Books - भारतीय संस्कृति का मूल- गायत्री महामंत्र
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भारतीय संस्कृति का मूल- गायत्री महामंत्र
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गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियों! भाइयों!! आपसे मैं यह निवेदन कर रहा था कि इस दुनिया में जो सबसे बड़ा देवता दिखाई पड़ता है, उसका नाम माता है। "मातृदेवोभव, पितृदेवोभव, आचार्यदेवोभव"- माता की बराबरी किसी से भी नहीं की जा सकती है। वह नौ महीने बच्चे को अपने पेट में रखती है, अपने रक्त से हमारा पालन- पोषण अपने पेट में करती है। जन्म लेने के बाद अपने लाल खून को सफेद दूध में परिवर्तित करके हमें पिला देती है और हमारे शरीर का पोषण करके हमें बड़ा बना देती है। माता का प्यार, दुलार, दूध तथा पोषण जिनको नहीं मिलता है, वह अपूर्ण होता है।
एक और माँ है, जिसके बारे में हम नहीं जानते हैं। जो शरीर का नहीं, बल्कि आत्मा का पोषण करती है। उसका नाम कामधेनु है। यह स्वर्ग में रहती हैं, जिसका दूध पीकर देवता दिव्य बन जाते हैं, सुंदर बन जाते हैं, अजर- अमर बन जाते हैं, दूसरों की सेवा करने में समर्थ होते हैं। स्वयं तृप्त रहते हैं। सुना है कि कामधेनु स्वर्ग में रहती है। स्वर्ग में मैं गया भी नहीं हूँ, उसके बावत में कैसे कह सकता हूँ, परंतु एक कामधेनु की बावत हम बतलाना चाहते हैं कि जो स्वर्ग में लोगों को फायदा पहुँचा सकती है। उसका नाम गायत्री है। उसी का नाम ऋतम्भरा प्रज्ञा है, दूरदर्शिता, विवेकशीलता, विचारशीलता भी है, जिसको हम भारतीय संस्कृति की आत्मा कह सकते हैं।
बीज छोटा सा होता है, परंतु फलों का, फूलों का, सभी का गुण उस छोटे से बीज में सन्निहित होता है। छोटे से शुक्राणु में बाप, दादा का पीढ़ियों का गुण समाया रहता है। इसी तरह जो भी इस संसार का दिव्य ज्ञान- विज्ञान है, वह इस छोटे से गायत्री मंत्र के अंदर समाविष्ट है। २४ अक्षरों वाले बीज में विद्यमान है। ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि के निर्माण की योजना बनाई तो उन्होंने सोचा कि ज्ञान एवं विज्ञान के बिना इस सृष्टि का निर्माण कैसे हो सकता है? उन दोनों को प्राप्त करने के लिए कमल के फूल पर बैठकर बतलाते हैं कि उन्होंने हजार वर्ष तक तप किया। वह कौन भी साधना थी? वह गायत्री मंत्र की उपासना एवं साधना थी। जो सफलता एवं सामर्थ्य उन्हें प्राप्त हुई, वह कौन सी थी? वह मित्रो! गायत्री मंत्र की थी जिसे उन्होंने प्राप्त किया कि था। ब्रह्माजी ने उस गायत्री मंत्र को चार टुकड़ों में बाँटकर चार वेदों का निर्माण कर दिया।
'ॐ भूर्भुवः स्व:' से ऋग्वेद बनाया गया।
'तत्सवितुर्वरेण्यं' से यजुर्वेद बनाया गया।
'भर्गो देवस्य धीमहि' से सामवेद बनाया गया।
'धियो यो नः प्रचोदयात्' से अथर्ववेद बनाया गया।
वे वेद जो हमारे सारे के सारे धर्म एवं संस्कृति के बीज हैं। इन चारों के चारों वेदों में वेदमाता गायत्री का ही वर्णन है। वेद उनसे ही पनपे हैं, उसी गायत्री मंत्र का जिसका हम प्रचार करते हैं। जिसके लिए हमने अपना जीवन समर्पित कर दिया। वह शानदार बीज मंत्र है। ब्रह्मा जी ने तप करके इसके द्वारा सृष्टि को बनाया। इसका तत्त्वदर्शन एवं व्याख्यान सर्वसाधारण की समझ में नहीं आएगा, यह समझकर ऋषियों ने गायत्री मंत्र के २४ अक्षरों से भगवान के अवतारों की तुलना की। एक- एक अवतार गायत्री मंत्र के एक- एक अक्षर की व्याख्या है। गायत्री मंत्र का स्वरूप- सामर्थ्य क्या है? उसका जीवन में उपयोग किस परिस्थिति में हम किस तरह करें? यह जानकारी देने के लिए ऋषियों ने २४ अवतारों की रचना की तथा २४ पुराणों का निर्माण किया। भगवान दत्तात्रेय के २४ गुरु थे। यह गायत्री मंत्र के २४ अक्षरों से ही उनको जान मिलता था। महर्षि बाल्मीकि की बाल्मीकि रामायण में २४००० श्लोक हैं, उसमें उन्होंने गायत्री मंत्र के एक- एक अक्षर का संपुट लगाकर व्याख्या की है। श्रीमद्भागवत में भी इसी गायत्री मंत्र के संपुट लगा करके श्लोक बनाए गए। 'परम धीमहि' यानि कि इसमें 'धीमहि' की ही व्याख्या है। देवी भागवत् पूर्ण रूप से गायत्री मंत्र की ही व्याख्या है। भारतीय संस्कृति के अंतर्गत आपको जो भी दिखाईं पड़ता है, वह वास्तव में विशुद्ध रूप से गायत्री मंत्र का ही वर्णन है। यह बहुत शानदार है। ऋषियों ने इसकी महत्ता- उपयोगिता समझो तथा उन्होंने सभी लोगों से कहा कि आप सब कुछ भूल जाना, परंतु इस माता को मत भूलना। माँ को हम किसी तरह न भूलें।
इनसान का एक और शरीर है- 'विचारणा' विचार की भूमिका के रूप में, मस्तिष्क के ऊपर शिखा के रूप में, अंकुश के रूप में गायत्री मंत्र विद्यमान है। हर इनसान जब अपने सिर पर हाथ फेरता है तो उसे माँ की याद आ जाती है। यह चिद्रूपणी है, महामाया है। एक अंकुश हाथी के ऊपर होता है, मनुष्य के मन पर, विचारणा के ऊपर भी अंकुश होना चाहिए। यह गायत्री माता अंकुश के रूप में सिर के ऊपर विद्यमान है। मनुष्य के ऊपर ऋषियों ने गायत्री के रूप में शिखा की स्थापना करके यह बतलाया कि आप हमेशा विचार करते समय, बोलते समय, यह ख्याल रखना कि हमारे ऊपर अंकुश लगा हुआ है। हमें मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
यज्ञोपवीत हिंदू धर्म का मुख्य संस्कार है। शिखा मस्तिष्क पर तथा कंधे पर जनेऊ, ये दोनों ही गायत्री के प्रतीक हैं। गायत्री की तीन व्याहृतियाँ, जनेऊ की तीन लड़े है। ९ धागे गायत्री मंत्र के ९ शब्द हैं। इसका मतलब है- सामाजिक कर्तव्यों का पालन करना चाहिए तथा मर्यादा में रहना चाहिए। हर हिंदू के लिए ये दो चीजें अनिवार्य मानी गई हैं। वह क्या है? यह है गायत्री मंत्र। हमें दो बार संध्या करनी चाहिए। मुसलमान पाँच बार नमाज पढ़ते हैं। आप मनमरजी नहीं कर सकते। आपको इस मंत्र का दो बार अवश्य जप करना चाहिए, इसे गुरुमंत्र कहा गया है। गुरुमंत्र कैसा? प्रारंभ में जब गुरु किसी बच्चे को शिक्षण करता था तो वह उसकी सादी स्लेट में इसी मंत्र को लिखकर उसके ऊपर बच्चों को हाथ फेरने के लिए कहते थे, साथ ही साथ उसका उच्चारण भी कराया जाता हैं। इसीलिए इसे गुरुमंत्र कहा गया।
हिंदुओं का गुरुमंत्र एक है। मुसलमानों का गुरुमंत्र एक है, जिसे हम कलमा कहते हैं। ईसाई का गुरुमंत्र एक है जिसे बपतिस्मा कहते हैं।
उस अंधकार युग को क्या कहें, जिसमें हमने आर्थिक क्षेत्र, राजनैतिक आजादी, कला, वैभव सब कुछ खो दिया। इतना ही नहीं हमने अपने माता की पहचान खो दी। माता की पहचान जिन बच्चों को नहीं होती है तो उन बच्चों की मिट्टी पलीद हो जाती है। कैसे मिट्टी पलीद हो गई? हमारी बहुत मिट्टी पलीद हो गई। हमें जिससे आत्मा का परिपोषण, प्यार मिलता था, उस माँ को हम भूल गए। उसे ग्रहण करके हम देवमानव कहलाते थे। हम समर्थ, प्रतिभाशाली थे तथा विश्व के है सिरमौर थे। हम सुसंस्कृत कहलाते थे और उसे हम सारे विश्व में बाँटते रहते थे अमेरिका से लेकर पेरु तक न जाने कहाँ कहाँ सारे विश्व में बाँटते रहते थे।
अमेरिका कोलम्बस का, नीग्रोज का, आदिवासियों, रेड़इंड़ियन्स का बसाया हुआ नहीं है, बल्कि यह भारतीयों का बसाया हुआ था। वहाँ सूर्य मंदिर पाया गया है, जिसका अर्थ यह है कि वे गायत्री उपासक थे। वहाँ भारतीय कलेंडर इतना सुंदर पाया गया है, जितना सुंदर कलेंडर भारत में भी पाया नहीं जा सकता। यह क्या है? भारतीय सभ्यता थी। ऐसी संस्कृति थी भारत की, जिसका मूल था गायत्री मंत्र, गायत्री माता जिसे हम भूल गए। अंधकार के समय क्या होता है? चोर, उचक्के, उल्लू, साँप, बिच्छू, चमगादड़ चलते हैं। सब कुछ रात के समय होता है। झाड़ियाँ रात में डरावनी बन जाती हैं। रात के समय हम रास्ते पर चलते हैं तो हमें ठोकरें लग जाती हैं। हम दो हजार वर्ष तक अंधकार में भटकते रहे तथा हमने माँ को भी त्याग दिया। किसकी बतलाए कि किसने कहा- इस माँ को त्यागने के लिए?
