Books - भगवान का काम, घाटे का सौदा नहीं
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भगवान का काम, घाटे का सौदा नहीं
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गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात।
देवियों, भाइयों! यह समय बहुत ही संकटमय है। हर जगह असुरता छाई हुई है। इस समय ताड़का, कुंभकरण, सुबाहु- सभी अपना तांडव नृत्य दिखा रहे हैं। इस समय महान व्यक्तियों को महान कार्य करना है। हर युग में ऐसे व्यक्तियों ने विशेष काम किया है। बड़े आदमी ही बड़े काम कर सकते हैं। छोटे आदमी छोटे काम कर सकते हैं। बड़े काम करने के लिए आत्मा को जगाना पड़ता है, उसे गरम करना पड़ता है। छोटे आदमी बड़े काम नहीं कर सकते। हाथी जो काम कर सकता है, छोटे जीव- जंतु उसे नहीं कर सकते। सामान्य जीव का केवल उद्देश्य होता है- पेट एवं प्रजनन। परंतु असामान्य व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता। उसके अंदर एक हलचल होती है, एक हूक उठती है। समय की पुकार को वह अनसुनी नहीं कर सकता, संकटों से जूझने के लिए उठ खड़ होता है।
महर्षि विश्वामित्र राजा दशरथ के पास पहुँचे। उन्होंने कहा कि यह असामान्य समय है। इन बच्चों का यदि आप भविष्य बनाना चाहते हैं इन्हें देवता बनाना चाहते हैं, तो इन्हें हमें सौंप दीजिए। दशरथ ने कहा- 'जैसा आपका आदेश।" विश्वामित्र उन बच्चों को ले गए तथा शुरू से अंत तक उन बच्चों ने असामान्य काम किया। असामान्य समय में असामान्य व्यक्ति असामान्य काम करता है। राम तथा लक्ष्मण ने असामान्य जीवन जिया। वे सिद्धान्तवादी तथा आदर्शवादी थे। ऐसे ही व्यक्ति समाज को नई दिशा देते हैं तथा लोग उनके बनाए रास्ते पर चलते हैं।
अगली पंक्ति में बैठने तथा काम करने के लिए मौका केवल असामान्य व्यक्तियों को मिलता है। वे ही असामान्य समय को पहचान पाते में हैं। सामान्य आदमी को तो विशेष समय दिखाई ही नहीं पड़ता। गुरुगोविन्द सिंह जी को विशेष समय दिखाई पड़ा। वे असामान्य आदमी थे। उन्होंने देखा कि यह देश गुलामी की जंजीरों से कैसे छुटकारा पा सकता है? उन्होंने सोचा कि हर व्यक्ति अपने- अपने बच्चों को बहादुर सैनिकों की तरह बनाता और उनसे साहस का काम कराता, तो समाज में एक आदर्श उपस्थित होता। उन्होंने इस आवश्यकता को समझा और सोचा कि उसकी शुरुआत अपने आप से करनी चाहिए। पराये बच्चों को माँगने से पहले अपने बच्चों को इस काम में लगा देना उचित होगा। ऐसा सोचकर उन्होंने एक, दो, तीन, चार- इस तरह सभी बच्चों को बारी- बारी से उस आंदोलन के लिए अर्पित कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि चार लाख आदमियों ने गुलामी की जंजीरों से मुक्ति के लिए उस आन्दोलन में अपने आप को झोंक दिया। उन्होंने दम तब लिया जब आंदोलन में गरमी आ गई।
असामान्य बने, अवसर को पहचाने
मित्रो! आजादी का आंदोलन कहीं से शुरू हुआ? पंजाब से शुरू हुआ था। पंजाब के राजा रणजीत सिंह सबसे पहले राजा थे, जिन्होंने इस आजादी के आंदोलन में अपना सहयोग सबसे पहले दिया था तथा आजादी की लड़ाई को गति प्रदान की थी। इसके खाद अन्य लोग आते गए। यह काम जबरदस्ती से नहीं होता है, वरन लोगों के भीतर एक हूक पैदा होती है और लोग स्वेच्छा से अपनी कुरबानी देते हैं। गाँधी जी ने अपने आप को अर्पित किया उसके बाद लाखों आदमी उनके साथ आ गए। गाँधी जी सभी आंदोलनों में आगे रहे। गाँधी जी के जेल जाने के बाद सारे देश में आग लग गई। स्वराज्य आंदोलन कहीं से शुरू हुआ? अपने आप से शुरू हुआ। आपत्तिकाल की समस्या का हल केवल अपने आप से ही संभव है। ऐसा साहस भरा कार्य वे असामान्य आदमी ही कर पाते हैं, जो असामान्य समय को पहचानते हैं।
मित्रो, असामान्य आदमी स्वयं आगे चलकर समाज को यह बतलाता है कि यह महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। इसके लिए कुरबानी देनी चाहिए, तो लोग आकर कार्य करते हैं। ऐसा साहस असामान्य आदमी ही कर सकता है। व्यक्ति पहले इस आदमी को परखते हैं कि यह मजबूत आदमी है, सिद्धांत का आदमी है और कसौटी पर खरा सिद्ध होने के पश्चात् उसके कहने पर आगे आते हैं। भगवान बुद्ध के जो सबसे प्यारे शिष्य थे, सबसे पहले उनको अपना घर- बार छोड़ने के लिए निवेदन किया गया था। अगर भगवान बुद्ध ने केवल लोगों को आशीर्वाद से धन व बच्चे दे दिए होते, तो सारे विश्व में जो धर्मचक्र प्रवर्तन की क्रांति हुईं, शायद वह न हुई होती।
ऋषि क्या करते थे? क्या वे माला घुमाते थे? नहीं बेटे, वे माला नहीं घुमाते थे, वरन वे सारे दिन समाज की सेवा किया करते थे। आज तो जो सबसे घटिया काम है, उसके लिए लोग आगे आते हैं। महान कार्य करने की किसी की भावना ही नहीं है। तपस्वी, संत, ऋषि जो सबसे छोटा काम करते थे सेवा का, अगर आप भी करने लगें, तो आपके जीवन में भी चमत्कार आ जाएगा। उन्होंने व्यक्ति की, समाज की, देश और धर्म की, संस्कृति की सेवा की थी। लोगों के दुःख, तकलीफों को दूर किया था। भगवान बुद्ध ने एशिया को ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया को बदल दिया था। वे त्याग तपस्या की मूर्ति थे। आप नाटक का मुखौटा पहनकर हनुमान जी नहीं बन सकते हैं। उसके लिए त्याग करना पड़ता है। ऋषियों के अंदर सबसे महत्त्वपूर्ण एक बात होती है कि वे समय को पहचानते हैं। वे समय का परिचय प्राप्त कर अग्रिम पंक्ति में आ खड़े होते हैं तथा दूसरों को नसीहत देने से पहले अपने आप को इस योग्य बनाने का प्रयास करते हैं कि इसका प्रभाव समाज पर पड़ सके। इसके बाद ढेरों आदमी उस रास्ते पर चलना शुरू कर देते हैं।
युग निर्माण योजना की भी यही कहानी है। हमारे गुरु ने हमसे कहा कि चलना होगा और हम चले। इसके बाद लाखों लोग चलने लगे। लक्ष्मण का अनुकरण भरत ने किया। भरत का अनुसरण शत्रुघ्न ने किया। इस प्रकार रामचंद्र जी के अनुकरण का सिलसिला चल पड़ा। सारे के सारे लोग उनके अनुयायी हो गए। इसका परिणाम यह हुआ कि सारी प्रजा चल पड़ी। इसके फलस्वरूप रामराज्य की स्थापना हो गई।
मित्रो, दुनिया में एक ही तरीका है, जब असामान्य लोग असामान्य काम के लिए चलते हैं, तभी काम बनता है। इस दुनिया के अंतर्गत जो छोटे- छोटे व्यक्ति थे, जिनके अंदर प्राण था, जो जीवंत थे, उन्होंने ही आगे कदम बढ़ाया तथा उनके पीछे लोग चले। हमें महाराणा प्रताप का जीवन दिखाई पड़ता है। महाराजा राणाप्रताप को क्या कमी थी? उनके पास सभी चीजें थी। वे अच्छे खाते- पीते व्यक्ति थे, पर जब उनके भीतर स्वराज्य की भावना जाग्रत हुई, उन्होंने राजपाट छोड़कर जंगल का रास्ता पकड़ लिया। वे अपने बीबी- बच्चों को कहीं भी रख देते थे। थे तो वे राजा ही, चाहते तो उसके खाने पीने की व्यवस्था कहीं भी हो जाती, परंतु वे बहुत तबाह हुए, जंगलों में भटकते रहे, घास की रोटी खाते रहे, लेकिन अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ा। बंदा वैरागी जैसे लोग काम तरह तबाह हुए आप नहीं जानते हैं। उन दिनों कुछ लोगों ने अपनी लड़कियों की शादी मुगल राजाओं के साथ कर दी थी। वे अपने को राजपूत कहते थे और अपने को बड़ा राजा कहते थे। उसी जमाने में बहुत से ऐसे भी लोग थे, जो उन आक्रान्ताओं से लोहा ले लिया करते थे तथा अपने को कुरबान तक कर देने में कोई कमी नहीं रखते थे। उन्होंने अपने सारे परिवार के लोगों को इस आग में झोंक दिया, परंतु अपनी शान को नहीं दिया। वे असामान्य लोग थे, जिन्होंने परिस्थिति को समझा तथा मुकाबला किया।
कहीं आप 'समझदार' तो नहीं?
