Magazine - Year 1996 - Version 2
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Language: HINDI
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वास्तविकता अध्यात्म क्या है ?
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किसी भी व्यक्ति की आत्मिक प्रगति कितनी हुई, इसका निर्धारण उसके कथन-पठन -श्रवण -भजन के बहिरंग क्रिया प्रतिक्रिया के आधार पर नहीं किया जा सकता। इन उपचारों को कोई भी विद्याव्यासनों या कौतुकी भी करता रह सकता है। व्यक्तित्व की गरिमा का मूल्यांकन करने के लिए दो प्रकार की जांच करनी पड़ती है। एक है व्यक्तिगत ललक लिप्साओं में महत्वाकाँक्षाओं की कटौती। इसी को संयम साधना या तपश्चर्या कहते हैं। दूसरे है न्यूनतम में निर्विवाद के उपरान्त बची हुई श्रम, क्षमता, बुद्धि, सम्पदा और साधन सामग्री को सत्प्रवृत्ति, संवर्धन के लिए नियोजित करने की ललक लगन व निष्ठा भरी तत्परता। अंतःकरण के स्तर को उदात्त बनाने के लिए इससे कम में काम नहीं चल सकता। इतना बन पड़े तो फिर अन्य उपचारों की आवश्यकता शोभा -सज्जा जितनी भर रह जाती है।
अध्यात्म ऐ उच्चस्तरीय पुरुषार्थ हैं, मात्र उपचार नहीं जिसमें क्रिया कृत्यों के आधार पर समय क्षेप करने पर कर्मकाण्ड आदि करने पर, कुछ उपलब्धियां हस्तगत होती बताई जाती है। ये कर्मकाण्ड तो एक प्रकार के मनोवैज्ञानिक दबाव है जिसके कारण दृष्टि कोण बदलते हैं, आदतें सुधारने के आधार पर चेतना को अधिकाधिक परिष्कृत बनाने का अवसर मिलता है। जो लोग पूजा पत्री की लकीर भर पीटते हैं, वे निराशा एवं मन में नास्तिकता ही संजोये रहते है। कुछ कहने योग्य हाथ नहीं लगता एवं व्यक्तित्व के परिमापन के रूप में दृष्टिगोचर होने लगता है। कि वस्तुतः अध्यात्म इनके जीवन में उतरा नहीं।
यह समझा जाना चाहिए कि वास्तविक अध्यात्म जब आँतरिक सफलताओं का पथ प्रशस्त करता है तो साधक को सम्पन्न सुसंस्कृत बनाता है। संपत्ति परक वैभव का भार घटता है। और उच्चस्तरीय पराक्रम उभरता है। इतिहास साक्षी हैं कि आत्म चेतना के विकास ने किसी को संपन्न नहीं बनाया वरन् समृद्धि को आदर्शों के लिए समर्पित करने एवं स्वयँ हल्का फुलका रहने के लिए बाधित करता है। महामानवों ने सदा से गरीबी का स्वेच्छा से वरण किया है और संचित वैभव का उदारतापूर्वक उस प्रायोजन के निर्मित समर्पण किया है। वास्तविक अध्यात्म यही है जो महत्वाकाँक्षाओं लिप्साओं की कटौती करना सिखाता है, जिससे लोक मंगल की भगवत् उपासना करने के लिए अपना सब कुछ नियोजित हो सकें। यह मर्म समझ में आ जाने पर यथार्थता की संपदा पा लेने पर आत्मिक प्रगति के पथ पर चल पड़ने में किसी को संशय नहीं करना चाहिए।