गायत्री मंत्र जो सूर्य की तरह, धरती और हवा की तरह है, जो सबका है। पहाड़ सबका है, लेकिन हमें लोगों ने बतलाया कि मनुष्यों के चार वर्ण होते हैं। उसमें से एक वर्ण को ही इसका अधिकार है, अर्थात तीन चौथाई इससे वंचित रह गए। इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया कि इसके लिए महिलाओं को अधिकार नहीं है, अर्थात १/८ भाग का ही गायत्री मंत्र है। इसके बाद एक और स्वामी जी आए। उन्होंने कहा गायत्री मंत्र पर ब्रह्माजी का शाप लगा है, इसे कलियुग में नहीं जपा जा सकता है। एक और पंडित जी आए और उन्होंने कहा कि विश्वामित्र और वसिष्ठ ने शाप दे दिया है और गायत्री मंत्र को कीलित कर दिया है। हमने पूछा कि ब्रह्माजी जिन्होंने एक हजार वर्ष तक तप किया, वे कैसे शाप दे सकते हैं? हमने पूछा कि विश्वामित्र वे ऋषि हैं, जिन्होंने गायत्री के ऊपर पी- एच. डी. की, उसे वह कैसे शाप दे सकते हैं? एक पंडित जी हमारे पास आए, उन्होंने कहा कि यह गायत्री मंत्र कान में कहने का मंत्र है। हमने कहा कि अच्छी बातें तो खुलेआम बतलाई जाती हैं। अगर चोरी, बेईमानी, लंपटगीरी की बात हो तो कान में कहीं जाती है। इस तरह अंधकार के युग में न जाने क्या−क्या होता रहा? चालाक बाबाजी अपने- अपने नाम के मजहब, पंथ बनाते चले गए। इस प्रकार लोग भ्रमित होते चले गए और इस प्रकार भारतीय संस्कृति का मूल नष्ट हो गया, छिन्न- भिन्न हो गया। हर जगह अलगाव की स्थिति, विपन्नता की स्थिति बन गई।
आज ईसाइयों में, मुसलमानों में, सिक्खों में एकरूपता अभी भी है, परंतु टुकड़ों में कर दिया लोगों ने हिंदू समाज को, इतना ही नहीं तहस- नहस कर दिया भारतीय परंपरा को। इस समय सब बिखर गया है, परंतु अब अंधकार समाप्त होने जा रहा है। सूर्य उदय होने जा रहा है। सूर्य निकलने के समय चिडियाँ चहचहाने लगती हैं। मोर नाचते हैं। कमल का फूल खिलने लगता है, फूलों में खुशी मालूम पड़ती है। हवा ठंडी चलने लगती है। हर आदमी में एक जोश मालूम पड़ता है। रात की नींद खत्म हो जाती है। चोर, बिच्छू, साँप, चमगादड़ भाग जाते हैं। हमें विश्वास है कि अब हमारे देश का, भाग्य का, संस्कृति का पुनः सूर्य उदय होने वाला है। गायत्री मंत्र को पुनः घर- पहुँचाना संभव हो सकेगा। वह जो हमारी रीढ़ की हड्डी थी, उसे पुनः जोड़ देने का काम होने वाला है।
दिल्ली में एक बार महात्मा गाँधी ने जामिया मिलिया यूनीवर्सिटी में आधा घंटे का भाषण दिया। उसमें उन्होंने केवल गायत्री मंत्र पर ही व्याख्यान दिया। उसके समापन पर सारे मुसलमान गाँधी जी पर नाराज हो गए तथा यह कहा कि यह तो हिंदुओं का मंत्र है। यहाँ पर तो आपको और बातें करनी थी। गाँधी जी ने कहा कि यह हिंदुओं का नहीं, बल्कि विश्वमानव का मंत्र है। यह ऋतम्भरा प्रज्ञा, दूरदर्शिता, विवेकशीलता का मंत्र है। यह भीतर सोई हुई मानवता को जगाने का मंत्र है। हम भी ऐसा ही मानते हैं। हमें ऐसा मालूम पड़ता है कि हमने खोई हुई संस्कृति को पुनः पा लिया है। ऐसा लगता है कि साँप की मणि जो खो गई थी, उसे पा लिया है। हमने सुना है कि किसी हाथी के सिर पर गजमुक्ता रहता है। जब तक वह हाथी के सिर पर रहता है, तो वह मस्त रहता है, परंतु जैसे ही वह खो जाता है या चला जाता है तो हाथी पागलों की तरह हो जाता है। हाथी की बात, साँप की बात तो मैं नहीं कह सकता हूँ, परंतु मनुष्य की, भारतीय संस्कृति की बात कह सकता हूँ, जिसके भीतर कामधेनु जैसी शक्ति थी। उसे भुला दिया गया तथा आज साँप तथा हाथी की तरह से हम मणिहीन व कमजोर हो गए तथा दीन−हीन हो गए। हम फिर से उस प्रातःकालीन सूर्य को नमस्कार करते हैं, जो हमारी चीजों को दिखाता है। हमने अपने संस्कृति के स्वरूप को फिर से समझने की कोशिश की है।
गायत्री मंत्र एक फिलॉसफी है, इसे हम जीवन जीने की कला कह सकते हैं। यह सोचने का एक तरीका है, जीवन यापन करने की एक पद्धति है, समाज के गठन का तरीका है, विश्व की शांति का एक मूल मंत्र है। अगर हम इसे अपनाकर चलेंगे तो हम अच्छी दुनिया की कल्पना कर सकते हैं। अच्छी दुनिया हमें फिर देखने को मिल सकती है, जैसा कि प्राचीनकाल में देखने को मिलता था। गायत्री एक दिव्य ज्ञान है। इसे देवमाता कहते है। इसकी उपासना से मनुष्य देवता बन जाता है। इसको विश्वमाता भी कहते है। मित्रो! यह हम गायत्री के फिलॉसफी की व्याख्या कर रहे हैं, जिसे आपको जानना चाहिए। अगर इसे हम समझ गए तथा उस रास्ते पर हम चलने का प्रयास कर सके तो हमारा जीवन धन्य हो सकता है।
मित्रों! एक और चीज हम आपको बतलाना चाहते हैं जो गायत्री की फिलॉसफी नहीं है, वह गायत्री का साइंस है। हमारे भीतर ऐसी- ऐसी शक्तियाँ भरी पड़ी हैं, अगर उसे हम जगा सकें तो सारी महत्त्वपूर्ण चीजों को हम प्राप्त कर सकते हैं। अगर एक को भी जगाया जा सके तो साधारण इनसान भी देवता बन सकते हैं। इनसान ही देवता, भगवान होते रहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण, भगवान रामचंद्र जी इनसान के रूप में पैदा हुए एवं भगवान बन गए। इनसान उसे कहते हैं जो जन्म लेता है तथा मरता है। श्री रामचंद्र जी रामनवमी को जन्म लिए थे तथा मारे गए। श्रीकृष्ण भगवान जन्माष्टमी को जन्म लिए फिर मारे भी गए। ये इनसान से देवता और भगवान बने। आप भी बन सकते हैं अगर अपनी सोई हुई शक्ति को आप जगा लें।
इनसान के भीतर ऐसी- ऐसी शक्ति भरी पड़ी हैं, अगर आप उसे जगा सकते हैं तो आप ऋषि हो सकते हैं, महामानव हो सकते हैं। जार्ज वाशिंगटन हो सकते हैं, गाँधी हो सकते हैं, नेपोलियन, विवेकानन्द हो सकते हैं। गायत्री मंत्र की इसी महानता के कारण हमने गायत्री उपासना के द्वारा गायत्री की फिलॉसफी को जन- जन तक पहुँचाने का प्रयास किया है। यह गायत्री की साइंस है। हमने अपने जीवन में गायत्री की फिलॉसफी तथा गायत्री का साइंस दोनों को समझाने का प्रयास किया है और प्रयास में सफलता प्राप्त की है। उसके बाद आप लोगों के सामने हाजिर हुआ हूँ, ताकि आप लोगों को भी उसकी फिलॉसफी तथा साइंस को बतलाए। अगर इस रास्ते पर आप चलेंगे तो आप अपना भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों के दोनों जीवन बड़े शानदार बना सकते हैं। दोनों ही जीवन हमारे लिए आवश्यक हैं। आध्यात्मिक जीवन हमारा प्राण है तथा भौतिक जीवन हमारा शरीर है। इन दोनों का महत्त्व है। अगर दोनों अलग हो जाएँगे तो हम मृत बन जाएँगे। अतः हमें दोनों को मिलाकर चलना होगा। गायत्री मंत्र वह महामंत्र है जो मनुष्य की दोनों तरह की उन्नति करने में समर्थ है। मैं चाहता था कि आप लोगों को भौतिक, आध्यात्मिक उन्नति करने का मौका मिल जाए।
साथियों! गायत्री मंत्र के बारे में हमने सब कुछ बतला दिया है। गायत्री मंत्र की उपासना, अनुष्ठान सब बातें बतला दी हैं। इस प्रकार हमने सब बतला दिया है, लेकिन जो वजनदार चीजें अभी तक आपको नहीं बतला पाया हूँ, वह है गायत्री माता की विशेषता। वह क्या विशेषता है? बच्चे को कीमती चीजें माँ नहीं देना चाहती है, क्योंकि उसकी पात्रता नहीं है। अगर यह चीज आपको मिल जाएगी तो उसका आप करेंगे क्या? इसका जवाब हमें दीजिए। देवताओं का वरदान ऐय्याशी के लिए, मजा उड़ाने के लिए नहीं। शराबखोरी के लिए नहीं है। यह किसी खास काम के लिए मिलता है। अगर आपको देवताओं से वरदान प्राप्त करना है तो आप उनकी बिरादरी का बनें। अध्यात्म के रास्ते पर चलना चाहते हैं, देवताओं से कुछ प्राप्त करना चाहते है तो आपको मैच्योर होना पड़ेगा, उसके विना काम नहीं बनेगा। मैच्योर किसे कहते हैं? जो अपनी जिम्मेदारी को समझता है। आप अपनी जिम्मेदारी समझते है या नहीं? आप अगर जिम्मेदारी समझते हैं तो आपको चरित्रवान होना चाहिए, चिंतनशील होना चाहिए, तब आप मैच्योर कहे जाएँगे।
आप भी जिस दिन मैच्योर हो जाएँगे अपनी जिम्मेदारी समझने लगेंगे अर्थात यह मानवीय जिम्मेदारी होगी। आपके साथ इनसानियत के फर्ज जुड़े हुए हैं। अतः आपको एक अच्छा नागरिक होना चाहिए। आपको चिंतनशील होना चाहिए। आपको अपने फर्ज एवं कर्तव्यों से जुड़ा हुआ होना चाहिए। आप जब सज्जन, शरीफ होंगे तभी ही आप अध्यात्मवादी बन सकते हैं। नाबालिग वे हैं जो सिनेमा देखते हैं, शराब पीते हैं तथा अनाप- शनाप पैसे इधर- उधर लगाते रहते हैं। मैच्योर वे हैं जो अपनी जिम्मेदारी समझते हैं तथा फिजूलखर्ची नहीं करते हैं।
आध्यात्मिकता जीवन जीने की शैली का नाम है। जादूगरी का नाम नहीं है जैसा कि आप समझते हैं। अगर जादूगरी सही होती तो इसे दिखाने वाले रास्ते पर भीख नहीं माँगते, वह तो करोड़पति हो जाते। अध्यात्मवादी वह है जो यह समझता है कि हमें प्राप्त चीजों को कहाँ खरच करना है, किस प्रकार खरच करना है? यह गायत्री मंत्र की विशेषता है, जिसके आधार पर हमारे मंत्र सफल होते चले गए तथा हम भी प्रगति की ओर बढ़ते चले गए। हमने गायत्री मंत्र की उपासना पूरी श्रद्धा- निष्ठा के साथ २४ साल केवल जौ की रोटी एवं छाछ खाकर की है। हमने इन दिनों में यह नहीं जाना कि गेहूँ किसे कहते हैं, नमक एवं शक्कर किसे कहते हैं? हमने गायत्री मंत्र की उपासना अवश्य की है, परंतु हमारे बास तथा हमारे जीव एक एग्रीमेंट है, क्या एग्रीमेंट है? पहला यह कि आप नेक इनसान की तरह जीवन जीने का प्रयास करेंगे। हमने नेकी तथा शराफत के आधार पर जीवन जीने का प्रयास किया है। हमने ब्राह्मण तथा संत की तरह जीवन जीने का प्रयास किया है। ब्राह्मण किसे कहते हैं? जो किफायतसारी जीवन जीता है। संत जिसे कहते हैं? जो दयालु होता है। जिसके हृदय में करुणा एवं दया होती है। जो दूसरे के दुःखों को समझते हैं। दूसरे के दुःखों को मिटाने के लिए जिसके मन में से उमंगें उठती हैं। उसे संत कहते हैं।
ब्राह्मण एवं संत भगवान से बड़े होते हैं। नारद भगवान से बड़े थे। उनको बहुत अधिकार प्राप्त थे। महर्षि श्रृंगी ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था। उसके कारण चार पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न पैदा हुए थे। संत, ब्राह्मण की शक्ति बहुत महान होती है। वह भगवान से बड़े होते हैं। इसे ब्राह्मण जीवन एवं संत जीवन कहते हैं अर्थात चरित्रवान जीवन एवं उदार जीवन। आप ब्राह्मण हैं कि नहीं, यह मैं नहीं जानता हूँ। बहुत से जाति के ब्राह्मण हैं, परंतु वे जूते का व्यापार करते हैं। हम किसी को जाति से ब्राह्मण नहीं मानते हैं। आपका कर्म, रहन- सहन ब्राह्मण का है या नहीं, यह मैं जानना चाहता हूँ। व्यक्ति वंश, वेश से ब्राह्मण एवं संत नहीं हो जाता है। अगर आपका जीवन उदार है, दूसरों के दुःखों को देखकर आपका मन द्रवित होता है, तो आप ब्राह्मण एवं संत हैं।
गायत्री मंत्र की उपासना बीज लगाने के बराबर है। परंतु बीज लगाने के बाद उसमें पानी डालना पड़ता है। बिना इसके वह फलेगा- फूलेगा नहीं। आप किसान हैं तो बीज लगाइए, खाद डालिए एवं पानी लगाइए। आप मनुष्य हैं तो आपको भोजन के साथ पानी एवं हवा भी चाहिए इसके बिना आप जिंदा नहीं रह सकते हैं। भजन आप करते है तो इसके साथ दो चीजें जुड़ी हैं- (१) चरित्रवान जीवन- ब्राह्मण, (२) संत जीवन- जो खाता नहीं खिला देता है। झरना पानी देता रहता है और ऊपर से उसे पहाड़ों से पानी मिलता रहता है। बादल बरसते रहते हैं, पुनः धरती से उड़कर बादल बनते रहते हैं। नदियाँ अपना पानी समुद्र को देती हैं, उससे बादल बनते हैं और वह धरती को देता है। धरती नदी को, नदी समुद्र को देती है। यह क्रम चलता रहता है, इसे कोई तोड़ नहीं सकता है।
गायत्री उपासना के तीन चरण होते हैं यानि कि तीन फायदे हैं। हमने तीनों फायदे उठाए हैं। आत्मसंतोष- आत्मा हमारी बहुत प्रशंसा करती रहती है। दुनिया आपकी प्रशंसा करे तो आपको क्या फायदा है? जीवात्मा अगर प्रशंसा करे तो आपको फायदा होगा। इसी का नाम आत्मसंतोष है। आत्मा अगर यह कहती है कि आप बहुत सुंदर हैं, सुंदर काम कर रहे हैं तो यह प्रसन्नता की बात होगी। हमारे से ज्यादा खुश इस दुनिया में शायद ही कोई मिलेगा। हमारे देवता हमारे चेहरे पर छाए रहते हैं। मनहूस वह आदमी है, जो जलते रहते हैं तथा जलाते रहते हैं। भूत वह होते हैं जो जलती हुई जिंदगी, जलाती हुई जिंदगी जीते हैं। उलटे काम करती हुई जिन्दगी, हैरान होती जिंदगी जो जीते हैं, वह बेकार के आदमी होते हैं। आपको खुशी की जिंदगी, मस्ती की जिंदगी जीना चाहिए। हम चाहते हैं कि आप वेदमाता का दूध पिएँ तथा हँसती -हँसाती हुई जिन्दगी, मस्ती की जिंदगी, प्रकाशवान जिन्दगी जिएँ। आपका रास्ता खुला है। एक रास्ता सिद्धि का है एवं सम्मान का है। अगर आपने सेवा करते हुए सम्मान माया है तो आपको सहयोग भी मिलेगा। हम हर जगह जाते हैं तो हर जगह सहयोग भी पाते हैं तथा सम्मान भी पाते है। आप भी पा सकते है। गाँधी जी ने सहयोग भी पाया था, सम्मान भी पाया था। विनोबा ने भी दोनों चीजें पाई। जनता जिनको सम्मान देती है, उनको सहयोग भी देती है। आपको अपनी बीबी ने, बच्चे ने भी सहयोग नहीं दिया है। हमें तो उन लोगों ने सहयोग दिए हैं जो न हमारे मित्र हैं, न बेटे हैं, न रिश्तेदार हैं। क्यों बरसता है यह सब? क्योंकि हमने अध्यात्म को अपने जीवन में अपनाया है। हम एकनिष्ठ हैं। हमने एक की इष्ट बनाकर रखा है, पर आपने तो शंकर जी, गणेश जी न जाने कितनों को इकट्ठा कर लिया, पर अपना इष्ट एक भी न बना सके।
