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निजत्व के निखार की साधना निजत्व के निखार की साधना निजत्व के निखार की साधना
सच्चे अर्थों में महाराजा
आत्मबोध ही है आध्यात्मिक कायाकल्प
कीट से ऋषि तक की यात्रा
क्या ऋषि तंत्र सिखाएँगे मानव को अब चेतना का महत्त्व
समूचा ब्रह्माण्ड एक चैतन्य शरीर
लघु में समाया महान का वैभव
चित्त के त्याग से ही सर्वस्व का त्याग
योग साधना का ज्ञान- विज्ञान
मानव मात्र का एक ही देवालय
आत्मविज्ञान की ही तो सही जानकारी हो
मौन साधें, अंतः को निखारें
भगवान बचाते आए हैं , सदा से भक्तों की लाज
संजीवनी है आत्मविश्वास
चरम विकास का द्वार है आज्ञा चक्र
भक्ति में है अपार शक्ति
भारत जगदगुरु पुनः इसी आधार पर बन सकेगा
शिष्यत्व पैदा करने वाली महाक्रान्ति
हँसती- हँसाती हल्की- फुलकी जिन्दगी है समाधान
अबला नहीं , रणचण्डी
न ये संयोग हैं न अपवाद
मृत्यु अन्त नहीं, एक अविरल प्रवाह
अहं व विद्वेष हैं अन्ततः घातक ही
प्रार्थना का स्वरुप , स्तर और प्रभाव
ईश्वर विश्वास ही दृढ़ करता है आत्मबल को
परम पुज्य गूरूदेव की अमृतवाणी-आप का विवाह हम भगवान से करना चाहते हैं
अपनों से अपनी बात- एक दिव्य महापुरश्चरण के समापन की पूर्व वेला में एक अभिनव उपक्रम
अपनों से अपनी बात-२, असीम-अनन्त विस्तार होने जा रहा है नवयुग की गंगोत्री
वासंती-साध (कविता) -मंगल विजय
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-
Year 1999 - Version 1
Media: SCAN
Language: HINDI
अपनों से अपनी बात-२, असीम-अनन्त विस्तार होने जा रहा है नवयुग की गंगोत्री
First
56
58
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Other Version of this book
Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...
Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
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