Magazine - Year 1996 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
ब्रह्माण्डीय चेतन प्रवाह के अंशधर हम सब
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
विश्वव्यापी चेतन प्रवाह एक यथार्थता है, इस तथ्य को आज विज्ञानवेत्ता भी स्वीकारते हैं कि उसी समष्टिगत प्राण चेतना के अंश होने से हम में से हर एक को उस प्रवाह से मुक्त रूप से जुड़ सकने की पूरी संभावना है। यह संभावना दो तरीकों से प्रत्यक्ष प्रमाण बनकर सामने आती है- प्रथम योग साधना द्वारा, जो कि एक सुनिश्चित मार्ग है। दूसरा कई बार बिना किसी योगसाधना के भी कुछ व्यक्तियों में यह सामर्थ्य विकसित होती हुई देखी व पायी गयी है। इससे जहाँ उसके पुनर्जन्म के विकसित स्वरूप का पता चलता है वही साथ ही मनुष्य के भीतर सन्निहित दिव्य चेतना का भी प्रमाण मिलता है।
डॉ0 बर्नार्ड जॉनसन ने अपनी कृति “ बियोन्ड टेलीपैथी “ में ऐसी अनेक घटनाओं का उल्लेख किया है कि कितने ही मनुष्य में इस तरह की अतींद्रिय क्षमताएँ विकसित होती है जिसमें वे दूरस्थ स्थानों पर व्यक्तियों की जानकारी बिना किसी संचार साधनों के अनायास ही प्राप्त कर लेते हैं। मार्टिन ऐबोन ने भी अपनी पुस्तक “ एक्सपेरियन्सेस इन प्रोफेसी “ में इस तरह की कई घटनाओं का वर्णन किया है। एक दिन सुबह से ही उनका मन बेचैन था। उसे बार बार एक ही आशंका व्यग्र किये जा रही थी कि वृद्धा माँ जो उससे 30 मील दूर अकेले रहती थी, संकट की स्थिति में है। उसका अंतर मन बार बार उसे आन्दोलित कर रहा था कि माँ के पास पहुँचना चाहिए।
डस दिन वह अन्यमनस्क भाव से छात्रों को पढ़ा रही थी कि एकाएक बिस्तर पर लेटी वेदनाग्रस्त माँ की छवि दिखाई देने लगी । इस दृश्य ने उसे क्लास छोड़ देने को विवश कर दिया । वह सीधे अपने दामाद के घर पहुँची आध्र उसको साथ लेकर गंतव्य दिशा की ओर बढ़ने लगी। रात गहरी हो चुकी थी, ऊपर से तूफान और वर्षा भी अपना विकराल स्वरूप प्रकट कर रही थी। सामने पहाड़ी भी पानी गिरने की वजह से जगह जगह पर अवरोध उत्पन्न कर रही थी। किसी तरह रास्ता साफ करते हुए दोनों उस वृद्ध माँ के पास पहुँचते हैं और पाते हैं कि वह दिल के दौरे से गुजर रही थी। बोब के बिना देरी लगाये तुरन्त चिकित्सक से संपर्क किया । चिकित्सक ने जाँच करने के पश्चात बताया कि कुछ ही मिनटों की यदि देरी हो जाती तो बूढ़ी माँ के प्राण निकल जाते । उक्त घटना का वर्णन अंग्रेजी की पत्रिका “ साइन्स ऑफ माइंड “ में करते हुए कहा गया है कि उस दिन उक्त शिक्षिका के अंतर्मन में उठी गहन संवेदना कोई अदम्य प्रेरणा स्वरूप थी जिसका स्रोत किसी दिव्य चेतना से जुड़ा था। अन्यथा इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी उसका और उसके दामाद का साहस कैसे बन पाता ? सुप्रसिद्ध भौतिक विद् मार्टिन गार्डनर का इस संदर्भ में कहना है कि इस संसार में हजारों व्यक्तियों के साथ ऐसी छोटी बड़ी घटनायें नित्य ही घटती रहती है। इनमें से कुछ को यदि संयोग मान लिया जाय तो यह मानना पड़ेगा कि विश्व ब्रह्माण्ड में कोई दिव्य चेतनात्मक प्रवाह अवश्य है जो समस्त प्राणियों को एक सूत्र में बाँधे हुए हैं। उस प्रचण्ड चेतनात्मक प्रवाह की दिव्य तरंगें हमें एक दूसरे से बेतार के तार की तरह जोड़ देती है और अनायास ही हमारे कार्य व्यापार उस ओर प्रवाहित होने लगते हैं। न चाहते हुए भी कभी कभी कदम उस ओर चल पड़ते हैं जहाँ उनकी आवश्यकता है।
‘बोस्टन सोसायटी फॉर साइकिक रिसर्च ‘ के वरिष्ठ अनुसंधान कर्त्ता डॉ0 एफ॰ एडिंगटन ने अपने निजी जीवन को अनेकों पूर्वाभास की घटनाओं का वर्णन करते हुए विश्वव्यापी चेतन प्रभाव की यथार्थता का सत्यापन किया है। अपने जीवन की एक घटना का वर्णन करते हुए बताया कि किसी तरह उनने अपनी चाची के सूक्ष्म शरीर से साक्षत्कार किया था। उनकी चाची उनके निवास स्थान कैम्ब्रीज से काफी दूर रोक्सबरी में रहती थी जिनका चार दिन पहले ही उनके अस्वस्थ होने कर पत्र उनको मिल चुका था । डॉ0 एर्डिगन रात्रि को सोने का उपक्रम कर रहे थे कि तंद्रावस्था में ही उनके सामने चाची कैथरीन एफ.बोविस दिखाई पड़ी उन्होंने उसे अपने घर का भ्रम समझा, पर जब बार बार वही एक दृश्य मानस पटल पर छाया रहा तो उनसे रहा नहीं गया । वे सुबह निकलने ही वाले थे कि रोक्सबरी से फोन आया कि रात्रि के करीब ग्यारह बजे कैथरीन एफत्र का ऐक्सीडेंट हो गया है। बर्फ से फिसल जाने से उनकी खोपड़ी फट गयी है और अब वह कोमा की स्थिति में है। “कुछ दिन बाद उनकी मृत्यु हो गयी।
इसी घटना को अगस्त 1941 की एक अन्य घटना का उल्लेख करते हुए उनने लिखा है कि रात्रि में वह सोने जा रहे थे । लाइट बन्द भी न कर पाये थे कि अचानक दो हलके धमाके सुनाई पड़े। चारों तरफ खोजबीन करने पर भी कोई चीज टूटी फूटी नजर नहीं आई।अंतर्मन किसी अप्रिय घटना की आशंका उठने लगी। अगले दिन दोपहर में पुलिस की एक गाड़ी आकर उनके निवास स्थान पर रुकी उन्हें बताया गया कि वाशिंगटन में उनके साले की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने के कारण हो गयी है। दफन क्रिया के लिए जब वे पहुँचे तो पता चला कि हृदयाघात से पूर्व वह व्यक्ति अपने टेबल के पास बैठा था कि अचानक दिल का दौरा पड़ने से उसका सिर टेबल से टकरा गया जिसके कारण मस्तिष्क में गहरी चोट आ गयी थी। मृत्यु का समय ऑफिस से आने के तुरन्त बाद का था।
तीसरा प्रसंग मार्च 24 सन् 1947 का है। वही सोने का समय, कि कही अचानक कहीं कोई सीसे का गिलास टूटने जैसी आवाज आती है। सभी कमरों में ढूँढ़ खोज की गयी, परन्तु सारे प्रयत्न विफल रहे, कही कोई काँच का एक टुकड़ा तक नहीं मिला। तब डॉ0 एर्डिगटन ने अपनी भतीजी से कहा हो न हो कही किसी प्रिय की मृत्यु न हो गयी हो ? दूसरे ही दिन एक पत्र मिला जिसमें एक अति घनिष्ठ वृद्धा की मृत्यु का समाचार था।
