Books - गायत्री और यज्ञ का दर्शन मानव मात्र के लिए
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गायत्री और यज्ञ का दर्शन मानव मात्र के लिए
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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ -
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
मित्रो, गायत्री मंत्र की, गायत्री माता की, भगवान की मूर्तियाँ हमारे घरों में होनी चाहिए। लेकिन इससे भी ज्यादा शानदार, इससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हर इनसान के, हर व्यक्ति के और हर हिंदू के हृदय में इनकी स्थापना की जाए। गायत्री मंत्र केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं है, वरन वह प्रत्येक धर्मावलंबी व मजहब के मानने वालों के लिए है। हमें उन्नति करनी है, तो इन प्रतीकों को फिर अपनाना पड़ेगा, जिसको हम गायत्री कहते हैं। जिसकी स्थापना शरीरों में की गई थी। स्थापना मंदिरों में नहीं, पूजा-घरों में ही नहीं, बल्कि प्रत्येक हिंदू के शरीर के ऊपर इसकी स्थापना हुई। कैसे स्थापना हुई? शिखा और सूत्र के रूप में हुई। शिखा क्या है? शिखा एक विवेकशीलता की देवी, ज्ञान की देवी हमारे मस्तिष्क के ऊपर हावी है। मस्तिष्क के ऊपर हावी है और हमारे झंडे के रूप में फहराती है। शिखा क्या है? शिखा गायत्री है। जिस प्रकार से शंकर भगवान का सिम्बल, शंकर भगवान का चित्र हम गोल मटोल बना देते हैं और मंगलमय हो लेते हैं, उसी तरह से गायत्री माता का सिम्बल और चित्र, यह गायत्री माता की मूर्ति के रूप में हमारी शिखा के ऊपर रखा गया है। हम शिखा की स्थापना कराएँगे और हर आदमी से कहेंगे कि आपको शिखा जरूर रखनी चाहिए क्योंकि ये गायत्री माता की प्रतीक है, गायत्री माता की मूर्ति है। हम हर आदमी से कहेंगे कि आपको अपने कंधों के ऊपर सामाजिक कर्तव्य, नैतिक कर्तव्य की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। वे कर्तव्य क्या हैं? कर्म क्या हैं? उसको हम यज्ञोपवीत कहते हैं, जो हमारे कंधे पर रखा हुआ है। कर्म हमारे कंधे पर रखा हुआ है। कर्म करने की जिम्मेदारी हमारे कंधे पर रखी हुई है। कर्म करने की जिम्मेदारी हमारे हृदय पर टँगी रहनी चाहिए। कर्म करने की जिम्मेदारी हमारे कलेजे से चिपकी रहनी चाहिए। कर्म हमारे आगे भी रहना चाहिए कर्म हमारी पीठ के ऊपर भी रहना चाहिए। ये क्या है? ये है यज्ञोपवीत। यज्ञोपवीत हमारे कंधे पर रखा हुआ है, हमारे कलेजे पर रखा हुआ है, हमारे हृदय पर रखा हुआ है, हमारी पीठ पर रखा हुआ है। हमने चारों ओर से अपने आप को खींचकर बाँध दिया है, जिससे कि यह सतत ख्याल बना रहे कि सामाजिक कर्तव्य, नैतिक कर्तव्य और पारिवारिक कर्तव्य से हम जुड़े हुए हैं और बँधे हुए हैं।
जानवर के गले में रस्सा बाँध देते हैं और फिर उसे खूँटे से बाँध देते हैं, ताकि दायरे में रहा करे, मर्यादा में रहा करे, कायदे में रहा करे, कानून में रहा करे। हमारे ऋषियों ने भी हमको एक रस्से से बाँध दिया है, जो हमारे कंधे से बँधा हुआ है, हमारे हृदय से बँधा हुआ है, हमारे कलेजे से बँधा हुआ है, हमारी पीठ से बँधा हुआ है। चारों ओर से हमें जकड़कर बाँध दिया है और हमारे विवेक को, हमारी अक्ल को बाँध दिया है। यह क्या है? यह है-यज्ञोपवीत और शिखा। शिखा और यज्ञोपवीत क्या हैं? बताइए। ये हैं हमारे गायत्री मंत्र और यज्ञ। ये दोनों के दोनों प्रतीक हैं। यज्ञ से उपवीत किया हुआ, यज्ञ से प्राण-प्रतिष्ठा किया हुआ धागा। इसका नाम क्या है? यज्ञोपवीत, जो हमारे कंधे पर स्थापित है और शिखा? ये गायत्री मंत्र की व्याख्या है, जो हमने अपने मस्तिष्क के पास स्थापित की है। यह हमारे मस्तिष्क रूपी किले के ऊपर छाई रहती है और हमारे झंडे के रूप में फहराती रहती है।
यह शरीर ही हमारा किला है। यह हमारा लाल किला है। स्वतंत्रता दिवस के समय हमने लाल किले के ऊपर झंडा फहरा लिया था। कब फहरा लिया था? जिस दिन अँगरेज यहाँ से विदा हुए थे, उस दिन हमने अपने दिल्ली वाले लाल किले के ऊपर तिरंगा झंडा फहराया था। इसी तरह भारतीय संस्कृति का, मानवी मूल्यों का, सद्गुणों का झंडा हमारे मस्तिष्क के ऊपर फहराता है। यह शरीर हमारा किला है। यह हमारे व्यक्तिगत जीवन का किला है। इसके ऊपर हम झंडे की स्थापना करते हैं और व्यक्तिगत शिखा की स्थापना करते हैं। अब हम शिखा को प्यार करना सिखाएँगे लोगों को। शिखा को प्यार करना और मोहब्बत करना सिखाएँगे। किले को प्यार करना और किले को मोहब्बत करना अब हम सिखाएँगे लोगों को। हम घर-घर जाएँगे इसे सिखाने, क्योंकि हिंदू धर्म महान है, हिंदू धर्म विश्व का धर्म है, ये मनुष्यों का धर्म है। हिंदू धर्म के जो सारे सिद्धांत हैं, वे मात्र हिंदू लोगों के लिए ही नहीं हैं, बल्कि ये यूनीवर्सल हैं। ये विश्वव्यापी हैं, मानवमात्र के लिए हैं। हर देश के निवासी के लिए हैं। हर प्रदेश के निवासी के लिए हैं। चाहे वह हिंदू धर्म को मानता हो, चाहे न मानता हो। ये सारे के सारे सिद्धांत मानवमात्र के सिद्धांत हैं, विश्वव्यापी सिद्धांत हैं, सार्वभौम सिद्धांत हैं। सारे के सारे धर्मों का निचोड़ हमारे हिंदू धर्म में है।
हिंदू धर्म का मूल क्या है? हिंदू धर्म का मूल वह है जिसको हम शिखा कहते हैं, जिसको हम यज्ञोपवीत कहते हैं। अब हम इस झंडे को नष्ट नहीं होने देंगे और हर हिंदू को कहेंगे कि आप इसको प्यार करना सीखिए। आप भी अपनी संस्कृति को प्यार करना सीखिए आप अपनी माँ को प्यार करना सीखिए और आप अपने बाप को प्यार करना सीखिए। ये हमारा महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप है और इस क्रिया-कलाप का हम विस्तार करेंगे और आपके मनों में और जनता के मनों में स्थापित करेंगे। जब मुसलमान भारत आए थे, तब उन्होंने कहा था कि सुनो हम तुम्हारी चोटी काटना चाहते हैं। अब तुम्हारी चोटी को उतार देंगे। लोग बोले ठीक है, ताकत आपके हाथ में है और फौज आपके साथ में है और बंदूक आपके हाथ में है। हम क्या कर सकते हैं? हथियार हमारे पास नहीं है। आप जरूर हमारी चोटी काट सकते हैं, लेकिन एक मेहरबानी कीजिए। क्या मेहरबानी करें? आप इस चोटी को यहाँ से न काटकर गरदन से काट दीजिए। कारण, चोटी की जड़ यहाँ तक आई है। यदि आप इसे यहाँ से काट डालेंगे तो हमको संतोष बना रहेगा और कोई हमको दुःख का एहसास नहीं होगा और शांतिपूर्वक दुनिया से चोटी भी चली जाएगी और हम भी चले जाएँगे। अत: आप हमारा सिर काट डालिए। लाखों व्यक्तियों के सिर को मुसलमानों ने कलम करा दिया था।