हमारा सहयोग जनता ने किया, हमारा सहयोग जीवात्मा ने दिया जो अंदर की है। हमको संतोष मिला। देवताओं ने हमें अनुग्रह दिया है। हमने एक किलो कमाया है तो वह देवताओं का अनुग्रह है। हमारे बास, हमारे गुरु, हमारे भगवान ने दिया है। हमने कितने लोगों की आँखों के आँसुओं को पोछा है। मालूम है उसमें कितना तप खरच होता है? यह हमें हमारे बाँस भगवान से, बैंक से मिलता है एवं हम खरच करते रहते हैं। हमारा भगवान हमारे साथ पायलट की तरह से चलता है, हमारा भगवान हमारे साथ पायलट की तरह से चलता है। हमारा भगवान हमारा रथ चलाता है। हमारा भगवान बहुत अनुग्रह करता है, कृपा देता रहता है। हमारा भगवान हमारे हाथ- पैर के रूप में चलता है। हम बहुत हिम्मत एवं साहस के साथ चलते हैं। मस्ती के साथ चलते हैं। आप भी चल सकते हैं। गायत्री माता आपको ऐसे रास्ता दिखाती रहेगी। हम जिस रास्ते पर चले हैं वह बहुत शानदार एवं सुंदर है। भगवान करे आप भी उस रास्ते पर चलें। भारतीय संस्कृति के अंतर्गत एक ही उपासना है और वह है- गायत्री मंत्र की। जिसकी उपासना हमारे पूर्वजों ने, ऋषियों ने की थी, उसे हमने फिर से प्रारंभ किया है। हमने जगह- जगह शक्तिपीठों, प्रज्ञापीठों के माध्यम से इसी मंत्र को जन- जन तक पहुँचाने का प्रयास किया है। हमें २- ४ वर्ष और जीना है, इस बीच हम जन- जन तक इस मंत्र को पहुँचा देना चाहते हैं।
एक शब्द में अगर आप यह जानना चाहें कि भारतीय संस्कृति क्या हो सकती है तो मैं गायत्री मंत्र का नाम लूँगा। आप गायत्री को समझ लीजिए तो फिर आप भारतीय संस्कृति के सारे के सारे आधार समझ जाएँगे। ज्ञान को भी समझ जाएँगे और विज्ञान को भी समझ जाएँगे। ऐसी है गायत्री, जिसको कि हम और आप अपने जीवन में धारण करने की कोशिश करते हैं। जिसकी हम उपासना करते हैं, जिसका हम ब्रह्मविद्या के रूप में तत्त्वज्ञान जानने की कोशिश करते हैं।
गायत्री के दो अर्थ हैं, आप तो एक ही अर्थ समझ पाते हैं तो क्या समझ पाते हैं? आपको तो मात्र प्रयोग मालूम है। गायत्री की प्रैक्टिस ही मालूम है। गायत्री का जप कैसे किया जाता है, यह क्या है? यह प्रैक्टिस है। ध्यान कैसे किया जा सकता है, यह प्रैक्टिस है। बेटे! प्रैक्टिस अपने आप में पूर्ण नहीं है। यह उत्तरार्द्ध है तो पूर्वार्द्ध क्या है? पूर्वार्द्ध है- फिलॉसफी। पहला अंश तत्त्वज्ञान। गायत्री एक फिलॉसफी है। फिलॉसफी से क्या मतलब है?- ब्रह्मविद्या। ब्रह्मविद्या से क्या मतलब है कि जो कुछ भी मानव जीवन की श्रेष्ठता और गरिमा से संबंधित है, वह सारे का सारा भारतीय तत्त्वज्ञान में आ जाता है। गायत्री का पहला वाला अंश वह है, जिसको आप समझने की कोशिश भी नहीं करते, केवल प्रैक्टिस करना जानना चाहते हैं। थ्योरी जानना चाहते हैं, जप करना जानना चाहते हैं। होड़ करना जानना चाहते हैं। ध्यान करना जानना चाहते हैं। यह भी ठीक है, मैं मना नहीं करता, पर थ्योरी और प्रैक्टिस दोनों जुड़ी हुई हैं। नहीं, हम तो प्रैक्टिस करेंगे, थ्योरी से क्या फायदा? आपरेशन करेंगे हम तो, उसकी एनोटॉमी, फिजीओलाजी सीखने से क्या फायदा? भाई साहब, पहले उसकी एनोटॉमी, फिजीओलाजी सीखिए। नहीं साहब,ये तो बेकार का टाइम हम नहीं गँवाएगे। आप तो आपरेशन करना सिखा दीजिए। बेटे! आपको शरीर की संरचना मालूम नहीं है। टिशूज कैसे होते हैं? सैल कैसे होते हैं? अमुक चीज कैसी होती है? विना इस जानकारी के आप ऐसे ही करेंगे आपरेशन, पेट को चीर डालेंगे, सुई- धागे से सी डालेंगे तो आप भी मरेंगे और वह भी मर जाएगा, जिसकी आप चीर- फाड़ करेंगे। पहले आप एनोटॉमी, फिजीओलॉजी वगैरह सीखिए।
गायत्री का तत्त्वज्ञान भी उतना ही ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, जितना कि उसका प्रयोग। जितना कि उसका व्यवहार। लोगो ने व्यवहार करना सीखा है। चौबीस हजार का जप करना चाहिए। ध्यान ऐसे, जप ऐसे करना चाहिए। बेटे! यह प्रयोग वाला हिस्सा है फिलॉसफी वाला पक्ष और भी शानदार है जो कुछ भी ज्ञान और विज्ञान की धाराएँ हैं, ये दोनों धाराएँ गंगा- यमुना की तरीके से मिलती है। इसलिए गायत्री के दो नाम दिए गए है। एक का नाम गायत्री और एक का नाम सावित्री। सवित्री किस हिस्से को कहते हैं? सावित्री उसे कहते हैं जो विज्ञान वाला भाग है। वैज्ञानिक प्रयोग के लिए सावित्री का महत्त्व है। जब भी आपको जप करना पड़ेगा, ध्यान करना पड़ेगा, उपासना करनी पड़ेगी, अनुष्ठान करना पड़ेगा तो आप मनुस्मृति में पढ़ डालिए इसके प्रयोग के पक्ष में, जहाँ कहीं भी गायत्री के प्रयोग हुए है उस सारे के सारे प्रयोग को सावित्री के नाम से पुकारा गया है। मनुस्मृति में हर जगह जहाँ कहीं भी सावित्री का जिक्र आया है, गायत्री का जिक्र नहीं है। प्रयोग में केवल सावित्री काम आती है और गायत्री? गायत्री किस काम आती है? गायत्री ब्रह्मविद्या है। चिंतन जिसको कहते हैं, फिलॉसफी जिसको कहते हैं, विचारणा जिसको हम कहते हैं। ये सारे का सारा पक्ष गायत्री का है। इसके ज्ञान और विज्ञान पक्ष दोनो हैं, जिसको हम समझ पाएँ तो गंगा और यमुना दोनों की धारा तरीके से मजा आ जाए। इनके मिलने से जिस तरह से त्रिवेणी बन जाती है उसी तरीके से दोंनो के मिलने से त्रिवेणी बन जाती है। दो चीजों के मिलाने से तीसरा रंग बन जाता है। दोनों चीजों, दोनों तारों को जब हम मिला देते है तो एक नई चीज, एक नई धारा पैदा हो जाती है। तत्त्वज्ञान और उसका प्रयोग दोनों का उपयोग अगर हम करेंगे तो गायत्री की जो महत्ता और गरिमा है, उसका हम लाभ उठा पाएँगे। तत्त्वज्ञान को नहीं समझेंगे, केवल प्रयोग करते रहेंगे तो परिणाम यह रहेगा कि जो लाभ होना चाहिए, वह काफी नहीं होगा। इसकी फिलॉसफी को समझते रहेंगे, आप विचारणा करते रहेंगे, आप इन चीजों को समझते रहेंगे, लेकिन उसको जीवन में प्रयोग न कर सकेंगे तो भी थोड़ा ही मुनाफा मिल पाएगा।
मित्रो! थ्योरी भी अधूरी है और प्रैक्टिस भी अधूरी है, इसको जब हम मिला देते हैं- दोनों की तो बात पूरी हो जाती है। दवा भी अधूरी है और उसका परहेज भी अधूरा है। परहेज हम करेंगे नहीं, नहाएँगे नहीं, कुल्ला नहीं करेंगे। हकीम जी ने दवा बताई है, पर दवा नहीं खाएँगे, तो भी गलत और दवा खाएँगे, लेकिन परहेज नहीं करेंगे तो भी गलत है।दोनों चीजों का समन्वय हो जाने से बीमारी से उद्धार मिलता है। गायत्री मंत्र की जो सामर्थ्य और शक्ति ऋषियों और शास्त्रकारों ने बताई है, वह इस बात पर टिकी हुई है कि आप उसकी फिलॉसफी को भी समझें और प्रैक्टिस को भी समझें। दोनों को मिला देने से गायत्री मंत्र समर्थ हो सकता है और उसके बारे में जो महिमा और गरिमा बताई गई है, उनका साक्षात्कार करने में हम और आप समर्थ हो सकते हैं। ये दोनों काम नहीं करेंगे तो आपकी शिकायत हो सकती है कि हमको लाभ नहीं मिला। आप उसकी फिलॉसफी को भी समझिए, उसकी शिक्षा और प्रेरणा को भी समझिए। जीवन में हमारे किस तरह से उसके आदर्श और सिद्धांतों का समन्वय होना चाहिए? यह भी आप समझिए।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियों! भाइयों!! आपसे मैं यह निवेदन कर रहा था कि इस दुनिया में जो सबसे बड़ा देवता दिखाई पड़ता है, उसका नाम माता है। "मातृदेवोभव, पितृदेवोभव, आचार्यदेवोभव"- माता की बराबरी किसी से भी नहीं की जा सकती है। वह नौ महीने बच्चे को अपने पेट में रखती है, अपने रक्त से हमारा पालन- पोषण अपने पेट में करती है। जन्म लेने के बाद अपने लाल खून को सफेद दूध में परिवर्तित करके हमें पिला देती है और हमारे शरीर का पोषण करके हमें बड़ा बना देती है। माता का प्यार, दुलार, दूध तथा पोषण जिनको नहीं मिलता है, वह अपूर्ण होता है।
