व्यक्ति और परिवार निर्माण के पाँच स्वर्णिम सूत्र
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परिवार में शिक्षा, स्वच्छता, स्वस्थता, संपन्नता, शिष्टता, सहकारिता और सद्गुणों की आवश्यकता जरूर है, परन्तु इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण है धार्मिकता का वातावरण बनाना। युग ऋषि ने परिवार के बच्चों में संस्कार और सदस्यों में प्रेमभाव और आत्मीयता बढ़े इस उद्देश्य से पाँच स्वर्णिम सूत्र दिये हैं।
(१) पूजा स्थान में नमन वंदन- परिवार के सभी सदस्यों को नौकरी, व्यापार, धंधा पर जाने से पहले पूजा स्थान में गायत्री मंत्र के २४ जप करके नमन वंदन करके जाना चाहिए। बच्चे स्कूल जाते समय पाँच गायत्री मंत्र करके जायें।
(२) बलिवैश्व यज्ञ- घर में बने हुये भोजन में से बलिवैश्व यज्ञ करके बचा हुआ यज्ञावशिष्ट प्रसाद भोजन के साथ ग्रहण करें।
(३) बड़ों को प्रणाम- नित्य कर्म से निपटकर सभी छोटो को बड़ों को प्रणाम करना चाहिए ताकि उनके शुभ आशीर्वाद से दिन के कार्यों का शुभारंभ हो।
(४) सामूहिक प्रार्थना- नित्य सूर्य भगवान् को अर्घ्य प्रदान करना। (एक लोटा जल चढ़ाना) तुलसी क्यारी पर दीया जलाना और नमन वंदन करना। नित्य न हो सके तो सप्ताह में एक दिन पाँच दीपक जला करके सामूहिक प्रार्थना, हे प्रभो हमें सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें।
(५) पारिवारिक सत्संग- सप्ताह में एक बार परिवार के सभी सदस्य मिल जुलकर स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था बनायें। सत्संग में परिवार के सभी स्वजनों को अपने विचार व्यक्त करने का मौका देना चाहिए।
अपने प्रत्येक घर में तुलसी का गमला या क्यारी में सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। इससे घर में आस्तिकता का वातावरण बनेगा। पूजा स्थान में परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ बैठने से सामूहिकता और पारिवारिकता की भावना का विकास होगा।
जयपुर में एक ७५ सदस्यों का संयुक्त परिवार रह रहा है। उस परिवार के मुखिया से मैंने पूछा- दादाजी इसका क्या रहस्य है? दादाजी बोले परिवार में प्रतिदिन बलिवैश्व हो रहा है और परमात्मा को समर्पित करके ही सब सदस्य भोजन कर रहे हैं। और सबसे अंत में मैं स्वयं भोजन करता हूँ।
हमारे घर में रसोई घर एक है। सबके कमरे अलग- अलग हैं। बच्चों के पढ़ने के कमरे अपनी- अपनी कक्षा के अनुसार हैं। पूजा घर एक है। सब सदस्य पूजा घर में पाँच गायत्री मंत्र जप करके, प्रातःकाल बड़ों को नमन- वंदन करके अपने- अपने काम पर जाते हैं। हमारे घर की एकता का रहस्य बलिवैश्व यज्ञ ही है। बिना बलिवैश्व भोजन नहीं और स्वाध्याय बिना शयन नहीं यह सूत्र परम पूज्य गुरुदेव ने सबके लिए समान रूप से दिये हैं।
पारिवारिक लड़ाई- झगड़े का कारण साथ बैठकर भोजन न करना, साप्ताहिक सत्संग एवं स्वाध्याय न करना है। छोटे बड़ों का मान- सम्मान न करें और सबसे अहम् बात यह है कि जिस घर में बलिवैश्व न होता हो
बिहार दरभंगा जिले में एक परिवार में पैतृक सम्पत्ति के बँटवारे को लेकर भयंकर झगड़ा- झंझट हो रखा था। सारा परिवार अशांत था और घर के सब सयाने लोग चिंतित थे। उस कस्बे में हमारी शान्तिकुञ्ज की टोली कार्यक्रम हेतु पहुँची और हमारे स्थानीय कार्यकर्ताओं ने उन्हीं के यहाँ टोली को ठहराया था। हवेली बहुत बड़ी थी।