अपनी शिखा और जनेऊ को हम कितना प्यार करते थे। आपकी तो नहीं मालूम, पर हमें मालूम है। आपको तो साढ़े चौहत्तर का आशय भी नहीं मालूम कि किसे कहते हैं साढ़े चौहत्तर? पहले जमाने में, पुराने जमाने में लोग लिफाफे पर साढ़े चौहत्तर नंबर डालते थे। आपको मालूम है क्यों डालते थे? जो कोई उस लिफाफे को खोल लेगा, उसको साढ़े चौहत्तर मन जनेऊ, जो अगणित हिंदुओं ने पहन रखे थे और काट डाले गए थे मुसलमानों के द्वारा, उसकी जो हत्या उन्हें पड़ी होगी, पाप पड़ा होगा, उस आदमी को भी पाप पड़ेगा, जो हमारी चिट्ठी को बिना बताए हुए खोल लेगा और चुपचाप पढ़ लेगा और फिर चिपका देगा। बंद कर देगा। उतना ही उसे पाप पड़ेगा। पता नहीं पाप पड़ता था कि नहीं और वह साढ़े चौहत्तर मन जनेऊ थे कि नहीं। मैं इस बहस में नहीं जाऊँगा। लेकिन भावना ये थी कि हम लोगों ने साढ़े चौहत्तर मन जनेऊ और शिखाएँ कटवा दी थीं और उसके लिए आप अंदाज लगा लीजिए साढ़े चौहत्तर मन जनेऊ जिस तराजू पर तौले गए होंगे उसके लिए कितना खून बहाया गया होगा? कितनी गरदनें कटाई होंगी? हमने बहुत गरदनें कटाई हैं। हमने अपना बहुत खून बहाया है, क्योंकि हम अपनी शिखा को प्यार करते हैं। जनेऊ को हम प्यार करते हैं। अपने चोटी को प्यार करते हैं हम। शिवाजी न होते तो चोटी भी न होती सबकी। चोटी की रक्षा करने के लिए राणाप्रताप, शिवाजी और गुरुगोविन्द सिंह ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी और किसका-किसका नाम बताएँगे आपको कि चोटी के लिए कितनों ने अपनी जान निछावर कर डाली, कुरबानी कर डाली। अब यह चोटी हमारे हाथ से चली गई, नीचे आ गई। अब यह खिसक रही है। कौन काट रहा है इसको? मुसलमान काट रहे हैं इसको? नहीं, ईसाई भी नहीं काट रहे हैं इसको? तो फिर कौन काटता है? इसको वो काटता है, जिसको हम इस युग की अनास्था कहते हैं। यही अनास्था चोटी को काटती चली जाती है। आप पता लगा लें कि किन-किन बच्चों के सिर पर चोटी है? आपको एक भी बच्चे के सिर पर चोटी दिखाई नहीं पड़ेगी, यही हाल जनेऊ का है।
दुनिया में कौन-कौन से रिवाज चले हुए हैं कि जनेऊ कौन पहनेगा? मर्द पहनेगा, औरत नहीं पहनेगी। लड़कियों को हम धन्यवाद देते हैं। क्योंकि शिखा की लाज, शिखा की इज्जत इन लोगों ने रख ली है। कोई-कोई लड़कियों तो बहुत लंबी-लंबी चोटी रखाती हैं। मर्द से कहते हैं कि अरे बाबा छह इंच की न सही तीन इंच की चोटी रख ले, पर इनको ३ इंच की रखने में भी परेशानी मालूम पड़ती है। इन छोकरियों में से किसी की एक फुट लंबी है, तो किसी की डेढ़ फुट लंबी है। किसी की २ फुट लंबी है, तो किसी की ढाई फुट लंबी है। ये भी नहीं है कि कोई पतली चोटी हो, वरन लड़कियों की मोटी-मोटी चोटियाँ हैं। जब वे अपने खाविंद को देखती हैं कि वह ऐसे सफाचट हैं कि उसने चोटी कटा ली है, तो वह दो भी रख लेती है। एक अपनी चोटी रख लेती है और दूसरी अपने खाविंद के लिए। जनेऊ भी तो हम दो पहनते हैं-एक अपना पहनते हैं और एक अपनी बीबी के बदले का पहनते हैं। इसी तरह लड़की कहती है कि एक चोटी अपने खाविंद के बदले की रखाएँगी और एक अपने बदले की। यही तो बात है कि जो धर्म बचा हुआ है, वह इन लड़कियों की वजह से बचा हुआ है। ये लड़कियाँ न होतीं तो इस चोटी का पता लगाना मुश्किल पड़ जाता। किसे कहते हैं चोटी और कैसे धारण की जाती है? चोटी कहाँ से आती है? चोटी की कौन रखवाली करता है? चोटी की हम रक्षा करेंगे और जनेऊ की हम रक्षा करेंगे।
यज्ञोपवीत धारण करने के कुछ नियम हैं, कुछ मर्यादाएँ हैं, जिन्हें जानना आवश्यक है। यज्ञोपवीत को छह महीने में बदलना चाहिए क्योंकि पसीने से छह महीने में वह मैली पड़ जाती है और धागे कमजोर हो जाते हैं। अत: हर छह महीने बाद यज्ञोपवीत के धागे को बदल देने चाहिए। सूर्यग्रहण पर भी बदल देते हैं, चंद्रग्रहण पर बदल देते हैं, कई बार बदलते हैं। यदि ऐसा नहीं हो पाता तो कम से कम छह महीने में तो बदल ही देने चाहिए। छह महीने के लिए हमने इसलिए ये कहा है कि-छह महीने में जनेऊ पुरानी पड़ जाती है। महिलाएँ प्राय हर महीने अपना जनेऊ बदल लेती हैं और नया धारण कर लेती हैं। इसी तरह कई लोग महीने में एक बार बदलते हैं। वैसे तो लोग अन्य मदों में ढेरों पैसा खरच कर देते हैं, तो महीने भर में एक जनेऊ पर खरच क्यों नहीं कर सकते हैं? उससे क्या आफत आ जाएगी? अत: हमको यज्ञोपवीत की स्थापना करनी पड़ेगी और हम उसे व्यापक आन्दोलन के रूप में चलाएँगे। जहाँ कहीं भी हमारे यज्ञ होंगे, जो कोई भी व्यक्ति हमारे यज्ञ में शामिल होने का इच्छुक होगा, उनसे हम ये कहेंगे कि यज्ञोपवीत करा लीजिए और जनेऊ पहन लीजिए। यदि वह कहेगा कि जनेऊ पहनेंगे तो हमारी अम्मा नाराज हो जाएगी। अम्मा नाराज हो जाएगी, तो आप ऐसा कीजिए कि यदि यज्ञ में शामिल होना चाहते हैं, तो आपको जनेऊ हम पहना देते हैं, आप पहन लीजिए। इसे आप चौबीस घंटे पहन लीजिए। चौबीस घंटे के बाद आप इसे विसर्जित कर देना। यदि आप हवन में शामिल होना चाहते हैं, तो जनेऊ जरूरी है। जनेऊ हमारे हिंदू धर्म का अक्षुण्ण अंग है। इसलिए इसे अपनाना शुरू कीजिए अभ्यास करना शुरू कीजिए। अब हम हवन को व्यापक बनाने की सोच रहे हैं तो यज्ञोपवीत को भी व्यापक बनाना पड़ेगा। हवन-यज्ञ और यज्ञोपवीत वास्तव में एक ही चीज है।
अभी मैं आपको मूर्ति-पूजा और बुत-परस्ती के बारे में कह रहा था। ठीक इसी तरह अगर आपने शिखा रखी और यज्ञोपवीत पहना, लेकिन शिखा रखने के बाद और यज्ञोपवीत पहनने के बाद में आपने उसका मूल्य समझा नहीं, उत्तरदायित्व समझा नहीं, शिक्षा को समझा नहीं, प्रेरणा को समझा नहीं, हकीकत को समझा नहीं तो आपको उससे उपेक्षा पैदा होती चली जाएगी और हमारे बच्चे जनेऊ पहनने से इनकार करेंगे, हमारे बच्चे चोटी रखने से इनकार करेंगे।
आज हमारे हिंदुओं के बच्चों ने इनसे क्यों इनकार किया? बताइए न आप? हिंदुओं के बच्चों ने इसलिए इनकार किया, क्योंकि उन्हें किसी ने भी ये बताया नहीं कि आखिर ये क्या है? हम लोगों ने इसे यज्ञोपवीत नाम क्यों दिया? इसके पीछे शिखा के बारे में कोई जानकारी नहीं दी कि शिखा क्या है और उसके पीछे क्या जिम्मेदारियों हैं? यज्ञोपवीत क्यों पहनाई जाती है और ये क्या याद दिलाती है? जनेऊ पहना तो दिया आपने, जनेऊ पहनाने की दक्षिणा भी दे दी पंडित जी को और हवन भी करा दिया और ब्रह्मभोज भी करा दिया, हजारों रुपए भी खरच कर दिए लेकिन यज्ञोपवीत पहनने के बाद जब बच्चे ने पूछा-पिताजी ये क्या है? इसे क्यों पहनते हैं? हमें क्यों जनेऊ पहनाया गया है? तब आपका जवाब होता है-चुप बे, ज्यादा बोलता है। हमारे बाप-दादा पहनते थे, इसलिए हम भी पहनते हैं। हम ब्राह्मण हैं। तुझे शरम नहीं आती, पूछता है क्यों पहनते हैं? सभी ब्राह्मण जनेऊ पहनते हैं। लेकिन पंडित जी ब्राह्मण तो सब पहनते हैं, पर क्यों पहनते हैं? आखिर ये क्या चीज है? चुप रह! क्यों पहनते हैं? पंडित जी-पंडित जी, हर वक्त धर्म के बारे में पूछताछ करता रहता है। धर्म के बारे में पूछताछ का जवाब देने में यदि आप समर्थ न हो पाए तो मित्रो, आपकी निष्ठा कमजोर होती चली जाएगी और हमारी सांस्कृतिक परंपराएँ संस्कार परंपराएँ विलुप्त होती चली जाएँगी। अत: संस्कार परंपरा के बारे में आपको बताना पड़ेगा, शिखा के बारे में बताना और समझाना पड़ेगा, जनेऊ के बारे में बताना और समझाना पड़ेगा। अगर आपने इस संबंध में बताना और समझाना शुरू कर दिया तो एक भी हिंदू का बच्चा यह नहीं कह पाएगा कि हमने यज्ञोपवीत तो करा लिया, पर हम जनेऊ नहीं पहनेंगे।