एक और माँ है, जिसके बारे में हम नहीं जानते हैं। जो शरीर का नहीं, बल्कि आत्मा का पोषण करती है। उसका नाम कामधेनु है। यह स्वर्ग में रहती हैं, जिसका दूध पीकर देवता दिव्य बन जाते हैं, सुंदर बन जाते हैं, अजर- अमर बन जाते हैं, दूसरों की सेवा करने में समर्थ होते हैं। स्वयं तृप्त रहते हैं। सुना है कि कामधेनु स्वर्ग में रहती है। स्वर्ग में मैं गया भी नहीं हूँ, उसके बावत में कैसे कह सकता हूँ, परंतु एक कामधेनु की बावत हम बतलाना चाहते हैं कि जो स्वर्ग में लोगों को फायदा पहुँचा सकती है। उसका नाम गायत्री है। उसी का नाम ऋतम्भरा प्रज्ञा है, दूरदर्शिता, विवेकशीलता, विचारशीलता भी है, जिसको हम भारतीय संस्कृति की आत्मा कह सकते हैं।
बीज छोटा सा होता है, परंतु फलों का, फूलों का, सभी का गुण उस छोटे से बीज में सन्निहित होता है। छोटे से शुक्राणु में बाप, दादा का पीढ़ियों का गुण समाया रहता है। इसी तरह जो भी इस संसार का दिव्य ज्ञान- विज्ञान है, वह इस छोटे से गायत्री मंत्र के अंदर समाविष्ट है। २४ अक्षरों वाले बीज में विद्यमान है। ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि के निर्माण की योजना बनाई तो उन्होंने सोचा कि ज्ञान एवं विज्ञान के बिना इस सृष्टि का निर्माण कैसे हो सकता है? उन दोनों को प्राप्त करने के लिए कमल के फूल पर बैठकर बतलाते हैं कि उन्होंने हजार वर्ष तक तप किया। वह कौन भी साधना थी? वह गायत्री मंत्र की उपासना एवं साधना थी। जो सफलता एवं सामर्थ्य उन्हें प्राप्त हुई, वह कौन सी थी? वह मित्रो! गायत्री मंत्र की थी जिसे उन्होंने प्राप्त किया कि था। ब्रह्माजी ने उस गायत्री मंत्र को चार टुकड़ों में बाँटकर चार वेदों का निर्माण कर दिया।
'ॐ भूर्भुवः स्व:' से ऋग्वेद बनाया गया।
'तत्सवितुर्वरेण्यं' से यजुर्वेद बनाया गया।
'भर्गो देवस्य धीमहि' से सामवेद बनाया गया।
'धियो यो नः प्रचोदयात्' से अथर्ववेद बनाया गया।
वे वेद जो हमारे सारे के सारे धर्म एवं संस्कृति के बीज हैं। इन चारों के चारों वेदों में वेदमाता गायत्री का ही वर्णन है। वेद उनसे ही पनपे हैं, उसी गायत्री मंत्र का जिसका हम प्रचार करते हैं। जिसके लिए हमने अपना जीवन समर्पित कर दिया। वह शानदार बीज मंत्र है। ब्रह्मा जी ने तप करके इसके द्वारा सृष्टि को बनाया। इसका तत्त्वदर्शन एवं व्याख्यान सर्वसाधारण की समझ में नहीं आएगा, यह समझकर ऋषियों ने गायत्री मंत्र के २४ अक्षरों से भगवान के अवतारों की तुलना की। एक- एक अवतार गायत्री मंत्र के एक- एक अक्षर की व्याख्या है। गायत्री मंत्र का स्वरूप- सामर्थ्य क्या है? उसका जीवन में उपयोग किस परिस्थिति में हम किस तरह करें? यह जानकारी देने के लिए ऋषियों ने २४ अवतारों की रचना की तथा २४ पुराणों का निर्माण किया। भगवान दत्तात्रेय के २४ गुरु थे। यह गायत्री मंत्र के २४ अक्षरों से ही उनको जान मिलता था। महर्षि बाल्मीकि की बाल्मीकि रामायण में २४००० श्लोक हैं, उसमें उन्होंने गायत्री मंत्र के एक- एक अक्षर का संपुट लगाकर व्याख्या की है। श्रीमद्भागवत में भी इसी गायत्री मंत्र के संपुट लगा करके श्लोक बनाए गए। 'परम धीमहि' यानि कि इसमें 'धीमहि' की ही व्याख्या है। देवी भागवत् पूर्ण रूप से गायत्री मंत्र की ही व्याख्या है। भारतीय संस्कृति के अंतर्गत आपको जो भी दिखाईं पड़ता है, वह वास्तव में विशुद्ध रूप से गायत्री मंत्र का ही वर्णन है। यह बहुत शानदार है। ऋषियों ने इसकी महत्ता- उपयोगिता समझो तथा उन्होंने सभी लोगों से कहा कि आप सब कुछ भूल जाना, परंतु इस माता को मत भूलना। माँ को हम किसी तरह न भूलें।
इनसान का एक और शरीर है- 'विचारणा' विचार की भूमिका के रूप में, मस्तिष्क के ऊपर शिखा के रूप में, अंकुश के रूप में गायत्री मंत्र विद्यमान है। हर इनसान जब अपने सिर पर हाथ फेरता है तो उसे माँ की याद आ जाती है। यह चिद्रूपणी है, महामाया है। एक अंकुश हाथी के ऊपर होता है, मनुष्य के मन पर, विचारणा के ऊपर भी अंकुश होना चाहिए। यह गायत्री माता अंकुश के रूप में सिर के ऊपर विद्यमान है। मनुष्य के ऊपर ऋषियों ने गायत्री के रूप में शिखा की स्थापना करके यह बतलाया कि आप हमेशा विचार करते समय, बोलते समय, यह ख्याल रखना कि हमारे ऊपर अंकुश लगा हुआ है। हमें मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
यज्ञोपवीत हिंदू धर्म का मुख्य संस्कार है। शिखा मस्तिष्क पर तथा कंधे पर जनेऊ, ये दोनों ही गायत्री के प्रतीक हैं। गायत्री की तीन व्याहृतियाँ, जनेऊ की तीन लड़े है। ९ धागे गायत्री मंत्र के ९ शब्द हैं। इसका मतलब है- सामाजिक कर्तव्यों का पालन करना चाहिए तथा मर्यादा में रहना चाहिए। हर हिंदू के लिए ये दो चीजें अनिवार्य मानी गई हैं। वह क्या है? यह है गायत्री मंत्र। हमें दो बार संध्या करनी चाहिए। मुसलमान पाँच बार नमाज पढ़ते हैं। आप मनमरजी नहीं कर सकते। आपको इस मंत्र का दो बार अवश्य जप करना चाहिए, इसे गुरुमंत्र कहा गया है। गुरुमंत्र कैसा? प्रारंभ में जब गुरु किसी बच्चे को शिक्षण करता था तो वह उसकी सादी स्लेट में इसी मंत्र को लिखकर उसके ऊपर बच्चों को हाथ फेरने के लिए कहते थे, साथ ही साथ उसका उच्चारण भी कराया जाता हैं। इसीलिए इसे गुरुमंत्र कहा गया।
हिंदुओं का गुरुमंत्र एक है। मुसलमानों का गुरुमंत्र एक है, जिसे हम कलमा कहते हैं। ईसाई का गुरुमंत्र एक है जिसे बपतिस्मा कहते हैं।
उस अंधकार युग को क्या कहें, जिसमें हमने आर्थिक क्षेत्र, राजनैतिक आजादी, कला, वैभव सब कुछ खो दिया। इतना ही नहीं हमने अपने माता की पहचान खो दी। माता की पहचान जिन बच्चों को नहीं होती है तो उन बच्चों की मिट्टी पलीद हो जाती है। कैसे मिट्टी पलीद हो गई? हमारी बहुत मिट्टी पलीद हो गई। हमें जिससे आत्मा का परिपोषण, प्यार मिलता था, उस माँ को हम भूल गए। उसे ग्रहण करके हम देवमानव कहलाते थे। हम समर्थ, प्रतिभाशाली थे तथा विश्व के है सिरमौर थे। हम सुसंस्कृत कहलाते थे और उसे हम सारे विश्व में बाँटते रहते थे अमेरिका से लेकर पेरु तक न जाने कहाँ कहाँ सारे विश्व में बाँटते रहते थे।
अमेरिका कोलम्बस का, नीग्रोज का, आदिवासियों, रेड़इंड़ियन्स का बसाया हुआ नहीं है, बल्कि यह भारतीयों का बसाया हुआ था। वहाँ सूर्य मंदिर पाया गया है, जिसका अर्थ यह है कि वे गायत्री उपासक थे। वहाँ भारतीय कलेंडर इतना सुंदर पाया गया है, जितना सुंदर कलेंडर भारत में भी पाया नहीं जा सकता। यह क्या है? भारतीय सभ्यता थी। ऐसी संस्कृति थी भारत की, जिसका मूल था गायत्री मंत्र, गायत्री माता जिसे हम भूल गए। अंधकार के समय क्या होता है? चोर, उचक्के, उल्लू, साँप, बिच्छू, चमगादड़ चलते हैं। सब कुछ रात के समय होता है। झाड़ियाँ रात में डरावनी बन जाती हैं। रात के समय हम रास्ते पर चलते हैं तो हमें ठोकरें लग जाती हैं। हम दो हजार वर्ष तक अंधकार में भटकते रहे तथा हमने माँ को भी त्याग दिया। किसकी बतलाए कि किसने कहा- इस माँ को त्यागने के लिए?