आप बहुत समझदार आदमी हैं? आप अगर समझदार नहीं होते, तो इस जमाने में जब सारी दुनिया मरने की तैयारी में बैठी है, उस समय आप लोभ, मोह, वासना, तृष्णा का जीवन जी रहे हैं। इसके साथ ही यह सोच रहे हैं कि हमें यह फायदा कैसे हो जाए, यह फायदा हो जाए? मित्रो, मैं यह कहना चाहता हूँ कि यह विशेष समय है, इसे पहचानने की कोशिश करें। अगर आपकी आँखें हैं तो देखे, अगर नहीं हैं तो मैं क्या कह सकता हूँ? मैं कुछ नहीं कहना चाहता हूँ। आप अध्यात्मवादी हैं, तो आपको कुछ करना चाहिए। आपको सिद्धि मिली है, मुक्ति मिली है, तो आपको समाज की सेवा करनी चाहिए।
आदमी को अध्यात्मवादी तब माना जा सकता है, जब वह दूसरों के दुःख- दर्द को बाँटकर उसे सुखी, प्रसन्न बनाने का प्रयत्न करे। ऐसे व्यक्ति को दूसरों के दुःख- दर्द को दूर करने के लिए बलिदान होना पड़ता है। अतः आपको भी अपने आप को तपाना चाहिए। जप करना चाहिए परंतु उस शक्ति को, उस ऊर्जा को समाज के कष्ट के, दुःख- दर्द के निवारण के लिए बाँट देना चाहिए, तभी आप संत, ऋषि कहला सकते हैं।
हमने हमेशा प्यार ही बाँटा है और चाहते है कि आप भी प्यार बाँटे, हम एक संत हैं तथा संत परंपरा के अनुसार हमारा नैतिक दायित्व है कि हम दूसरों की सहायता करें, उन्हें ऊँचा उठाएँ, उनकी प्रगति के रास्ते खोल दें। हमें अपने समीपवर्ती लोगों, पड़ोसियों का ध्यान रखना चाहिए। अगर किसी को बुखार हो तो हमें उसकी मदद करनी चाहिए और चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए। मित्रो, इसी तरह हमें उस समय का भी ख्याल रखना चाहिए जिसमें हम जी रहे हैं। उस समय में हमें आगे कहकर युग की समस्याओं को हल करना चाहिए।
हमें दिखाई देता है भविष्य
मित्रो, यह आपत्तिकालीन समय है। मानव जाति आज संकट के एक कगार पर खड़ी है। ऐसे कगार पर खड़ी हैं कि उसके किनारे अगर ढह गए तो वह औंधे मुँह सीधे खाईं में चली जाएगी तथा मनुष्य का बहुत बड़ा अहित होगा। इस प्रकार मनुष्य का भविष्य अंधकारमय है। ऐसी विषम परिस्थिति में असामान्य मनुष्यों को शांत नहीं बैठना है। यह आपत्तिकाल है। आपको तो दिखाई नहीं पड़ रहा है, परंतु हमें दिखाई पड़ रहा है। अच्छा भी हो सकता है, परंतु इसकी संभावना कम है।
यह आपत्तिकालीन समय है। इस समय वैज्ञानिक, बुद्धिजीवी तथा अर्थशास्त्री- तीनों मिलकर यानि अर्थ, विज्ञान और बुद्धि तीनों ने मिलकर ऐसी रचना की है, जिसे रावण, कुम्भकरण एवं मेघनाद की संज्ञा दी जा सकती है। बुद्धिवाद में ऐसी जकड़न आ गई है कि सिद्धान्तवादी, आदर्शवाद पूर्णतः समाप्त हो गया है। विज्ञान, बुद्धि और अर्थ तीनों ने मिलकर शालीनता की सीता का अपहरण कर लिया है। राम- लक्ष्मण रूपी धर्म- अध्यात्म, दोनों बिलखते हुए मारे- मारे फिर रहे हैं। इन तीनों ने न जाने कैसा- कैसा षड्यंत्र रच दिया है। आदमी प्यार को, आदर्श को, शालीनता को भुला बैठा है और मनुष्य कलेवर में पिशाच बन बैठा है।
आज परिस्थितियों इस तरह बनती जा रही हैं कि आदमी मरेगा, तबाह हो जाएगा। आज जनसंख्या इस कदर बढ़ रही है कि उसका क्या कहना? अगर यह इसी हिसाब से बढ़ती रही, तो एटम बम की कोई आवश्यकता नहीं होगी। आदमी भूख से, प्यास से तड़प- तड़पकर मर जाएगा।
मित्रों! परिवार में, खानदान में जितने अधिक सदस्य बहैंगे, उतनी ही मनुष्यों को परेशानियाँ आएँगी, वह परेशान होगा। आज के जमाने में जिसका जितना बड़ा परिवार है, वह उतना ही अधिक अशांत है
आज इस बारे में हर आदमी को यह विचार करना चाहिए कि कुटुंब बढ़ाने में हमें कोई फायदा नहीं है, वरन इसके द्वारा केवल बरबादी ही बरबादी है। जापानी इस मामले में विचार करते हैं। वे चाहते है कि बच्चे न हो।
आज सामाजिक सहयोग- सहकार का वातावरण समाप्त होता जा रहा है। आदमी इतना स्वामी लोभी होता जा रहा है, जिसे देखकर लगता है कि मानव जाति की मारी को सारी श्रेष्ठ परंपराएँ नष्ट होने वाली हैं। आदमी को दुश्मनों से डर लगे या न लगे, परंतु अपने कुटुंबीजनों से काफी भयभीत रहता है कि न जाने वे कब किस चक्कर में डाल सकते हैं, बरबाद कर सकते हैं। मित्रो, यह जमाना आता हुआ चला जा रहा है। आदमी मरे या जिए, यह मैं नहीं कहता, परंतु आदमी के भीतर जो आत्मीयता थी, मनुष्यता थी, वह नष्ट हो जाएगी, बढ़ती हुई जनसंख्या की वजह से, बढ़ते हुए विज्ञान की वजह से, बढ़ती हुई अक्ल की भरमार की वजह रो, आदमी की स्वार्थपरता की वजह से। हम और आप ऐसे ही बुरे समय में रह रहे हैं।
अगर इसी तरह की स्थिति बढ़ती चली गई, तो हमारा और आपका भविष्य बहुत अंधकारमय होता चला जाएगा। राजनीतिज्ञ जिस रास्ते पर आपको ले जा रहे हैं, यह हमें अंधकारमय लग रहा है। हमारे विद्वान आपको जिस रास्ते पर ले जा रहे हैं, वह हमें अंधकारमय लग रहा है। संत- महात्माओं की प्रवृत्ति और विचारों को देखकर तो हमें रोना आता है। उनके क्रियाकलापों को देखकर में काँप जाता हूँ और सोचता हूँ- हे भगवान! ये क्या कर रहे हैं?
आज जो दुनिया में मनुष्यता समाप्त हो रही है, आदमी के अंतर जो श्रेष्ठ माद्दा था, जो महानता थी, आदमी के भीतर जो देवत्व था आज वह समाप्त होता चला जा रहा है। आदमी के भीतर जो भगवान बैठा था, वह धूमिल होता चला जा रहा है। भगवान माने आदर्श,आदर्श माने श्रेष्ठ विचार। मित्रो, हमें जिस भगवान की आवश्यकता है, जो हमें ऊँचा उठाता है उसका नाम है- सिद्ध, आदर्श। उसका नाम है- मानवीय गरिमा, जो समाप्त होती चली जा रही है- ऐसे अधिकार को देखकर हमें दुःख होता है कि इसी प्रकार की यदि स्थिति रही, तो आगे आदमी, आदमी की जान का ग्राहक बन जाएगा। उसके जीवन में तबाही आएगी।
अब अगले दिनों यह होगा
मित्रो! उस समय आदमी, आदमी का खून पीएगा। आदमी, आदमी का मांस खाएगा। आदमी- आदमी को गिराएगा। आदमी, आदमी को दुःख देगा, परेशान करेगा। आदमी, आदमी का प्राण पीएगा। यह आपत्तिकाल का सपना जो हमने आपको दिखाया है, वह गलत नहीं है। इस समय पैसा, अक्ल, रोटी बागी, परंतु यही अक्ल, पैसा और रोटी अपने को खाएगी। इनसान परेशान हो जाएगा। अगले दिनों विश्वविद्यालय बहुत बनने वाले हैं, कारखाने बहुत बनने वाले हैं, परंतु हम आपको सावधान कर रहे हैं कि आने वाले समय में हर चीज की कीमत बढ़ने वाली है। हर चीज हमें मुश्किल से प्राप्त होगी। लोहे जैसी चीज का भी मूल्य बढ़ने वाला है। लोहे का मूल्य सोने के बराबर होगा। मुसीबत ही मुसीबत आने वाली है, यदि अभी से हम सचेत नहीं हुए तो।
इस आपत्तिकालीन समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है… आदमी का अध्यात्मिकता से जुड़ना। आध्यात्मिक पारस से जो जुड़े हैं, वे पारस बन गए। विवेकानन्द, दयानंद पारस बन गए। लोहे को परस से छुलाने पर वह सोना बनता है, कहा नहीं जा सकता, परंतु यह एक सचाई है कि आध्यात्मिक पारस से जुड़ने पर ही लोहे जैसा व्यक्ति सोना यानि प्राणवान, तेजवान, गुणवान, समृद्धिवान बन जाता है। उनकी अक्ल, आदर्श, सिद्धांत महान होते हैं। वे श्रेष्ठ व महान बन जाते हैं।
मित्रो, अमृत के बारे में हमें यह पता नहीं कि कोई मरने के समय पी ले तो वह बच सकता है ऐसा तो हमें सुना नहीं है। नहीं महाराज जी, शास्त्रों में, पुराणों में अमृत के बारे में बहुत लिखा है। बेटे, उसी के बारे में मैं कह रहा हूँ, जिसे पीकर लोग अजर अमर हो जाते है जैसे राजा हरिश्चन्द्र। गाँधी जी ने एक ड्रामा देखा और वे हरिश्चन्द्र हो गए। गाँधी जी मर गए? नहीं बेटे, गाँधी जी कैसे मर सकते है? ईसामसीह मर गए? नहीं बेटे, वे कैसे मर सकते हैं? भगवान बुद्ध मर गए? नहीं, वे नहीं मरे। वे अमर हो गए। कैसे व्यक्ति अमर होते हैं? ऐसे व्यक्ति जिनके अंदर शालीनता पैदा हो जाती है। आदर्श और सिद्धांत जिनके रोम- रोम में समा जाता है, वही व्यक्ति अमर हो जाते हैं।
पहचानिए तो कि आप कौन हैं?