आप पूरे यूरोप में जाइए वहाँ तो हमसे अधिक पढ़े-लिखे लोग हैं। हमारे बच्चों को तो अँगरेजी आती भी नहीं है, मैट्रिक पास हैं। लेकिन कोई जनेऊ नहीं पहनता और साहब बना फिरता है। जबकि सारे के सारे यूरोप में आपको सब के सब शिक्षित आदमी मिलेंगे। कोई आदमी ग्रेजुएट से कम नहीं मिलेगा। जो आदमी दिन में नहीं पढ़ सकते, वे रात में पढ़ते हैं और ग्रेजुएट हो जाते हैं। लेकिन आपके मालूम होना चाहिए कि कोई भी आदमी, कोई भी ईसाई कहीं भी निकलता है तो अपनी प्रॉपर ड्रेस में निकलता है, जिसमें ''टाई'' भी शामिल है। टाई क्या है? टाई ईसाइयों का यज्ञोपवीत हैं। ''क्रूस'' जिसमें ईसा मसीह को फाँसी लगाई गई थी। टाई उस फाँसी का प्रतीक है। प्रत्येक ईसाई, जिसमें कि बड़े से बड़ा आदमी शामिल है और-छोटे से छोटा भी शामिल है या जो भी ईसा मसीह में विश्वास करता है, यकीन करता है वह गले में फाँसी का फंदा, टाई के रूप में लगाकर सड़कों पर निकलता है और कहता है कि ये हमारी शान है और हमारी इज्जत है और हम पहनकर निकलते हैं। अरब देशों में मुसलमान तिरछी टोपी पहनकर निकलते हैं। हमारे हिंदुस्तान में भी वे तिरछी टोपी पहनकर निकलते हैं और कुछ लोग बालों वाली टोपी पहनकर निकलते हैं और चूड़ीदार पाजामा तथा अचकन पहनकर निकलते हैं। आप जाइए वहाँ। कहाँ? जामिया मिलिया इस्लामिया कॉलेज में और दूसरे कॉलेजों में भी मुसलमानों के लड़कों को देखिए ना। अलीगढ़ मुसलिम यूनीवर्सिटी में जाइए ना, वहीं आपको आगे वाली मूँछें कटाए हुए और पाजामा एवं चप्पल पहने हुए आपको मुसलमानी लिबास में उसी लहजे में, उसी तर्ज में काम करते हुए मिलेंगे, दिखाई पड़ेंगे। आप जामिया मिलिया कॉलेज में जाइए अन्य स्कूल, कॉलेजों में जाइए आपको प्रत्येक जगह वे सारे के सारे मुसलमानी लिबास में मिलेंगे। क्या वो पढ़े-लिखे नहीं हैं? क्या हिंदुओं के लड़के पढ़े-लिखे हैं? क्या हिंदुओं के लड़कों के दिमाग सातवें आसमान पर नहीं हैं? क्या हिंदुओं के लड़कों को बहस करना आ गया? मुसलमान के लड़कों को बहस करना नहीं आया? उनको भी आता है।
आप सिखों के कॉलेजों में जाइए। वहाँ के सारे के सारे स्टूडेंट आपको साफा पहने हुए मिलेंगे। अपने सिर पर कलंगी लगाए हुए दीखेंगे और अपने हाथ में कृपाण लिए हुए या बगल में डाले हुए दिखाई देंगे। क्या वो पढ़े-लिखे हुए नहीं हैं? क्या सारी अक्ल आपके ही हिस्से में आ गई है। क्या वे पड़े-लिखे नहीं है? विद्या उनको नहीं आती। नहीं साहब, वह तो शिक्षा ने ऐसा बना दिया हमें। तो शिक्षा ने हमें ही बना दिया, उन्हें नहीं बनाया? शिक्षा उन्होंने भी तो पढ़ी है। एम० ए० पास हैं और मुसलमान भी तो एम० ए० पास हैं। फिर हमारे यहाँ ये क्या हो रहा है? मित्रो इसकी जिम्मेदारी हमारी और आपकी है। धर्म के बारे में, यज्ञोपवीत के बारे में बताने और समझाने की कोशिश हमने नहीं की। ये शिखा क्या है? ये यज्ञोपवीत क्या है? इसका हमने कभी समाधान कर दिया होता, उनको समझा दिया होता तो निश्चित हमारे बच्चे में ये गुण आ गए होते। तब हमारे घर के प्रत्येक बच्चे के कंधे पर जनेऊ तो रखा होता और सिर पर शिखा स्थापित होती। वे उनमें छिपी प्रेरणाओं का अनुसरण कर रहे होते। अभी भी समय है सँभल जाने के लिए कि जब भी हमारे बच्चे हम से बहस करने आएँगे और प्रश्न करेंगे कि बताइए शिखा क्या है? तो हमको उन्हें एक घंटा समय देना पड़ेगा और बराबर बताना पड़ेगा कि शिखा का मतलब क्या है? मकसद क्या है? उद्देश्य क्या है?
एक दिन हमने आपको गायत्री मंत्र के बारे में, ज्ञान की देवी के बारे में बताया था। गायत्री मंत्र की वह सारी की सारी व्याख्या अपने बच्चों को समझानी पड़ेगी, जो कि शिखा के बारे में जानकारी प्राप्त करने आया है और चोटी के बारे में जानने आया है कि यह क्या है? चोटी गायत्री माता की प्रतीक है, यह बात आपको बतानी पड़ेगी। फिर वह पूछेगा कि गायत्री मंत्र क्या होता है? ये भी मैंने आपको एक दिन बताया था। इसके लिए मैंने आपको तीन घंटे का समय दिया था, आपको याद होना चाहिए। इस तरह जो आदमी शिखा के बारे में जानना चाहता हो उसे उसकी सारी की सारी फिलॉसफी के बारे में समझाना चाहिए कि शिखा क्या होती है। गायत्री क्या है और गायत्री की मूर्ति क्या है? इस तरह आपका बच्चा गंभीर हो जाएगा और तब जनेऊ को समझने, शिखा को समझने से इनकार नहीं कर सकेगा। यज्ञोपवीत के बारे में भी यही करना पड़ेगा आपको। जो बच्चा यह पूछने के लिए आपके पास आया है कि गुरुजी, ये क्या चीज है, जिसे आप पहनाते हैं। यह तो मैला-कुचैला हो जाता है। आप बेकार में ही बार-बार हमारे गले में बाँध देते हैं। आप इसे क्यों बाँध देते हैं, बताइए न। तो आपको यज्ञोपवीत पहनाने के साथ ही उसे यज्ञोपवीत धर्म की शिक्षा देनी पड़ेगी। यज्ञोपवीत की वह शिक्षा जो मैंने एक दिन सवेरे भी आपको समझाई थी और शाम को भी समझाई थी।
यज्ञ की फिलॉसफी के बारे में भी लोगों को बताना पड़ेगा कि यज्ञ हिंदू धर्म का अक्षुण्ण अंग क्यों है? हमारी संस्कृति का अक्षुण्ण अंग क्यों है? इसकी प्रेरणाएँ क्या हैं, इसका प्रकाश क्या है? इसकी शिक्षाएँ क्या हैं? इस संबंध में हम प्रत्येक के बारे में किताब में छपवा रहे हैं। इसमें शिखा और सूत्र के बारे में बता भी रहे हैं। शिखा और सूत्र के बारे में एक हमारी पुस्तक भी है। पहले एक मोटी किताब भी थी, एक बड़ी किताब भी थी। पर अब बड़ी किताब तो रही नहीं। अत: एक अन्य छोटी किताब प्रकाशित कर रहे हैं। इस तरह से शिखा और यज्ञोपवीत के बारे में बहुत जानकारी हमको देनी है और हम जरूर देंगे क्योंकि हमारे हिंदू धर्म का मूल स्थापना-स्तंभ यज्ञोपवीत है। पर आपने यज्ञोपवीत केवल उसी तरीके से पहनाना शुरू कर दिया, जिस तरह से आप मूर्तियों के बारे में कहते चले आ रहे हैं। मूर्तियों की स्थापना के बारे में मान्यता बनाकर और उनके बारे में चर्चा करते चले आ रहे हैं। कलेवर को मान्यता देने और उसमें भरी प्राण ऊर्जा को, प्रेरणा को भूलते चले जा रहे हैं। संध्या तो करते हैं, पर यह नहीं मालूम कि संध्या का उद्देश्य क्या है, संध्या क्यों की जाती है? लोग साधु-संन्यासी तो बन जाते हैं, पर इसके उद्देश्यों का ज्ञान उन्हें नहीं होता है। साधु और संन्यासी वे होते हैं जिसने कि संकल्प लिया था कि हम समाज के लिए काम करेंगे, देश के लिए काम करेंगे, संस्कृति के लिए काम करेंगे। पर आज सर्वत्र उलटा ही दिखाई देता है। लोगों को मालूम भी नहीं कि साधु-संत कैसे होते थे? आज तो जहाँ देखो वहीं लाल-पीले कपड़े पहनने वाले, चिमटा बजाने वाले और बाबाजी कहलाने वाले-संन्यासी कहलाने वालों की भीड़ नजर आती है। इससे तो संन्यास की महत्ता कम हो जाएगी और लोग बाबाजी की पूजा करने से इनकार कर देंगे, सम्मान करने से इनकार कर देंगे, आपने देखा नहीं। आप लोग देखिए कुंभ के मेले में देखकर आइए। इससे यह मालूम हो जाता है कि विवेकशीलता का समाधान हमारे पास नहीं है।
इस तरह से मित्रो क्या हो जाएगा? अनास्था का, उपेक्षा का वातावरण बन जाएगा। यदि हमने आध्यात्मिकता के मर्म को नहीं समझा। अत: हमको यज्ञोपवीत और शिखा का समाधान करना पड़ेगा कि इनकी प्रेरणाएँ क्या हैं? शिक्षाएँ क्या है? प्रकाश क्या है? बुद्धिजीवी जनता उमड़ती और घुमड़ती चली आ रही है। हर बात में क्यों और कैसे? क्यों और कैसे का सवाल उठता चला आ रहा है। जनेऊ के बारे में, यज्ञोपवीत के बारे में आपको ये क्यों और कैसे का जवाब देना पड़ेगा। गायत्री मंत्र और यज्ञ की व्याख्या करनी पड़ेगी। हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति की व्याख्या करनी पड़ेगी। जनेऊ और शिखा पर हमारा कोई मंतव्य नहीं है। हमें इन सवालों की, स्तंभों की स्थापना के माध्यम से हर आदमी के हृदय में, हर आदमी के कलेजे में, हर आदमी के दिल में हिंदू सभ्यता, हिंदू-संस्कृति के प्रति निष्ठा पैदा करनी पड़ेगी। कर्मकाण्ड हमारी पुस्तकों में लिख दिए गए हैं। आप इन कर्मकाण्डों की व्याख्या नहीं करेंगे, तो ये खतम हो जाएँगे, यह तथ्य आपको मालूम होना चाहिए।
