Books - सावधानी और सुरक्षा
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
आत्म-रक्षा और नैतिकता
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
सावधानी और सुरक्षा का मुख्य उद्देश्य विरोधियों और दुष्ट प्रकृति के लोगों से आत्म-रक्षा और अन्य निर्बलों की रक्षा करना ही माना गया है । इस उद्देश्य से जो कार्य किए जाते हैं उनमें अनेकों बार विरोधाभास दिखलाई पड़ा करता है । जो कार्य कुटिल शत्रु के प्रयत्न को विफल करने के लिए आवश्यक होता है, वह अनेक बार अनैतिक जान पड़ता है और अनेक भोली प्रकृति के व्यक्ति ऐसे अवसर पर हिचकिचाकर कर्तव्यच्युत हो जाते हैं, जिसके फलस्वरूप उनको आपत्ति में फँस जाना पड़ता है । ऐसे लोग नैतिकता के वास्तविक स्वरूप से अनजान होते हैं । मनुष्य के कार्यों के भले या बुरे होने का निर्णय वास्तव में उसके उद्देश्य से किया जाता है । कार्यों के बाहरी स्वरूप से तो प्राय धोखा हो जाता है और लोग अच्छे कार्यों को भी निकृष्ट मान लेते हैं । सीधे-सीधे अवसरों पर तो सीधी-साधी प्रणाली से भली प्रकार काम चल जाता है । किसी भूखे-प्यासे की सहायता करनी है तो वह कार्य अन्न-जल दे देने से सीधे-सीधे तरीके से पूरा हो सकता है । इसी प्रकार किसी दुःखी या अभावग्रस्त को अभीष्ट वस्तुएँ देकर उसकी सेवा की जा सकती है । धर्मशाला, कुआँ, बाबडी़, बगीचा, पाठशाला, गौशाला, अनाथशाला, औषधालय, अन्न-क्षेत्र, सदावर्त, प्याऊ आदि के द्वारा लोक-सेवा की जाती है और यज्ञ, कथा, कीर्तन, सत्संग, उपदेश, सत्साहित्य आदि द्वारा जनहित किया जाता है । ऐसे कार्य निश्चय ही, श्रेष्ठ हैं और उनकी आवश्यकता एवं उपयोगिता सर्वत्र स्वीकार की जाती है ।
पर कई बार इस प्रकार की सेवा की बड़ी आवश्यकता होती है जो प्रत्यक्ष में बुराई मालूम पड़ती है और उसके करने वाले को अपयश ओढ़ना पड़ता है । इस मार्ग को अपनाने का साहस किसी में नहीं होता, विरले ही बहादुर इस प्रकार की दुस्साहसपूर्ण सेवा करने को तैयार होते हैं । दुष्ट और अज्ञानियों को उस कुमार्ग से छुड़ाना-जिस पर कि वे बड़ी ममता और अहंकार के साथ प्रवृत्त हो रहे हैं-कोई साधारण काम नही है । सीधे आदमी सीधे तरीके से मान जाते हैं उनकी भूल ज्ञान से तर्क से, समझाने से सुधर जाती है पर जिनकी मनोभूमि अज्ञानान्धकार से कलुषित हो रही है और साथ ही जिनके पास कुछ शक्ति भी है वे ऐसे मदान्ध हो जाते हैं कि सीधी-सादी क्रिया-प्रणाली का उन पर प्राय: कुछ भी असर नहीं होता ।
मनुष्य शरीर धारण करने पर भी जिनमें पशुत्व की प्रबलता और प्रधानता है ऐसे प्राणियों की कमी नहीं है । ऐसे प्राणी सज्जनता, साधुता और सात्विकता का कुछ भी मूल्यांकन नहीं करते । ज्ञान से, तर्क से, नम्रता से, सज्जनता से, सहनशीलता से, उन्हें अनीति के दुःखदायी मार्ग पर से पीछे नहीं हटाया जा सकता । पशु समझाने से नहीं मानता । उससे कितनी ही प्रार्थना की जाय शिक्षा दी जाय उदारता बरती जाय, वह इससे कुछ भी प्रभावित न होगा और न अपनी कुचाल छोड़ेगा । पशु केवल दो चीजें पहचानता है । एक लोभ दूसरा भय । दाना घास दिखाते हुए उसे ललचा कर कहीं भी ले जाइए वह आपके पीछे- पीछे चलेगा, या फिर लाठी का डर दिखाकर जिधर चाहे उधर ले जाया जा सकता है । भय या लोभ के द्वारा अज्ञानियों को कुमार्गगामियों को, पशुओं को, कुमार्ग से विरत और सन्मार्ग मैं प्रवृत्त कराया जा रुकता है ।
पर कई बार इस प्रकार की सेवा की बड़ी आवश्यकता होती है जो प्रत्यक्ष में बुराई मालूम पड़ती है और उसके करने वाले को अपयश ओढ़ना पड़ता है । इस मार्ग को अपनाने का साहस किसी में नहीं होता, विरले ही बहादुर इस प्रकार की दुस्साहसपूर्ण सेवा करने को तैयार होते हैं । दुष्ट और अज्ञानियों को उस कुमार्ग से छुड़ाना-जिस पर कि वे बड़ी ममता और अहंकार के साथ प्रवृत्त हो रहे हैं-कोई साधारण काम नही है । सीधे आदमी सीधे तरीके से मान जाते हैं उनकी भूल ज्ञान से तर्क से, समझाने से सुधर जाती है पर जिनकी मनोभूमि अज्ञानान्धकार से कलुषित हो रही है और साथ ही जिनके पास कुछ शक्ति भी है वे ऐसे मदान्ध हो जाते हैं कि सीधी-सादी क्रिया-प्रणाली का उन पर प्राय: कुछ भी असर नहीं होता ।
मनुष्य शरीर धारण करने पर भी जिनमें पशुत्व की प्रबलता और प्रधानता है ऐसे प्राणियों की कमी नहीं है । ऐसे प्राणी सज्जनता, साधुता और सात्विकता का कुछ भी मूल्यांकन नहीं करते । ज्ञान से, तर्क से, नम्रता से, सज्जनता से, सहनशीलता से, उन्हें अनीति के दुःखदायी मार्ग पर से पीछे नहीं हटाया जा सकता । पशु समझाने से नहीं मानता । उससे कितनी ही प्रार्थना की जाय शिक्षा दी जाय उदारता बरती जाय, वह इससे कुछ भी प्रभावित न होगा और न अपनी कुचाल छोड़ेगा । पशु केवल दो चीजें पहचानता है । एक लोभ दूसरा भय । दाना घास दिखाते हुए उसे ललचा कर कहीं भी ले जाइए वह आपके पीछे- पीछे चलेगा, या फिर लाठी का डर दिखाकर जिधर चाहे उधर ले जाया जा सकता है । भय या लोभ के द्वारा अज्ञानियों को कुमार्गगामियों को, पशुओं को, कुमार्ग से विरत और सन्मार्ग मैं प्रवृत्त कराया जा रुकता है ।