यह समय आपत्तिकाल का है, जो एक और सुंदर सपने संजोए हुए हैं, तो दूसरी तरफ विनाश की लीला भी मुँह बाए खड़ी दिखाई पड़ रही है। आप दोनों के बीच में खड़े हैं। आपको यह दिखाई नहीं पड़ता है। आप कौन हैं? आप जाग्रत आत्मा हैं। हमने जो हार युगदेवता के लिए बनाया है, वह भगवान के इस बगीचे से अच्छे से अच्छे फूलों को लेकर बनाया है, ताकि अच्छी से अच्छी माला युगदेवता के चरणों में चढ़ाई जा सके। आपको हमने बडी मुश्किल से ढूँढ़ा है। आपने ढूँढ़ा है हमें? नहीं बेटे, आमने आपको ढूँढ़ा है। हमने अखण्ड ज्योति आपके पास भेजी थी है आपने मँगायी थी? नहीं, हमने भेजी थी। बेटे, जिस तरह राम- लक्ष्मण को लेने विश्वामित्र दशरथ के पास गए थे, वैसे ही हमने आपके बाप के पास जाकर आपको ढूँढ़ा है। आप समझते नहीं है कि हमने कैसे आपको ढूँढ़ा है। रामकृष्ण परमहंस विवेकानन्द के पास गए थे। वे कहते थे कि तू क्या करेगा, नौकरी करेगा? अरे हमारा काम हर्ज हो रहा है और तू नौकरी के फेर में पड़ा है। हम लोगों को मुक्त करने आए हैं। हमारा काम अलग है। हमारा 'जाब' अलग है। हम देश, समाज, राष्ट्र को दिशा देने आए हैं। तू नौकरी करने के लिए नहीं पैदा हुआ है। उनको रामकृष्ण परमहंस ने मज़बूर किया और वे चल पड़े।
बेटे, तू भी क्यों समझ रहा है। हम भी तुझे मजबूर कर रहे हैं। हमारे पास तू आता रहता है, परंतु मनोकामनाएँ लेकर आता है। अगर ऊँची तमन्ना लेकर आया होता, तो तू धन्य हो जाता। हम जब अपने गुरु के पास जाते हैं, तो हमारी तमन्नाएँ ऊँची रहती हैं तथा हम महान बन जाते हैं। वहाँ से हम महान बनकर आते हैं।
मित्रो, इस शिविर में आपको बुलाने के पीछे हमारा विशेष उद्देश्य सन्निहित था। आप कहते हैं कि हमें कुंडलिनी जागरण सिखा दीजिए, ब्रह्मवर्चस साधना सिखा दीजिए। हम अच्छी तरह से जानते हैं कि पूजा से, भजन से, सिद्धियों से तेरा क्या मकसद है? साधना से क्या मकसद है? यह मैं सब अच्छी तरह जानता हूँ। तू जो देखना चाहता है, वह तो मैं इसी तरह दिखा सकता हूँ। आपको पाने की लालसा कम है, सो सिखाने से काम चल सकता है। आप लोग सिद्धियों के नाम पर जो पाना चाहते हैं, उन चीजों को मैं दिखा दूँ, तो आपको संतोष हो जाएगा। वह चीजें जो आपको मिलेंगी, तो आप बरदाश्त नहीं कर सकेंगे। आप छोड़कर भाग जाएँगे।
साथियों, अगर असली भगवान आपको दिखा दूँ एवं असली भगवान से साक्षात्कार करा दूँ तो नारद जी की तरह से आपको अविवाहित रहकर काम करना पड़ेगा। बुद्ध की तरह से बीबी- बच्चों को छोड़कर जाना पड़ेगा। ऐसा भगवान आपको दिखा दूँ जो बुद्ध की तरीके से हाथ घसीटते हुए ले जाए। शंकराचार्य की तरह भी को छोड़कर ले जाए। ऐसा भगवान दिखा दूँ जो चाणक्य की तरह से वनवास में रहने के लिए मजबूर कर दे। ऐसा भगवान आपको दिखा दूँ जो समर्थ गुरु रामदास की तरह रो हाथ पकड़कर खींचता हुआ चला जाए आप कहेंगे कि ऐसा भगवान हमें नहीं चाहिए।
साथियों, मेरा उद्देश्य यह है कि जो असली ब्रह्मवर्चस का स्रोत है, उसे आप जानें। हमने इसलिए आपको बुलाया है कि यह विशेष समय है तथा आप महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हैं, इसलिए आपको बताने के लिए बुलाया है। हमारे गुरु ने भी हमें दिखा दिया था कि हम विशेष व्यक्ति हैं, जाग्रत आत्मा हैं। उन्होंने कहा कि तुम साधारण आदमी नहीं हो, तुझे असाधारण कार्य करना है। हमने यह महसूस कर लिया है कि हम एक साधारण आदमी की तरह नहीं रह सकते हैं। मैं चाहता था कि ऐसा सौभाग्य आपको भी मिल जाता। काश! मैं भी आपको दिखा पाता कि आप कौन हैं? आप एक सामान्य आदमी नहीं हैं, वरन असामान्य आदमी हैं। मैं चाहता था कि इस युग- परिवर्तन की संधिवेला में आप भी महत्त्वपूर्ण कार्य कर सके होते तो मजा आ जाता।
मेरे गुरु जितने सामर्थ्यवान हैं, उतना तो मैं नहीं हूँ। उन्होंने हमारे पिछले जन्मों को दिखा दिया था, लेकिन हम तो नहीं दिखा सकते कि आप पिछले जन्मों में क्या थे? आप जिस हैसियत का जीवन जी रहे हैं, वह आपके मुताबिक नहीं है, यह हम जरूर बता सकते हैं। आपकी महत्त्वाकाँक्षाएँ व्यक्तिगत जीवन के लिए नहीं होनी चाहिए। अगर कहीं रेलगाड़ी का एक्सीडेंट हो जाए तथा हजारों लोग कराह रहे हों, तो डॉक्टरों का यह कहना मुनासिब नहीं होगा कि हम सो रहे हैं तथा हमें समय नहीं है। आपको उन घायलों के लिए एक रात जागना चाहिए। एक रात जागने से आप मर नहीं सकते हैं; आपको इस जिम्मेदारी को समझना चाहिए तथा इसके लिए काम करना चाहिए।
बचा हुआ जीवन कहीं यों ही व्यर्थ न निकल जाए
मित्रो, हम आपसे यही कह रहे हैं कि आपके महत्त्वपूर्ण जीवन के एक एक दिन यों ही समाप्त होते जा रहे हैं, उसमें कुसंस्कार भरते जा रहे है। आपको यह समझना चाहिए तथा बचे हुए जीवन को समाज के लिए अर्पित करना चाहिए। लोग सोचते हैं कि बुढ़ापे में काम करेंगे, पर यह संभव नहीं है। उस समय कुसंस्कार कुछ करने नहीं देता है। हम बार बार यही कह रहे हैं कि यह विशेष समय है। इसमें आपको कुछ करना है;
हमारे गुरुजी ने हमें बुलाया एवं शक्ति प्रदान की, हमने भी आपको एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य हेतु यहाँ शिविर में बुलाया, ताकि आप आपत्तिकाल के समय को समझ सकें और आगे आकर कुछ करने को तैयार हो जाते, तो यह शिविर धन्य हो जाता और आप भी धन्य बन जाते। हनुमान जी ने रामचंद्र जी के लिए अपने आप को झोंका, तो वे सारी की सारी चीजें जो एक संत, तपस्वी को मिलनी चाहिए वह हनुमान जी को प्राप्त हो गई। हमारे बारे में भी यही बात है। हमने कितना तप किया, यह आप नहीं जानते हैं। हम चार घंटे केवल दूरी काम में खरच करते हैं, बाकी समय भगवान के कार्य में खरच करते हैं। हमने अपने आप को एक समर्थ सत्ता के साथ छोड़ दिया है। हम उनका काम करते हैं और वे हमारा काम करते हैं। हम दोनों आपस में गुँथे हुए हैं। मैं यह चाहता था कि हमारा और आपका संबंध भी हमारे गुरु की तरह होना चाहिए। मैं यह चाहता था कि इस शिविर के अंत तक आप एवं हम जरा नजदीक आ जाते तथा आपस में घुल- मिल जाते तो मजा आ जाता।
मित्रो, हमारा एवं हमारे गुरु का मिलना बड़ा ही महत्त्वपूर्ण रहा। हमारे गुरु की आकांक्षा- कामना जो भी हमारे प्रति रही होगी, हमने उसे पूरा करने का पूरा- पूरा प्रयास किया है। जब हम उन दोनों दिनों की अर्थात गुरु से जुड़ने से पूर्व एवं बाद के दिनों की समीक्षा करते हैं और देखते हैं, तो पाते हैं कि गुरु के आदेश पर जो जीवन हमने जीने का प्रयास किया है, वह ज्यादा फायदेमंद रहा है, लाभ का रहा है। अंधे लँगड़े की जोड़ी का अपना महत्त्व है। अंधे ने चलकर तथा लँगड़े ने देखकर सारा का सारा काम पूरा किया है। अंधे ने रास्ता तय किया तथा लँगड़े ने रास्ता दिखाया। मित्रो, आप एवं हम मिलकर अगर इस प्रकार कर पाते, तो कितना अच्छा होता। हम आपका सहयोग करते और आप हमारा सहयोग करते तो मजा आ जाता। आप तो यह कहते हैं कि गुरुजी आप ही हमारा सहयोग कीजिए। बेटे, यही बात आपके काम की नहीं है। आप हमेशा स्वार्थ की बातें कहते हैं। हम आपको आशीर्वाद दे, परंतु आप कुछ न दें तो फिर आपका काम नहीं चलेगा। किसी का रक्त किसी दूसरे के शरीर में लगा दिया जाए तो वह उस शरीर में केवल तीन दिन तक ही काम देता है। तीन दिन में ग्रहीता के शरीर का सिस्टम काम करने लगता है और वह व्यक्ति अपना काम कर लेता है। आपका सिस्टम जब तक काम नहीं करेंगा, हमारा आशीर्वाद काम नहीं करेगा। आप समझते नहीं हैं? दूसरे का आशीर्वाद एवं वरदान आपकी सामयिक आवश्यकताएँ तो पूरे कर सकते हैं परंतु आगे केवल आपका पुरुषार्थ, श्रम ही काम करेगा।
