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जीवन में त्याग की प्रतिष्ठा ही मोक्ष
सेवा-साधना निज की प्रगति के लिए भी अनिवार्य
भ्रम जंजाल में उलझकर देवताओं को गाली न दें
अन्दर का आईना साफ करें, भविष्य ज्ञान पाएँ
रे मन! अब तू रूठना छोड़
सत्संगति क्यों है अनिवार्य
उपासना अर्थात् ईश्वर के गुणों को आत्मसात् कर लेना
मन दुरुस्त हो तो शरीर भी स्वस्थ व चुस्त
विज्ञान जगत् का रहस्य रोमांच-प्रतिपदार्थ
भवानी शंकरौ वन्दे, श्रद्धा विश्वास रूपिणौ
आत्मबल सम्पन्न ही जीवन संग्राम जीतते हैं
अपरिग्रह आज क्यों इतना जरूरी है
किस काम का है यह इन्द्रजाल?
चित्तवृत्तियों का परिशोधन आहार से ही सम्भव
पलकों की हलचल है मन का दर्पण
मन के अधीन है- सत्ता जीवन की
यदि दृढ़ हो संकल्प बल तो
उपचार जड़ों का ही करना होगा
आप्तकाम बनने का सूत्र
प्रेम ही परमेश्वर है
बुढ़ापे को भार मानकर न जियें
अ-लिया प्रभु! तुमने हर युग में अवतार, ब-समर्पण के सुमन
परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- देवात्मा हिमालय की यात्रा- उद्देश्य एवं भावी कार्यक्रम (प्राण-प्रत्यावर्तन सत्र अप्रैल १९७३)
मातृ लीलामृत- परम वंदनीया माजाजी का वह अन्तिम प्रवास व उनके उद्गार
अपनों से अपनी बात- प्रथम पूर्णाहुति आ पहुँची, अब समय न गँवायें
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-
Year 1995 - Version 1
Media: SCAN
Language: HINDI
मातृ लीलामृत- परम वंदनीया माजाजी का वह अन्तिम प्रवास व उनके उद्गार
First
46
48
Last
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Other Version of this book
Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...
Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...
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जीवन में त्याग की प्रतिष्ठा ही मोक्ष
सेवा-साधना निज की प्रगति के लिए भी अनिवार्य
भ्रम जंजाल में उलझकर देवताओं को गाली न दें
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अ-लिया प्रभु! तुमने हर युग में अवतार, ब-समर्पण के सुमन
परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- देवात्मा हिमालय की यात्रा- उद्देश्य एवं भावी कार्यक्रम (प्राण-प्रत्यावर्तन सत्र अप्रैल १९७३)
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