यज्ञ की हम व्याख्या करते हैं तो आप हमसे कहते हैं कि गुरुजी आप यज्ञ की व्याख्या क्यों करते हैं? आप तो दनादन हवन कराइए और धड़ाधड़, तड़ातड़ आँसू गिराइए। व्याख्या क्यों करते हैं? बेटा, हम व्याख्या नहीं करेंगे तो लोग हवन में से उठा करके फेंक देंगे। पिछले दिनों हमारे यहाँ क्या हुआ? मथुरा में एक वकील थे उन्होंने अपनी लड़की, जो एम ० ए० पास थी, का एक लड़के से ब्याह किया, जो विलायत पास होकर के आया था। बारात आई, खूब जोर-शोर से, उन्होंने बहुत धूम-धाम से शादी की। लड़के और लड़की दोनों बैठे हुए थे, जहाँ संस्कार हो रहा था। भाँवर पड़नी थी। पंडित लोग बहुत जोर-जोर से श्लोक बोल रहे थे-चावल रखिए हाथ रखिए ऐसे कीजिए वैसे कीजिए सब चावल फेंक दीजिए और दीपक को प्रणाम कीजिए ढाई रुपया इसमें दक्षिणा का और नौ पैसे यहाँ रखो और तीन पैसे यहाँ रखो। लड़के ने पूछा-पंडितजी गुस्ताखी माफ करें तो एक बात पूछूँ। हाँ! हाँ! पूछो बेटा जो पूछना हो। यह आप क्या कह रहे हैं? आप जो कुछ बहुत देर से कह रहे हैं, वह हमारी समझ में कुछ नहीं आ रहा है और ये पंडित जी जो बोलते हैं, वह भी समझ में नहीं आ रहा कि आप लोग क्या बोलते हैं? मैंने देखा कि पंडित जो था वह समझदार था, उसने कहा-जो बात कहनी चाहिए वह हम संस्कृत में कह रहे हैं। आपको जो प्रतिज्ञा करनी चाहिए जो देवताओं को आश्वासन देना चाहिए जो अपनी स्त्री से वायदा करना चाहिए हम सब वह संस्कृत में कह रहे हैं और तुमको जो नियम पालन करना चाहिए वह भी संस्कृत में हम कह रहे हैं। लड़के ने कहा-अच्छा बाबा, हम समझ गए। आप हमारे लिए बयान दे रहे हैं। जैसे कोई वकील कचहरी में बयान देता है, कोर्ट में बयान देता है, उसी तरह से आप हमारी तरफ से बयान दे रहे हैं। हाँ बेटा अब समझ गया तू। हम तुम्हारी तरफ से वकील हैं, मुख्तियार हैं और तेरी तरफ से बहस कर रहे हैं और तेरी तरफ से बयान दे रहे हैं और तू चुपचाप बैठा हुआ है। और ये पंडित जी क्या कर रहे हैं? जो प्रतिज्ञा करनी चाहिए और जो नियम पालन करने चाहिए जो कुछ इसे बात कहनी चाहिए वह ये पंडितजी कह रहे हैं। तो ये लड़की? ये लड़की यहीं है, यहीं बैठी रहेगी, इसके गुरु हम हैं। इसके मुख्तियार हम है और ये करेंगे और वो करेंगे। अच्छा पंडितजी, अब हम समझ गए और हम आपके आभारी हैं कि समझा दिया आपने हमको।
उसने लड़की से कहा-तो एक काम करते हैं चलो तुम्हें बाहर घुमा लाएँ और मिला लाएँ उन लोगों से, जो लोग हमको देखने आए हैं। हम उनका स्वागत करेंगे और उनके हाथ जोड़ेंगे और उन पंडितजी से कहा-अब क्या काम बाकी रह गया है। पंडित जी बोले-अब बेटा थोड़ा सा काम रह गया है। परिक्रमा करनी है और भाँवर पड़नी है और सब कुछ कर लिया। तो ऐसा कीजिए पंडितजी आप लोग आपस में भाँवर कर लीजिए और ब्याह रचा लीजिए। जब आप हमारे बदले की बात कह सकते हैं, तो आप परिक्रमा या भाँवर क्यों नहीं ले सकते? आप आपस में एक−दूसरे की बाँह पकड़ लीजिए और बाकी सभी काम पूरा कर लीजिए और हमें जाने दीजिए। बात तो थी मजाक की, परंतु मैंने उसे बहुत गंभीरता से लिया। मैंने बहुत विचार-मंथन किया कि हमें अपने बच्चों को इस बात की जानकारी देनी चाहिए कि कर्मकाण्डों के पीछे क्या रहस्य छिपा है? कर्मकाण्डों का, क्रिया का, हवन का क्या उद्देश्य है? क्यों इसमें घी डाली जाती है? क्यों लकड़ी डाली जाती है? क्यों आग में समिधा और हवन-सामग्री डाली जाती है? आरती क्यों उतारी जाती है? और घी में हाथ क्यों मला जाता है? भस्म क्यों लगाई जाती है? ये सारे के सारे क्रियाकृत्यों का, कर्मकाण्डों का शिक्षण हम देने में समर्थ नहीं हो सके, तो मित्रो, अगली पीढ़ी में कर्मकाण्डों का यही हाल होगा, जैसे कि मैंने अभी एम० ए० पास उक्त लड़की के बारे में बताया। अगर आप इन बातों को समझाएँगे नहीं, बताएँगे नहीं तो आपका भी वही हाल होगा जो उन पंडित जी का हुआ था। अत: आपको इन बातों को समझाना पड़ेगा, बताना पड़ेगा। हमको संन्यास की महत्ता बतानी पड़ेगी, समझानी पड़ेगी कि व्यक्ति संन्यासी क्यों होता है और क्यों होना चाहिए? संन्यासी को क्या करना चाहिए और वह क्या-क्या करता है? संन्यासी का स्वरूप साफ नहीं करेंगे तो आप देखना, अभी कुंभ में २५ हजार आदमी तो भी हैं, पर अगले वाले कुंभ में पाँच हजार आदमी भी नहीं आएगा और इसी तरह से गवर्नमेंट की पुलिस और गवर्नमेंट के सफाई-मजदूर और गवर्नमेंट के टीका लगाने वाले बैठे रहेंगे। कोई नहीं आएगा, कहेगा इन पागलों के पास जाने की जरूरत क्या है? ये नागा, ये पंडे और जो शहरों में रहते हैं और सड़कों पर नंगे फिरते हैं उन्हें देखने कौन जाएगा? और किसलिए जाएगा? इनसे अच्छे तो वे हैं जो कोढ़ी हैं, अपाहिज हैं, लँगड़े हैं और अपंग हैं। लोग उन्हें खिलाते हैं। वस्तुतः वे ही समाजसेवक हैं, ये ही लोकसेवी हैं, जो जनता की भलाई करते हैं। नहीं साहब, जो भजन करते हैं, ध्यान करते हैं, वे लोकसेवी हैं। नहीं, ऐसा नहीं है। भजन करते हैं तो अपने घर करें, मेहनत करें, मशक्कत करें। जो आदमी मेहनत करता है और अपने हाथ-पाँव की कमाई खाता है, वही स्वर्ग-मुक्ति का अधिकारी है। बैकुंठ आपको तभी मिलने वाला है, स्वर्ग आपको तभी मिलने वाला है, मुक्ति आपको तभी मिलने वाली है, सिद्धि तभी आपको मिलने वाली है, चमत्कार आपको तभी मिलने वाला है और यश आपको तभी मिलने वाला है जब आप मेहनत करेंगे, मशक्कत करेंगे। तो आप पैसा खरच कीजिए नहीं साहब, हम तो भजन करेंगे और ऐसे ही मुफ्त में भोजन खाएँगे और पैसे कमाएँगे; नहीं भाईसाहब, अब ऐसा नहीं चलने वाला है।
इसलिए मित्रो, क्या होने वाला है? अगले दिनों क्या स्थापना होने वाली है? अगले दिनों विवेकशीलता की स्थापना होने वाली है। हम उस विवेकशीलता की स्थापना करने से डरने वाले नहीं हैं। हम विवेकशीलता से डरते नहीं हैं। हम बहस करने वाला से डरते नहीं हैं। हमें जो सबसे बड़ा भय है, वह उस आदमी का है जो बिलकुल जड़ हो गया हैं, जिसकी अक्ल रूढ़िवादिता में बदल गई है। जिसके मन में क्यों और कैसे का सवाल पैदा नहीं होता। हमको उससे है डर। हमको उससे डर नहीं है जो महात्माओं की निंदा करता है, जो महात्माओं से जवाब तलब करता है। हमको उस आदमी का भय नहीं है। क्योंकि हमारे पास ऐसे जबरदस्त जवाब हैं किं हम उसको, उसके दिमाग को घुमा सकते हैं, हम उसके हृदय को हिला सकते हैं। उसके मन को हिला सकते हैं, हमारे पास बहुत जबरदस्त दलीलें हैं। मित्रो, हमारे पास हर आदमी की दलीलों का जवाब देने के लिए हर आदमी को वास्तविकता को समझाने के लिए तर्क हैं। इसीलिए हम बात वहाँ से शुरू करेंगे, जहाँ से कि उसका हर बात में रोना शुरू होता है। जहाँ वह प्रश्न करता है कि शिखा से क्या फायदा? उसने बहुत सवाल कर लिया। अब हम उसकी बात का जवाब देंगे। अब हमारी बारी आई है, हम जवाब देंगे। अब हम यह सिद्ध करेंगे कि जनेऊ क्यों पहनना चाहिए? जनेऊ से क्या हो सकता है? इसको हिंदू धर्म की, हिंदू संस्कृति की स्थापना करने के लिए और उसकी विचारणा और प्रेरणाओं को हर घर में, जन-जन में स्थापित करने के लिए हम चलेंगे। हम और आप कदम से कदम मिलाकर सारे भारतवर्ष में, सारे विश्व में इसलिए चलेंगे कि हमारे हिंदू धर्म का जो मान था, उसकी जो गौरवमयी परंपरा थी, उसकी पुन: स्थापना की जा सके।
इसके लिए करना क्या होगा? हम इसके स्तम्भों की स्थापना करेंगे, प्रतीकों की, सिम्बलों की स्थापना करेंगे। प्रतीकों की स्थापना करने के बाद, सिम्बलों की स्थापना करने के बाद हम उसकी व्याख्या करना शुरू करेंगे, विवेचना करना शुरू करेंगे। निष्ठा और आस्था को जमाना शुरू करेंगे। यह हैं हमारे गायत्री और गायत्री यज्ञ अभियान का एक अंश, जिसको हमने शिखा सूत्र आन्दोलन के रूप में लिया है। इसका हमने गायत्री मंत्र और गायत्री यज्ञ के साथ जोड़कर रखा हैं। आपको इसके लिए तैयार होना चाहिए और सारे भारतवर्ष में और सारे विश्व में शिखा सूत्र की स्थापना करनी चाहिए। इसके लिए हमें कमर कसकर खड़ा होना चाहिए। आज की बात समाप्त।
