्रचलन यह है कि जहाँ पीड़ा हो दर्द, सूजन ताप आदि की अधिकता हो उसी स्थान की मरम्मत की जाय। इससे तात्कालिक लाभ भर होता है। एक जगह जमा हुआ कचरा आगे धकेल देने पर किसी और जगह रुकावट बनकर खड़ा हो जाता है और वहाँ अपने तरह के उपद्रव या अवरोध खड़े करने लगता है। एक रोग अच्छा होने की खुशी मिल नहीं पाती कि दूसरी जगह दूसरे तरह से रोग खड़ा हो जाता है। यदि उनकी गति मंद है तो सहन किया और उपेक्षा में डाला जा सकता है पर जब उसका प्रभाव तीव्रता धारण कर लेता है और चिकित्सा करानी होती है।
बढ़ते जाने वाले रोगों में इन दिनों हृदय रोग अपने प्रौढ़ यौवन पर है। उसकी चपेट में अधिकाँश लोग आते हैं और इस तरह मरते हैं कि दर्शकों और संबंधियों में से हर एक को आश्चर्य होता है। हृदय की धड़कन का बढ़ना बीमारी का चिन्ह है। यह समूचे शरीर को लड़खड़ा देती है। आक्रान्त व्यक्ति को लगता है कि अचानक मौत सामने आ खड़ी हुई और उसने अपने पंजों में निरीह पक्षी की तरह दबा लिया। यदि बीमारी टली नहीं तो फिर उसे प्राण हरण में देर नहीं लगती। रोगी बहुत देर छटपटा भी नहीं पाता। उपचार का उपाय सोचते और करते इतना समय गुजर जाता है, कि उतनी ही देर में मृत्यु का शिकंजा कस जाय फिर उपाय क्या हो? कैसे इस विभीषिका से बचा जाय?
वस्तुतः हृदय शरीर यात्रा का महत्वपूर्ण कार्य संचालन करता है वह कोमल भी इतना है कि तनिक से आघातों को सहन करना उसके लिए कठिन पड़ता है। पर यह अचानक नहीं होता, जैसा कि लगता है। रक्तचाप, मधुमेह, अनिद्रा आदि अनेक व्यथाएँ पूर्व सूचना देने आती रहती हैं उनकी चेतावनियों पर ध्यान देते हुए यदि शरीर को प्राकृतिक रीति नीति अपनाने के लिए सहमत किया जा सके तो समझना चाहिए कि हृदय रोग समेत अनेक रोगों से छुटकारा पाने का सुनिश्चित मार्ग मिल गया।