इस शिविर में पुनर्गठन के अंतर्गत हमने आपको एक योजना दी है। आप कहेंगे कि गुरुदेव क्या इसके बिना काम नहीं चलेगा? साथियों, आप समझते नहीं हैं कि इन दिनों हिंदुस्तान के सामने बहुत भी समस्याएँ हैं। हमने इन समस्याओं का हल अध्यात्म- शक्तियों के द्वारा निकालने का सोचा है। आध्यात्मिक शक्तियाँ ही आड़े समय में कारगर सिद्ध होती हैं। यही शक्तियाँ मनुष्य को बदलने जा रही हैं, युग को बदलने जा रही हैं। हम स्पष्ट रूप से देख रहे हैं कि युगद्रष्टा अपनी कलाकृति को, अपनी इस सुंदर दुनिया को नष्ट नहीं होने देगा। ऐसा समय इस सृष्टि पर बीसों बार आ चुका हैं जब भगवान यानि स्रष्टा तथा जीवंत आत्माओं ने सहयोग करके इस कार्य को पूरा किया है। आज भी वैसी ही स्थिति हैं, जिसमें आप जैसे मूर्द्धन्य आत्माओं को इस प्रकार का काम करना है।
यह घाटे का सौदा नहीं है
स्रष्टा अपने द्वारा हमेशा सृजन करता है। कहा गया है-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अथ्युत्थानधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
ऐसी परिस्थितियों में उस समय स्रष्टा तो अपना काम करता ही है परंतु वैसी संकटकालीन स्थिति में उनके सहयोगियों को भी काम करना पड़ता है। बड़े- बड़े जो काम होते हैं युग परिवर्तन जो होता है, महाक्रांतियाँ जो होती हैं, वह भगवान की इच्छा तथा शक्ति से होती हैं। हमें तथा आपको तो केवल निमित्त मात्र बनना है। अगर आप श्रेय लेने की स्थिति में हों, इस जमाने का महत्त्वपूर्ण कार्य करने की स्थिति में हों, तो हमारा एक ही निवेदन है कि आप हमारे साथ- साथ चलें, हमारे साथ आएँ। आपको घाटा नहीं पड़ेगा। चिंता मत कीजिए, यह घाटे का कोई सौदा नहीं है। मित्रो, कृपणता के अलावा कोई घाटे की वात नहीं होगी। यदि इस क्षुद्रता को आप लोग छोड़ दें तो फायदा ही फायदा है। मैं आपके भविष्य की गारण्टी ले सकता हूँ लेकिन आपकी क्षुद्रता एवं कृपणता की गारण्टी नहीं ले सकता। इसे छोड़ने की एवज में जो महानता तथा दूसरी चीजें मिलेगी वह बड़े की फायदे की होंगी।
इस शिविर में हमने आपको इसीलिए बुलाया था और बार- बार पूछा था कि क्या ऐसा करना संभव है? मैं जानता हूँ कि आपके पास अक्ल बहुत ज्यादा है, परंतु क्या आप हिम्मत कर सकते हैं? हम तो चाहते हैं कि आपकी अक्ल कम हो जाए, आपकी महत्त्वाकाँक्षाएँ कम हो जाएँ तथा आपकी भावना एवं अन्तरात्मा विकसित हो तो काम बन जाएगा। इसलिए आपको बुलाया था और आज विदा कर रहे हैं। आप हमारे आदर्श और सिद्धांत यहाँ से ले जाएँ तथा अपने चिंतन चरित्र को नए युग के निर्माण में लगा दें। मैं चाहता हूँ कि आपके सोचने के तरीके बदल जाएँ। आप नए युग के अनुरूप ढलते चले जाएँ। अभी तो आपने अपना सारा का सारा समय भौतिक आवश्यकताओं के लिए लगाया हैं। आपने तो जीवन केवल अपने लिए जिया है। आपने पूजा की है, लेकिन अगर आपने वास्तव में पूजा के स्थान पर भजन किया होता, सेवा -साधना की होती तो आपकी आँखों के अंदर से एक तेज दिखाई पड़ता। आपकी निगाहों के आमने जो भी आते, बदलते हुए चले जाते, परंतु आपने कभी भी इस तरह का प्रयास नहीं किया। नए युग के लिए अगर आप अपने चिंतन, भावना, चरित्र को लगा देते, तो आप तथा हम दोनों महान हो जाते। जैसे कि हमारे गुरु और हम हो गए।
मित्रो, हम आपसे यह निवेदन कर रहे थे कि आपकी पूजा यहाँ से जाने के बाद ऐसी चमके कि आपकी महत्त्वाकाँक्षाओं की पूर्ति करने की, माँगने की बात समाप्त हो जाए और आप निरंतर भगवान के लिए गलने की बात सोचने लगें। इसी उद्देश्य से आपको यहाँ बुलाया था। हम चाहते हैं कि समाज में एक−दूसरे से प्रेम करने की पद्धति आप प्रारंभ करें। आप पति−पत्नी आपस में प्रेम करें। हम चाहते थे कि आप यहाँ से भगवान को गोद लेकर जाएँ। आपके तीन बेटे हैं, तो आज से चार बच्चे मान ले। अगर बच्चे को फीस देते हैं, भोजन कराते हैं, तो भगवान को केवल अक्षत, फूल न चढ़ाएँ उनके लिए भी त्याग करें। देश, समाज, धर्म, संस्कृति के लिए आप अपने प्यार, अक्ल, भावना, श्रम, पैसे का एक हिस्सा यानि अंशदान देना चाहिए। हमने आपको अपने कुटुंब में सम्मिलित होते समय अंशदान, अभयदान की बातें बतलाई थीं। हम चाहते हैं कि आपको फूल, अगरबत्ती चढ़ाने की अपेक्षा आदर्शों के लिए, सिद्धांतों के लिए अंशदान देना चाहिए।
साथियों, आप यहाँ से जाएँ, तो एक नमूना बनकर जाएँ, ताकि समाज में आपका प्रभाव पड़े। आप जब लोगों को सिखाने जाएँगे, तो लोग यह पूछेंगे कि आप तो हमें प्यार, त्याग, श्रम, सेवा की बात बतला रहे हैं पर क्या आपने इसमें से कुछ ग्रहण किया है? अपने आप में धारण किया है? इसका जवाब दे देंगे, तो आपकी बात लाखों- करोड़ों आदमी मानेंगे। हमने जो लोगों को सिखाया है, बताया है, पहले उसे हमने अपने जीवन में धारण किया है। इसी का प्रभाव है कि लोग हमारी बातें मानते हैं। आप शिकायत करते है कि गुरुजी शाखा वाला ठंडा पढ़ गया। बेटे, तू अपने आप को गरम कर ले, सब तेरी बातों को मानेंगे तथा तेरे रास्ते पर चलेंगे। हम आपको युगसृजेता, प्रज्ञापुत्र के रूप में जाग्रत आत्मा, महामानव के रूप में देखना चाहते हैं। आप यहाँ से जाने के बाद अपनी वाणी के अंदर ब्रह्मतेज पैदा की। आप सभ्य आदमी की तरह से जीवनयापन कों। आप वकील हैं, तो आपको काले कपड़े पहनकर कार्य तो करना चाहिए, पर हृदय के अंतरंग की मिठास को भी विकसित करना चाहिए। आपको अपनी वाणी का, व्यवहार का, सभ्यता का विकास करना चाहिए।
आप यहाँ से जाएँ तो कुछ लेकर जाएँ। आप यहाँ आते हैं, तो कुछ लेकर जाएँ, बनकर जाएँ। हमारे पास जो लोग आते हैं और आपके बारे में पूछते हैं तो उनको हम क्या जवाब देंगे। आपके अंदर संयमशीलता, विनाश, सहिष्णुता आनी ही चाहिए, जीवन में हेर- फेर होना ही चाहिए। आपको जो कुछ भी मिला है, उसे केवल शरीर के लिए न खरच करके भगवान के लिए भी खरच करना चाहिए। आप माँ- बाप से चार आना कब तक माँगते रहेंगे। भगवान से माँगने की अपेक्षा भगवान को देने के लिए आगे आना चाहिए। गुरुजी से माँगने की अपेक्षा गुरुजी को देने के लिए आगे आना चाहिए। आपके कुर्ते के ऊपर तथा अतःकरण में ज्ञानयज्ञ की लाल मशाल जलनी चाहिए, ताकि भीतर का अंधकार दूर हो सके हमारे स्वार्थ में से कुछ परमार्थ के लिए उपयोग होना चाहिए। आप थोड़ा सा हिस्सा लोकहित के लिए जनकल्याण के लिए, आदर्शों के लिए निकालिए।
मित्रो,हमने इसीलिए यह शिविर बुलाया था। यह विशेष काल है, यह बतलाने के लिए आपको बुलाया था। पेट भरने और औलाद पैदा करने की समस्या तो जब से दुनिया बनी है, तब से रही है और रहेगी हैं यदि आप भी इसी में लगे रहेंगे तो यह जीवन बेकार हो जाएगा। उठिए जागिए और श्रेष्ठ कामों के लिए तनकर खड़े हो जाइए। इसी अध्यात्म को बतलाने के लिए हमने आपको बुलाया था, अगर आप समझ सकें, तो हमारा यह श्रम सार्थक हो जाएगा और आप भी धन्य को जाएँगे।
आज की बात समाप्त।
।। ॐ शांतिः।।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात।