।।ॐ शान्ति:।।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
मित्रो, गायत्री मंत्र की, गायत्री माता की, भगवान की मूर्तियाँ हमारे घरों में होनी चाहिए। लेकिन इससे भी ज्यादा शानदार, इससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हर इनसान के, हर व्यक्ति के और हर हिंदू के हृदय में इनकी स्थापना की जाए। गायत्री मंत्र केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं है, वरन वह प्रत्येक धर्मावलंबी व मजहब के मानने वालों के लिए है। हमें उन्नति करनी है, तो इन प्रतीकों को फिर अपनाना पड़ेगा, जिसको हम गायत्री कहते हैं। जिसकी स्थापना शरीरों में की गई थी। स्थापना मंदिरों में नहीं, पूजा-घरों में ही नहीं, बल्कि प्रत्येक हिंदू के शरीर के ऊपर इसकी स्थापना हुई। कैसे स्थापना हुई? शिखा और सूत्र के रूप में हुई। शिखा क्या है? शिखा एक विवेकशीलता की देवी, ज्ञान की देवी हमारे मस्तिष्क के ऊपर हावी है। मस्तिष्क के ऊपर हावी है और हमारे झंडे के रूप में फहराती है। शिखा क्या है? शिखा गायत्री है। जिस प्रकार से शंकर भगवान का सिम्बल, शंकर भगवान का चित्र हम गोल मटोल बना देते हैं और मंगलमय हो लेते हैं, उसी तरह से गायत्री माता का सिम्बल और चित्र, यह गायत्री माता की मूर्ति के रूप में हमारी शिखा के ऊपर रखा गया है। हम शिखा की स्थापना कराएँगे और हर आदमी से कहेंगे कि आपको शिखा जरूर रखनी चाहिए क्योंकि ये गायत्री माता की प्रतीक है, गायत्री माता की मूर्ति है। हम हर आदमी से कहेंगे कि आपको अपने कंधों के ऊपर सामाजिक कर्तव्य, नैतिक कर्तव्य की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। वे कर्तव्य क्या हैं? कर्म क्या हैं? उसको हम यज्ञोपवीत कहते हैं, जो हमारे कंधे पर रखा हुआ है। कर्म हमारे कंधे पर रखा हुआ है। कर्म करने की जिम्मेदारी हमारे कंधे पर रखी हुई है। कर्म करने की जिम्मेदारी हमारे हृदय पर टँगी रहनी चाहिए। कर्म करने की जिम्मेदारी हमारे कलेजे से चिपकी रहनी चाहिए। कर्म हमारे आगे भी रहना चाहिए कर्म हमारी पीठ के ऊपर भी रहना चाहिए। ये क्या है? ये है यज्ञोपवीत। यज्ञोपवीत हमारे कंधे पर रखा हुआ है, हमारे कलेजे पर रखा हुआ है, हमारे हृदय पर रखा हुआ है, हमारी पीठ पर रखा हुआ है। हमने चारों ओर से अपने आप को खींचकर बाँध दिया है, जिससे कि यह सतत ख्याल बना रहे कि सामाजिक कर्तव्य, नैतिक कर्तव्य और पारिवारिक कर्तव्य से हम जुड़े हुए हैं और बँधे हुए हैं।
जानवर के गले में रस्सा बाँध देते हैं और फिर उसे खूँटे से बाँध देते हैं, ताकि दायरे में रहा करे, मर्यादा में रहा करे, कायदे में रहा करे, कानून में रहा करे। हमारे ऋषियों ने भी हमको एक रस्से से बाँध दिया है, जो हमारे कंधे से बँधा हुआ है, हमारे हृदय से बँधा हुआ है, हमारे कलेजे से बँधा हुआ है, हमारी पीठ से बँधा हुआ है। चारों ओर से हमें जकड़कर बाँध दिया है और हमारे विवेक को, हमारी अक्ल को बाँध दिया है। यह क्या है? यह है-यज्ञोपवीत और शिखा। शिखा और यज्ञोपवीत क्या हैं? बताइए। ये हैं हमारे गायत्री मंत्र और यज्ञ। ये दोनों के दोनों प्रतीक हैं। यज्ञ से उपवीत किया हुआ, यज्ञ से प्राण-प्रतिष्ठा किया हुआ धागा। इसका नाम क्या है? यज्ञोपवीत, जो हमारे कंधे पर स्थापित है और शिखा? ये गायत्री मंत्र की व्याख्या है, जो हमने अपने मस्तिष्क के पास स्थापित की है। यह हमारे मस्तिष्क रूपी किले के ऊपर छाई रहती है और हमारे झंडे के रूप में फहराती रहती है।
यह शरीर ही हमारा किला है। यह हमारा लाल किला है। स्वतंत्रता दिवस के समय हमने लाल किले के ऊपर झंडा फहरा लिया था। कब फहरा लिया था? जिस दिन अँगरेज यहाँ से विदा हुए थे, उस दिन हमने अपने दिल्ली वाले लाल किले के ऊपर तिरंगा झंडा फहराया था। इसी तरह भारतीय संस्कृति का, मानवी मूल्यों का, सद्गुणों का झंडा हमारे मस्तिष्क के ऊपर फहराता है। यह शरीर हमारा किला है। यह हमारे व्यक्तिगत जीवन का किला है। इसके ऊपर हम झंडे की स्थापना करते हैं और व्यक्तिगत शिखा की स्थापना करते हैं। अब हम शिखा को प्यार करना सिखाएँगे लोगों को। शिखा को प्यार करना और मोहब्बत करना सिखाएँगे। किले को प्यार करना और किले को मोहब्बत करना अब हम सिखाएँगे लोगों को। हम घर-घर जाएँगे इसे सिखाने, क्योंकि हिंदू धर्म महान है, हिंदू धर्म विश्व का धर्म है, ये मनुष्यों का धर्म है। हिंदू धर्म के जो सारे सिद्धांत हैं, वे मात्र हिंदू लोगों के लिए ही नहीं हैं, बल्कि ये यूनीवर्सल हैं। ये विश्वव्यापी हैं, मानवमात्र के लिए हैं। हर देश के निवासी के लिए हैं। हर प्रदेश के निवासी के लिए हैं। चाहे वह हिंदू धर्म को मानता हो, चाहे न मानता हो। ये सारे के सारे सिद्धांत मानवमात्र के सिद्धांत हैं, विश्वव्यापी सिद्धांत हैं, सार्वभौम सिद्धांत हैं। सारे के सारे धर्मों का निचोड़ हमारे हिंदू धर्म में है।
हिंदू धर्म का मूल क्या है? हिंदू धर्म का मूल वह है जिसको हम शिखा कहते हैं, जिसको हम यज्ञोपवीत कहते हैं। अब हम इस झंडे को नष्ट नहीं होने देंगे और हर हिंदू को कहेंगे कि आप इसको प्यार करना सीखिए। आप भी अपनी संस्कृति को प्यार करना सीखिए आप अपनी माँ को प्यार करना सीखिए और आप अपने बाप को प्यार करना सीखिए। ये हमारा महत्त्वपूर्ण क्रिया-कलाप है और इस क्रिया-कलाप का हम विस्तार करेंगे और आपके मनों में और जनता के मनों में स्थापित करेंगे। जब मुसलमान भारत आए थे, तब उन्होंने कहा था कि सुनो हम तुम्हारी चोटी काटना चाहते हैं। अब तुम्हारी चोटी को उतार देंगे। लोग बोले ठीक है, ताकत आपके हाथ में है और फौज आपके साथ में है और बंदूक आपके हाथ में है। हम क्या कर सकते हैं? हथियार हमारे पास नहीं है। आप जरूर हमारी चोटी काट सकते हैं, लेकिन एक मेहरबानी कीजिए। क्या मेहरबानी करें? आप इस चोटी को यहाँ से न काटकर गरदन से काट दीजिए। कारण, चोटी की जड़ यहाँ तक आई है। यदि आप इसे यहाँ से काट डालेंगे तो हमको संतोष बना रहेगा और कोई हमको दुःख का एहसास नहीं होगा और शांतिपूर्वक दुनिया से चोटी भी चली जाएगी और हम भी चले जाएँगे। अत: आप हमारा सिर काट डालिए। लाखों व्यक्तियों के सिर को मुसलमानों ने कलम करा दिया था।
अपनी शिखा और जनेऊ को हम कितना प्यार करते थे। आपकी तो नहीं मालूम, पर हमें मालूम है। आपको तो साढ़े चौहत्तर का आशय भी नहीं मालूम कि किसे कहते हैं साढ़े चौहत्तर? पहले जमाने में, पुराने जमाने में लोग लिफाफे पर साढ़े चौहत्तर नंबर डालते थे। आपको मालूम है क्यों डालते थे? जो कोई उस लिफाफे को खोल लेगा, उसको साढ़े चौहत्तर मन जनेऊ, जो अगणित हिंदुओं ने पहन रखे थे और काट डाले गए थे मुसलमानों के द्वारा, उसकी जो हत्या उन्हें पड़ी होगी, पाप पड़ा होगा, उस आदमी को भी पाप पड़ेगा, जो हमारी चिट्ठी को बिना बताए हुए खोल लेगा और चुपचाप पढ़ लेगा और फिर चिपका देगा। बंद कर देगा। उतना ही उसे पाप पड़ेगा। पता नहीं पाप पड़ता था कि नहीं और वह साढ़े चौहत्तर मन जनेऊ थे कि नहीं। मैं इस बहस में नहीं जाऊँगा। लेकिन भावना ये थी कि हम लोगों ने साढ़े चौहत्तर मन जनेऊ और शिखाएँ कटवा दी थीं और उसके लिए आप अंदाज लगा लीजिए साढ़े चौहत्तर मन जनेऊ जिस तराजू पर तौले गए होंगे उसके लिए कितना खून बहाया गया होगा? कितनी गरदनें कटाई होंगी? हमने बहुत गरदनें कटाई हैं। हमने अपना बहुत खून बहाया है, क्योंकि हम अपनी शिखा को प्यार करते हैं। जनेऊ को हम प्यार करते हैं। अपने चोटी को प्यार करते हैं हम। शिवाजी न होते तो चोटी भी न होती सबकी। चोटी की रक्षा करने के लिए राणाप्रताप, शिवाजी और गुरुगोविन्द सिंह ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी और किसका-किसका नाम बताएँगे आपको कि चोटी के लिए कितनों ने अपनी जान निछावर कर डाली, कुरबानी कर डाली। अब यह चोटी हमारे हाथ से चली गई, नीचे आ गई। अब यह खिसक रही है। कौन काट रहा है इसको? मुसलमान काट रहे हैं इसको? नहीं, ईसाई भी नहीं काट रहे हैं इसको? तो फिर कौन काटता है? इसको वो काटता है, जिसको हम इस युग की अनास्था कहते हैं। यही अनास्था चोटी को काटती चली जाती है। आप पता लगा लें कि किन-किन बच्चों के सिर पर चोटी है? आपको एक भी बच्चे के सिर पर चोटी दिखाई नहीं पड़ेगी, यही हाल जनेऊ का है।