रात्रि को कार्यक्रम समाप्त होने पर परिवार के वृद्ध सज्जन टोली नायक से मिले और अपने परिवार में पैतृक सम्पत्ति के बटवारे हेतु भयंकर अशान्ति की बात बताई। टोली नायक ने पूछा- बाबू जी घर में भोजन कौन बना रहा है? बड़ी बहू। बड़ी बहू से टोली नायक ने पूछा- क्या आप परिवार में सहकारिता, शान्ति और समृद्धि चाहती हो? बोली- हाँ जी! तो आप नित्य बलिवैश्व करके ही सबको भोजन दो। छः माह के बाद पूरा परिवार शान्तिकुञ्ज आया और बताया कि हमारे परिवार में सुख, शान्ति हो गई और सब सदस्य कहते हैं, हमें सम्पत्ति नहीं चाहिए। अब सभी भाई एक दूसरों को देने के लिए लड़ा करते हैं अतः परिवार की सुख, शान्ति का रहस्य है- बलिवैश्व यज्ञ।
परम पूज्य गुरुदेव का आश्वासन
युगऋषि, युगद्रष्टा परम पूज्य गुरुदेव पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जीने कहा -सबके लिए सद्बुद्धि और सत्कर्म की प्रेरणा देने वाले यज्ञ नारायण को मैं व्यापक बनाकर घर- घर में यज्ञ का पूजन कराना चाहता हूँ। आप उसके प्रचार- प्रसार में हमारे सहयोगी बनें। आपको आपके गाँव और इलाके में भी इस अभियान को चलाना है। यज्ञ छोटे हों या बड़े पर भारतवर्ष में यज्ञों की हवा फैलेगी। वातावरण बनेगा। उसमें आपके सहयोग और सहायता की जरूरत है। अगर आप सहयोग और सहायता करेंगे तो खाली हाथ नहीं रहेंगे, मालामाल हो जायेंगे। प्रत्येक घर में बलिवैश्व के रूप में यज्ञ भगवान् की स्थापना करो और उसकी लुप्त परंपरा पुनः स्थापित हो जाय इसलिए प्राण- प्रण से यत्नं करो।
(अखण्ड ज्योति जुलाई ९७) बलिवैश्व का स्वरूप छोटा हैं, पर प्रेरणाएँ बहुत बड़ी हैं। यज्ञ बड़ा या छोटा बलिवैश्व हो परन्तु उसे घर- घर में चलाना है। गायत्री परिवार का यह अभियान विशुद्ध रूप से उत्तम नागरिकों की खदान साबित होगा। इससे राष्ट्र की बड़ी सेवा होगी।
परम पूज्य गुरुदेव आश्वासन देते हैं ‘‘इस यज्ञ अभियान में शामिल होने वाले गायत्री परिवार के परिजनों का जो समय लगेगा, श्रम लगेगा, पैसा लगेगा- हम आपको यकीन दिलाते हैं कि उसका सौगुना होकर आप लोगों को घूम फिर के वापस मिलेगा। आप उससे भी ज्यादा शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, आर्थिक और आध्यात्मिक लाभ उठायेंगे। आपको हम यकीन दिलाते हैं कि इस यज्ञ अभियान से आप को सब तरह के लाभ होंगे’’।
(१) पूजा स्थान में नमन वंदन- परिवार के सभी सदस्यों को नौकरी, व्यापार, धंधा पर जाने से पहले पूजा स्थान में गायत्री मंत्र के २४ जप करके नमन वंदन करके जाना चाहिए। बच्चे स्कूल जाते समय पाँच गायत्री मंत्र करके जायें।
(२) बलिवैश्व यज्ञ- घर में बने हुये भोजन में से बलिवैश्व यज्ञ करके बचा हुआ यज्ञावशिष्ट प्रसाद भोजन के साथ ग्रहण करें।
(३) बड़ों को प्रणाम- नित्य कर्म से निपटकर सभी छोटो को बड़ों को प्रणाम करना चाहिए ताकि उनके शुभ आशीर्वाद से दिन के कार्यों का शुभारंभ हो।
(४) सामूहिक प्रार्थना- नित्य सूर्य भगवान् को अर्घ्य प्रदान करना। (एक लोटा जल चढ़ाना) तुलसी क्यारी पर दीया जलाना और नमन वंदन करना। नित्य न हो सके तो सप्ताह में एक दिन पाँच दीपक जला करके सामूहिक प्रार्थना, हे प्रभो हमें सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें।
(५) पारिवारिक सत्संग- सप्ताह में एक बार परिवार के सभी सदस्य मिल जुलकर स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था बनायें। सत्संग में परिवार के सभी स्वजनों को अपने विचार व्यक्त करने का मौका देना चाहिए।
अपने प्रत्येक घर में तुलसी का गमला या क्यारी में सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। इससे घर में आस्तिकता का वातावरण बनेगा। पूजा स्थान में परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ बैठने से सामूहिकता और पारिवारिकता की भावना का विकास होगा।
