Magazine - Year 1992 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
नन्हें दीपक का आमंत्रण
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
सब तरफ हा–हाकार चारों तरफ अन्धकार ही अंधकार। साधन बहुत शक्ति बहुत किन्तु अंधकार में उसका उपयोग कैसे हो? जिन्हें कुछ चाहिये कुछ का कुछ उठा ले रहे है।। कुछ लिया इसका सन्तोश क्षणिक पर उससे कार्य सिद्ध नहीं होता.........। इसकी खोज और बौखलाहट बेहिसाब। जिनके पास कुछ देने को है उन्हें पता नहीं किसे देना है। कुछ दिया इसका गौरव नगण्य और वह निरर्थक गया बल्कि पाने वालों का अहित हो गया, इसकी लानत बेहिसाब! हर कार्य और उसके लिये हर वस्तु पर इससे क्या सभी बेठिकाने अनर्थ तो होगा ही कारण अन्धकार.......।
इस अंधकार को दूर करो इसे निकाल बाहर करो चारों ओर यही चीख पुकार ..........। यह कमबख्त कहाँ से आ गया, हमें चारों ओर से घेरे है सब काम बिगड़ रहा है इससे दूर भागों यही उद्बोधन ...........। पर सब बेकार।
एक नन्हा सा दीपक मुस्काया.......। कहाँ है अन्धकार? चारों तरफ आवाजें उठीं, यहाँ यहाँ ........।
दीपक पहुँचा -पूछा कहाँ? उत्तर मिला चारों ओर। दीपक ने कहा पर अभी तो कहा जा रहा था। यहाँ ...... यहाँ तो वह नहीं है। लोगों ने चारों ओर देखा सारी स्थिति साफ-साफ दीख रही थी। हाँ अंधकार में खाई ठोकरों चोटों की कसक जरूर थी पर वह भी साफ स्पष्ट दीख रही थी।
लोग दीपक पर बिगड़ उठे तुम हमें झूठा सिद्ध करने आये हो। हमारी चोटें देखो हमारी हालत देखो यह क्या बिना अन्धकार के सम्भव है? दीपक शांत भाव से बोला तुम्हें झूठा सिद्ध करने नहीं अपना सत्य समझाने का विचार है पर जा समझे उसी को तो समझाऊं। तुमने अपनी चोटें देख ली उनमें मलहम लगाओ, मैं अन्य स्थान देखूं..........और वह आगे बढ़ गया।मलहम हाथ में लिये लोग अपने अंग टटोलते रहे............कहाँ उसे लगाएं?
दीपक हर आवाज पर गया, पर कहीं अंधकार नहीं मिला। सब जगह वही क्रम दोहराया गया। दीपक ने सबकी सुनी दीपक की किसी ने न सुनी। कोलाहल में सुने? दीपक ने सोचा.........। अचानक वह भी चिल्लाया यहाँ से अंधकार भाग गया, देखो यहाँ। लोगों ने देखा ..............अरे सचमुच। दौड़ पड़े उस ओर वह तो साफ दिखाई पड़ रहा था भाग दौड़ हड़बड़ी में कही कही हल्की खरोचें आ गयी पर उनकी चिन्ता नहीं। दीपक के चारों ओर भीड़ लग गई सब प्रसन्न चित्त अपना कार्य करने लगे।
एक ने पूछा अंधकार किसने भगाया? उत्तर मिला इस ज्योति ने। दूसरा बोलना.............तो ज्योति हमें दे दो अपने घर ले जाएंगे..........। किसी और ने कहा नहीं मुझे दो...........ओर मुझे मुझे का शोर मच गया।
दीपक ने कहा ज्योति सभी के साथ जा सकती है पर उसकी अपनी शर्त है कीमत है। लोग हर्ष से पुकार उठे हम कीमत देंगे- शर्त पूरी करेंगे -ज्योति लेंगे।
तो सुनो ज्योति वर्तिका पर ठहरती है ..........पर उसे एक साथ किये बगैर पूरी ज्योति नहीं........अपने साधन के अनुपात में अंश ही प्राप्त करना चाहते है।
कुछ ने साहस जुटाया,स्नेह का प्राण होमने,वर्तिका जीवन जलाने के लिये तैयार हुये। दीपक ने उन्हें छुआ ज्योति शिखा फरफराई स्वयं प्रकाशित होकर प्रकाश बिखेरते हुये चल पड़े। शेष शिकायत करते है यह हमें नहीं छूता.........हमें ज्योति नहीं देता। स्वयं उस पर कूदने को तैयार है.......... पर दीपक उनसे ऊंचा है।
आज हर व्यक्ति के लिये कुछ ऐसा ही अवसर है। युग ज्योति उसका आवाहन कर रही है। पर हममें से अनेक उसका लाभ उठाने की कोशिश कम, शिकायत करने के प्रयास में लगें है। जबकि हम कहीं भी क्यों न हों किन्हीं भी परिस्थितियों से क्यों न घिरे हो -युग ज्योति धारण कर सकते है। फिर अंधकार से संत्रस्त होने रोने बिलखने की क्या जरूरत? आओ ज्योति धारण करे। बीत रहे युग के डरावने अंधकार की जगह नवयुग का सुहावना प्रकाश फैलता नजर आने लगेगा।