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हम ईश्वर के होकर रहें
लोभ हमें अंधा करता है
सावधान! मनुष्य के हमशक्ल तैयार होने जा रहे हैं
नियति की चुनौती को स्वीकार कीजिए
जीवन की राह ऐसे बदली
वेदों का प्राकट्य कालः एक अनुसंधान
विवेक का वरदान
प्रेतात्माओं को मित्र बनाकर तो देखिए
हिन्दू शब्द का मर्म
बड़ी विलक्षण है स्रष्टा की अनुशासित विधि-व्यवस्था
भावभरी पुकार को सुनता है भगवान्
झुकाव बढ़ रहा है आध्यात्मिक साम्यवाद की ओर
संवेदना का निर्मल् सरोवर है कलाकार का अंतःकरण
पश्चिम का विकासवादः एक थोथी कल्पना
चेतना की स्थिति के द्योतक होते हैं रंग
एक नतर्की का बलिदान
अपनाएँ विधेयात्मक जीवन-शैली को
धर्म का सही स्वरूप समझें, उनकी रक्षा करें
समाज को तोड़ दिया है बुद्धिमत्त की मूखर्ता ने
श्रम-साधना का सम्मान
नैष्ठिक साधक इतना तो करें ही
ब्रह्मवचर्स की प्रयोगशाला की विशिष्टता सर्वागपूर्ण मनोविज्ञान
परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
आस्था क्षेत्र के दो प्रधान संकट
प्रतिभा नाई नहीं, कमाई जाती है
प्रज्ञापराध के कारण ही बढ़ रहे हैं रोग एवं शोक
इतिहास पुरुष बनने का समय आ गया है
इक्कीसवीं सदी अपनी-अपनी
जिज्ञासाएँ आपकी-समाधान हमारे
अपनों से अपनी बात-युगान्तरीय चेतना का आलोक विस्तार
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Meditation
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AMRITVANI
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-
Year 1997 - Version 1
Media: SCAN
Language: HINDI
प्रज्ञापराध के कारण ही बढ़ रहे हैं रोग एवं शोक
First
52
54
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Other Version of this book
Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...
Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
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लोभ हमें अंधा करता है
सावधान! मनुष्य के हमशक्ल तैयार होने जा रहे हैं
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इक्कीसवीं सदी अपनी-अपनी
जिज्ञासाएँ आपकी-समाधान हमारे
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