दुनिया में कौन-कौन से रिवाज चले हुए हैं कि जनेऊ कौन पहनेगा? मर्द पहनेगा, औरत नहीं पहनेगी। लड़कियों को हम धन्यवाद देते हैं। क्योंकि शिखा की लाज, शिखा की इज्जत इन लोगों ने रख ली है। कोई-कोई लड़कियों तो बहुत लंबी-लंबी चोटी रखाती हैं। मर्द से कहते हैं कि अरे बाबा छह इंच की न सही तीन इंच की चोटी रख ले, पर इनको ३ इंच की रखने में भी परेशानी मालूम पड़ती है। इन छोकरियों में से किसी की एक फुट लंबी है, तो किसी की डेढ़ फुट लंबी है। किसी की २ फुट लंबी है, तो किसी की ढाई फुट लंबी है। ये भी नहीं है कि कोई पतली चोटी हो, वरन लड़कियों की मोटी-मोटी चोटियाँ हैं। जब वे अपने खाविंद को देखती हैं कि वह ऐसे सफाचट हैं कि उसने चोटी कटा ली है, तो वह दो भी रख लेती है। एक अपनी चोटी रख लेती है और दूसरी अपने खाविंद के लिए। जनेऊ भी तो हम दो पहनते हैं-एक अपना पहनते हैं और एक अपनी बीबी के बदले का पहनते हैं। इसी तरह लड़की कहती है कि एक चोटी अपने खाविंद के बदले की रखाएँगी और एक अपने बदले की। यही तो बात है कि जो धर्म बचा हुआ है, वह इन लड़कियों की वजह से बचा हुआ है। ये लड़कियाँ न होतीं तो इस चोटी का पता लगाना मुश्किल पड़ जाता। किसे कहते हैं चोटी और कैसे धारण की जाती है? चोटी कहाँ से आती है? चोटी की कौन रखवाली करता है? चोटी की हम रक्षा करेंगे और जनेऊ की हम रक्षा करेंगे।
यज्ञोपवीत धारण करने के कुछ नियम हैं, कुछ मर्यादाएँ हैं, जिन्हें जानना आवश्यक है। यज्ञोपवीत को छह महीने में बदलना चाहिए क्योंकि पसीने से छह महीने में वह मैली पड़ जाती है और धागे कमजोर हो जाते हैं। अत: हर छह महीने बाद यज्ञोपवीत के धागे को बदल देने चाहिए। सूर्यग्रहण पर भी बदल देते हैं, चंद्रग्रहण पर बदल देते हैं, कई बार बदलते हैं। यदि ऐसा नहीं हो पाता तो कम से कम छह महीने में तो बदल ही देने चाहिए। छह महीने के लिए हमने इसलिए ये कहा है कि-छह महीने में जनेऊ पुरानी पड़ जाती है। महिलाएँ प्राय हर महीने अपना जनेऊ बदल लेती हैं और नया धारण कर लेती हैं। इसी तरह कई लोग महीने में एक बार बदलते हैं। वैसे तो लोग अन्य मदों में ढेरों पैसा खरच कर देते हैं, तो महीने भर में एक जनेऊ पर खरच क्यों नहीं कर सकते हैं? उससे क्या आफत आ जाएगी? अत: हमको यज्ञोपवीत की स्थापना करनी पड़ेगी और हम उसे व्यापक आन्दोलन के रूप में चलाएँगे। जहाँ कहीं भी हमारे यज्ञ होंगे, जो कोई भी व्यक्ति हमारे यज्ञ में शामिल होने का इच्छुक होगा, उनसे हम ये कहेंगे कि यज्ञोपवीत करा लीजिए और जनेऊ पहन लीजिए। यदि वह कहेगा कि जनेऊ पहनेंगे तो हमारी अम्मा नाराज हो जाएगी। अम्मा नाराज हो जाएगी, तो आप ऐसा कीजिए कि यदि यज्ञ में शामिल होना चाहते हैं, तो आपको जनेऊ हम पहना देते हैं, आप पहन लीजिए। इसे आप चौबीस घंटे पहन लीजिए। चौबीस घंटे के बाद आप इसे विसर्जित कर देना। यदि आप हवन में शामिल होना चाहते हैं, तो जनेऊ जरूरी है। जनेऊ हमारे हिंदू धर्म का अक्षुण्ण अंग है। इसलिए इसे अपनाना शुरू कीजिए अभ्यास करना शुरू कीजिए। अब हम हवन को व्यापक बनाने की सोच रहे हैं तो यज्ञोपवीत को भी व्यापक बनाना पड़ेगा। हवन-यज्ञ और यज्ञोपवीत वास्तव में एक ही चीज है।
अभी मैं आपको मूर्ति-पूजा और बुत-परस्ती के बारे में कह रहा था। ठीक इसी तरह अगर आपने शिखा रखी और यज्ञोपवीत पहना, लेकिन शिखा रखने के बाद और यज्ञोपवीत पहनने के बाद में आपने उसका मूल्य समझा नहीं, उत्तरदायित्व समझा नहीं, शिक्षा को समझा नहीं, प्रेरणा को समझा नहीं, हकीकत को समझा नहीं तो आपको उससे उपेक्षा पैदा होती चली जाएगी और हमारे बच्चे जनेऊ पहनने से इनकार करेंगे, हमारे बच्चे चोटी रखने से इनकार करेंगे।
आज हमारे हिंदुओं के बच्चों ने इनसे क्यों इनकार किया? बताइए न आप? हिंदुओं के बच्चों ने इसलिए इनकार किया, क्योंकि उन्हें किसी ने भी ये बताया नहीं कि आखिर ये क्या है? हम लोगों ने इसे यज्ञोपवीत नाम क्यों दिया? इसके पीछे शिखा के बारे में कोई जानकारी नहीं दी कि शिखा क्या है और उसके पीछे क्या जिम्मेदारियों हैं? यज्ञोपवीत क्यों पहनाई जाती है और ये क्या याद दिलाती है? जनेऊ पहना तो दिया आपने, जनेऊ पहनाने की दक्षिणा भी दे दी पंडित जी को और हवन भी करा दिया और ब्रह्मभोज भी करा दिया, हजारों रुपए भी खरच कर दिए लेकिन यज्ञोपवीत पहनने के बाद जब बच्चे ने पूछा-पिताजी ये क्या है? इसे क्यों पहनते हैं? हमें क्यों जनेऊ पहनाया गया है? तब आपका जवाब होता है-चुप बे, ज्यादा बोलता है। हमारे बाप-दादा पहनते थे, इसलिए हम भी पहनते हैं। हम ब्राह्मण हैं। तुझे शरम नहीं आती, पूछता है क्यों पहनते हैं? सभी ब्राह्मण जनेऊ पहनते हैं। लेकिन पंडित जी ब्राह्मण तो सब पहनते हैं, पर क्यों पहनते हैं? आखिर ये क्या चीज है? चुप रह! क्यों पहनते हैं? पंडित जी-पंडित जी, हर वक्त धर्म के बारे में पूछताछ करता रहता है। धर्म के बारे में पूछताछ का जवाब देने में यदि आप समर्थ न हो पाए तो मित्रो, आपकी निष्ठा कमजोर होती चली जाएगी और हमारी सांस्कृतिक परंपराएँ संस्कार परंपराएँ विलुप्त होती चली जाएँगी। अत: संस्कार परंपरा के बारे में आपको बताना पड़ेगा, शिखा के बारे में बताना और समझाना पड़ेगा, जनेऊ के बारे में बताना और समझाना पड़ेगा। अगर आपने इस संबंध में बताना और समझाना शुरू कर दिया तो एक भी हिंदू का बच्चा यह नहीं कह पाएगा कि हमने यज्ञोपवीत तो करा लिया, पर हम जनेऊ नहीं पहनेंगे।
आप पूरे यूरोप में जाइए वहाँ तो हमसे अधिक पढ़े-लिखे लोग हैं। हमारे बच्चों को तो अँगरेजी आती भी नहीं है, मैट्रिक पास हैं। लेकिन कोई जनेऊ नहीं पहनता और साहब बना फिरता है। जबकि सारे के सारे यूरोप में आपको सब के सब शिक्षित आदमी मिलेंगे। कोई आदमी ग्रेजुएट से कम नहीं मिलेगा। जो आदमी दिन में नहीं पढ़ सकते, वे रात में पढ़ते हैं और ग्रेजुएट हो जाते हैं। लेकिन आपके मालूम होना चाहिए कि कोई भी आदमी, कोई भी ईसाई कहीं भी निकलता है तो अपनी प्रॉपर ड्रेस में निकलता है, जिसमें ''टाई'' भी शामिल है। टाई क्या है? टाई ईसाइयों का यज्ञोपवीत हैं। ''क्रूस'' जिसमें ईसा मसीह को फाँसी लगाई गई थी। टाई उस फाँसी का प्रतीक है। प्रत्येक ईसाई, जिसमें कि बड़े से बड़ा आदमी शामिल है और-छोटे से छोटा भी शामिल है या जो भी ईसा मसीह में विश्वास करता है, यकीन करता है वह गले में फाँसी का फंदा, टाई के रूप में लगाकर सड़कों पर निकलता है और कहता है कि ये हमारी शान है और हमारी इज्जत है और हम पहनकर निकलते हैं। अरब देशों में मुसलमान तिरछी टोपी पहनकर निकलते हैं। हमारे हिंदुस्तान में भी वे तिरछी टोपी पहनकर निकलते हैं और कुछ लोग बालों वाली टोपी पहनकर निकलते हैं और चूड़ीदार पाजामा तथा अचकन पहनकर निकलते हैं। आप जाइए वहाँ। कहाँ? जामिया मिलिया इस्लामिया कॉलेज में और दूसरे कॉलेजों में भी मुसलमानों के लड़कों को देखिए ना। अलीगढ़ मुसलिम यूनीवर्सिटी में जाइए ना, वहीं आपको आगे वाली मूँछें कटाए हुए और पाजामा एवं चप्पल पहने हुए आपको मुसलमानी लिबास में उसी लहजे में, उसी तर्ज में काम करते हुए मिलेंगे, दिखाई पड़ेंगे। आप जामिया मिलिया कॉलेज में जाइए अन्य स्कूल, कॉलेजों में जाइए आपको प्रत्येक जगह वे सारे के सारे मुसलमानी लिबास में मिलेंगे। क्या वो पढ़े-लिखे नहीं हैं? क्या हिंदुओं के लड़के पढ़े-लिखे हैं? क्या हिंदुओं के लड़कों के दिमाग सातवें आसमान पर नहीं हैं? क्या हिंदुओं के लड़कों को बहस करना आ गया? मुसलमान के लड़कों को बहस करना नहीं आया? उनको भी आता है।
