Magazine - Year 2001 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
महायोगी परम पूज्य गुरुदेव
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
महायोगी परम पूज्य गुरुदेव की अवतार लीला योग का परम प्रमाण है। उनकी जीवन कथा के प्रत्येक पृष्ठ में योग की दुर्लभ एवं रहस्यमयी साधनाएँ प्रकट व जीवन्त हुई हैं। पन्द्रह वर्ष की आयु में अपने मार्गदर्शक से प्रथम मिलन के पश्चात् महाप्रयाण दिवस तक उनकी प्रत्येक श्वास योग साधना के लिए समर्पित रही। वसन्त पंचमी 1926 ई. से गायत्री जयंती 1990 ई. तक उनके जीवन का हर वर्ष, हर माह, हर दिन और हर क्षण योग में बीता।
इस योग से अनुभूतियों एवं उपलब्धियों की जो अमृत वर्षा हुई, उसने केवल उन्हें ही नहीं, बल्कि उनकी अन्तरात्मा से जुड़े समस्त परिकर को छुआ, अभिसिंचित किया। लाखों-लाख जन कृतार्थ और कृतकृत्य हुए। इन कृतार्थ होने वालों में आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञासु और ज्ञानी सभी रहे। सभी को उसकी पात्रता के अनुसार सुफल मिला। परन्तु एक सत्य को सभी ने अनुभव किया, कि महायोगी भगवत् सत्ता का जीवन्त विग्रह होता है। भगवान् उसमें स्वयं विराजते हैं और उसके चिन्तन, चरित्र व व्यवहार के माध्यम से हर पल प्रकट होते हैं।
महायोगी की सत्ता देह तक सिमटी नहीं रहती। देह तो बस इतना बताती है कि जिसकी सुगन्ध चहुँ ओर बिखर रही है, वह पुष्प यहीं जन्मा। योग का यह पुष्प अविनश्वर है और तदनुसार उसकी सुगन्ध भी अविनाशी है। तभी तो महायोगी गुरुदेव ने अपने शिष्यों को चेताया- हम बिछुड़ने के लिए नहीं जुड़े। हमारे योग की तरह हमारा मिलन भी शाश्वत है।
उन्होंने अपने सभी परिजनों, शिष्यों के सामने स्वयं अपना उदाहरण देते हुए कहा- सतत् योग साधना करते हुए अपनी पात्रता विकसित करो। चिन्तन से ज्ञानयोगी बनो, चरित्र से भक्तियोगी और व्यवहार से कर्मयोगी। फिर तुम पर भी वैसी ही अनुभूतियों एवं उपलब्धियों की वर्षा होगी, जैसे कि मुझ पर हुई है। उनके इस अनुशासन को मानकर योग साधना में लगे हुए शिष्य समुदाय के लिए उनका एक ही आश्वासन है- ‘न में भक्तः प्रणश्यति’ मेरे भक्त का कभी नाश नहीं होता।