गायत्री मंत्र जो सूर्य की तरह, धरती और हवा की तरह है, जो सबका है। पहाड़ सबका है, लेकिन हमें लोगों ने बतलाया कि मनुष्यों के चार वर्ण होते हैं। उसमें से एक वर्ण को ही इसका अधिकार है, अर्थात तीन चौथाई इससे वंचित रह गए। इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया कि इसके लिए महिलाओं को अधिकार नहीं है, अर्थात १/८ भाग का ही गायत्री मंत्र है। इसके बाद एक और स्वामी जी आए। उन्होंने कहा गायत्री मंत्र पर ब्रह्माजी का शाप लगा है, इसे कलियुग में नहीं जपा जा सकता है। एक और पंडित जी आए और उन्होंने कहा कि विश्वामित्र और वसिष्ठ ने शाप दे दिया है और गायत्री मंत्र को कीलित कर दिया है। हमने पूछा कि ब्रह्माजी जिन्होंने एक हजार वर्ष तक तप किया, वे कैसे शाप दे सकते हैं? हमने पूछा कि विश्वामित्र वे ऋषि हैं, जिन्होंने गायत्री के ऊपर पी- एच. डी. की, उसे वह कैसे शाप दे सकते हैं? एक पंडित जी हमारे पास आए, उन्होंने कहा कि यह गायत्री मंत्र कान में कहने का मंत्र है। हमने कहा कि अच्छी बातें तो खुलेआम बतलाई जाती हैं। अगर चोरी, बेईमानी, लंपटगीरी की बात हो तो कान में कहीं जाती है। इस तरह अंधकार के युग में न जाने क्या−क्या होता रहा? चालाक बाबाजी अपने- अपने नाम के मजहब, पंथ बनाते चले गए। इस प्रकार लोग भ्रमित होते चले गए और इस प्रकार भारतीय संस्कृति का मूल नष्ट हो गया, छिन्न- भिन्न हो गया। हर जगह अलगाव की स्थिति, विपन्नता की स्थिति बन गई।
आज ईसाइयों में, मुसलमानों में, सिक्खों में एकरूपता अभी भी है, परंतु टुकड़ों में कर दिया लोगों ने हिंदू समाज को, इतना ही नहीं तहस- नहस कर दिया भारतीय परंपरा को। इस समय सब बिखर गया है, परंतु अब अंधकार समाप्त होने जा रहा है। सूर्य उदय होने जा रहा है। सूर्य निकलने के समय चिडियाँ चहचहाने लगती हैं। मोर नाचते हैं। कमल का फूल खिलने लगता है, फूलों में खुशी मालूम पड़ती है। हवा ठंडी चलने लगती है। हर आदमी में एक जोश मालूम पड़ता है। रात की नींद खत्म हो जाती है। चोर, बिच्छू, साँप, चमगादड़ भाग जाते हैं। हमें विश्वास है कि अब हमारे देश का, भाग्य का, संस्कृति का पुनः सूर्य उदय होने वाला है। गायत्री मंत्र को पुनः घर- पहुँचाना संभव हो सकेगा। वह जो हमारी रीढ़ की हड्डी थी, उसे पुनः जोड़ देने का काम होने वाला है।
दिल्ली में एक बार महात्मा गाँधी ने जामिया मिलिया यूनीवर्सिटी में आधा घंटे का भाषण दिया। उसमें उन्होंने केवल गायत्री मंत्र पर ही व्याख्यान दिया। उसके समापन पर सारे मुसलमान गाँधी जी पर नाराज हो गए तथा यह कहा कि यह तो हिंदुओं का मंत्र है। यहाँ पर तो आपको और बातें करनी थी। गाँधी जी ने कहा कि यह हिंदुओं का नहीं, बल्कि विश्वमानव का मंत्र है। यह ऋतम्भरा प्रज्ञा, दूरदर्शिता, विवेकशीलता का मंत्र है। यह भीतर सोई हुई मानवता को जगाने का मंत्र है। हम भी ऐसा ही मानते हैं। हमें ऐसा मालूम पड़ता है कि हमने खोई हुई संस्कृति को पुनः पा लिया है। ऐसा लगता है कि साँप की मणि जो खो गई थी, उसे पा लिया है। हमने सुना है कि किसी हाथी के सिर पर गजमुक्ता रहता है। जब तक वह हाथी के सिर पर रहता है, तो वह मस्त रहता है, परंतु जैसे ही वह खो जाता है या चला जाता है तो हाथी पागलों की तरह हो जाता है। हाथी की बात, साँप की बात तो मैं नहीं कह सकता हूँ, परंतु मनुष्य की, भारतीय संस्कृति की बात कह सकता हूँ, जिसके भीतर कामधेनु जैसी शक्ति थी। उसे भुला दिया गया तथा आज साँप तथा हाथी की तरह से हम मणिहीन व कमजोर हो गए तथा दीन−हीन हो गए। हम फिर से उस प्रातःकालीन सूर्य को नमस्कार करते हैं, जो हमारी चीजों को दिखाता है। हमने अपने संस्कृति के स्वरूप को फिर से समझने की कोशिश की है।
गायत्री मंत्र एक फिलॉसफी है, इसे हम जीवन जीने की कला कह सकते हैं। यह सोचने का एक तरीका है, जीवन यापन करने की एक पद्धति है, समाज के गठन का तरीका है, विश्व की शांति का एक मूल मंत्र है। अगर हम इसे अपनाकर चलेंगे तो हम अच्छी दुनिया की कल्पना कर सकते हैं। अच्छी दुनिया हमें फिर देखने को मिल सकती है, जैसा कि प्राचीनकाल में देखने को मिलता था। गायत्री एक दिव्य ज्ञान है। इसे देवमाता कहते है। इसकी उपासना से मनुष्य देवता बन जाता है। इसको विश्वमाता भी कहते है। मित्रो! यह हम गायत्री के फिलॉसफी की व्याख्या कर रहे हैं, जिसे आपको जानना चाहिए। अगर इसे हम समझ गए तथा उस रास्ते पर हम चलने का प्रयास कर सके तो हमारा जीवन धन्य हो सकता है।
मित्रों! एक और चीज हम आपको बतलाना चाहते हैं जो गायत्री की फिलॉसफी नहीं है, वह गायत्री का साइंस है। हमारे भीतर ऐसी- ऐसी शक्तियाँ भरी पड़ी हैं, अगर उसे हम जगा सकें तो सारी महत्त्वपूर्ण चीजों को हम प्राप्त कर सकते हैं। अगर एक को भी जगाया जा सके तो साधारण इनसान भी देवता बन सकते हैं। इनसान ही देवता, भगवान होते रहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण, भगवान रामचंद्र जी इनसान के रूप में पैदा हुए एवं भगवान बन गए। इनसान उसे कहते हैं जो जन्म लेता है तथा मरता है। श्री रामचंद्र जी रामनवमी को जन्म लिए थे तथा मारे गए। श्रीकृष्ण भगवान जन्माष्टमी को जन्म लिए फिर मारे भी गए। ये इनसान से देवता और भगवान बने। आप भी बन सकते हैं अगर अपनी सोई हुई शक्ति को आप जगा लें।
इनसान के भीतर ऐसी- ऐसी शक्ति भरी पड़ी हैं, अगर आप उसे जगा सकते हैं तो आप ऋषि हो सकते हैं, महामानव हो सकते हैं। जार्ज वाशिंगटन हो सकते हैं, गाँधी हो सकते हैं, नेपोलियन, विवेकानन्द हो सकते हैं। गायत्री मंत्र की इसी महानता के कारण हमने गायत्री उपासना के द्वारा गायत्री की फिलॉसफी को जन- जन तक पहुँचाने का प्रयास किया है। यह गायत्री की साइंस है। हमने अपने जीवन में गायत्री की फिलॉसफी तथा गायत्री का साइंस दोनों को समझाने का प्रयास किया है और प्रयास में सफलता प्राप्त की है। उसके बाद आप लोगों के सामने हाजिर हुआ हूँ, ताकि आप लोगों को भी उसकी फिलॉसफी तथा साइंस को बतलाए। अगर इस रास्ते पर आप चलेंगे तो आप अपना भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों के दोनों जीवन बड़े शानदार बना सकते हैं। दोनों ही जीवन हमारे लिए आवश्यक हैं। आध्यात्मिक जीवन हमारा प्राण है तथा भौतिक जीवन हमारा शरीर है। इन दोनों का महत्त्व है। अगर दोनों अलग हो जाएँगे तो हम मृत बन जाएँगे। अतः हमें दोनों को मिलाकर चलना होगा। गायत्री मंत्र वह महामंत्र है जो मनुष्य की दोनों तरह की उन्नति करने में समर्थ है। मैं चाहता था कि आप लोगों को भौतिक, आध्यात्मिक उन्नति करने का मौका मिल जाए।