अनुसंधानकर्त्ताओं ने इन तीनों घटनाओं की समीक्षा करते हुए कहा कि मर्मांतक पीड़ा या बिछुड़ने की अप्रिय घटना की व्यथा मरने वाले व्यक्ति के अचेतन मन को तरंगित करती है। उसके विचार तरंग ब्रह्माण्ड के चारों तरफ फैल जाते हैं। और सभी व्यक्तियों तक पहुँचते हैं । लेकिन सामान्यतः इन लोगों के मन मस्तिष्क के अचेतन भाग में अपनी ही निजी आकाँक्षायें, राग- द्वेष विचार संस्कार भरे रहते हैं, अतः वे एक दूसरे के मानसिक तरंगों के पकड़ में सक्षम नहीं होते हैं। केवल कुछ ही लोग होते हैं कि उनकी मनश्चेतना उन विचार तरंगों को प्रकट कर लेती है कि पूर्वाभास, दूर संवेदन अति अतींद्रिय क्षमता प्रायः ऐसे ही लोगों में विकसित पायी जाती है।
“स्ट्रैच वर्ड “नामक पुस्तक में इस तरह की घटनाओं का विस्तृत वर्णन किया गया है जिनसे सिद्ध होता है कि हम सभी एक ही माला के मनकों की भाँति विश्व चेतना से जुड़े हुए हैं। घटना प्रसंग नार्थ कोरोलीना, अमेरिका के चारलोटी नगर के रेडियो उद्घोषक श्री हावर्ट ह्नीलर के जीवन की है। जून 1982 रविवार को देर रात वह अपने घर आया था। धार्मिक प्रवृत्ति के होने के कारण बिस्तर पर जाने से पूर्व वह प्रार्थना कर रहा था कि अचानक उसे पूर्वाभास हुआ कि चौराहे पर कही कोई दुर्घटना हुई है। इस आभास की सूचना अपनी पत्नी को देकर वह अपनी गाड़ी लेकर घर से निकल पड़ा । पर सबसे बड़ा प्रश्न सामने यह था कि किस दिशा में गाड़ी दौड़ाई जाय ?अंतः प्रेरणा हुई कि पार्क रोड़ से ही जाना चाहिए। उसे ऐसा लगा मानो कोई विज्ञात सत्ता उसका मार्गदर्शन करती जा रही है और गन्तव्य दिशा की ओर मार्गदर्शन करती हुई उसे उसी ओर घसीटे लिए जा रही है। दुर्घटना स्थल पर पहुँचने पर उसने क्या देखा और क्या किया, इसका विस्तार पूर्वक वर्णन “शारलीट समाचार पत्र” उसने जो प्रकाशित कराया था वह इस प्रकार था।
मोन्टफोर्ड मार्ग पर 200 मी. की देरी पर एक मोड़ आता है, उस मोड़ पर ही गाड़ी चालक खंभे से टकराकर अपनी दुर्घटना ग्रस्त गाड़ी में फँसा पड़ा था। वही से एक क्षीण सी आवाज आ रही थी-”हप्पी मुझे बचाओ” ह्निलर का यह घरेलू नाम केवल उनके प्रियजन ही जानते थे, फिर वह कौन व्यक्ति उसे आवाज दे रहा है? हप्पी नाम से तो उसके निकट मित्रों के अलावा इस नगर में कोई परिचित नहीं था अतः उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। ह्निलर ने बारीकी से गाड़ी का निरक्षण किया तो देखा कि उनका पूर्व परिचित मित्र फ्रन्डर वर्क चालक सीट के नीचे खून से लथपथ दबा पड़ा था। किसी प्रकार उसे गाड़ी के मलबे से बाहर निकालने में ह्निलर सफल हुआ और उसे अपनी गाड़ी में डालकर अस्पताल पहुंचाया। । शल्य क्रिया द्वारा चिकित्सकों ने उसकी जान बचायी। डाक्टरों के अनुसार उसके शरीर से इतना अधिक खून बह गया था कि 5-20 मिनट की और देरी हो जाती तो फ्रन्डर वर्क को बचाना मुश्किल हो जाता।
