Magazine - Year 1993 - Version 2
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Language: HINDI
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अपनों से अपनी बात- - शपथ हमें कितनी याद है, कितनी भूल गए?
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“कुछ दिन पहले शपथ उठायी, उसको भूल न जाना भाई” ये पंक्तियाँ आज भारत ही नहीं विश्वभर में गूँज रही हैं-अश्वमेधिक पराक्रम का संदेश “घोड़ा अश्वमेध का छोड़ा-कैसे बैठे हैं चुपचाप” वाली पंक्ति के साथ। सभी परिजनों को भली भाँति याद है कि आज से एक वर्ष पूर्व शपथ समारोह में 8−9−10 जून 1992 की तारीखों में एक भव्य आयोजन में डेढ़ लाख कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में हम सभी ने परमपूज्य गुरुदेव की जन्मस्थली की माटी हाथ में लेकर देव संस्कृति दिग्विजय के निमित्त शपथ ली थी। उस शपथ को पूरा करने के लिए एक लाख से भी अधिक प्रणवान् भावनाशीलों ने तीन माह का समय दिया था तथा शेष पचास हजार ने इनके बदले निर्वाह राशि देते रहने का संकल्प लिया था। आज जब हम परमपूज्य गुरुदेव की पुण्यतिथि गायत्री जयंती 1993 (संवत् 2050) की तीसरी जयंती मना रहे हैं, तो यह आत्म चिंतन का विषय है कि शपथ लेने के बाद हम में से कितनों को स्मरण रहा, कितने भूल गए?
परमपूज्य गुरुदेव के जीवन का एक-एक पल समिधा की तरह देव संस्कृति के निमित्त हुए महायज्ञ में होमा जाता रहा। उनने 80 वर्ष की आयु को उस तरह जिया कि उसमें पाँच− व्यक्तियों से अधिक ही उनकी संकल्प शक्ति के चमत्कार से बन पड़ा। गायत्री परिवार रूपी विशाल संगठन का विस्तार उनके सूक्ष्म शरीर में प्रवेश करते ही उतना ही विराट होता चला गया। आज भारत के कोने-कोने में शाँतिकुँज के देवसंस्कृति विस्तार अभियान की चर्चा है। भारतीय संस्कृति के निर्धारणों को जनसुलभ बनाते हुए आज की समस्याओं का समाधान गायत्री व यज्ञ के माध्यम से समझाते हुए संस्कार महोत्सवों, रजवंदन समारोहों तथा अभी तक संपन्न तीन अश्वमेधों (जयपुर, भिलाई, गुना) के माध्यम से जो कार्य विगत एक वर्ष में बन पड़ा है, वह बताता है कि हर परिजन अपनी आराध्य सत्ता के बताए निर्देशों का परिपालन करने को कटिबद्ध है।
मात्र भारत ही नहीं, विश्व के कोने-कोने में आज गायत्री महाशक्ति का-भारतीय संस्कृति के विश्व संस्कृति वाले संदेश को पूज्यवर के अग्रदूतों ने पहुँचाने का प्रयास किया है। इंग्लैण्ड जिसके राज्य में कभी सूर्य अस्त नहीं होता था, जहाँ की पार्लियामेण्ट सारे विश्व के भाग्य का निर्धारण करती थी, जिसे “ग्रेट ब्रिटेन” इसीलिए कहा जाता था कि विश्व की तीन चौथाई आबादी पर उसी का राज्य था, उसी इंग्लैण्ड के हाउस ऑफ काँमन्स (लोकसभा) व हाउस ऑफ लार्ड्स (राज्यसभा) के सम्माननीय सदस्यों को फरवरी 93 के अंतिम सप्ताह में संबोधित करने का अवसर शाँतिकुँज प्रतिनिधि होती है, आज इंग्लैण्ड, अमेरिका, कनाडा, डेनमार्क, नार्वे, स्वीडन, फ्राँस, पुर्तगाल, जर्मनी, केन्या, तंज़ानिया, जिम्बाब्बे, दक्षिण अफ्रीका, बोत्सवाना, सूरीनाम, मारीशस, फिजी, आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैण्ड तक अपना विस्तार कर चुकी है। विश्व के कोने-कोने तक भारतीय अध्यात्म का तत्वज्ञान पहुँचाने को तत्पर कार्यकर्ताओं की एक टोली निरन्तर इसी कार्य में संलग्न हो तीन अश्वमेध महायज्ञों-लेस्टर यूके (9−10−11 जुलाई 1993), टोरोण्टो कनाडा (23−24−25 जुलाई 1993) तथा लाँस ऐंजेल्स यू.एस.ए. (20−21−22 अगस्त 1993) को सफल बनाने हेतु तत्पर है तथा मई माह के अंत में तैयारी हेतु पहुंच रही है। यही नहीं मई माह में देश के बाहर पहला शक्तिपीठ व गायत्री ध्यान केन्द्र डर्बन (दक्षिण अफ्रीका) में स्थापित होने जा रहा है। यह बताता है कि कार्य का विस्तार किस सीमा तक हो चुका है या होने जा रहा है।
समस्या एक मात्र यही है कि कार्य विस्तार के साथ व्यक्ति उस स्तर के नहीं मिल पा रहे हैं, जिनका समयदान भारत के बुद्धिजीवी वर्ग-दक्षिणी भारत के बहुभाषी क्षेत्र व विदेश के विश्व विद्यालयों-विभिन्न संस्थाओं में नियोजित हो सके। 30 मई को परमपूज्य गुरुदेव की पावन पुण्यतिथि पर यही अपेक्षा मन में रख सकते हैं कि और अधिक संख्या में शपथ को याद रखने वाले, नये सिरे से लेने वाले सुयोग्य स्तर के समयदानी आगे आयेंगे व हमारे संकल्पों को साकार बनायेंगे। तभी हम गुरुसत्ता के स्वप्नों को सँजोने का महत् कार्य पूरा कर सकेंगे।
*समाप्त*