साथियों! गायत्री मंत्र के बारे में हमने सब कुछ बतला दिया है। गायत्री मंत्र की उपासना, अनुष्ठान सब बातें बतला दी हैं। इस प्रकार हमने सब बतला दिया है, लेकिन जो वजनदार चीजें अभी तक आपको नहीं बतला पाया हूँ, वह है गायत्री माता की विशेषता। वह क्या विशेषता है? बच्चे को कीमती चीजें माँ नहीं देना चाहती है, क्योंकि उसकी पात्रता नहीं है। अगर यह चीज आपको मिल जाएगी तो उसका आप करेंगे क्या? इसका जवाब हमें दीजिए। देवताओं का वरदान ऐय्याशी के लिए, मजा उड़ाने के लिए नहीं। शराबखोरी के लिए नहीं है। यह किसी खास काम के लिए मिलता है। अगर आपको देवताओं से वरदान प्राप्त करना है तो आप उनकी बिरादरी का बनें। अध्यात्म के रास्ते पर चलना चाहते हैं, देवताओं से कुछ प्राप्त करना चाहते है तो आपको मैच्योर होना पड़ेगा, उसके विना काम नहीं बनेगा। मैच्योर किसे कहते हैं? जो अपनी जिम्मेदारी को समझता है। आप अपनी जिम्मेदारी समझते है या नहीं? आप अगर जिम्मेदारी समझते हैं तो आपको चरित्रवान होना चाहिए, चिंतनशील होना चाहिए, तब आप मैच्योर कहे जाएँगे।
आप भी जिस दिन मैच्योर हो जाएँगे अपनी जिम्मेदारी समझने लगेंगे अर्थात यह मानवीय जिम्मेदारी होगी। आपके साथ इनसानियत के फर्ज जुड़े हुए हैं। अतः आपको एक अच्छा नागरिक होना चाहिए। आपको चिंतनशील होना चाहिए। आपको अपने फर्ज एवं कर्तव्यों से जुड़ा हुआ होना चाहिए। आप जब सज्जन, शरीफ होंगे तभी ही आप अध्यात्मवादी बन सकते हैं। नाबालिग वे हैं जो सिनेमा देखते हैं, शराब पीते हैं तथा अनाप- शनाप पैसे इधर- उधर लगाते रहते हैं। मैच्योर वे हैं जो अपनी जिम्मेदारी समझते हैं तथा फिजूलखर्ची नहीं करते हैं।
आध्यात्मिकता जीवन जीने की शैली का नाम है। जादूगरी का नाम नहीं है जैसा कि आप समझते हैं। अगर जादूगरी सही होती तो इसे दिखाने वाले रास्ते पर भीख नहीं माँगते, वह तो करोड़पति हो जाते। अध्यात्मवादी वह है जो यह समझता है कि हमें प्राप्त चीजों को कहाँ खरच करना है, किस प्रकार खरच करना है? यह गायत्री मंत्र की विशेषता है, जिसके आधार पर हमारे मंत्र सफल होते चले गए तथा हम भी प्रगति की ओर बढ़ते चले गए। हमने गायत्री मंत्र की उपासना पूरी श्रद्धा- निष्ठा के साथ २४ साल केवल जौ की रोटी एवं छाछ खाकर की है। हमने इन दिनों में यह नहीं जाना कि गेहूँ किसे कहते हैं, नमक एवं शक्कर किसे कहते हैं? हमने गायत्री मंत्र की उपासना अवश्य की है, परंतु हमारे बास तथा हमारे जीव एक एग्रीमेंट है, क्या एग्रीमेंट है? पहला यह कि आप नेक इनसान की तरह जीवन जीने का प्रयास करेंगे। हमने नेकी तथा शराफत के आधार पर जीवन जीने का प्रयास किया है। हमने ब्राह्मण तथा संत की तरह जीवन जीने का प्रयास किया है। ब्राह्मण किसे कहते हैं? जो किफायतसारी जीवन जीता है। संत जिसे कहते हैं? जो दयालु होता है। जिसके हृदय में करुणा एवं दया होती है। जो दूसरे के दुःखों को समझते हैं। दूसरे के दुःखों को मिटाने के लिए जिसके मन में से उमंगें उठती हैं। उसे संत कहते हैं।
ब्राह्मण एवं संत भगवान से बड़े होते हैं। नारद भगवान से बड़े थे। उनको बहुत अधिकार प्राप्त थे। महर्षि श्रृंगी ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था। उसके कारण चार पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न पैदा हुए थे। संत, ब्राह्मण की शक्ति बहुत महान होती है। वह भगवान से बड़े होते हैं। इसे ब्राह्मण जीवन एवं संत जीवन कहते हैं अर्थात चरित्रवान जीवन एवं उदार जीवन। आप ब्राह्मण हैं कि नहीं, यह मैं नहीं जानता हूँ। बहुत से जाति के ब्राह्मण हैं, परंतु वे जूते का व्यापार करते हैं। हम किसी को जाति से ब्राह्मण नहीं मानते हैं। आपका कर्म, रहन- सहन ब्राह्मण का है या नहीं, यह मैं जानना चाहता हूँ। व्यक्ति वंश, वेश से ब्राह्मण एवं संत नहीं हो जाता है। अगर आपका जीवन उदार है, दूसरों के दुःखों को देखकर आपका मन द्रवित होता है, तो आप ब्राह्मण एवं संत हैं।
गायत्री मंत्र की उपासना बीज लगाने के बराबर है। परंतु बीज लगाने के बाद उसमें पानी डालना पड़ता है। बिना इसके वह फलेगा- फूलेगा नहीं। आप किसान हैं तो बीज लगाइए, खाद डालिए एवं पानी लगाइए। आप मनुष्य हैं तो आपको भोजन के साथ पानी एवं हवा भी चाहिए इसके बिना आप जिंदा नहीं रह सकते हैं। भजन आप करते है तो इसके साथ दो चीजें जुड़ी हैं- (१) चरित्रवान जीवन- ब्राह्मण, (२) संत जीवन- जो खाता नहीं खिला देता है। झरना पानी देता रहता है और ऊपर से उसे पहाड़ों से पानी मिलता रहता है। बादल बरसते रहते हैं, पुनः धरती से उड़कर बादल बनते रहते हैं। नदियाँ अपना पानी समुद्र को देती हैं, उससे बादल बनते हैं और वह धरती को देता है। धरती नदी को, नदी समुद्र को देती है। यह क्रम चलता रहता है, इसे कोई तोड़ नहीं सकता है।
गायत्री उपासना के तीन चरण होते हैं यानि कि तीन फायदे हैं। हमने तीनों फायदे उठाए हैं। आत्मसंतोष- आत्मा हमारी बहुत प्रशंसा करती रहती है। दुनिया आपकी प्रशंसा करे तो आपको क्या फायदा है? जीवात्मा अगर प्रशंसा करे तो आपको फायदा होगा। इसी का नाम आत्मसंतोष है। आत्मा अगर यह कहती है कि आप बहुत सुंदर हैं, सुंदर काम कर रहे हैं तो यह प्रसन्नता की बात होगी। हमारे से ज्यादा खुश इस दुनिया में शायद ही कोई मिलेगा। हमारे देवता हमारे चेहरे पर छाए रहते हैं। मनहूस वह आदमी है, जो जलते रहते हैं तथा जलाते रहते हैं। भूत वह होते हैं जो जलती हुई जिंदगी, जलाती हुई जिंदगी जीते हैं। उलटे काम करती हुई जिन्दगी, हैरान होती जिंदगी जो जीते हैं, वह बेकार के आदमी होते हैं। आपको खुशी की जिंदगी, मस्ती की जिंदगी जीना चाहिए। हम चाहते हैं कि आप वेदमाता का दूध पिएँ तथा हँसती -हँसाती हुई जिन्दगी, मस्ती की जिंदगी, प्रकाशवान जिन्दगी जिएँ। आपका रास्ता खुला है। एक रास्ता सिद्धि का है एवं सम्मान का है। अगर आपने सेवा करते हुए सम्मान माया है तो आपको सहयोग भी मिलेगा। हम हर जगह जाते हैं तो हर जगह सहयोग भी पाते हैं तथा सम्मान भी पाते है। आप भी पा सकते है। गाँधी जी ने सहयोग भी पाया था, सम्मान भी पाया था। विनोबा ने भी दोनों चीजें पाई। जनता जिनको सम्मान देती है, उनको सहयोग भी देती है। आपको अपनी बीबी ने, बच्चे ने भी सहयोग नहीं दिया है। हमें तो उन लोगों ने सहयोग दिए हैं जो न हमारे मित्र हैं, न बेटे हैं, न रिश्तेदार हैं। क्यों बरसता है यह सब? क्योंकि हमने अध्यात्म को अपने जीवन में अपनाया है। हम एकनिष्ठ हैं। हमने एक की इष्ट बनाकर रखा है, पर आपने तो शंकर जी, गणेश जी न जाने कितनों को इकट्ठा कर लिया, पर अपना इष्ट एक भी न बना सके।