देवियों, भाइयों! यह समय बहुत ही संकटमय है। हर जगह असुरता छाई हुई है। इस समय ताड़का, कुंभकरण, सुबाहु- सभी अपना तांडव नृत्य दिखा रहे हैं। इस समय महान व्यक्तियों को महान कार्य करना है। हर युग में ऐसे व्यक्तियों ने विशेष काम किया है। बड़े आदमी ही बड़े काम कर सकते हैं। छोटे आदमी छोटे काम कर सकते हैं। बड़े काम करने के लिए आत्मा को जगाना पड़ता है, उसे गरम करना पड़ता है। छोटे आदमी बड़े काम नहीं कर सकते। हाथी जो काम कर सकता है, छोटे जीव- जंतु उसे नहीं कर सकते। सामान्य जीव का केवल उद्देश्य होता है- पेट एवं प्रजनन। परंतु असामान्य व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता। उसके अंदर एक हलचल होती है, एक हूक उठती है। समय की पुकार को वह अनसुनी नहीं कर सकता, संकटों से जूझने के लिए उठ खड़ होता है।
महर्षि विश्वामित्र राजा दशरथ के पास पहुँचे। उन्होंने कहा कि यह असामान्य समय है। इन बच्चों का यदि आप भविष्य बनाना चाहते हैं इन्हें देवता बनाना चाहते हैं, तो इन्हें हमें सौंप दीजिए। दशरथ ने कहा- 'जैसा आपका आदेश।" विश्वामित्र उन बच्चों को ले गए तथा शुरू से अंत तक उन बच्चों ने असामान्य काम किया। असामान्य समय में असामान्य व्यक्ति असामान्य काम करता है। राम तथा लक्ष्मण ने असामान्य जीवन जिया। वे सिद्धान्तवादी तथा आदर्शवादी थे। ऐसे ही व्यक्ति समाज को नई दिशा देते हैं तथा लोग उनके बनाए रास्ते पर चलते हैं।
अगली पंक्ति में बैठने तथा काम करने के लिए मौका केवल असामान्य व्यक्तियों को मिलता है। वे ही असामान्य समय को पहचान पाते में हैं। सामान्य आदमी को तो विशेष समय दिखाई ही नहीं पड़ता। गुरुगोविन्द सिंह जी को विशेष समय दिखाई पड़ा। वे असामान्य आदमी थे। उन्होंने देखा कि यह देश गुलामी की जंजीरों से कैसे छुटकारा पा सकता है? उन्होंने सोचा कि हर व्यक्ति अपने- अपने बच्चों को बहादुर सैनिकों की तरह बनाता और उनसे साहस का काम कराता, तो समाज में एक आदर्श उपस्थित होता। उन्होंने इस आवश्यकता को समझा और सोचा कि उसकी शुरुआत अपने आप से करनी चाहिए। पराये बच्चों को माँगने से पहले अपने बच्चों को इस काम में लगा देना उचित होगा। ऐसा सोचकर उन्होंने एक, दो, तीन, चार- इस तरह सभी बच्चों को बारी- बारी से उस आंदोलन के लिए अर्पित कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि चार लाख आदमियों ने गुलामी की जंजीरों से मुक्ति के लिए उस आन्दोलन में अपने आप को झोंक दिया। उन्होंने दम तब लिया जब आंदोलन में गरमी आ गई।
असामान्य बने, अवसर को पहचाने
मित्रो! आजादी का आंदोलन कहीं से शुरू हुआ? पंजाब से शुरू हुआ था। पंजाब के राजा रणजीत सिंह सबसे पहले राजा थे, जिन्होंने इस आजादी के आंदोलन में अपना सहयोग सबसे पहले दिया था तथा आजादी की लड़ाई को गति प्रदान की थी। इसके खाद अन्य लोग आते गए। यह काम जबरदस्ती से नहीं होता है, वरन लोगों के भीतर एक हूक पैदा होती है और लोग स्वेच्छा से अपनी कुरबानी देते हैं। गाँधी जी ने अपने आप को अर्पित किया उसके बाद लाखों आदमी उनके साथ आ गए। गाँधी जी सभी आंदोलनों में आगे रहे। गाँधी जी के जेल जाने के बाद सारे देश में आग लग गई। स्वराज्य आंदोलन कहीं से शुरू हुआ? अपने आप से शुरू हुआ। आपत्तिकाल की समस्या का हल केवल अपने आप से ही संभव है। ऐसा साहस भरा कार्य वे असामान्य आदमी ही कर पाते हैं, जो असामान्य समय को पहचानते हैं।
मित्रो, असामान्य आदमी स्वयं आगे चलकर समाज को यह बतलाता है कि यह महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। इसके लिए कुरबानी देनी चाहिए, तो लोग आकर कार्य करते हैं। ऐसा साहस असामान्य आदमी ही कर सकता है। व्यक्ति पहले इस आदमी को परखते हैं कि यह मजबूत आदमी है, सिद्धांत का आदमी है और कसौटी पर खरा सिद्ध होने के पश्चात् उसके कहने पर आगे आते हैं। भगवान बुद्ध के जो सबसे प्यारे शिष्य थे, सबसे पहले उनको अपना घर- बार छोड़ने के लिए निवेदन किया गया था। अगर भगवान बुद्ध ने केवल लोगों को आशीर्वाद से धन व बच्चे दे दिए होते, तो सारे विश्व में जो धर्मचक्र प्रवर्तन की क्रांति हुईं, शायद वह न हुई होती।
ऋषि क्या करते थे? क्या वे माला घुमाते थे? नहीं बेटे, वे माला नहीं घुमाते थे, वरन वे सारे दिन समाज की सेवा किया करते थे। आज तो जो सबसे घटिया काम है, उसके लिए लोग आगे आते हैं। महान कार्य करने की किसी की भावना ही नहीं है। तपस्वी, संत, ऋषि जो सबसे छोटा काम करते थे सेवा का, अगर आप भी करने लगें, तो आपके जीवन में भी चमत्कार आ जाएगा। उन्होंने व्यक्ति की, समाज की, देश और धर्म की, संस्कृति की सेवा की थी। लोगों के दुःख, तकलीफों को दूर किया था। भगवान बुद्ध ने एशिया को ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया को बदल दिया था। वे त्याग तपस्या की मूर्ति थे। आप नाटक का मुखौटा पहनकर हनुमान जी नहीं बन सकते हैं। उसके लिए त्याग करना पड़ता है। ऋषियों के अंदर सबसे महत्त्वपूर्ण एक बात होती है कि वे समय को पहचानते हैं। वे समय का परिचय प्राप्त कर अग्रिम पंक्ति में आ खड़े होते हैं तथा दूसरों को नसीहत देने से पहले अपने आप को इस योग्य बनाने का प्रयास करते हैं कि इसका प्रभाव समाज पर पड़ सके। इसके बाद ढेरों आदमी उस रास्ते पर चलना शुरू कर देते हैं।
युग निर्माण योजना की भी यही कहानी है। हमारे गुरु ने हमसे कहा कि चलना होगा और हम चले। इसके बाद लाखों लोग चलने लगे। लक्ष्मण का अनुकरण भरत ने किया। भरत का अनुसरण शत्रुघ्न ने किया। इस प्रकार रामचंद्र जी के अनुकरण का सिलसिला चल पड़ा। सारे के सारे लोग उनके अनुयायी हो गए। इसका परिणाम यह हुआ कि सारी प्रजा चल पड़ी। इसके फलस्वरूप रामराज्य की स्थापना हो गई।
मित्रो, दुनिया में एक ही तरीका है, जब असामान्य लोग असामान्य काम के लिए चलते हैं, तभी काम बनता है। इस दुनिया के अंतर्गत जो छोटे- छोटे व्यक्ति थे, जिनके अंदर प्राण था, जो जीवंत थे, उन्होंने ही आगे कदम बढ़ाया तथा उनके पीछे लोग चले। हमें महाराणा प्रताप का जीवन दिखाई पड़ता है। महाराजा राणाप्रताप को क्या कमी थी? उनके पास सभी चीजें थी। वे अच्छे खाते- पीते व्यक्ति थे, पर जब उनके भीतर स्वराज्य की भावना जाग्रत हुई, उन्होंने राजपाट छोड़कर जंगल का रास्ता पकड़ लिया। वे अपने बीबी- बच्चों को कहीं भी रख देते थे। थे तो वे राजा ही, चाहते तो उसके खाने पीने की व्यवस्था कहीं भी हो जाती, परंतु वे बहुत तबाह हुए, जंगलों में भटकते रहे, घास की रोटी खाते रहे, लेकिन अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ा। बंदा वैरागी जैसे लोग काम तरह तबाह हुए आप नहीं जानते हैं। उन दिनों कुछ लोगों ने अपनी लड़कियों की शादी मुगल राजाओं के साथ कर दी थी। वे अपने को राजपूत कहते थे और अपने को बड़ा राजा कहते थे। उसी जमाने में बहुत से ऐसे भी लोग थे, जो उन आक्रान्ताओं से लोहा ले लिया करते थे तथा अपने को कुरबान तक कर देने में कोई कमी नहीं रखते थे। उन्होंने अपने सारे परिवार के लोगों को इस आग में झोंक दिया, परंतु अपनी शान को नहीं दिया। वे असामान्य लोग थे, जिन्होंने परिस्थिति को समझा तथा मुकाबला किया।
कहीं आप 'समझदार' तो नहीं?