आप सिखों के कॉलेजों में जाइए। वहाँ के सारे के सारे स्टूडेंट आपको साफा पहने हुए मिलेंगे। अपने सिर पर कलंगी लगाए हुए दीखेंगे और अपने हाथ में कृपाण लिए हुए या बगल में डाले हुए दिखाई देंगे। क्या वो पढ़े-लिखे हुए नहीं हैं? क्या सारी अक्ल आपके ही हिस्से में आ गई है। क्या वे पड़े-लिखे नहीं है? विद्या उनको नहीं आती। नहीं साहब, वह तो शिक्षा ने ऐसा बना दिया हमें। तो शिक्षा ने हमें ही बना दिया, उन्हें नहीं बनाया? शिक्षा उन्होंने भी तो पढ़ी है। एम० ए० पास हैं और मुसलमान भी तो एम० ए० पास हैं। फिर हमारे यहाँ ये क्या हो रहा है? मित्रो इसकी जिम्मेदारी हमारी और आपकी है। धर्म के बारे में, यज्ञोपवीत के बारे में बताने और समझाने की कोशिश हमने नहीं की। ये शिखा क्या है? ये यज्ञोपवीत क्या है? इसका हमने कभी समाधान कर दिया होता, उनको समझा दिया होता तो निश्चित हमारे बच्चे में ये गुण आ गए होते। तब हमारे घर के प्रत्येक बच्चे के कंधे पर जनेऊ तो रखा होता और सिर पर शिखा स्थापित होती। वे उनमें छिपी प्रेरणाओं का अनुसरण कर रहे होते। अभी भी समय है सँभल जाने के लिए कि जब भी हमारे बच्चे हम से बहस करने आएँगे और प्रश्न करेंगे कि बताइए शिखा क्या है? तो हमको उन्हें एक घंटा समय देना पड़ेगा और बराबर बताना पड़ेगा कि शिखा का मतलब क्या है? मकसद क्या है? उद्देश्य क्या है?
एक दिन हमने आपको गायत्री मंत्र के बारे में, ज्ञान की देवी के बारे में बताया था। गायत्री मंत्र की वह सारी की सारी व्याख्या अपने बच्चों को समझानी पड़ेगी, जो कि शिखा के बारे में जानकारी प्राप्त करने आया है और चोटी के बारे में जानने आया है कि यह क्या है? चोटी गायत्री माता की प्रतीक है, यह बात आपको बतानी पड़ेगी। फिर वह पूछेगा कि गायत्री मंत्र क्या होता है? ये भी मैंने आपको एक दिन बताया था। इसके लिए मैंने आपको तीन घंटे का समय दिया था, आपको याद होना चाहिए। इस तरह जो आदमी शिखा के बारे में जानना चाहता हो उसे उसकी सारी की सारी फिलॉसफी के बारे में समझाना चाहिए कि शिखा क्या होती है। गायत्री क्या है और गायत्री की मूर्ति क्या है? इस तरह आपका बच्चा गंभीर हो जाएगा और तब जनेऊ को समझने, शिखा को समझने से इनकार नहीं कर सकेगा। यज्ञोपवीत के बारे में भी यही करना पड़ेगा आपको। जो बच्चा यह पूछने के लिए आपके पास आया है कि गुरुजी, ये क्या चीज है, जिसे आप पहनाते हैं। यह तो मैला-कुचैला हो जाता है। आप बेकार में ही बार-बार हमारे गले में बाँध देते हैं। आप इसे क्यों बाँध देते हैं, बताइए न। तो आपको यज्ञोपवीत पहनाने के साथ ही उसे यज्ञोपवीत धर्म की शिक्षा देनी पड़ेगी। यज्ञोपवीत की वह शिक्षा जो मैंने एक दिन सवेरे भी आपको समझाई थी और शाम को भी समझाई थी।
यज्ञ की फिलॉसफी के बारे में भी लोगों को बताना पड़ेगा कि यज्ञ हिंदू धर्म का अक्षुण्ण अंग क्यों है? हमारी संस्कृति का अक्षुण्ण अंग क्यों है? इसकी प्रेरणाएँ क्या हैं, इसका प्रकाश क्या है? इसकी शिक्षाएँ क्या हैं? इस संबंध में हम प्रत्येक के बारे में किताब में छपवा रहे हैं। इसमें शिखा और सूत्र के बारे में बता भी रहे हैं। शिखा और सूत्र के बारे में एक हमारी पुस्तक भी है। पहले एक मोटी किताब भी थी, एक बड़ी किताब भी थी। पर अब बड़ी किताब तो रही नहीं। अत: एक अन्य छोटी किताब प्रकाशित कर रहे हैं। इस तरह से शिखा और यज्ञोपवीत के बारे में बहुत जानकारी हमको देनी है और हम जरूर देंगे क्योंकि हमारे हिंदू धर्म का मूल स्थापना-स्तंभ यज्ञोपवीत है। पर आपने यज्ञोपवीत केवल उसी तरीके से पहनाना शुरू कर दिया, जिस तरह से आप मूर्तियों के बारे में कहते चले आ रहे हैं। मूर्तियों की स्थापना के बारे में मान्यता बनाकर और उनके बारे में चर्चा करते चले आ रहे हैं। कलेवर को मान्यता देने और उसमें भरी प्राण ऊर्जा को, प्रेरणा को भूलते चले जा रहे हैं। संध्या तो करते हैं, पर यह नहीं मालूम कि संध्या का उद्देश्य क्या है, संध्या क्यों की जाती है? लोग साधु-संन्यासी तो बन जाते हैं, पर इसके उद्देश्यों का ज्ञान उन्हें नहीं होता है। साधु और संन्यासी वे होते हैं जिसने कि संकल्प लिया था कि हम समाज के लिए काम करेंगे, देश के लिए काम करेंगे, संस्कृति के लिए काम करेंगे। पर आज सर्वत्र उलटा ही दिखाई देता है। लोगों को मालूम भी नहीं कि साधु-संत कैसे होते थे? आज तो जहाँ देखो वहीं लाल-पीले कपड़े पहनने वाले, चिमटा बजाने वाले और बाबाजी कहलाने वाले-संन्यासी कहलाने वालों की भीड़ नजर आती है। इससे तो संन्यास की महत्ता कम हो जाएगी और लोग बाबाजी की पूजा करने से इनकार कर देंगे, सम्मान करने से इनकार कर देंगे, आपने देखा नहीं। आप लोग देखिए कुंभ के मेले में देखकर आइए। इससे यह मालूम हो जाता है कि विवेकशीलता का समाधान हमारे पास नहीं है।
इस तरह से मित्रो क्या हो जाएगा? अनास्था का, उपेक्षा का वातावरण बन जाएगा। यदि हमने आध्यात्मिकता के मर्म को नहीं समझा। अत: हमको यज्ञोपवीत और शिखा का समाधान करना पड़ेगा कि इनकी प्रेरणाएँ क्या हैं? शिक्षाएँ क्या है? प्रकाश क्या है? बुद्धिजीवी जनता उमड़ती और घुमड़ती चली आ रही है। हर बात में क्यों और कैसे? क्यों और कैसे का सवाल उठता चला आ रहा है। जनेऊ के बारे में, यज्ञोपवीत के बारे में आपको ये क्यों और कैसे का जवाब देना पड़ेगा। गायत्री मंत्र और यज्ञ की व्याख्या करनी पड़ेगी। हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति की व्याख्या करनी पड़ेगी। जनेऊ और शिखा पर हमारा कोई मंतव्य नहीं है। हमें इन सवालों की, स्तंभों की स्थापना के माध्यम से हर आदमी के हृदय में, हर आदमी के कलेजे में, हर आदमी के दिल में हिंदू सभ्यता, हिंदू-संस्कृति के प्रति निष्ठा पैदा करनी पड़ेगी। कर्मकाण्ड हमारी पुस्तकों में लिख दिए गए हैं। आप इन कर्मकाण्डों की व्याख्या नहीं करेंगे, तो ये खतम हो जाएँगे, यह तथ्य आपको मालूम होना चाहिए।
