Magazine - Year 2003 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
साधना की पूर्ति हेतु (kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
एक व्यक्ति अपने बच्चों को अनाथ छोड़कर एक रात्रि घर से भाग गया। निकला, आत्मकल्याण के लिए। किसी संत के पास जाकर वह भगवत् प्राप्ति का उपाय पूछने लगा। उस व्यक्ति ने अपने त्याग की कहानी सुनाते हुए यों कहा−
“ मेरी पत्नी उस समय सो रही थी, एकाएक बच्चा चीखा, तो मुझे लगा अब पत्नी जाग पड़ेगी और मेरा घर से निकलना कठिन हो जाएगा, पर पत्नी ने बच्चे को छाती से लगाया और बच्चा चुप हो गया। मैं चुपचाप निकल आया। महात्मन् अब संसार की मोह−माया में फँसना नहीं चाहता।”
साधु बोले, “ मूर्ख, भगवान तो तेरे घर में ही बैठे हैं, जिन्हें तू छोड़ आया। जा, जब तक तू उनकी सेवा नहीं करेगा, तब तक तेरा उद्धार नहीं होगा। पहले परिवार को सँभाल, अपने कर्त्तव्यों को पूरा कर, फिर सोचना कि पारिवारिक दायित्वों को निबाहते हुए तेरा आत्मकल्याण का लक्ष्य पूरा हुआ या नहीं? अध्यात्म भगोड़ों का नहीं, शूरवीरों को साथ देता है। परिवार में रहते हुए भी तेरी साधना पूरी होती रह सकती है। त्याग करना ही है तो अंतः के विकारों एवं भ्रम−जंजालों को कर।” व्यक्ति ने वास्तविकता समझी एवं लौट पड़ा अपने घर को, अपनी व्यावहारिक साधना की पूर्ति हेतु।