आप बहुत समझदार आदमी हैं? आप अगर समझदार नहीं होते, तो इस जमाने में जब सारी दुनिया मरने की तैयारी में बैठी है, उस समय आप लोभ, मोह, वासना, तृष्णा का जीवन जी रहे हैं। इसके साथ ही यह सोच रहे हैं कि हमें यह फायदा कैसे हो जाए, यह फायदा हो जाए? मित्रो, मैं यह कहना चाहता हूँ कि यह विशेष समय है, इसे पहचानने की कोशिश करें। अगर आपकी आँखें हैं तो देखे, अगर नहीं हैं तो मैं क्या कह सकता हूँ? मैं कुछ नहीं कहना चाहता हूँ। आप अध्यात्मवादी हैं, तो आपको कुछ करना चाहिए। आपको सिद्धि मिली है, मुक्ति मिली है, तो आपको समाज की सेवा करनी चाहिए।
आदमी को अध्यात्मवादी तब माना जा सकता है, जब वह दूसरों के दुःख- दर्द को बाँटकर उसे सुखी, प्रसन्न बनाने का प्रयत्न करे। ऐसे व्यक्ति को दूसरों के दुःख- दर्द को दूर करने के लिए बलिदान होना पड़ता है। अतः आपको भी अपने आप को तपाना चाहिए। जप करना चाहिए परंतु उस शक्ति को, उस ऊर्जा को समाज के कष्ट के, दुःख- दर्द के निवारण के लिए बाँट देना चाहिए, तभी आप संत, ऋषि कहला सकते हैं।
हमने हमेशा प्यार ही बाँटा है और चाहते है कि आप भी प्यार बाँटे, हम एक संत हैं तथा संत परंपरा के अनुसार हमारा नैतिक दायित्व है कि हम दूसरों की सहायता करें, उन्हें ऊँचा उठाएँ, उनकी प्रगति के रास्ते खोल दें। हमें अपने समीपवर्ती लोगों, पड़ोसियों का ध्यान रखना चाहिए। अगर किसी को बुखार हो तो हमें उसकी मदद करनी चाहिए और चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए। मित्रो, इसी तरह हमें उस समय का भी ख्याल रखना चाहिए जिसमें हम जी रहे हैं। उस समय में हमें आगे कहकर युग की समस्याओं को हल करना चाहिए।
हमें दिखाई देता है भविष्य
मित्रो, यह आपत्तिकालीन समय है। मानव जाति आज संकट के एक कगार पर खड़ी है। ऐसे कगार पर खड़ी हैं कि उसके किनारे अगर ढह गए तो वह औंधे मुँह सीधे खाईं में चली जाएगी तथा मनुष्य का बहुत बड़ा अहित होगा। इस प्रकार मनुष्य का भविष्य अंधकारमय है। ऐसी विषम परिस्थिति में असामान्य मनुष्यों को शांत नहीं बैठना है। यह आपत्तिकाल है। आपको तो दिखाई नहीं पड़ रहा है, परंतु हमें दिखाई पड़ रहा है। अच्छा भी हो सकता है, परंतु इसकी संभावना कम है।
यह आपत्तिकालीन समय है। इस समय वैज्ञानिक, बुद्धिजीवी तथा अर्थशास्त्री- तीनों मिलकर यानि अर्थ, विज्ञान और बुद्धि तीनों ने मिलकर ऐसी रचना की है, जिसे रावण, कुम्भकरण एवं मेघनाद की संज्ञा दी जा सकती है। बुद्धिवाद में ऐसी जकड़न आ गई है कि सिद्धान्तवादी, आदर्शवाद पूर्णतः समाप्त हो गया है। विज्ञान, बुद्धि और अर्थ तीनों ने मिलकर शालीनता की सीता का अपहरण कर लिया है। राम- लक्ष्मण रूपी धर्म- अध्यात्म, दोनों बिलखते हुए मारे- मारे फिर रहे हैं। इन तीनों ने न जाने कैसा- कैसा षड्यंत्र रच दिया है। आदमी प्यार को, आदर्श को, शालीनता को भुला बैठा है और मनुष्य कलेवर में पिशाच बन बैठा है।
आज परिस्थितियों इस तरह बनती जा रही हैं कि आदमी मरेगा, तबाह हो जाएगा। आज जनसंख्या इस कदर बढ़ रही है कि उसका क्या कहना? अगर यह इसी हिसाब से बढ़ती रही, तो एटम बम की कोई आवश्यकता नहीं होगी। आदमी भूख से, प्यास से तड़प- तड़पकर मर जाएगा।
मित्रों! परिवार में, खानदान में जितने अधिक सदस्य बहैंगे, उतनी ही मनुष्यों को परेशानियाँ आएँगी, वह परेशान होगा। आज के जमाने में जिसका जितना बड़ा परिवार है, वह उतना ही अधिक अशांत है
आज इस बारे में हर आदमी को यह विचार करना चाहिए कि कुटुंब बढ़ाने में हमें कोई फायदा नहीं है, वरन इसके द्वारा केवल बरबादी ही बरबादी है। जापानी इस मामले में विचार करते हैं। वे चाहते है कि बच्चे न हो।
आज सामाजिक सहयोग- सहकार का वातावरण समाप्त होता जा रहा है। आदमी इतना स्वामी लोभी होता जा रहा है, जिसे देखकर लगता है कि मानव जाति की मारी को सारी श्रेष्ठ परंपराएँ नष्ट होने वाली हैं। आदमी को दुश्मनों से डर लगे या न लगे, परंतु अपने कुटुंबीजनों से काफी भयभीत रहता है कि न जाने वे कब किस चक्कर में डाल सकते हैं, बरबाद कर सकते हैं। मित्रो, यह जमाना आता हुआ चला जा रहा है। आदमी मरे या जिए, यह मैं नहीं कहता, परंतु आदमी के भीतर जो आत्मीयता थी, मनुष्यता थी, वह नष्ट हो जाएगी, बढ़ती हुई जनसंख्या की वजह से, बढ़ते हुए विज्ञान की वजह से, बढ़ती हुई अक्ल की भरमार की वजह रो, आदमी की स्वार्थपरता की वजह से। हम और आप ऐसे ही बुरे समय में रह रहे हैं।
अगर इसी तरह की स्थिति बढ़ती चली गई, तो हमारा और आपका भविष्य बहुत अंधकारमय होता चला जाएगा। राजनीतिज्ञ जिस रास्ते पर आपको ले जा रहे हैं, यह हमें अंधकारमय लग रहा है। हमारे विद्वान आपको जिस रास्ते पर ले जा रहे हैं, वह हमें अंधकारमय लग रहा है। संत- महात्माओं की प्रवृत्ति और विचारों को देखकर तो हमें रोना आता है। उनके क्रियाकलापों को देखकर में काँप जाता हूँ और सोचता हूँ- हे भगवान! ये क्या कर रहे हैं?
आज जो दुनिया में मनुष्यता समाप्त हो रही है, आदमी के अंतर जो श्रेष्ठ माद्दा था, जो महानता थी, आदमी के भीतर जो देवत्व था आज वह समाप्त होता चला जा रहा है। आदमी के भीतर जो भगवान बैठा था, वह धूमिल होता चला जा रहा है। भगवान माने आदर्श,आदर्श माने श्रेष्ठ विचार। मित्रो, हमें जिस भगवान की आवश्यकता है, जो हमें ऊँचा उठाता है उसका नाम है- सिद्ध, आदर्श। उसका नाम है- मानवीय गरिमा, जो समाप्त होती चली जा रही है- ऐसे अधिकार को देखकर हमें दुःख होता है कि इसी प्रकार की यदि स्थिति रही, तो आगे आदमी, आदमी की जान का ग्राहक बन जाएगा। उसके जीवन में तबाही आएगी।
अब अगले दिनों यह होगा
मित्रो! उस समय आदमी, आदमी का खून पीएगा। आदमी, आदमी का मांस खाएगा। आदमी- आदमी को गिराएगा। आदमी, आदमी को दुःख देगा, परेशान करेगा। आदमी, आदमी का प्राण पीएगा। यह आपत्तिकाल का सपना जो हमने आपको दिखाया है, वह गलत नहीं है। इस समय पैसा, अक्ल, रोटी बागी, परंतु यही अक्ल, पैसा और रोटी अपने को खाएगी। इनसान परेशान हो जाएगा। अगले दिनों विश्वविद्यालय बहुत बनने वाले हैं, कारखाने बहुत बनने वाले हैं, परंतु हम आपको सावधान कर रहे हैं कि आने वाले समय में हर चीज की कीमत बढ़ने वाली है। हर चीज हमें मुश्किल से प्राप्त होगी। लोहे जैसी चीज का भी मूल्य बढ़ने वाला है। लोहे का मूल्य सोने के बराबर होगा। मुसीबत ही मुसीबत आने वाली है, यदि अभी से हम सचेत नहीं हुए तो।
इस आपत्तिकालीन समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है… आदमी का अध्यात्मिकता से जुड़ना। आध्यात्मिक पारस से जो जुड़े हैं, वे पारस बन गए। विवेकानन्द, दयानंद पारस बन गए। लोहे को परस से छुलाने पर वह सोना बनता है, कहा नहीं जा सकता, परंतु यह एक सचाई है कि आध्यात्मिक पारस से जुड़ने पर ही लोहे जैसा व्यक्ति सोना यानि प्राणवान, तेजवान, गुणवान, समृद्धिवान बन जाता है। उनकी अक्ल, आदर्श, सिद्धांत महान होते हैं। वे श्रेष्ठ व महान बन जाते हैं।
मित्रो, अमृत के बारे में हमें यह पता नहीं कि कोई मरने के समय पी ले तो वह बच सकता है ऐसा तो हमें सुना नहीं है। नहीं महाराज जी, शास्त्रों में, पुराणों में अमृत के बारे में बहुत लिखा है। बेटे, उसी के बारे में मैं कह रहा हूँ, जिसे पीकर लोग अजर अमर हो जाते है जैसे राजा हरिश्चन्द्र। गाँधी जी ने एक ड्रामा देखा और वे हरिश्चन्द्र हो गए। गाँधी जी मर गए? नहीं बेटे, गाँधी जी कैसे मर सकते है? ईसामसीह मर गए? नहीं बेटे, वे कैसे मर सकते हैं? भगवान बुद्ध मर गए? नहीं, वे नहीं मरे। वे अमर हो गए। कैसे व्यक्ति अमर होते हैं? ऐसे व्यक्ति जिनके अंदर शालीनता पैदा हो जाती है। आदर्श और सिद्धांत जिनके रोम- रोम में समा जाता है, वही व्यक्ति अमर हो जाते हैं।
पहचानिए तो कि आप कौन हैं?
