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सत्संग
धर्मग्रंथ ही नहीं, जीवनग्रंथ भी है गीता
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत
धर्मपथ पर अडिगता से चलने का समय
समृद्धि संपदा का संग्रह नहीं है
अज्ञान के अँधेरे को मिटाते हैं गुुरु
वर्तमान में जिएँ भयमुक्त रहें
योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः
अनमोल हैं सत्संग के प्रभाव
आत्मीयता का विस्तार है प्रेम
अहिंसा जन्मे तो भावशून्यता मिटे
वे आदिशक्ति परमेश्वरी ही ब्रह्म हैं
शूरवीरों के लिए है अध्यात्म का पथ
सकारात्मक हो सोच तो बदलता है जीवन
आचरण का सिखाया सीखता है युवा
एकांत में होता है रचनात्मकता का जन्म
वीरों का आभूषण है क्षमा
श्रद्धा-निष्ठा से गुरुदेव को सुनकर तो देखो
आवश्यक है प्राणों का संतुलन
बौद्ध पर्यटन के सांस्कृतिक प्रभाव
विदेह धारणा से होता है क्षीण देहबोध का भाव
दृश्य परिवर्तन का आ पहुँचा समय
देवदुर्लभ है जो कुछ भक्त के लिए सुलभ है वह सब
चेतना की शिखर यात्रा-संक्रमण का दौर
अमृतवाणी-सृजनसैनिकों को दिशा निर्देश
देवभूमि में देववाणी पर हुई परिचर्चा
अपनों से अपनी बात-भारत देश के जगद्गुरु पद पर आरूढ़ होने का पर्व
ऋषिसत्ता के राजदूत हम (कविता)
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-
Year 2015 - v1
Media: SCAN
Language: HINDI
देवभूमि में देववाणी पर हुई परिचर्चा
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61
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Other Version of this book
v1
Type: SCAN
Language: HINDI
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उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत
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