Magazine - Year 1993 - Version 2
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Language: HINDI
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अब बजरंगी पुरुषार्थ ही होना चाहिए
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अखण्ड ज्योति पत्रिका मात्र छपे अक्षरों के पृष्ठों से बना एक जड़ पुलिंदा मात्र नहीं है, अपितु प्रचंड प्राण-प्रवाह से युक्त एक चेतना का पुँज है। यह एक ऐसा प्रवाह है जो स्रोतों को जगाता है एवं बागों को खड़ा कर चलना व जीवन क्षेत्र में उछाल दे कर प्रगति पथ पर बढ़ने की प्रेरणा देता है। विज्ञापन बाजी से सर्वथा दूर अपने ही स्तर पर युगपुरुष पूज्य गुरुदेव के एकाकी पुरुषार्थ के बलबूते इसने विगत 56 वर्षों में समाज व विश्व मानवता के लिए जो भी कुछ किया है, वह अभूतपूर्व है। भविष्य को उज्ज्वल बताते हुए सतत् नया प्रेरणादायी मार्गदर्शन इस पत्रिका का प्राण है। इसे अंदर तक आत्मसात करने वाले भी अब इस पुलकन को अनुभव करने व विश्वास करने लगे हैं कि नवयुग का अवतरण एक तथ्यपूर्ण यथार्थता है।
जो उपयोगी है, उसे घर-घर पहुँचना चाहिए। आज के इस साँस्कृतिक प्रदूषणों के युग में जब हर ओर से भारतीय संस्कृति पर तेजी से भाँति-भाँति के हमले हो रहे हैं, इस प्रकाश प्रेरणा को अग्रगामी होने का अवसर मिलना चाहिए जो जीवन संचार करती हो, लोगों के मनोबल को उछाल देती हो। घर-परिवार के सभी सदस्य ही उसे पढ़ें-सुनें नहीं अपितु एक कदम और आगे बढ़कर मित्रों संबंधियों तक परिचितों-मित्रों तक इस प्रयास को पहुँचाया व गतिशील किया जा सकता है। गंगा का पानी बाँध में बँधकर जलाशय में बदले, इसके बजाय उसे नहरों में बदल कर जन-जन तक पहुँचाना ज्यादा हितकारी है। यदि प्रत्येक पाठक-वर्तमान सदस्य यह धारणा बना ले कि इसे अपने प्रभाव क्षेत्र में निश्चित ही नये न्यूनतम पाँच से लेकर दस सदस्य बनाने ही हैं तो निश्चित ही यह प्राण-प्रवाह जन-जन तक पहुँच कर रहेगा।
पिछले दिनों अश्वमेध यज्ञों की एक शृंखला चली। देवसंस्कृति के विशेषांकों के माध्यम से नवीनतम शोध सामग्री से लेकर देवसंस्कृति दिग्विजय अंक तथा सूर्योपासना अंक तक आते-आते जन-जन को यह विश्वास हो गया है कि शाँतिकुँज की युगाँतरीय चेतना ही संस्कृति के नवोन्मेष का वह उपक्रम संपन्न करने जा रही है, जो सतयुगी संभावनाओं के रूप में परिलक्षित होने में तनिक भी देरी नहीं करेगा। प्रत्येक अश्वमेध के साथ हस्तगत हो रही अपरिमित उपलब्धियाँ मिशन के तीव्रतम विस्तार व सत्प्रवृत्तियों की ओर बढ़ते रुझान को बताती हैं। यदि इस कार्य में लगे हजारों सृजन सैनिकों के साथ पत्रिका के पाठक भी एक न्यूनतम अणु व्रत धारण कर स्वल्प सहयोग के रूप में पाठकों-सदस्यों की संख्या बढ़ाने का संकल्प ले लें तो वह परिणाम की दृष्टि से इतना प्रभावी सिद्ध हो सकता है कि कल्पना मात्र से ही रोमाँच होने लगता है।
अखण्ड ज्योति पत्रिका अब बदले हुए कलेवर में प्रायः साढ़े चार लाख की संख्या में छपकर चौबीस लाख पाठकों तक पहुँचती है। यदि एक लंबी छलाँग लगाकर इस वर्ष के अंत में एक बजरंगी पुरुषार्थ किया जाय तो इसे अढ़ाई करोड़ बनाया जा सकता है। गायत्री परिवार-युग निर्माण योजना का परिकर-देव परिवार-उज्ज्वल भविष्य के स्वप्न द्रष्टा जो भी जन्में हैं, इस अखण्ड ज्योति परिवार से ही जन्मे हैं। समाज के नव निर्माण की दिशा में जो भी कुछ बन पड़ा है, उसमें अखण्ड ज्योति में सन्निहित प्रेरणाओं को तो श्रेय है ही, हजार गुना श्रेय उनका भी है, जो इस परिकर से जुड़े हैं व अपने श्रम सहयोग से अपनी रुचि व सामर्थ्य के अनुसार नवसृजन के इन प्रयासों में लगे हैं। यदि अखण्ड ज्योति मस्तिष्क है, प्राण है तो उसका परिकर समर्थता संपन्न कायकलेवर के समान है। शरीर के बिना प्राण का अस्तित्व ही क्या है ?
उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित है। नव निर्माण की दिशा में किये जा रहे प्रयासों की संभावनाएँ विशाल वटवृक्ष के समान असीम अनंत हैं, पर यह फलितार्थ तब ही होगा जब प्रत्येक की ओर से खाद-पानी उस बीजाँकुर में लगे जो युग ऋषि ने लगाया है। यदि आज से ही प्रत्येक पाठक अपनी ओर से प्रयास कर पाँच से दस नये सदस्य जोड़ने का पुरुषार्थ संपन्न करना आरंभ कर दे तो यह कार्य देखते-देखते पूरा हो सकता है। पूज्यवर के विचारों को परम वंदनीया माताजी की भावनाओं को हमें घर-घर में पहुँचाना है। चालीस रुपये वार्षिक चन्दा तो आज की महँगाई की स्थिति में न्यूनतम राशि है जो पंद्रह पैसा नित्य बचाकर भी निकाली जा सकती है। इंडिया टुडे, धर्मयुग, कादम्बिनी, रीडर्स डाइजेस्ट जैसी पत्रिकाओं में ढेरों राशि खर्चने वाले यदि उसका शतांश भी इस आध्यात्मिक पत्रिका के विस्तार में लगा सकें तो इसका वह घाटा तो पूरा हो ही सकता है जो विज्ञापन न निकालने की इसकी नीति के कारण इसे प्रतिवर्ष झेलना पड़ता है। हम सबका भाव भरा अनुरोध सभी से है कि प्रत्येक पाठक अपनी सदस्यता को तो आजीवन बनाए ही, कम से कम पाँच से लेकर दस नये परिजन इन दिनों और बढ़ाएँ।
*समाप्त*