यह समय आपत्तिकाल का है, जो एक और सुंदर सपने संजोए हुए हैं, तो दूसरी तरफ विनाश की लीला भी मुँह बाए खड़ी दिखाई पड़ रही है। आप दोनों के बीच में खड़े हैं। आपको यह दिखाई नहीं पड़ता है। आप कौन हैं? आप जाग्रत आत्मा हैं। हमने जो हार युगदेवता के लिए बनाया है, वह भगवान के इस बगीचे से अच्छे से अच्छे फूलों को लेकर बनाया है, ताकि अच्छी से अच्छी माला युगदेवता के चरणों में चढ़ाई जा सके। आपको हमने बडी मुश्किल से ढूँढ़ा है। आपने ढूँढ़ा है हमें? नहीं बेटे, आमने आपको ढूँढ़ा है। हमने अखण्ड ज्योति आपके पास भेजी थी है आपने मँगायी थी? नहीं, हमने भेजी थी। बेटे, जिस तरह राम- लक्ष्मण को लेने विश्वामित्र दशरथ के पास गए थे, वैसे ही हमने आपके बाप के पास जाकर आपको ढूँढ़ा है। आप समझते नहीं है कि हमने कैसे आपको ढूँढ़ा है। रामकृष्ण परमहंस विवेकानन्द के पास गए थे। वे कहते थे कि तू क्या करेगा, नौकरी करेगा? अरे हमारा काम हर्ज हो रहा है और तू नौकरी के फेर में पड़ा है। हम लोगों को मुक्त करने आए हैं। हमारा काम अलग है। हमारा 'जाब' अलग है। हम देश, समाज, राष्ट्र को दिशा देने आए हैं। तू नौकरी करने के लिए नहीं पैदा हुआ है। उनको रामकृष्ण परमहंस ने मज़बूर किया और वे चल पड़े।
बेटे, तू भी क्यों समझ रहा है। हम भी तुझे मजबूर कर रहे हैं। हमारे पास तू आता रहता है, परंतु मनोकामनाएँ लेकर आता है। अगर ऊँची तमन्ना लेकर आया होता, तो तू धन्य हो जाता। हम जब अपने गुरु के पास जाते हैं, तो हमारी तमन्नाएँ ऊँची रहती हैं तथा हम महान बन जाते हैं। वहाँ से हम महान बनकर आते हैं।
मित्रो, इस शिविर में आपको बुलाने के पीछे हमारा विशेष उद्देश्य सन्निहित था। आप कहते हैं कि हमें कुंडलिनी जागरण सिखा दीजिए, ब्रह्मवर्चस साधना सिखा दीजिए। हम अच्छी तरह से जानते हैं कि पूजा से, भजन से, सिद्धियों से तेरा क्या मकसद है? साधना से क्या मकसद है? यह मैं सब अच्छी तरह जानता हूँ। तू जो देखना चाहता है, वह तो मैं इसी तरह दिखा सकता हूँ। आपको पाने की लालसा कम है, सो सिखाने से काम चल सकता है। आप लोग सिद्धियों के नाम पर जो पाना चाहते हैं, उन चीजों को मैं दिखा दूँ, तो आपको संतोष हो जाएगा। वह चीजें जो आपको मिलेंगी, तो आप बरदाश्त नहीं कर सकेंगे। आप छोड़कर भाग जाएँगे।
साथियों, अगर असली भगवान आपको दिखा दूँ एवं असली भगवान से साक्षात्कार करा दूँ तो नारद जी की तरह से आपको अविवाहित रहकर काम करना पड़ेगा। बुद्ध की तरह से बीबी- बच्चों को छोड़कर जाना पड़ेगा। ऐसा भगवान आपको दिखा दूँ जो बुद्ध की तरीके से हाथ घसीटते हुए ले जाए। शंकराचार्य की तरह भी को छोड़कर ले जाए। ऐसा भगवान दिखा दूँ जो चाणक्य की तरह से वनवास में रहने के लिए मजबूर कर दे। ऐसा भगवान आपको दिखा दूँ जो समर्थ गुरु रामदास की तरह रो हाथ पकड़कर खींचता हुआ चला जाए आप कहेंगे कि ऐसा भगवान हमें नहीं चाहिए।
साथियों, मेरा उद्देश्य यह है कि जो असली ब्रह्मवर्चस का स्रोत है, उसे आप जानें। हमने इसलिए आपको बुलाया है कि यह विशेष समय है तथा आप महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हैं, इसलिए आपको बताने के लिए बुलाया है। हमारे गुरु ने भी हमें दिखा दिया था कि हम विशेष व्यक्ति हैं, जाग्रत आत्मा हैं। उन्होंने कहा कि तुम साधारण आदमी नहीं हो, तुझे असाधारण कार्य करना है। हमने यह महसूस कर लिया है कि हम एक साधारण आदमी की तरह नहीं रह सकते हैं। मैं चाहता था कि ऐसा सौभाग्य आपको भी मिल जाता। काश! मैं भी आपको दिखा पाता कि आप कौन हैं? आप एक सामान्य आदमी नहीं हैं, वरन असामान्य आदमी हैं। मैं चाहता था कि इस युग- परिवर्तन की संधिवेला में आप भी महत्त्वपूर्ण कार्य कर सके होते तो मजा आ जाता।
मेरे गुरु जितने सामर्थ्यवान हैं, उतना तो मैं नहीं हूँ। उन्होंने हमारे पिछले जन्मों को दिखा दिया था, लेकिन हम तो नहीं दिखा सकते कि आप पिछले जन्मों में क्या थे? आप जिस हैसियत का जीवन जी रहे हैं, वह आपके मुताबिक नहीं है, यह हम जरूर बता सकते हैं। आपकी महत्त्वाकाँक्षाएँ व्यक्तिगत जीवन के लिए नहीं होनी चाहिए। अगर कहीं रेलगाड़ी का एक्सीडेंट हो जाए तथा हजारों लोग कराह रहे हों, तो डॉक्टरों का यह कहना मुनासिब नहीं होगा कि हम सो रहे हैं तथा हमें समय नहीं है। आपको उन घायलों के लिए एक रात जागना चाहिए। एक रात जागने से आप मर नहीं सकते हैं; आपको इस जिम्मेदारी को समझना चाहिए तथा इसके लिए काम करना चाहिए।
बचा हुआ जीवन कहीं यों ही व्यर्थ न निकल जाए
मित्रो, हम आपसे यही कह रहे हैं कि आपके महत्त्वपूर्ण जीवन के एक एक दिन यों ही समाप्त होते जा रहे हैं, उसमें कुसंस्कार भरते जा रहे है। आपको यह समझना चाहिए तथा बचे हुए जीवन को समाज के लिए अर्पित करना चाहिए। लोग सोचते हैं कि बुढ़ापे में काम करेंगे, पर यह संभव नहीं है। उस समय कुसंस्कार कुछ करने नहीं देता है। हम बार बार यही कह रहे हैं कि यह विशेष समय है। इसमें आपको कुछ करना है;
हमारे गुरुजी ने हमें बुलाया एवं शक्ति प्रदान की, हमने भी आपको एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य हेतु यहाँ शिविर में बुलाया, ताकि आप आपत्तिकाल के समय को समझ सकें और आगे आकर कुछ करने को तैयार हो जाते, तो यह शिविर धन्य हो जाता और आप भी धन्य बन जाते। हनुमान जी ने रामचंद्र जी के लिए अपने आप को झोंका, तो वे सारी की सारी चीजें जो एक संत, तपस्वी को मिलनी चाहिए वह हनुमान जी को प्राप्त हो गई। हमारे बारे में भी यही बात है। हमने कितना तप किया, यह आप नहीं जानते हैं। हम चार घंटे केवल दूरी काम में खरच करते हैं, बाकी समय भगवान के कार्य में खरच करते हैं। हमने अपने आप को एक समर्थ सत्ता के साथ छोड़ दिया है। हम उनका काम करते हैं और वे हमारा काम करते हैं। हम दोनों आपस में गुँथे हुए हैं। मैं यह चाहता था कि हमारा और आपका संबंध भी हमारे गुरु की तरह होना चाहिए। मैं यह चाहता था कि इस शिविर के अंत तक आप एवं हम जरा नजदीक आ जाते तथा आपस में घुल- मिल जाते तो मजा आ जाता।
मित्रो, हमारा एवं हमारे गुरु का मिलना बड़ा ही महत्त्वपूर्ण रहा। हमारे गुरु की आकांक्षा- कामना जो भी हमारे प्रति रही होगी, हमने उसे पूरा करने का पूरा- पूरा प्रयास किया है। जब हम उन दोनों दिनों की अर्थात गुरु से जुड़ने से पूर्व एवं बाद के दिनों की समीक्षा करते हैं और देखते हैं, तो पाते हैं कि गुरु के आदेश पर जो जीवन हमने जीने का प्रयास किया है, वह ज्यादा फायदेमंद रहा है, लाभ का रहा है। अंधे लँगड़े की जोड़ी का अपना महत्त्व है। अंधे ने चलकर तथा लँगड़े ने देखकर सारा का सारा काम पूरा किया है। अंधे ने रास्ता तय किया तथा लँगड़े ने रास्ता दिखाया। मित्रो, आप एवं हम मिलकर अगर इस प्रकार कर पाते, तो कितना अच्छा होता। हम आपका सहयोग करते और आप हमारा सहयोग करते तो मजा आ जाता। आप तो यह कहते हैं कि गुरुजी आप ही हमारा सहयोग कीजिए। बेटे, यही बात आपके काम की नहीं है। आप हमेशा स्वार्थ की बातें कहते हैं। हम आपको आशीर्वाद दे, परंतु आप कुछ न दें तो फिर आपका काम नहीं चलेगा। किसी का रक्त किसी दूसरे के शरीर में लगा दिया जाए तो वह उस शरीर में केवल तीन दिन तक ही काम देता है। तीन दिन में ग्रहीता के शरीर का सिस्टम काम करने लगता है और वह व्यक्ति अपना काम कर लेता है। आपका सिस्टम जब तक काम नहीं करेंगा, हमारा आशीर्वाद काम नहीं करेगा। आप समझते नहीं हैं? दूसरे का आशीर्वाद एवं वरदान आपकी सामयिक आवश्यकताएँ तो पूरे कर सकते हैं परंतु आगे केवल आपका पुरुषार्थ, श्रम ही काम करेगा।