हमारा सहयोग जनता ने किया, हमारा सहयोग जीवात्मा ने दिया जो अंदर की है। हमको संतोष मिला। देवताओं ने हमें अनुग्रह दिया है। हमने एक किलो कमाया है तो वह देवताओं का अनुग्रह है। हमारे बास, हमारे गुरु, हमारे भगवान ने दिया है। हमने कितने लोगों की आँखों के आँसुओं को पोछा है। मालूम है उसमें कितना तप खरच होता है? यह हमें हमारे बाँस भगवान से, बैंक से मिलता है एवं हम खरच करते रहते हैं। हमारा भगवान हमारे साथ पायलट की तरह से चलता है, हमारा भगवान हमारे साथ पायलट की तरह से चलता है। हमारा भगवान हमारा रथ चलाता है। हमारा भगवान बहुत अनुग्रह करता है, कृपा देता रहता है। हमारा भगवान हमारे हाथ- पैर के रूप में चलता है। हम बहुत हिम्मत एवं साहस के साथ चलते हैं। मस्ती के साथ चलते हैं। आप भी चल सकते हैं। गायत्री माता आपको ऐसे रास्ता दिखाती रहेगी। हम जिस रास्ते पर चले हैं वह बहुत शानदार एवं सुंदर है। भगवान करे आप भी उस रास्ते पर चलें। भारतीय संस्कृति के अंतर्गत एक ही उपासना है और वह है- गायत्री मंत्र की। जिसकी उपासना हमारे पूर्वजों ने, ऋषियों ने की थी, उसे हमने फिर से प्रारंभ किया है। हमने जगह- जगह शक्तिपीठों, प्रज्ञापीठों के माध्यम से इसी मंत्र को जन- जन तक पहुँचाने का प्रयास किया है। हमें २- ४ वर्ष और जीना है, इस बीच हम जन- जन तक इस मंत्र को पहुँचा देना चाहते हैं।
एक शब्द में अगर आप यह जानना चाहें कि भारतीय संस्कृति क्या हो सकती है तो मैं गायत्री मंत्र का नाम लूँगा। आप गायत्री को समझ लीजिए तो फिर आप भारतीय संस्कृति के सारे के सारे आधार समझ जाएँगे। ज्ञान को भी समझ जाएँगे और विज्ञान को भी समझ जाएँगे। ऐसी है गायत्री, जिसको कि हम और आप अपने जीवन में धारण करने की कोशिश करते हैं। जिसकी हम उपासना करते हैं, जिसका हम ब्रह्मविद्या के रूप में तत्त्वज्ञान जानने की कोशिश करते हैं।
गायत्री के दो अर्थ हैं, आप तो एक ही अर्थ समझ पाते हैं तो क्या समझ पाते हैं? आपको तो मात्र प्रयोग मालूम है। गायत्री की प्रैक्टिस ही मालूम है। गायत्री का जप कैसे किया जाता है, यह क्या है? यह प्रैक्टिस है। ध्यान कैसे किया जा सकता है, यह प्रैक्टिस है। बेटे! प्रैक्टिस अपने आप में पूर्ण नहीं है। यह उत्तरार्द्ध है तो पूर्वार्द्ध क्या है? पूर्वार्द्ध है- फिलॉसफी। पहला अंश तत्त्वज्ञान। गायत्री एक फिलॉसफी है। फिलॉसफी से क्या मतलब है?- ब्रह्मविद्या। ब्रह्मविद्या से क्या मतलब है कि जो कुछ भी मानव जीवन की श्रेष्ठता और गरिमा से संबंधित है, वह सारे का सारा भारतीय तत्त्वज्ञान में आ जाता है। गायत्री का पहला वाला अंश वह है, जिसको आप समझने की कोशिश भी नहीं करते, केवल प्रैक्टिस करना जानना चाहते हैं। थ्योरी जानना चाहते हैं, जप करना जानना चाहते हैं। होड़ करना जानना चाहते हैं। ध्यान करना जानना चाहते हैं। यह भी ठीक है, मैं मना नहीं करता, पर थ्योरी और प्रैक्टिस दोनों जुड़ी हुई हैं। नहीं, हम तो प्रैक्टिस करेंगे, थ्योरी से क्या फायदा? आपरेशन करेंगे हम तो, उसकी एनोटॉमी, फिजीओलाजी सीखने से क्या फायदा? भाई साहब, पहले उसकी एनोटॉमी, फिजीओलाजी सीखिए। नहीं साहब,ये तो बेकार का टाइम हम नहीं गँवाएगे। आप तो आपरेशन करना सिखा दीजिए। बेटे! आपको शरीर की संरचना मालूम नहीं है। टिशूज कैसे होते हैं? सैल कैसे होते हैं? अमुक चीज कैसी होती है? विना इस जानकारी के आप ऐसे ही करेंगे आपरेशन, पेट को चीर डालेंगे, सुई- धागे से सी डालेंगे तो आप भी मरेंगे और वह भी मर जाएगा, जिसकी आप चीर- फाड़ करेंगे। पहले आप एनोटॉमी, फिजीओलॉजी वगैरह सीखिए।
गायत्री का तत्त्वज्ञान भी उतना ही ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, जितना कि उसका प्रयोग। जितना कि उसका व्यवहार। लोगो ने व्यवहार करना सीखा है। चौबीस हजार का जप करना चाहिए। ध्यान ऐसे, जप ऐसे करना चाहिए। बेटे! यह प्रयोग वाला हिस्सा है फिलॉसफी वाला पक्ष और भी शानदार है जो कुछ भी ज्ञान और विज्ञान की धाराएँ हैं, ये दोनों धाराएँ गंगा- यमुना की तरीके से मिलती है। इसलिए गायत्री के दो नाम दिए गए है। एक का नाम गायत्री और एक का नाम सावित्री। सवित्री किस हिस्से को कहते हैं? सावित्री उसे कहते हैं जो विज्ञान वाला भाग है। वैज्ञानिक प्रयोग के लिए सावित्री का महत्त्व है। जब भी आपको जप करना पड़ेगा, ध्यान करना पड़ेगा, उपासना करनी पड़ेगी, अनुष्ठान करना पड़ेगा तो आप मनुस्मृति में पढ़ डालिए इसके प्रयोग के पक्ष में, जहाँ कहीं भी गायत्री के प्रयोग हुए है उस सारे के सारे प्रयोग को सावित्री के नाम से पुकारा गया है। मनुस्मृति में हर जगह जहाँ कहीं भी सावित्री का जिक्र आया है, गायत्री का जिक्र नहीं है। प्रयोग में केवल सावित्री काम आती है और गायत्री? गायत्री किस काम आती है? गायत्री ब्रह्मविद्या है। चिंतन जिसको कहते हैं, फिलॉसफी जिसको कहते हैं, विचारणा जिसको हम कहते हैं। ये सारे का सारा पक्ष गायत्री का है। इसके ज्ञान और विज्ञान पक्ष दोनो हैं, जिसको हम समझ पाएँ तो गंगा और यमुना दोनों की धारा तरीके से मजा आ जाए। इनके मिलने से जिस तरह से त्रिवेणी बन जाती है उसी तरीके से दोंनो के मिलने से त्रिवेणी बन जाती है। दो चीजों के मिलाने से तीसरा रंग बन जाता है। दोनों चीजों, दोनों तारों को जब हम मिला देते है तो एक नई चीज, एक नई धारा पैदा हो जाती है। तत्त्वज्ञान और उसका प्रयोग दोनों का उपयोग अगर हम करेंगे तो गायत्री की जो महत्ता और गरिमा है, उसका हम लाभ उठा पाएँगे। तत्त्वज्ञान को नहीं समझेंगे, केवल प्रयोग करते रहेंगे तो परिणाम यह रहेगा कि जो लाभ होना चाहिए, वह काफी नहीं होगा। इसकी फिलॉसफी को समझते रहेंगे, आप विचारणा करते रहेंगे, आप इन चीजों को समझते रहेंगे, लेकिन उसको जीवन में प्रयोग न कर सकेंगे तो भी थोड़ा ही मुनाफा मिल पाएगा।
मित्रो! थ्योरी भी अधूरी है और प्रैक्टिस भी अधूरी है, इसको जब हम मिला देते हैं- दोनों की तो बात पूरी हो जाती है। दवा भी अधूरी है और उसका परहेज भी अधूरा है। परहेज हम करेंगे नहीं, नहाएँगे नहीं, कुल्ला नहीं करेंगे। हकीम जी ने दवा बताई है, पर दवा नहीं खाएँगे, तो भी गलत और दवा खाएँगे, लेकिन परहेज नहीं करेंगे तो भी गलत है।दोनों चीजों का समन्वय हो जाने से बीमारी से उद्धार मिलता है। गायत्री मंत्र की जो सामर्थ्य और शक्ति ऋषियों और शास्त्रकारों ने बताई है, वह इस बात पर टिकी हुई है कि आप उसकी फिलॉसफी को भी समझें और प्रैक्टिस को भी समझें। दोनों को मिला देने से गायत्री मंत्र समर्थ हो सकता है और उसके बारे में जो महिमा और गरिमा बताई गई है, उनका साक्षात्कार करने में हम और आप समर्थ हो सकते हैं। ये दोनों काम नहीं करेंगे तो आपकी शिकायत हो सकती है कि हमको लाभ नहीं मिला। आप उसकी फिलॉसफी को भी समझिए, उसकी शिक्षा और प्रेरणा को भी समझिए। जीवन में हमारे किस तरह से उसके आदर्श और सिद्धांतों का समन्वय होना चाहिए? यह भी आप समझिए।