यज्ञ की हम व्याख्या करते हैं तो आप हमसे कहते हैं कि गुरुजी आप यज्ञ की व्याख्या क्यों करते हैं? आप तो दनादन हवन कराइए और धड़ाधड़, तड़ातड़ आँसू गिराइए। व्याख्या क्यों करते हैं? बेटा, हम व्याख्या नहीं करेंगे तो लोग हवन में से उठा करके फेंक देंगे। पिछले दिनों हमारे यहाँ क्या हुआ? मथुरा में एक वकील थे उन्होंने अपनी लड़की, जो एम ० ए० पास थी, का एक लड़के से ब्याह किया, जो विलायत पास होकर के आया था। बारात आई, खूब जोर-शोर से, उन्होंने बहुत धूम-धाम से शादी की। लड़के और लड़की दोनों बैठे हुए थे, जहाँ संस्कार हो रहा था। भाँवर पड़नी थी। पंडित लोग बहुत जोर-जोर से श्लोक बोल रहे थे-चावल रखिए हाथ रखिए ऐसे कीजिए वैसे कीजिए सब चावल फेंक दीजिए और दीपक को प्रणाम कीजिए ढाई रुपया इसमें दक्षिणा का और नौ पैसे यहाँ रखो और तीन पैसे यहाँ रखो। लड़के ने पूछा-पंडितजी गुस्ताखी माफ करें तो एक बात पूछूँ। हाँ! हाँ! पूछो बेटा जो पूछना हो। यह आप क्या कह रहे हैं? आप जो कुछ बहुत देर से कह रहे हैं, वह हमारी समझ में कुछ नहीं आ रहा है और ये पंडित जी जो बोलते हैं, वह भी समझ में नहीं आ रहा कि आप लोग क्या बोलते हैं? मैंने देखा कि पंडित जो था वह समझदार था, उसने कहा-जो बात कहनी चाहिए वह हम संस्कृत में कह रहे हैं। आपको जो प्रतिज्ञा करनी चाहिए जो देवताओं को आश्वासन देना चाहिए जो अपनी स्त्री से वायदा करना चाहिए हम सब वह संस्कृत में कह रहे हैं और तुमको जो नियम पालन करना चाहिए वह भी संस्कृत में हम कह रहे हैं। लड़के ने कहा-अच्छा बाबा, हम समझ गए। आप हमारे लिए बयान दे रहे हैं। जैसे कोई वकील कचहरी में बयान देता है, कोर्ट में बयान देता है, उसी तरह से आप हमारी तरफ से बयान दे रहे हैं। हाँ बेटा अब समझ गया तू। हम तुम्हारी तरफ से वकील हैं, मुख्तियार हैं और तेरी तरफ से बहस कर रहे हैं और तेरी तरफ से बयान दे रहे हैं और तू चुपचाप बैठा हुआ है। और ये पंडित जी क्या कर रहे हैं? जो प्रतिज्ञा करनी चाहिए और जो नियम पालन करने चाहिए जो कुछ इसे बात कहनी चाहिए वह ये पंडितजी कह रहे हैं। तो ये लड़की? ये लड़की यहीं है, यहीं बैठी रहेगी, इसके गुरु हम हैं। इसके मुख्तियार हम है और ये करेंगे और वो करेंगे। अच्छा पंडितजी, अब हम समझ गए और हम आपके आभारी हैं कि समझा दिया आपने हमको।
उसने लड़की से कहा-तो एक काम करते हैं चलो तुम्हें बाहर घुमा लाएँ और मिला लाएँ उन लोगों से, जो लोग हमको देखने आए हैं। हम उनका स्वागत करेंगे और उनके हाथ जोड़ेंगे और उन पंडितजी से कहा-अब क्या काम बाकी रह गया है। पंडित जी बोले-अब बेटा थोड़ा सा काम रह गया है। परिक्रमा करनी है और भाँवर पड़नी है और सब कुछ कर लिया। तो ऐसा कीजिए पंडितजी आप लोग आपस में भाँवर कर लीजिए और ब्याह रचा लीजिए। जब आप हमारे बदले की बात कह सकते हैं, तो आप परिक्रमा या भाँवर क्यों नहीं ले सकते? आप आपस में एक−दूसरे की बाँह पकड़ लीजिए और बाकी सभी काम पूरा कर लीजिए और हमें जाने दीजिए। बात तो थी मजाक की, परंतु मैंने उसे बहुत गंभीरता से लिया। मैंने बहुत विचार-मंथन किया कि हमें अपने बच्चों को इस बात की जानकारी देनी चाहिए कि कर्मकाण्डों के पीछे क्या रहस्य छिपा है? कर्मकाण्डों का, क्रिया का, हवन का क्या उद्देश्य है? क्यों इसमें घी डाली जाती है? क्यों लकड़ी डाली जाती है? क्यों आग में समिधा और हवन-सामग्री डाली जाती है? आरती क्यों उतारी जाती है? और घी में हाथ क्यों मला जाता है? भस्म क्यों लगाई जाती है? ये सारे के सारे क्रियाकृत्यों का, कर्मकाण्डों का शिक्षण हम देने में समर्थ नहीं हो सके, तो मित्रो, अगली पीढ़ी में कर्मकाण्डों का यही हाल होगा, जैसे कि मैंने अभी एम० ए० पास उक्त लड़की के बारे में बताया। अगर आप इन बातों को समझाएँगे नहीं, बताएँगे नहीं तो आपका भी वही हाल होगा जो उन पंडित जी का हुआ था। अत: आपको इन बातों को समझाना पड़ेगा, बताना पड़ेगा। हमको संन्यास की महत्ता बतानी पड़ेगी, समझानी पड़ेगी कि व्यक्ति संन्यासी क्यों होता है और क्यों होना चाहिए? संन्यासी को क्या करना चाहिए और वह क्या-क्या करता है? संन्यासी का स्वरूप साफ नहीं करेंगे तो आप देखना, अभी कुंभ में २५ हजार आदमी तो भी हैं, पर अगले वाले कुंभ में पाँच हजार आदमी भी नहीं आएगा और इसी तरह से गवर्नमेंट की पुलिस और गवर्नमेंट के सफाई-मजदूर और गवर्नमेंट के टीका लगाने वाले बैठे रहेंगे। कोई नहीं आएगा, कहेगा इन पागलों के पास जाने की जरूरत क्या है? ये नागा, ये पंडे और जो शहरों में रहते हैं और सड़कों पर नंगे फिरते हैं उन्हें देखने कौन जाएगा? और किसलिए जाएगा? इनसे अच्छे तो वे हैं जो कोढ़ी हैं, अपाहिज हैं, लँगड़े हैं और अपंग हैं। लोग उन्हें खिलाते हैं। वस्तुतः वे ही समाजसेवक हैं, ये ही लोकसेवी हैं, जो जनता की भलाई करते हैं। नहीं साहब, जो भजन करते हैं, ध्यान करते हैं, वे लोकसेवी हैं। नहीं, ऐसा नहीं है। भजन करते हैं तो अपने घर करें, मेहनत करें, मशक्कत करें। जो आदमी मेहनत करता है और अपने हाथ-पाँव की कमाई खाता है, वही स्वर्ग-मुक्ति का अधिकारी है। बैकुंठ आपको तभी मिलने वाला है, स्वर्ग आपको तभी मिलने वाला है, मुक्ति आपको तभी मिलने वाली है, सिद्धि तभी आपको मिलने वाली है, चमत्कार आपको तभी मिलने वाला है और यश आपको तभी मिलने वाला है जब आप मेहनत करेंगे, मशक्कत करेंगे। तो आप पैसा खरच कीजिए नहीं साहब, हम तो भजन करेंगे और ऐसे ही मुफ्त में भोजन खाएँगे और पैसे कमाएँगे; नहीं भाईसाहब, अब ऐसा नहीं चलने वाला है।
इसलिए मित्रो, क्या होने वाला है? अगले दिनों क्या स्थापना होने वाली है? अगले दिनों विवेकशीलता की स्थापना होने वाली है। हम उस विवेकशीलता की स्थापना करने से डरने वाले नहीं हैं। हम विवेकशीलता से डरते नहीं हैं। हम बहस करने वाला से डरते नहीं हैं। हमें जो सबसे बड़ा भय है, वह उस आदमी का है जो बिलकुल जड़ हो गया हैं, जिसकी अक्ल रूढ़िवादिता में बदल गई है। जिसके मन में क्यों और कैसे का सवाल पैदा नहीं होता। हमको उससे है डर। हमको उससे डर नहीं है जो महात्माओं की निंदा करता है, जो महात्माओं से जवाब तलब करता है। हमको उस आदमी का भय नहीं है। क्योंकि हमारे पास ऐसे जबरदस्त जवाब हैं किं हम उसको, उसके दिमाग को घुमा सकते हैं, हम उसके हृदय को हिला सकते हैं। उसके मन को हिला सकते हैं, हमारे पास बहुत जबरदस्त दलीलें हैं। मित्रो, हमारे पास हर आदमी की दलीलों का जवाब देने के लिए हर आदमी को वास्तविकता को समझाने के लिए तर्क हैं। इसीलिए हम बात वहाँ से शुरू करेंगे, जहाँ से कि उसका हर बात में रोना शुरू होता है। जहाँ वह प्रश्न करता है कि शिखा से क्या फायदा? उसने बहुत सवाल कर लिया। अब हम उसकी बात का जवाब देंगे। अब हमारी बारी आई है, हम जवाब देंगे। अब हम यह सिद्ध करेंगे कि जनेऊ क्यों पहनना चाहिए? जनेऊ से क्या हो सकता है? इसको हिंदू धर्म की, हिंदू संस्कृति की स्थापना करने के लिए और उसकी विचारणा और प्रेरणाओं को हर घर में, जन-जन में स्थापित करने के लिए हम चलेंगे। हम और आप कदम से कदम मिलाकर सारे भारतवर्ष में, सारे विश्व में इसलिए चलेंगे कि हमारे हिंदू धर्म का जो मान था, उसकी जो गौरवमयी परंपरा थी, उसकी पुन: स्थापना की जा सके।
इसके लिए करना क्या होगा? हम इसके स्तम्भों की स्थापना करेंगे, प्रतीकों की, सिम्बलों की स्थापना करेंगे। प्रतीकों की स्थापना करने के बाद, सिम्बलों की स्थापना करने के बाद हम उसकी व्याख्या करना शुरू करेंगे, विवेचना करना शुरू करेंगे। निष्ठा और आस्था को जमाना शुरू करेंगे। यह हैं हमारे गायत्री और गायत्री यज्ञ अभियान का एक अंश, जिसको हमने शिखा सूत्र आन्दोलन के रूप में लिया है। इसका हमने गायत्री मंत्र और गायत्री यज्ञ के साथ जोड़कर रखा हैं। आपको इसके लिए तैयार होना चाहिए और सारे भारतवर्ष में और सारे विश्व में शिखा सूत्र की स्थापना करनी चाहिए। इसके लिए हमें कमर कसकर खड़ा होना चाहिए। आज की बात समाप्त।
।।ॐ शान्ति:।।