इस शिविर में पुनर्गठन के अंतर्गत हमने आपको एक योजना दी है। आप कहेंगे कि गुरुदेव क्या इसके बिना काम नहीं चलेगा? साथियों, आप समझते नहीं हैं कि इन दिनों हिंदुस्तान के सामने बहुत भी समस्याएँ हैं। हमने इन समस्याओं का हल अध्यात्म- शक्तियों के द्वारा निकालने का सोचा है। आध्यात्मिक शक्तियाँ ही आड़े समय में कारगर सिद्ध होती हैं। यही शक्तियाँ मनुष्य को बदलने जा रही हैं, युग को बदलने जा रही हैं। हम स्पष्ट रूप से देख रहे हैं कि युगद्रष्टा अपनी कलाकृति को, अपनी इस सुंदर दुनिया को नष्ट नहीं होने देगा। ऐसा समय इस सृष्टि पर बीसों बार आ चुका हैं जब भगवान यानि स्रष्टा तथा जीवंत आत्माओं ने सहयोग करके इस कार्य को पूरा किया है। आज भी वैसी ही स्थिति हैं, जिसमें आप जैसे मूर्द्धन्य आत्माओं को इस प्रकार का काम करना है।
यह घाटे का सौदा नहीं है
स्रष्टा अपने द्वारा हमेशा सृजन करता है। कहा गया है-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अथ्युत्थानधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
ऐसी परिस्थितियों में उस समय स्रष्टा तो अपना काम करता ही है परंतु वैसी संकटकालीन स्थिति में उनके सहयोगियों को भी काम करना पड़ता है। बड़े- बड़े जो काम होते हैं युग परिवर्तन जो होता है, महाक्रांतियाँ जो होती हैं, वह भगवान की इच्छा तथा शक्ति से होती हैं। हमें तथा आपको तो केवल निमित्त मात्र बनना है। अगर आप श्रेय लेने की स्थिति में हों, इस जमाने का महत्त्वपूर्ण कार्य करने की स्थिति में हों, तो हमारा एक ही निवेदन है कि आप हमारे साथ- साथ चलें, हमारे साथ आएँ। आपको घाटा नहीं पड़ेगा। चिंता मत कीजिए, यह घाटे का कोई सौदा नहीं है। मित्रो, कृपणता के अलावा कोई घाटे की वात नहीं होगी। यदि इस क्षुद्रता को आप लोग छोड़ दें तो फायदा ही फायदा है। मैं आपके भविष्य की गारण्टी ले सकता हूँ लेकिन आपकी क्षुद्रता एवं कृपणता की गारण्टी नहीं ले सकता। इसे छोड़ने की एवज में जो महानता तथा दूसरी चीजें मिलेगी वह बड़े की फायदे की होंगी।
इस शिविर में हमने आपको इसीलिए बुलाया था और बार- बार पूछा था कि क्या ऐसा करना संभव है? मैं जानता हूँ कि आपके पास अक्ल बहुत ज्यादा है, परंतु क्या आप हिम्मत कर सकते हैं? हम तो चाहते हैं कि आपकी अक्ल कम हो जाए, आपकी महत्त्वाकाँक्षाएँ कम हो जाएँ तथा आपकी भावना एवं अन्तरात्मा विकसित हो तो काम बन जाएगा। इसलिए आपको बुलाया था और आज विदा कर रहे हैं। आप हमारे आदर्श और सिद्धांत यहाँ से ले जाएँ तथा अपने चिंतन चरित्र को नए युग के निर्माण में लगा दें। मैं चाहता हूँ कि आपके सोचने के तरीके बदल जाएँ। आप नए युग के अनुरूप ढलते चले जाएँ। अभी तो आपने अपना सारा का सारा समय भौतिक आवश्यकताओं के लिए लगाया हैं। आपने तो जीवन केवल अपने लिए जिया है। आपने पूजा की है, लेकिन अगर आपने वास्तव में पूजा के स्थान पर भजन किया होता, सेवा -साधना की होती तो आपकी आँखों के अंदर से एक तेज दिखाई पड़ता। आपकी निगाहों के आमने जो भी आते, बदलते हुए चले जाते, परंतु आपने कभी भी इस तरह का प्रयास नहीं किया। नए युग के लिए अगर आप अपने चिंतन, भावना, चरित्र को लगा देते, तो आप तथा हम दोनों महान हो जाते। जैसे कि हमारे गुरु और हम हो गए।
मित्रो, हम आपसे यह निवेदन कर रहे थे कि आपकी पूजा यहाँ से जाने के बाद ऐसी चमके कि आपकी महत्त्वाकाँक्षाओं की पूर्ति करने की, माँगने की बात समाप्त हो जाए और आप निरंतर भगवान के लिए गलने की बात सोचने लगें। इसी उद्देश्य से आपको यहाँ बुलाया था। हम चाहते हैं कि समाज में एक−दूसरे से प्रेम करने की पद्धति आप प्रारंभ करें। आप पति−पत्नी आपस में प्रेम करें। हम चाहते थे कि आप यहाँ से भगवान को गोद लेकर जाएँ। आपके तीन बेटे हैं, तो आज से चार बच्चे मान ले। अगर बच्चे को फीस देते हैं, भोजन कराते हैं, तो भगवान को केवल अक्षत, फूल न चढ़ाएँ उनके लिए भी त्याग करें। देश, समाज, धर्म, संस्कृति के लिए आप अपने प्यार, अक्ल, भावना, श्रम, पैसे का एक हिस्सा यानि अंशदान देना चाहिए। हमने आपको अपने कुटुंब में सम्मिलित होते समय अंशदान, अभयदान की बातें बतलाई थीं। हम चाहते हैं कि आपको फूल, अगरबत्ती चढ़ाने की अपेक्षा आदर्शों के लिए, सिद्धांतों के लिए अंशदान देना चाहिए।
साथियों, आप यहाँ से जाएँ, तो एक नमूना बनकर जाएँ, ताकि समाज में आपका प्रभाव पड़े। आप जब लोगों को सिखाने जाएँगे, तो लोग यह पूछेंगे कि आप तो हमें प्यार, त्याग, श्रम, सेवा की बात बतला रहे हैं पर क्या आपने इसमें से कुछ ग्रहण किया है? अपने आप में धारण किया है? इसका जवाब दे देंगे, तो आपकी बात लाखों- करोड़ों आदमी मानेंगे। हमने जो लोगों को सिखाया है, बताया है, पहले उसे हमने अपने जीवन में धारण किया है। इसी का प्रभाव है कि लोग हमारी बातें मानते हैं। आप शिकायत करते है कि गुरुजी शाखा वाला ठंडा पढ़ गया। बेटे, तू अपने आप को गरम कर ले, सब तेरी बातों को मानेंगे तथा तेरे रास्ते पर चलेंगे। हम आपको युगसृजेता, प्रज्ञापुत्र के रूप में जाग्रत आत्मा, महामानव के रूप में देखना चाहते हैं। आप यहाँ से जाने के बाद अपनी वाणी के अंदर ब्रह्मतेज पैदा की। आप सभ्य आदमी की तरह से जीवनयापन कों। आप वकील हैं, तो आपको काले कपड़े पहनकर कार्य तो करना चाहिए, पर हृदय के अंतरंग की मिठास को भी विकसित करना चाहिए। आपको अपनी वाणी का, व्यवहार का, सभ्यता का विकास करना चाहिए।
आप यहाँ से जाएँ तो कुछ लेकर जाएँ। आप यहाँ आते हैं, तो कुछ लेकर जाएँ, बनकर जाएँ। हमारे पास जो लोग आते हैं और आपके बारे में पूछते हैं तो उनको हम क्या जवाब देंगे। आपके अंदर संयमशीलता, विनाश, सहिष्णुता आनी ही चाहिए, जीवन में हेर- फेर होना ही चाहिए। आपको जो कुछ भी मिला है, उसे केवल शरीर के लिए न खरच करके भगवान के लिए भी खरच करना चाहिए। आप माँ- बाप से चार आना कब तक माँगते रहेंगे। भगवान से माँगने की अपेक्षा भगवान को देने के लिए आगे आना चाहिए। गुरुजी से माँगने की अपेक्षा गुरुजी को देने के लिए आगे आना चाहिए। आपके कुर्ते के ऊपर तथा अतःकरण में ज्ञानयज्ञ की लाल मशाल जलनी चाहिए, ताकि भीतर का अंधकार दूर हो सके हमारे स्वार्थ में से कुछ परमार्थ के लिए उपयोग होना चाहिए। आप थोड़ा सा हिस्सा लोकहित के लिए जनकल्याण के लिए, आदर्शों के लिए निकालिए।
मित्रो,हमने इसीलिए यह शिविर बुलाया था। यह विशेष काल है, यह बतलाने के लिए आपको बुलाया था। पेट भरने और औलाद पैदा करने की समस्या तो जब से दुनिया बनी है, तब से रही है और रहेगी हैं यदि आप भी इसी में लगे रहेंगे तो यह जीवन बेकार हो जाएगा। उठिए जागिए और श्रेष्ठ कामों के लिए तनकर खड़े हो जाइए। इसी अध्यात्म को बतलाने के लिए हमने आपको बुलाया था, अगर आप समझ सकें, तो हमारा यह श्रम सार्थक हो जाएगा और आप भी धन्य को जाएँगे।
आज की बात समाप्त।
।। ॐ शांतिः।।