जयपुर में एक ७५ सदस्यों का संयुक्त परिवार रह रहा है। उस परिवार के मुखिया से मैंने पूछा- दादाजी इसका क्या रहस्य है? दादाजी बोले परिवार में प्रतिदिन बलिवैश्व हो रहा है और परमात्मा को समर्पित करके ही सब सदस्य भोजन कर रहे हैं। और सबसे अंत में मैं स्वयं भोजन करता हूँ।
हमारे घर में रसोई घर एक है। सबके कमरे अलग- अलग हैं। बच्चों के पढ़ने के कमरे अपनी- अपनी कक्षा के अनुसार हैं। पूजा घर एक है। सब सदस्य पूजा घर में पाँच गायत्री मंत्र जप करके, प्रातःकाल बड़ों को नमन- वंदन करके अपने- अपने काम पर जाते हैं। हमारे घर की एकता का रहस्य बलिवैश्व यज्ञ ही है। बिना बलिवैश्व भोजन नहीं और स्वाध्याय बिना शयन नहीं यह सूत्र परम पूज्य गुरुदेव ने सबके लिए समान रूप से दिये हैं।
पारिवारिक लड़ाई- झगड़े का कारण साथ बैठकर भोजन न करना, साप्ताहिक सत्संग एवं स्वाध्याय न करना है। छोटे बड़ों का मान- सम्मान न करें और सबसे अहम् बात यह है कि जिस घर में बलिवैश्व न होता हो
बिहार दरभंगा जिले में एक परिवार में पैतृक सम्पत्ति के बँटवारे को लेकर भयंकर झगड़ा- झंझट हो रखा था। सारा परिवार अशांत था और घर के सब सयाने लोग चिंतित थे। उस कस्बे में हमारी शान्तिकुञ्ज की टोली कार्यक्रम हेतु पहुँची और हमारे स्थानीय कार्यकर्ताओं ने उन्हीं के यहाँ टोली को ठहराया था। हवेली बहुत बड़ी थी।
रात्रि को कार्यक्रम समाप्त होने पर परिवार के वृद्ध सज्जन टोली नायक से मिले और अपने परिवार में पैतृक सम्पत्ति के बटवारे हेतु भयंकर अशान्ति की बात बताई। टोली नायक ने पूछा- बाबू जी घर में भोजन कौन बना रहा है? बड़ी बहू। बड़ी बहू से टोली नायक ने पूछा- क्या आप परिवार में सहकारिता, शान्ति और समृद्धि चाहती हो? बोली- हाँ जी! तो आप नित्य बलिवैश्व करके ही सबको भोजन दो। छः माह के बाद पूरा परिवार शान्तिकुञ्ज आया और बताया कि हमारे परिवार में सुख, शान्ति हो गई और सब सदस्य कहते हैं, हमें सम्पत्ति नहीं चाहिए। अब सभी भाई एक दूसरों को देने के लिए लड़ा करते हैं अतः परिवार की सुख, शान्ति का रहस्य है- बलिवैश्व यज्ञ।
परम पूज्य गुरुदेव का आश्वासन
युगऋषि, युगद्रष्टा परम पूज्य गुरुदेव पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जीने कहा -सबके लिए सद्बुद्धि और सत्कर्म की प्रेरणा देने वाले यज्ञ नारायण को मैं व्यापक बनाकर घर- घर में यज्ञ का पूजन कराना चाहता हूँ। आप उसके प्रचार- प्रसार में हमारे सहयोगी बनें। आपको आपके गाँव और इलाके में भी इस अभियान को चलाना है। यज्ञ छोटे हों या बड़े पर भारतवर्ष में यज्ञों की हवा फैलेगी। वातावरण बनेगा। उसमें आपके सहयोग और सहायता की जरूरत है। अगर आप सहयोग और सहायता करेंगे तो खाली हाथ नहीं रहेंगे, मालामाल हो जायेंगे। प्रत्येक घर में बलिवैश्व के रूप में यज्ञ भगवान् की स्थापना करो और उसकी लुप्त परंपरा पुनः स्थापित हो जाय इसलिए प्राण- प्रण से यत्नं करो।
(अखण्ड ज्योति जुलाई ९७) बलिवैश्व का स्वरूप छोटा हैं, पर प्रेरणाएँ बहुत बड़ी हैं। यज्ञ बड़ा या छोटा बलिवैश्व हो परन्तु उसे घर- घर में चलाना है। गायत्री परिवार का यह अभियान विशुद्ध रूप से उत्तम नागरिकों की खदान साबित होगा। इससे राष्ट्र की बड़ी सेवा होगी।
परम पूज्य गुरुदेव आश्वासन देते हैं ‘‘इस यज्ञ अभियान में शामिल होने वाले गायत्री परिवार के परिजनों का जो समय लगेगा, श्रम लगेगा, पैसा लगेगा- हम आपको यकीन दिलाते हैं कि उसका सौगुना होकर आप लोगों को घूम फिर के वापस मिलेगा। आप उससे भी ज्यादा शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, आर्थिक और आध्यात्मिक लाभ उठायेंगे। आपको हम यकीन दिलाते हैं कि इस यज्ञ अभियान से आप को सब तरह के लाभ होंगे’’।