अनुसंधान कर्त्ता भौतिक विज्ञानियों का कहना हैं कि यह एक ऐसा मूढ़ प्रश्न है कि ह्निलर ने अपने घर से आधा किमी. दूर से ही इस दुर्घटना का पता किस आधार पर लगा लिया ? उसने पार्क रोड़ पर ही गाड़ी लेने का निर्णय क्यों किया ? टीले के पास पहुँचने पर मोन्टफोडर्ड ड्राइवर की ओर मुड़ने पर वह क्यों मजबूर हुआ ?रात को थका हारा एक व्यक्ति प्रार्थना करके सोने की तैयारी कर रहा हो कि अचानक मन में उठी एक तरंग के कारण दुर्घटना स्थल की ओर रवाना हो जाय और अपने निकटतम मित्र की जान बचाने में सफल हो जाये । इसे केवल कोई संयोग या अकस्मात घटना नहीं कहा जा सकता। यह निश्चित ही इस तथ्य का प्रमाण है कि कोई ब्रह्माण्ड रूपी चेतना शक्ति अवश्य है जिसका संबंध सभी चेतना प्राणियों से है।
अध्यात्म विज्ञानियों की भाषा अब भौतिक विज्ञानी भी बोलने लगे है।वे अब मानने लगे है कि नगण्य सी दिखने वाली मानवी काया में समायी प्राण चेतना विपुल शक्ति का भण्डागार है इस पिटारों में अगणित रत्न दबे है श्रुति कहती है कि इस प्राण तत्व को समझने, उस पर नियंत्रण प्राप्त करने और सर्वव्यापी महाप्राण से जोड़ देने से प्रकृति के समस्त रहस्यों को जाना और अनुभव किया जा सकता है। प्रकृति की सारी शक्तियाँ प्राण सम्पन्न व्यक्ति की अनुगामिनी होती है।
इस तथ्य की पुष्टि करते हुए मूर्धन्य विज्ञानवेत्ता डॉ0 ऐलस टेनस ने अपनी कृति “ वियोन्ड कोइन्सीडेट “ में कहा है कि विश्व की एक सर्वव्यापी प्राण ऊर्जा संव्याप्त है।जिसे अभी तक वैज्ञानिक उपकरणों से जाना नहीं जा सका है। जब तक उसे जानने के उपकरण उपलब्ध नहीं होते तब तक परिस्थितियाँ प्रमाणों या परिस्थितिकी प्रमाणों के आधार पर हमें ज्ञान एकत्र करते रहना चाहिए। उनके अनुसार जिस प्रकार रेडियो, टीवी और बिजली के कन्डेन्सरों में बिजली एकत्र होती रहती है, उसी तरह हम भी विश्व व्यापी प्राणऊर्जा को धारण कर सकते हैं। मनुष्यों में इनका प्रभाव उनके शील स्वभाव, गुण, कर्म, व्यक्तित्व, शिक्षा, रुचि, शारीरिक एवं मानसिक तथा वातावरण के अनुसार भिन्न होता है। इस ऊर्जा का नाम उन्होंने सी.पी. ई अर्थात् रचनात्मक बोधात्मक ऊर्जा रखा है।
स्वामी विवेकानन्द ने इसे “साइकिक फोर्स “ कहा है और उसका संबंध समष्टि सर्वव्यापी चेतना सत्ता के साथ जोड़ा है। इस शक्ति के प्रभाव से ही मनुष्य अपनी सुप्त अतीन्द्रिय क्षमताओं को जागृत कर सकने में सफल होता है और भूत, वर्तमान एवं भविष्य के संबंध स्थापित कर उन क्षेत्रों की गतिविधियों की जानकारी प्राप्त कर लेता है। कारण की हम सब विश्वव्यापी एक ही चेतना प्रवाह से “सूत्रे मणिगणा इव” की तरह पिरोये हुए जो हैं।